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उस्ताद बिस्मिल्ला खान

उस्ताद बिस्मिल्ला खान

by हिंदी विवेक
in नवम्बर २०१४, साहित्य
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शुभ कार्यों में घर के दरवाजे के पास बजने वाली शहनाई लोक वाद्य को शास्त्रीय संगीत के केंद्र में लाकर प्रतिष्ठित करने वाले महान प्रतिभा संपन्न संगीतकार उस्ताद बिस्मिल्ला खान की शहनाई के सुर आज भी रसिक जनों को मोहित कर लेते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत तथा हिंदू -मुस्लिम एकता के प्रतीक बन चुके बिस्मिल्ला खान के सुंदर जीवन का संक्षिप्त परिचय।

बिस्मिल्ला खान का जन्म बिहार राज्य के हुदराव नामक स्थान पर २१ मार्च १९१६ को हुआ। उनका नाम कमरुद्दीन रखा गया। उनके पिताजी पैगंबर खान उमराव के महाराज केशव प्रसाद सिंह के यहां शहनाई बजाते थे। उनके पूर्वज अनेक राजाओं के दरबार में शहनाई बजाने के लिए जाते थे। पूर्वजों से प्राप्त इस कला को उन्होंने उच्चता के शिखर पर प्रतिष्ठित कर दिया।

बिस्मिल्ला खान ६ वर्ष की अवस्था में वाराणसी चले आए। यहां उन्होंने अपने एक संबंधी अली बक्श के मार्गदर्शन में सुप्रसिद्ध बाबा विश् वनाथ के मंदिर के प्रांगण में शहनाई की कला को सीखना आरंभ किया।

कठिन साधना के पश् चात उन्हें शहनाई बजाने मेें महारत हासिल हुई। सन १९३७ में कलकत्ता के ‘आल इंडिया म्यूजिक कांङ्ग्रेंस में उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने लोक वाद्य समझी जाने वाली शहनाई वादन को मुख्य बैठकी में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके पश् चात शहनाई तथा बिस्मिल्ला खान एक -दूसरे के पर्याय बन गए।

जाति तथा धर्म को दूर रखते हुए उन्होंने सरस्वती, विद्या तथा कला की उपासना की। वे एक सच्चे मुसलमान थे। दिन में पांच बार नमाज पढ़ने वाले बिस्मिल्ला खान वाराणसी के विश् वनाथ मंदिर के साथ -साथ दूसरे हिंदू मंदिरों में भी शहनाई बजाते थे। वे हिंदू तथा मुस्लिम एकता के प्रतीक बन गए। उनकी इसी पहचान तथा उनकी महान प्रतिभा का सम्मान करने के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें दिल्ली के लाल किला में शहनाई वादन के लिए आमंत्रित किया गया। यह निमंत्रण उन्हें स्वयं पं . जवाहरलाल नेहरू ने दिया था। इसके बाद वे एक बार फिर २६ जनवरी १९५० को गणतंत्र दिवस के अवसर पर शहनाई वादन के लिए आमंत्रित किए गए। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के भाषण के उपरांत बिस्मिल्ला खान के शहनाई वादन का दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण एक परंपरा बन गया।

उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने भारतीय सीनेमा में भी योगदान दिया है। उन्होंने सर्वप्रथम कन्ऩड फिल्म ‘सनादी अपन्ना ’ के लिए शहनाई वादन किया। इसके बाद महान निर्देशक सत्यजीत राय के ‘जलसा घर ’ में महान भूमिका निभाई। ‘गूंज उठे शहनाई ’ के लिए भी उन्होंने कार्य किया। निर्देशक गौतम घोष उनके ऊपर लघु ङ्गिल्म बनाई है। इसके बाद २००४ में उन्होंने स्वदेश फिल्म के लिए शहनाई वादन किया। उनके ऊपर एक गीत भी चित्रित किया गया। उन्होंने जीवन के २० वर्ष तक कला की साधना की। उन्हें सारी दुनिया में नाम मिला। उन्हें सन १९६१ में ‘पद्मश्री ’, १९६४ में ‘पद्मभूषण ’, १९८० में ‘पद्म विभूषण ’ तथा २००१ मे सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें संगीत नाटक अकादमी के साथ अन्य पुरस्कार भी दिए गए हैं। बनारस हिंदू विश् वविद्यालय तथा विश् व भारती विश् वविद्यालय ने उन्हें ‘मानद डाक्टरेट ’ की उपाधि देकर गौरवान्वित किया है।

उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने कई बार विदेशों मे भी शहनाई वादन किया है। वे ‘कांस महोत्सव ’ में सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किए गए थे। ‘वर्ल्ड म्यूजिक इंन्स्टिट्यूट ’ ने उनका ८०वां जन्मदिन न्यूयार्क में मनाया।

नई दिल्ली संगीत नाटक अकादमी उस्ताद बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार देकर उदीयमान कलाकारों का गौरव करता है।

२१ अगस्त २००६ को महान शहनाई वादक कलाकार काल के मुख में समाहित हो गया। वे अपनी शहनाई को बेगम कहते थे। उन्हीं के साथ उनकी बेगम भी वाराणसी में एक नीम के पेड़ के नीचे सदैव के लिए चिरनिद्रा में विलीन हो गई।

 

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