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 आधी आबादी को पोषित करने वाली गंगा

 आधी आबादी को पोषित करने वाली गंगा

by तरुण विजय
in अगस्त-२०१५, सामाजिक
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गंगा और भारतवर्ष एक-दूसरे के पर्याय हैं। यदि सिंधु नदी के कारण हमारा और हमारी सभ्यता का नाम हिंदू तथा देश इंडिया और हिंदुस्तान कहलाया तो गंगा के कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत और पहचान सारी दुनिया में मान्य हुई। कहा भी गया कि, ‘हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है।’ हमारे लिए गंगा हमारी मां और हम उसकी संतान। हर पवित्र जल गंगा जल और हर पवित्र नदी गंगा का प्रतिरूप बन गई। जन्मते ही बच्चे के मुख में गंगा जल की दो बूंदें और अंतिम समय महाप्रयाण करते हुए मुख में दो बूंद गंगा जल की पड़ जाए तो जीवन धन्य मान लिया जाता है। आज भी हजारों-लाखों घरों में बीस-तीस-पचास साल प्ाुराना गंगा जल सहेज कर प्ाूजाघर में रखा रहता है। स्नान, ध्यान और पूजन के समय जिन पवित्र नदियों का आव्हान करते हुए कार्य आरंभ किया जाता है, उन नदियों में गंगा का नाम सबसे पहले आता है.‘गंगे च यमुने चैवगोदावरी,सरस्वती…।’ भारत के लोग विदेशों में जहां भी गए वहां उन्होंने गंगा नदी और गंगा जल का अवतरण कर दिखाया। जहां भी हिंदू जाएगा, उसे वहां गंगा चाहिए ही। मारिशस में कोटलुई के सबसे बड़े तालाब को ही गंगा तालाब नाम दे दिया और वहीं सब हिंदू रीति-रिवाज उसी धार्मिक विश्वास से प्ाूरे किए जाते हैं, जैसे कि भारत में गंगा तट पर किया करते थे। सूरीनाम की राजधानी पारामारिबू की सबसे बड़ी नदी के किनारे गंगा घाट बना है। वैसे भी गंगा मैया वहीं अवतरित हो जाती है जहां कोई भगीरथ श्रद्धा और विश्वास से उनका आवाहन करता है। संत रविदास पेशे से चर्मकार थे, पर ऐसे गंगा भक्त कि जिस कठौती (चमड़ा धोने का पात्र) में वेकाम करते थे, उसी में गंगा प्रकट हो गई और तब से मुहावरा भी चल पड़ा कि ‘‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’’

मां गंगा की सबसे सुंदर स्तुति आदिशंकर रचित गंगाष्टकम है। उसकी प्रत्येक पंक्ति अद्भुत, प्रेरक और हृदय स्पंदित करने वाली हैं। देविसुरेश्वरी भगवती गंगे, त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे।

वह गंगा मेरे प्रदेश उत्तराखण्ड से गोमुख से निकलती है और ढाई हजार कि.मी. की यात्रा कर गंगा सागर में लीन होती है। वैसे स्वामी प्रणवानंद जी के शोध के अनुसार गंगा का उदगम भी कैलास-मानसरोवर क्षेत्र में है। यह उन्होंने अपने मानसरोवर प्रवास के समय अनेक वैज्ञानिक पद्ध्तियों से सिद्ध किया है। गोमुख में भागीरथ अपने साठ हजार प्ाूर्वजों की मुक्ति के लिए शिवजी की तपस्या कर उनकी जटाओं से गंगा की धारा धरती पर उतार लाए थे इसलिए गोमुख से प्रकटी गंगा भागीरथी कहलाई। आगे देवप्रयाग में जब उसका अलकनंदा से संगम होता है, तब उस सम्मिलित धारा को गंगा नाम से प्ाुकारा जाता है। गोमुख हिमनद १२,७७० फीट की ऊंचाई पर है। वहां आदिकाल से हजारों श्रद्धालु अत्यंत कष्ट सहकर गंगा स्तुति के लिए जाते हैं और हड्डियां कंपानेवाली सर्दी में जमी हुई बर्फ से निकल रहे जल की धारा में स्नान करते हैं। वहां से आगे गंगा के जल में धौली गंगा, पिंडर, मंदाकिनी, भिलंगना और अलकनंदा का संगम होता है। टिहरी के पास भागीरथी पर विराट बांध बांधा गया है। जिस कारण निचले मैदानों की ओर गंगा का जल गर्मियों में नियंत्रित करते हुए यहां से छोड़ा जाता है। जो गंगा गढ़वाल में अठखेलियां करते हुए हजारों वर्षों से अबाधित बहती आ रही थी उसे सभ्य और विकासशील समाज की राजनीति ने ऐसा तोड़ा कि टिहरी बांध की झील दूर से देखने पर दहशत भरा जल का विराट ठहरा हुआ मौन विस्तार प्रतीत होता है और उसे देखकर महसूस ही नहीं होता कि हम गंगा जल को रोककर बनी एक बड़ी झील देख रहे हैं। वह जल विस्तार कंपकंपाता है, डराता है। अब तो हर दस-पद्रंह कि.मी. पर गंगा जल विद्युत्त परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। पहाड़ से जंगल वैसे ही भ्रष्टाचार तथा धन लोलुपता के कारण कट गए, पर्वतों का क्षरण बार-बार बाढ़ और प्रलय जैसी दुर्घटनाएं लाता है। दो वर्ष पहले केदारनाथ त्रासदी में सात हजार यात्री मारे गए थे। पहली बार गंगा का जल सुरंगों में मोड़कर बिजली पैदा करने का विकासक्रम हुआ और यात्रियों ने लाखों साल बाद पहली बार गंगा का सूखा तल देखा। यह भी हम लोगों ने ही किया।

उत्तराखण्ड से आगे चलते हुए गंगा में कन्नौज के पास रामगंगा का विशाल प्रवाह मिलता है तो प्रयाग में यमुना एवं अदृश्य सरस्वती गंगा में त्रिवेणी संगम का महान तीर्थ सृजित करती है। उत्तर प्रदेश में प्रयाग से आगे बढ़ते हुए पश्चिम बंगाल के मालदा तट पहुंचते -पहुंचते अनेक नदियां और जलप्रवाह गंगा में मिलते हैं। वहां फरक्का बैराज गंगा के प्रवाह को नियंत्रित करता है और उसमें से कुछ जल हुगली की ओर लहर में प्रवाहित होता है तथा शेष बांग्लादेश की ओर जाता है। हुगली में प्ाुनः गंगा भागीरथी कहलाती है। बांयी ओर का प्रवाह पदमा और दांयी ओर का प्रवाह भागीरथी। भागीरथी कोलकाता से १५० कि.मी. दूर गंगासागर में पहुंच कर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है तो पदमा का प्रवाह बांग्लादेश की ओर जाकर ब्रह्मप्ाुत्र और मेघना से मिलते हुए बंगाल की खाड़ी में जा समाता है।

गंगा का जल प्रवाही क्षेत्र भारत में सबसे विराट और विस्तृत है जो भारत के सम्प्ाूर्ण भू-क्षेत्र का २६ प्रतिशत है। यह क्षेत्र भारत की ४३ प्रतिशत जनसंख्या को सहारा देता है और नेपाल तथा बांग्लादेश तक पहुंचता है। गंगा क्षेत्र भारत के ११ राज्यों में व्याप्त है – उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार और पश्चिम बंगाल।

लेकिन आज गंगा अपने ही गंगा भक्तों के कारण प्रदूषित एवं आचमन स्नान के अयोग्य होती जा रही है। गंगोत्री से ही गंगा में हर प्रकार का कूड़ा-कचरा-मैला बहाना शुरू हो जाता है जो हुगली तक हजारों कारखानों के प्रदूषित जल तक चलता रहता है। गंगा को प्रदूषित करने कोई तुर्क-मंगोल या अरब नहीं आए, बल्कि जो लोग गंगा के किनारे मुक्ति की आस लिए आते हैं उन्होंने ही गंगा को खत्म किया। उत्तराखंड में कम-से-कम २४ ऐसे जल-विद्युत संयंत्र गंगा पर बने हैं जिससे गंगा खतरे में आ गई है। हरिद्वार में मैला और अन्य कचरा बहाने के कारण हर-की-पौंैड़ी के पास गंगा-जल में प्रदूषण १००० एमपीएन प्रति १०० मिलीलीटर से ४००.६० लाख एमपीएन प्रति १०० मिलीलीटर तक पाया गया है, अर्थात् आज स्थिति यह है कि यदि आप हरिद्वार में हर-की-पौंैड़ी पर स्नान करेंगे तो प्रदूषित जल से बीमार पड़ जाएंगे इसी प्रकार हुगली और दक्षिणेश्वर (कोलकाता) के पास गंगा जल के प्रदूषण का स्तर ५०००० एमपीएन प्रति १०० मिलीलीटर पाया गया है। दक्षिणेश्वर में लाखों भक्त गंगा स्नान करते हैं। यहीं वह काली मंदिर है जहां रामकृष्ण परमहंस प्ाूजा करते थे। इस स्थान पर गंगा जल में प्रदूषण का स्तर ११०,००० एमपीएन प्रति १०० मिलीलीटर पाया गया है जबकि स्नान के लिए जल की शुद्धता का स्तर न्य्ाूनतम ५०० एमपीएन प्रति १०० मिलीलीटर निर्धारित किया गया है।

क्या यह संभवहै कि गंगा किनारे शवों का अंतिम संस्कार करने की पद्धति को बदला जा सके और भक्तगण अपने प्रियजन के पार्थिव शरीर पर गंगा जल छिड़क कर या तो विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करें अथवा कम-से-कम गंगा में चिता की भस्म प्रवाहित न करें? गंगा में दूर्गा प्ाूजा की मूर्तियों और गणपति का विसर्जन भी रोका जाना चाहिए।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नमामि गंगा योजना का श्रीगणेश एक बहुत आशादायी कदम है। पहली बार गंगा की स्कच्छता के लिए सुश्री उमा भारती के नेतृत्व में एक अलग मंत्रालय बना है। केंद्रीय नौपरिवहन मंत्री नितीन गडकरी ने मई २०१५ में राष्ट्रीय जल मार्ग विधेयक २०१५ प्रस्तुत कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया, क्योंकि यदि गंगा में जल का स्तर अच्छा बढ़ाते हुए नौपरिवहन प्रारंभ हो सकेगा तो गंगा का प्राचीनकाल का वैभव प्ाुनः लौट सकेगा। उल्लेखनीय है कि हलदिया से इलाहाबाद तक गंगा का १६३० किलोमीटर प्रवाह राष्ट्रीय जलमार्ग प्रथम कहा जाता है। यह पश्चिम बंगाल, बिहार और प्ाूर्वी उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों से गुजरता है जो देश के सबसे गरीब एवं ढांचागत सुविधाओं से विहिन क्षेत्र हैं। गंगा जल मार्ग इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था बदल कर वाराणसी में राष्ट्रीय जलमार्ग प्रथम रेलवे के प्ाूर्वी मालवाही गलियारे तथा जीटी रोड से संबद्ध किया जा सकता है जिससे माल परिवहन का एक नया अध्याय प्रारंभ हो सकता है। इतना ही नहीं ब्रह्मप्ाुत्र के राष्ट्रीय जलमार्ग द्वितीय के साथ भी जल मार्ग प्रथम जुड़कर प्ाूर्वोत्तर को समृद्धि का वरदान दे सकता है। इन जलमार्गांे का प्ाुनरुज्जीवन रेलवे के एक तिहाई मालवाहक बोझ को कम कर देगा।

गंगा भारत के आर्थिक उद्यम का मेरुदंड है। एक बार यदि गंगा की स्वच्छता और उसके जलप्रवाह की शक्ति प्ाुनः लौट आती है तो भारत समृद्धि का केंद्र बन सकता है। वास्तवमें गंगा भारत की आर्थिक राजधानी है। इसको इसी रूप में स्वीकार कर नवीन भारतवर्ष का अभ्य्ाुदय गंगा के माध्यम से हो सकता है।

मो. : ९९३१८१८८८

तरुण विजय

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