हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
डिजिटल खुफियागिरी का नया दांव

डिजिटल खुफियागिरी का नया दांव

by अभिषेक कुमार सिंह
in अक्टूबर २०२०, तकनीक, सामाजिक
0

भारत सरकार ने चीनी मोबाइल कंपनियों को कारोबार के नाम पर जासूसी करने के सिलसिले में बाहर का रास्ता दिखाया है। उम्मीद करें कि इससे जासूसी के जरिए जो अहम सूचनाएं देश से बाहर जा रही थीं, उन पर प्रभावी रोक लग सकेगी।

देश में मोबाइल फोन, खास तौर से स्मार्टफोन और उनके जरिए होने वाला सूचनाओं का आदान-प्रदान जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन चुका है। बीते डेढ़- दो दशकों में हुई संचार क्रांति के बाद अब स्थिति यह है कि आम जिंदगी में कोई भी इसकी कल्पना नहीं कर सकता है कि वह किसी दिन स्मार्टफोन और उसमें मौजूद रहने वाले अप्लिकेशंस यानी ऐप्स के बिना रह सकता है। वैसे तो स्मार्टफोन ने जिस तरह हमारी जिंदगी का सुख-चैन छीना है, समाजशास्त्री उसे एक खतरनाक बात मानते हैं, लेकिन इधर खास तौर से लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की ओर से छेड़े गई छद्म संघर्ष के आगे-पीछे कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे लगता है कि इस मामले में काफी सावधानियां बरतने की जरूरत है। वैसे तो इन खतरों के मद्देनजर सरकार ने करीब सवा दो सौ चीनी मोबाइल ऐप्स को भारत में प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन हाल में पता चला कि चीन ने हमारी सूचनाएं चुराने के कई और प्रबंध कर रखे हैं। इन इंतजामों के जरिए वह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया की प्रमुख और सम्मानित हस्तियों की नियमित डिजिटल जासूसी करता रहा है।

असल में, इधर पता चला है कि चीन की एक टेक्नोलॉजी कंपनी बीते लंबे अरसे से भारत के 10,000 से भी ज्यादा व्यक्तियों और संगठनों की लगातार निगरानी कर रही थी। इनमें भारत के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, कई केंद्रीय मंत्री, कई मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और रतन टाटा और गौतम अडानी जैसे बड़े उद्योगपति भी शामिल हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि बीते कुछ महीनों में जब टिकटॉक समेत चीनी इंटरनेट कंपनियों के 225 मोबाइल ऐप्स को भारत में प्रतिबंधित किया गया और चीन की दूरसंचार कंपनियों के भारत में कारोबार के पर कतरने शुरू किए गए तो चीनी सरकार परोक्ष डिजिटल जासूसी के तौर-तरीकों पर उतर आई। हालांकि इस डिजिटल जासूसी के दायरे में सिर्फ भारत के नहीं, बल्कि दुनिया के करीब 24-25 लाख लोग बताए जाते हैं, जिनकी रोजाना की डिजिटल गतिविधियों की निगरानी चीन कर रहा था। चूंकि भारत सरकार ने इधर नागरिकों की निजता और निजी जानकारी की सुरक्षा को बहुत गंभीरता से लेना शुरू किया है, इसलिए चीन की ओर से कराई जा रही इस डिजिटल जासूसी की बारीक पड़ताल करने के लिए उसने विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया है। नेशनल साइबर सिक्योरिटी कोऑर्डिनेटर के नेतृत्व में यह कमेटी संबंधित कानूनों के उल्लंघन की आशंकाओं का भी अध्ययन करेगी और 30 दिनों में अपनी रिपोर्ट देगी।

हैरानी यह है कि जहां भारत समेत पूरी दुनिया इस डिजिटल जासूसी के लिए कोस रही है, वहीं चीन ने बेशर्मी से सूचना युद्ध का हिस्सा बताते हुए इसे हाइब्रिड वॉरफेयर का नाम दिया है। पता चला है कि चीन की सरकार और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी शिनहुआ डाटा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी दुनिया भर के राजनेताओं, नौकरशाहों, न्यायधीशों, वैज्ञानिकों, विद्वानों, पत्रकारों, अभिनेताओं, धार्मिक हस्तियों, एनजीओ के कार्यकर्ताओं के साथ ही आर्थिक अपराध, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, ड्रग्स तस्करी, सोना, हथियार या वन्यजीव तस्करी के सैकड़ों आरोपियों का पूरा डाटाबेस जुटा रही थी। भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात की अहम हस्तियों की महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचनाओं पर उसकी नजर बनी हुई थी।

यूं चीनी सरकार ने शिनहुआ डाटा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी को महज एक सुरक्षा कॉन्ट्रैक्टर बताया है, जो पैसे लेकर निजी तौर पर काम करती है। लेकिन सच्चाई यही है कि यह कंपनी चीनी सरकार के कहने पर ही पूरी दुनिया में डिजिटल जासूसी कर रही थी। यह देखते हुए कि आज सूचनाएं और इंटरनेट पर हो रही गतिविधियों का रोजमर्रा का डाटा बेहद कीमती हो गया है, चीन की इस कंपनी की हरकत बर्दाश्त के बाहर मानी जानी चाहिए। इससे भी इनकार नहीं होगा कि इस कंपनी के माध्यम से भारत समेत दुनिया के विभिन्न देशों के हजारों-लाखों की सूचनाएं जुटाकर चीन नए किस्म का सूचना युद्ध छेड़ना चाहता है।

जहां तक हाइब्रिड वॉरफेयर का सवाल है तो इसमें वॉरफेयर शब्द का शामिल होना ही कई संदर्भ स्पष्ट कर देता है। भले ही कहा जाए कि हाइब्रिड वॉर फेयर में वास्तविक युद्ध साजोसामान शामिल नहीं होते हैं, लेकिन चीनी सरकार इस कंपनी से मिले डाटा के माध्यम से किसी देश पर प्रभुत्व हासिल करना या उन्हें नुकसान पहुंचाना ही चाहती है। अगर ऐसा नहीं है तो उसकी ओर से तैनात की गई यह कंपनी जिन लोगों और देशों की निगरानी कर रही थी, वह उनके समूचे डिजिटल फुटप्रिंट की जानकारी क्यों जुटा रही थी। उल्लेखनीय है कि डिजिटल फुटप्रिंट का आशय उन व्यक्तियों और देशों आदि के मौजूद हर तरह की जानकारी है जो इंटरनेट पर मौजूद होती है। इससे निगरानी में रखे गए लोगों से संबंधित जगहों और उनकी आवाजाही संबंधी जानकारी भी तुरंत मिल जाती है। इन सभी जानकारियों की छानबीन करने के साथ-साथ नियमित तौर पर उन सूचनाओं की निगरानी करते हुए यह कंपनी एक विशाल डाटाबेस तैयार कर रही थी ताकि चीन सरकार के मांगने पर संबंधित व्यक्तियों या देशों से जुड़ी हरेक सूचना तुरंत मुहैया कराई जा सके। यह सारा कामकाज असल में लोगों और देशों की डिजिटल प्रोफाइलिंग से जुड़ा है, जिसकी मदद से उन लोगों और देशों को नुकसान पहुंचाने वाले उपाय किए जा सकते हैं और यही इस डिजिटल जासूसी का सबसे खतरनाक पहलू है।

वैसे, इस डिजिटल जासूसी के कई अन्य रूप भी हैं और इन्हें लेकर हमारे देश में पहले भी कई मौकों पर चिंता जताई जा चुकी है। जैसे भारत का इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) दो साल पहले 2018 में यह आशंका जता चुका था कि चीन के 40 से ज्यादा अप्लिकेशन्स हमारे स्मार्टफोनों को हैक कर सकते हैं। उस दौरान खास तौर से देश के सुरक्षा बलों में कार्यरत अधिकारियों और सैनिकों को सलाह दी गई थी कि वे वीचैट, यूसी ब्राउजर, यूसी न्यूज, ट्रूकॉलर और शेयरइट आदि ऐप्स को अपने स्मार्टफोनों से हटा दें। आईबी ने उस वक्त दावा किया था कि ये अप्लिकेशन्स असल में चीन की तरफ से विकसित किए गए जासूसी के ऐप हैं और इनकी मदद से जो भी सूचना, फोटो, फिल्म एक दूसरे से साझा की जाती है, उसकी जानकारी चीन के सर्वरों तक पहुंच जाती है। हालांकि उस दौरान शेयरइट नामक मोबाइल ऐप संचालित करने वाली कंपनी ने जासूसी की बात से इनकार किया था और कहा था कि वे अपनी विश्वसनीयता को साबित करने के लिए सरकार व मीडिया के साथ बातचीत को तैयार हैं। लेकिन इस साल यह साबित हो चुका है कि चीनी मोबाइल कंपनियां अपने देश के कानूनों में बंधे होने के कारण भारत समेत पूरी दुनिया से डाटा इकट्ठा करके चीनी सरकार को देती रही हैं। इसके पीछे चीन का एक कानून ’नेशनल इंटेलिजेंस लॉ’ है, जो उसने वर्ष 2017 में लागू किया था है। इस कानून के प्रावधानों के मुताबिक चीन की सभी संस्थाओं, कंपनियों और नागरिकों को जरूरत पड़ने पर सरकारी गुप्तचर एजेंसियों के लिए काम करना पड़ सकता है। यही वजह है कि हुआवे जैसे दूरसंचार कंपनी को अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में शक की निगाह से देखा जाता है क्योंकि चीनी कानून से बंधे होने के कारण उसे अपने ग्राहकों-उपभोक्ताओं की गतिविधियों की सारी सूचनाएं चीनी सरकार से साझा करनी पड़ती हैं। संभवतः इसी कारण कई कंपनियां चीन से अपना कोई संबंध होने से इनकार करने लगी हैं क्योंकि उन्हें इसका अहसास हो गया है कि चीन में पंजीकृत और चीन स्थित कंपनियों को चीन के इंटेलिजेंस कानून के प्रावधानों के कारण पूरे विश्व में शक की निगाह से देखा जाने लगा है।

  सिर्फ मोबाइल ऐप्स ही नहीं, मोबाइल और दूरसंचार से जुड़े अन्य हार्डवेयर बनाने वाली चीन की कई कंपनियां चीनी कानूनों से बंधी होने के कारण गुपचुप रूप से सूचनाएं जमा करके अपनी सरकार तक पहुंचाती रही हैं। उल्लेखनीय है कि इन्हीं आशंकाओं के तहत वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने स्मार्टफोन बनाने वाली चीन समेत कई अन्य देशों की 21 कंपनियों को इस बारे में नोटिस जारी कर जवाब मांगा था कि कहीं वे भारतीय ग्राहकों की निजी जानकारियां चुराकर अपने देशों की सरकारों और गुप्तचर संगठनों को मुहैया तो नहीं करा रही हैं। यह नोटिस सरकार की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक्स और इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी मंत्रालय ने इन सभी कंपनियों को भेजा था। चीनी मोबाइल अप्लिकेशंस, स्मार्टफोनों और दूरसंचार के उपकरण बनानी वाली कंपनियों को जासूसी के लिए संदेह के घेरे में लेने के पीछे बड़ा सवाल यह है कि सरकार ऐसे कदम क्या सिर्फ इसलिए उठाती है क्योंकि चीन से कभी डोकलाम, तो कभी गलवान घाटी में सीमा को लेकर विवाद उठते रहते हैं। इस सवाल का एक जवाब 2018 में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में लिखित रूप से दिया था। उन्होंने बताया था कि देश के एक खुफिया एजेंसी की तरफ से सरकार को वीचैट (वीफोन ऐप) को प्रतिबंधित करने की अपील मिली थी। इस अपील का मुख्य कारण यह है कि यह ऐप अपने उपभोक्ताओं को वीओआईपी प्लेटफार्म के जरिए कॉलिंग लाइन आइडेंटिफिकेशन (सीएलआई) को चकमा देने की सुविधा प्रदान करता है। सीएलआई को छिपाने से कॉलर की पहचान उजागर नहीं हो पाती है। ऐसे में फर्जी कॉल्स करने में वीचैट का इस्तेमाल किया जा सकता है। खास बात यह है कि इस अप्लिकेशन के जरिए होने वाली कोई भी कॉल विदेश में स्थित सर्वर से होकर आती है, इसलिए कॉलिंग नंबर की पहचान या उसके स्थान का पता लगाना मुश्किल होता है।

अब जिस तरह से भारत सरकार ने ऐसे सभी मामलों में सतर्कता बरतते हुए कई प्रतिबंध लगाए हैं और चीनी मोबाइल कंपनियों को कारोबार के नाम पर जासूसी करने के सिलसिले में बाहर का रास्ता दिखाया है, उम्मीद करें कि इससे हालात सुधरेंगे और जासूसी के जरिए जो अहम सूचनाएं देश से बाहर जा रही थीं, उन पर प्रभावी रोक लग सकेगी।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #cruisemissilebrahmosandroidapplecomputerseducationgadgetsprogrammingsmartphonesoftware

अभिषेक कुमार सिंह

Next Post
चीन को चाहिए करारा जवाब!

चीन को चाहिए करारा जवाब!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0