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राष्ट्रीय दिनदर्शिका और हम

राष्ट्रीय दिनदर्शिका और हम

by आबासाहेब पटवारी
in मार्च २०१३, सामाजिक
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ग्रेगोरियन कालदर्शिका का वर्ष 2013 का नया पन्ना जब हमारे समक्ष पलटने लगता है, तब उसके साथ अनेक नये संकल्पों को भी हमारा मन सहेजने लगता है। तेज गति से दौड़ने वाले इस तकनीकी अधिसूचना के जमाने में एक और जहाँ हम अतीत की अनेक पुरानी बातो को पूरी तरह से नकारते हैं, वही कुछेक बातों को राष्ट्रीय अस्मिता के निर्देशक के रूप में अपनाते भी हैं। हमने रुपये को अपनाया लेकिन उसे हम सोलह आनों के बजाय 100 पैसो में गिनने गले। सेर, पौंड आदि नापों को हमने काफी जद्दोजहद के बाद किलो, लीटर, मीटर आदि नये दशमलव रूपों में अपनाने के लिए मजबूर किया। स्वातंत्रता प्राप्ति के बाद हमने राष्ट्रीय अस्मिता को दर्शाने वाली अनेक बातों का निर्माण किया और उन बातों ने समाज में अपना सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया। आने वाली नयी पीढी स्कूल में प्रवेश करते ही अशोक चक्र से मंडित अपने राष्ट्रीय ध्वज से परिचित होकर ‘भारत मेरा देश है और… यह कहते हुए अपने संविधान के साथ अपनी पहचान जताई है। ‘सत्यमेव जयते’ इस भारतीय नारे के साथ भी उन्होंने स्वयं को जोड़ दिया है। राष्ट्रीय पक्षी-मोर, राष्ट्रीय फूल- कमल, राष्ट्रीय प्राणी- शेर आदि बातों को वे जानने लगे हैं। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी हमारी इन बातों को हम बचपन से ही जानते हैं। हमारी इस नयी पीढ़ी तक हम सिर्फ एक बात नहीं पहुंचा पाये हैं और वह है, हमारी संवाद द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकृत और प्रसारित की गयी हमारी राष्ट्रीय दिनदर्शिका! यह दिनदर्शिका हमारे राष्ट्र का गौरव है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कॅलेंडर तथा उसमें निहित त्रुटियों के बारे में इस क्षेत्र के विशेषज्ञों तथा भारतीय दर्शनिकों ने गहन चिंतन किया तथा स्वतंत्र राष्ट्र के लिए अपनी काल गणना पद्धति विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। अपनी इस सोच तथा चिंतन को उन्होंने संसद के समक्ष प्रस्तुत किया। इस चिंतन का सम्मान करते हुए भारतीय संसद ने संपूर्ण वैज्ञानिक तौर पर बनायी गयी सौर दिनदर्शिका को अपनाने हेतु अपनी सहमति दी। उसके पश्चात सम्पूर्ण भारतीय अस्मिता का सम्मान करने वाली तथा उससे जुड़े चिंतन को समाहित करने वाली दिनदर्शिका भारत को प्राप्त हुई वह दिन था, 22 मार्च 1957।

वर्ष 1952 में प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद शाह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी। इस राष्ट्रीय कालगणना पुनर्रचना समिति के अन्य गणमान्य तथा विशेषज्ञ सदस्य थे। सर्वश्री प्रा.अ.च. बैनर्जी, पंडित के.ल.दफ्तरी, ज.स.करंदीकर,पं.गोरख प्रसाद, प्रा. सत्येंद्र बोस, प्रा.र.वि. वैद्य, तथा डॉ. अकबर अली। इस समिति के सचिव थे श्री निर्मलचंद्र लाहिडी। इस समिति ने देश की कालगणना की विविधता के मद्देनजर एकता का मूल उद्देश्य सामने रखकर, सबको समाहित करने वाली दिनदर्शिका बनायी। अपनी इस राष्ट्रीय दिनदर्शिका का पहला दिन 22 मार्च है। भारतीय संकल्पना के अनुसार इसे चैत्र प्रतिपदा कहा जाता है। इस दिन। दिन और रात 12-12 घंटों यानी समान अवधि का होता है।

इस दिनदर्शिका के सभी माह, चैत्र, वैशाख आदि…है। सिर्फ मार्गशीर्ष माह को अग्रहयण नाम से जाना जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर की तरह यह दिनदर्शिका किसी व्यक्ति विशेष के नाम से जुड़ी नहीं है। बल्कि यह दिनदर्शिका सूर्य की गति के साथ राशियों तथा ऋतुओं के जुड़े रिश्ते की मजबूत वैज्ञानिक नींव पर आधारित हैं। इस दिनदर्शिका को समझना बड़ा आसान है। वैसे हमने इस दिनदर्शिका का महज स्वीकार भर किया लेकिन उसे हम लोगों के मन पर अंकित नहीं कर पाये। इस राष्ट्रीय दिनदर्शिका की तिथियों का उल्लेख हम गौण रुप में ही सही लेकिन अधिकतर दिनदर्शिकाओं में करने लगे हैं। बँकों के लिए भी भारतीय दिनदर्शिका के दिनांक के अनुसार चेक्स स्वीकारना अनिवार्य है। समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इस से संबंधित परिपत्र भी जारी किये गये हैं। बावजूद इसके पर्याप्त जानकारी न होने के कारण तथा अज्ञानता वश कुछेक बैंक अधिकारी भारतीय दिनदर्शिका से संबंधित दिनांक वाले चेकों को नामंजूर कर देते हैं। लेकिन कानूनी प्रावधान, नियमों को दिखाये जाने पर उन्हें मजबूरन स्वीकार भी कर लेते हैं। यह इसलिए होता है, क्योंकि अब तक न तो हम इस दिनदर्शिका को आम लोगों के दिल तक पहुचा पााये हैं और ना ही उसे प्रशासनिक अधिकारियों तक असरदार तरीके से पहुंचा पाये हैं। यदि इस बात की सुलभता और राष्ट्रीय अस्मिता को सभी क्षेत्रों तक पहुंचा सकते तब ना तो कोई समस्या आती ना ही मनभेदों का माहौल बनता और भारतीय दिनदर्शिका की तिथियों का उपयोग लोगो द्वारा व सम्मानजनक तरीके से किया जाता और इस दिशा में किये गये विश्वस्तरीय चिंतन से भी भारतीय चिंतन बेहतर है और यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान है, इस बात को लोगों ने अपनाया होता।

वर्ष 2012 को हमने हाल ही में विदा किया है और मेरा मानना है कि हमारे पास अब भी समय है। अपनी इस अस्मिता को बचा कर हम अब भी इसे सामान्य लोगों तक पहुंचा सकते हैं। कम्प्यूटर ने अब इस बात को और भी आसान बनाया है। हमारी नयी पीढी बचपन से ही कम्प्यूटर का उपयोग करना जानती है। इतना ही नहीं, कम्प्यूटर तथा तदनुषंगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करने में उन्होंने महारत हासिल की है, अत: स्कूल में प्रवेश करने वाला एकाध छोटा सा बच्चा अपने दादा-दादी या नाना-नानी को कम्प्यूटर की सहायता से पलभर में भारतीय तिथि के विकल्प के रूप में अंग्रेजी तिथि बता सकेगा। इस दिनदर्शिका के जरिए व्यक्तिगत श्रद्धा और तिथियों को किसी अवरोध के बिना सहे जा सकता है। अपने त्योहारों को भी हमेशा की तरह मनाया जा सकता है। इसके साथ ही भारत के सभी राज्यों को उनकी विविधता को कायम रखते हुए एक ही डोर से राष्ट्रीयता की भावना से जोड़ा जा सकता है और यह काम भारतीय प्रजातंत्र के सेवक कहलाने वाले जनप्रतिनिधि यदि देश के सर्वोच्च सभागृह की ओर से लिये गये इस निर्णय को अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक ईच्छा शक्ति को एकजुट कर अपनाएगें तो प्रसार माध्यमों की ओर से भी उन्हें सहयोग और समर्थन मिलेगा और उसमें कालनिर्णय के माध्यम से लोगों के घरो की दीवारों पर ही नहीं बल्कि उनके दिलों पर भी अपनी मुहर लगाने वाले कालनिर्णय के निर्माणकर्ता का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण होगा। यदि यह होता है, तब भारतीय दिनदर्शिका भारत को समाहित कर पूरे विश्व के चिंतन के रूप में ग्लोबल विलेज को भी जीत लेगी, इस बात का विश्वास है।

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