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कामयाबी की राह आसान नही लेकिन हौसला हो तो कुछ नामुमकिन नही

कामयाबी की राह आसान नही लेकिन हौसला हो तो कुछ नामुमकिन नही

by नीलम शुक्ला
in मार्च २०१३, सामाजिक
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किसी पुरुष की सफलता के पीछे नारी का हाथ माना जाता है, पर अफसोस उसी नारी को अपना वजूद स्थापित करने के लिए और एक मुकाम हासिल करने के लिए न जाने कितनी ही अग्निपरीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, नारी का जीवन संघर्षमयी होता है। चाहे हालात कैसे भी हो, बचपन, जवानी या फिर बुढ़ापा जीवन के हर पड़ाव पर उन्हें ना चाहते हुए भी पुरुषों पर आश्रित होना पड़ता है। बचपन में लड़कियों को अपने पिता के हर फैसले को मानना पड़ता है। शादी के बाद अपने पति की और बुढापे में बेटे पर आश्रित होना पड़ता है। नारी स्वतंत्र रूप से अपने लिए किसी प्रकार का निर्णय नही ले पाती है, मर्यादा, समाज और सभ्यता इसमें बाधा डालती है। ऐसा कहा जाता है कि महिलाओं और पुरुषों में कोई नही है, लेकिन कही ना कही फर्क दिख ही जाता है। औरतों को पुरुषों के मुकाबले कम सब्झा जाता है। समय के साथ-साथ हर चीज में बदलाव होता हैं। आज इसी बदलाव के कारण महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाब है चाहे वह भाजीवाली हो या एक महिला नेता। आज हरक्षेत्र में महिलाओं ने अपना वर्चस्व स्थापित किया है। हां शुरुवात में काफी संघर्षमय तरीकों और बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है लेकिन बाद में धीरे-धीरे राह आसान हो जाती है। फिर इन कामयाब महिलाओं को पीछे मुडकर देखने की जरूरत नही पड़ती है। अधिकतर पाया गया, हैं कि जिन महिलाओं में कुछ कर गुजरने का जुनून होता हैं। वही महिलाएं कड़ी से कड़ी परिश्रम करके अपने मुकाम को हासिल कर ही लेती है। उदाहरण के तौर पर ऐसी ही कुछ महिलाओं से हम आपको अवगत करांएगे।

1) श्रीमती शैल शुक्ला
(हाउसवाइफ)
हाउसवाइफ बनना मेरे लिए गर्व की बात हैं, हाउसवाइफ रहते हुए मैंने परिवार की उपयोगिता जाना है। विवाह से पूर्व मुझे परिवार क्या हैं? शादी के बाद क्या होगा? इसकी जानकारी नही थी। शादी के बाद मुझे सेट होने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कभी परिवार के लोग खुश है तो कभी नाराज हुए मेरी जिम्मेदारियों को लेकर। कई बार लगा कि हाउसवाइफ बनना बड़ा कठिन काम है। मन में सवाल आते थे कि मैं अपनी जिम्मेदारियों को निभा पाऊंगी या नही, लेकिन मैंने हार नही माना, और ठान लिया था कि सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बजूबी निभाते हुए मैं एक बेहतरीन हाउस-वाइफ बनूगी। वक्त बीतता रहा मैंने धीरे-धीरे अपने परिवार के सदस्यों का दिल जीत लिया था और पूरे परिवार की शिकायत मुझसे दूर हुई। हाउसवाइफ बने रहने के बावजूद मेरा स्वाभिमान बरकरार रहा। पूरे घर का मैनेजमेंट संभालते हुए मैंने अपने बच्चों बेहतरीन शिक्षा प्रदान किया। आज मेरे बच्च्चे इस काबिल हो गये है कि मैं उनपर और खुदपर गर्व महसूस करती हूं। अब इतने सालों पूर्व भी घर का मैनेजमेंट मैं बजूबी निभा रही हूं। हाउसवाइफ बनना बडे ही फर्क की बात है। हां हाउसवाइफ बनना आसान नही लेकिन कोशिश करने के बाद किसी भी लक्ष्य के पाया जा सकता है। परिवार के साथ रहकर उनकी हर छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा करने में जो खुशी मिलती है मैं बया नही कर सकती हूं।

2) प्रेमा मनी
(स्कूल प्रिंसीपल)

मैं मिडल क्लास परिवार से तालूक रखती थी। मेरी पढ़ाई बोरिवली से हुई घर की परिस्थितियों को देखते हुए मैंने काम करने का निर्णय लिया, लेकिन पिताजी को लड़कियों का घर से बाहर जाकर काम करना पसंद नही था। खासकर आफिस जॉब ऐसे में मैंने स्कूल में पढाने का निर्णय लिया। पिताजी को राजी किया। स्कूल में पढाते हुए भी मैंने बडी कठिनाइयों का सामना किया, कभी घरवालों की टेंशन, कभी स्कूल की तरफ से परेशानी होती थी, कई बार मैंने सोचा कि सब कुछ छोड़ दूं। लेकिन अगर में सबकुछ छोड देती उस वक्त तो मेरा आत्मविश्वास हमेशा के लिए मर जाता, मेरे सपनों को पंख लगने से पहले ही कट जाते? सारी स्थितियों मैंने धीरे-धीरे हराना शुरू किया।
बच्चों को पढाते हुए मैंने खुद डीएड किया ताकि मैं एक अच्छी टीचर के रूप में और अधिक प्रगति कर सकू। स्कूल मे मेरी पहली तनख्वाह 450/- रु. थी। लेकिन फिर भी इस रकम घरवालों को मैं थोड़ी मदद कर पाती थी। कुछ सालों बाद शादी के पूर्व मैं डोंबिवली आ गई, यहां भी मैंने एक स्कूल में पढाना शुरू किया। धीरे-धीरे जिंदगी चलती रही अच्छे-बुरे दौर से, आज मैं उस स्कूल से रिटायर होने के बाद भी दूसरे स्कूल में एक प्रिंसीपल के रूप में कार्यरत हूं। आज लगता है कि मैंने जो सपने देखे वो पूरे हो गए। बच्चों के बीच मुझे एक अलग ही खुशी का एहसास होता है। टीचिंग जॉब परिवार की देखरेख के साथ की जा सकती है। ये एक सिक्यूर जॉब होता है। किसी को शिक्षा देना बड़ा ही पुण्य का काम हैं। अपने आप में ही खुद को गौरान्वित करता हैं।

3) भाग्यश्री प्रभुघाटे और परांजपे
(कैटरिंग व्यवसाय)

शुरू में हम दो अनजान महिलाओं ने मिलकर अपनी मेहनत से संघर्षमयी तरीके से कैटरिंग व्यवसाय को आज इतना विस्तृत कर दिया है। कि हमारा व्यवसाय आज के समय में करोडों की डील करता है। शून्य से शुरू किया गया यह व्यवसाय हमारे मजबूत इरादों और मेहनत से काफी ऊंचाइयों पर पहुंच गया हैं। जब हमने सोचा कि खुद का कुछ व्यवसाय शुरू किया जाए जिसमें हम परिवार को भी वक्त दे सके। काफी सोच-विचार के बाद हमने कैटरिंग व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया, शुरू में काफी दिक्कते आई लेकिन हमारा आत्मविश्वास बहुत मजबूत होने के कारण हमने दिक्कतों को हरा दिया। शुरू में सिर्फ दस, बीस जान-पहचान वालों के आर्डर मिलते थे, फिर धीरे-धीरे हमारा यह व्यवसाय बढ़ता चला गया, एक वो वक्त था जब हमें लगता था कि हमारा यह कदम हमें कहां ले जाएगा और आज का वक्त है जहां हमारा कैटरिंग व्यवसाय तेजी से प्रगति कर रहा है। और व्यवसाय की कामयाबी के साथ-साथ हम दोनों बेस्ट फ्रेंडस भी बन गई है। घर-परिवार को संभालते हुए भी हमारा व्यवसाय आसमान छू रहा है अब हमें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नही है। अपने काम से हम संतुष्ट हैं। आज कोई भी ओकेशन हो आर्डर हमें ही मिलते हैं। लोगों का विश्वास हम पर बना हुआ है। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में हम और आगे जाए। एक महिला होने के नाते गौरव होता है कि सारी जिम्मेदारियों को हम बखूबी निभा रहे हैं। अपनी मेहनत और मजबूत इरादों के कारण हमने एक मुकाम हासिल कर लिया। कुछ कर दिखाने की लग्न ने हमें एक मजबूत, कैटरिंग व्यवसायी के रूप में अलग ही पहचान दिया है। हमारे अनुसार महिलाओं में यह खूबी होती है कि परिवार के साथ-साथ करियर भी बैलेन्स कर सके बस जरूरत है तो बुलंद हौसले और मजबूत इरादों की फिर मंजिल आपके कदम चूमेगी।

4) निर्मला ताई
(भाजीविक्रेता)

मैंने बचपन से गरीबी देखा है निचले वर्ग से मेरा तालुक था। खाने के लिए पैसे नही होते थे तो पिताजी कहा से पढाते? इसलिए मेरे परिवार में मेरे भाई-बहनों और मैंने पढाई नही किया। बचपन से ही तंगी देखने के कारण मैंने सोचा कुछ करूं जिससे परिवारको मेरी तरफ से थोडी मदद मिल सके। कम से कम भाई-बहनों को दो वक्त का खाना नशब हो सकते। इसी सोच में मैंने टोकरी में रखकर भाजी बेचना शुरू किया। बच्ची होने के कारण मुझसे कई बार लोग बिना पैसे के भाजी ले जाया करते थें। कभी-कभी तो एक रूपये तक की बिक्री नही होती थी दिनभर सड़को पर घूमने के बाद धूप की परवाह किए बिना नंगे पाव, भूखे रहने के बावजूद सिर्फ निराशा हाथ लगती थी। कई बार मानसिक प्रताडना भी झेलनी पड़ती थी, एक लड़की होने के नाते मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने हार नही मानी धीरे-धीरे मैंने सारी कठिनाईयों को मात देते हुए अपनी एक जगह बनाई मेरा परिवार भी अच्छे से चलने लगा। मैंने भाई-बहनों की पढ़ाई का जिम्मा लिया और मेरे भाई-बहन आज पढ़-लिखकर अपने जीवन में खुश है। और इस भाजी व्यवसाय ने मुझे लोगों के दिल में अलग सी पहचान दी है। आज लोग मुझे निर्मला ताई भाजी वाले के नाम से जानते है। जब मुझे लोग इस नाम से पुकारते है तो बड़ा ही गौरव महसूस करती हूं। पहले मैं टोकरी में भाजी बेचती थी। आज सीएसटी में मेरी एक भाजियों की स्टाल हैं। मेरा व्यवसाय बहूत अच्छी तरह फल-फूल रहा हूं। परिवार में भी खुशी की लहर है। सब अच्छा-अच्छा हो रहा है। मैं भगवान का सुक्रिया अदा करती हूं कि उन्होंने मुझे इतनी मजबूती दी ताकि मैं हर मुसीबत को हराकर अपने निर्णय पर अटक रहूं। दुख के दिन थे लेकिन आज में गर्व से कह सकती हूं कि भाजीवाली कहलाने में मुझे गर्व महसूस होता है। मैं अपने काम और जीवन से संतुष्ट हूं। मैंने अपने इस काम से जाना कि अगर आप में कुछ बनने की चाह और जिद्द हो, तो आपको कामयाब होने से कोई रोक नही सकता है।

4) मनिषा धात्रक
(नगरसेविका)

एक नगरसेवक के रूप में मैं लोगों की हर छोटी, बड़ी समस्याओं को सुलझाना बेहद पसंद करती हूं। मैं समझती हूं जनता की सेवा करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मेरा वार्ड महिला वार्ड होने के कारण लोगों ने मुझे प्रोत्साहित किया की मैं नगरसेवक चुनाव में खडी होऊ।
लोगों की तरफ से इतना प्यार मिलने के कारण मैं चुनाव में खड़ी हुई और लोगों के प्यार और अपने पति के सहयोग से जीतकर आई। वैसे मुझे राजनीति आने में ज्यादा परेशनियों का सामना नही करना पड़ा। क्योंकि एक स्त्री के लिए उसके पति का सहयोग सबसे बडा होता हैं मेरे हर फैसले और अच्छे-बुरे वक्त मैं मेरे पति ने मुझे सहारा दिया है। लोग कहते है कि एक पुरुष की तरक्की के पीछे किसी ना किसी स्त्री का हाथ होता है। लेकिन मैं कहती हूं कि आज मैं कहती हूं कि आज मैं जो कुछ भी हो उसमें मेरे पति का मुझे पूरा सपोर्ट हैं। मेरी मेहनत और मेरे पति का साथ दोनों के कारण आज मैं एक सफल नारी हूं। घर के साथ-साथ जनता की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हूं इन पांच सालों में मुझसे जो बन पड़ेगा जनता के हित के लिए वो काम करूंगी। खासकर महिलाओं के लिए मेरा कर्तव्य अधिक है। मैं महिलाओं से यही कहना चाहूंगी कि हर क्षेत्र में आगे आकर काम करे। अपने सपनों को साकार करे। भगवान ने महिलाओं की इतनी ताकत प्रदान की है कि घर की जिम्मेदारियों के साथ अपना करियर भी संभाल सकती है। एक महिला होने के नाते मैं अपने कामयाब होने पर गर्व महसूस करती हूं। अगर खुद में दम हो और इच्छा पूरी करने का दम हो तो ऊंची उड़ान भरने से कोई नही रोक सकता है।

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