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भारत का ह्रदय

भारत का ह्रदय

by प्रवीण पाराशर
in जून -२०१३, पर्यटन
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मध्यप्रदेश को भारत का हृदय कहा जाता है। पर्यटन की दृष्टि से लोगों को आकर्षित करनेवाले कई स्थान यहां हैं।मध्यप्रदेश को ऐतिहासिक विरासत प्राप्त है अतः यहां के दर्शनीय स्थल मुख्यत: तालाब,झीलें, मंदिर इत्यादि हैं, जिन्हें यहां के विभिन्न शासकों द्वारा बनवाया गया था। यहां का प्रत्येक शहर अपनी एक अलग पहचान लिये हुए है। सांस्कृतिक दृष्ति से भी यह राज्य समृद्ध है जिसका परिचय इसके शहरों और गावों से मिलता है।

भोपाल : यह एक बहुरंगी शहर है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर अनूठी प्राकृतिक छवि, ऐतिहासिकता और आधुनिक नगर नियोजन की नायाब कृति है। ग्यारहवीं सदी के भोजपाल नामक शहर को राजा भोज ने बसाया था। बाद में इसकी नींव दोस्त मोहम्मद (1708‡1740) ने डाली थी। दोस्त मोहम्मद की मुलाकात रूपवती गौड़ रानी कमलापति से हुई थी, जिसने अपने पति की मृत्यु हो जाने पर भोपाल की कमान सम्भाली। भोपाल की दोनों झीलें पर्यटकों के लिए खूबसूरत सौगात हैं। भोपाल एक बहुरंगी नजारे की तस्वीर पेश करता है। एक ओर पुराना शहर है, जहां पर बाजार, पुरानी सुन्दर मस्जिदें एवं महल हैं, वहीं दूसरी ओर नया शहर जिसके सुन्दर पार्क, हरे‡भरे वृक्ष गहरा सुकून देते हैं। वर्तमान में यह शहर बॉलीवुड के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है। सांची बौद्ध एवं भारतीय ज्ञान समन्वय वि. वि., अटल बिहारी वि. वि., हिंदी वि. वि. इस शहर में गत दो वर्षों में नये वि. वि. के रूप में स्थापित किये गए हैं।

दर्शनीय स्थल‡ ताजउल मस्जिद (1868‡1901), मोती मस्जिद, सदर मंजिल, भारत भवन, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, राजकीय संग्रहालय, वन विहार, मछली घर, चौक, बड़ी और छोटी झीलें, इस्लाम नगर, सैर-सपाटा, आदि।

मैहर‡ विंध्यान्चल की पहाड़ी पर स्थित यह स्थान 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि यहां पर सती की आंख प्रक्षेपित हुई थी। शारदा मां को समर्पित इस मन्दिर में वर्ष भर पर्यटकों का आना‡जाना अनवरत लगा रहता है। यहां पर विशेषतया नव रात्रियों में मेले लगते हैं। कैसे पहुंचें‡रेलमार्ग‡ मैहर मुंबई-हावड़ा मार्ग पर स्थित है, सभी मुख्य गाड़ियां यहीं से निकलती हैं।

चित्रकूट‡ समग्र प्रशान्त वन, नीरव बहती नदियां और झरने समूचे वातावरण को शान्ति और विश्राम की अनुभूति से भरते हैं। चित्रकूट की आध्यात्मिक विरासत का उद्गम सुदूर अतीत में जनश्रुतियों के काल में स्थित है। यहां के घने वनों में प्रभु श्रीराम और सीता अपने भाई लक्ष्मण के साथ निर्वासन काल के चौदह वर्ष में से ग्यारह वर्ष बिताये थे। यहां अत्रि मुनि और सती अनुसुइया का आश्रम है। इस आश्रम में ब्रह्म, विष्णु, महेश ने बाल अवतार लिये थे।

दार्शनीय स्थल‡ राम घाट, पवित्र नदी मंदाकिनी का घाट, कामदगिरी, जानकी कुण्ड, स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी, हनुमान धारा, भरत कूप व कई मन्दिर हैं। यहां का अनुकूल समय जुलाई से मार्च है।

उज्जैन‡ पवित्र नगरी यह मन्दिरों की नगरी है। यहां महाकाल बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। यहां की भस्म आरती जो कि प्रात: 4 से 6 के बीच होती है, विश्व प्रसिद्ध है। यहां संदीपनी आश्रम, जहां भगवान श्री कृष्ण ने शिक्षा ली। माता हरसिद्धी का मन्दिर, महाकाल मन्दिर के नजदीक ही है। गढ़कालिका मन्दिर, काल भैरव मन्दिर, मंगलनाथ मन्दिर व वेदशाला प्रसिद्ध है। उज्जैन का नाम पवित्र सात पुरियों में से एक है, जहां जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त होता है। यहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ मेला लगता है।

बांधवगढ़‡ समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के बीच राष्ट्रीय उद्यान है। यह क्षेत्रफल में छोटा है पर सघन है। पूरे भारत में तुलनात्मक रूप में अधिक बाघ यहीं हैं। सफेद शेर की मातृभूमि कहलाने का सौभाग्य भी बांधवगढ़ को ही जाता है। यह चारों ओर चट्टानों से घिरा यहां 2000 वर्ष पुराना किला भी है। आसपास कई गुफाएं हैं जिनमें प्राचीन संस्कृत शिलालेख उत्कीर्ण हैं, जिसका क्षेत्रफल 448 वर्ग किलोमीटर है। समुद्र सतह से औसतन ऊंचाई 811 मीटर है। यह शहडोल से लगा हुआ है।

इस उद्यान के घने जंगल में शेष शैया पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति है। यहां बाघ को देखने के लिए पर्यटकों को हाथी की सवारी करनी होती है। बांधवगढ़ में विभिन्न पक्षियों की अधिकाधिक प्रजातियां पायी जाती हैं। यहां कोबरा, करैत, वाइपर, धामन और अजगर भी देखने को मिलते हैं।

पन्ना‡ यह बुंदेलखण्ड राज्य की राजधानी रही है, इसका पौराणिक नाम पद्मावती माना जाता है। यह हरियाली से घिरा एक आदर्श स्थान है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान प्रोजेक्ट टाईगर के अन्तर्गत लाया गया। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की सुन्दरता केन नदी के बहने से और बढ़ती जाती है जो 55 कि.मी. तक उद्यान में बहती है। यहां महामति प्राणनाथजी मन्दिर, किंगवल्चर, अजयगढ़ का किला, आदि स्थान हैं। यहां का मौसम अक्टूबर से जून तक अनुकूल है।

पचमढ़ी‡ भारत के हृदय प्रदेश की सबसे हरी-भरी मणि मंजूषा पचमढ़ी को प्रकृति ने अपनी सुन्दर छटा असंख्य मोहक रूपों में प्रदान की है। सतपुड़ा के वनों व पर्वतों से घिरा यह क्षेत्र पर्यटकों को अपनी और खींचता है। इस रमणीय स्थल को अंग्रेज कैप्टन फोरसिथ ने 1857 में खोजा था। उन्होंने इसका विकास रिसोर्ट के रूप में किया था। यहां के दर्शनीय स्थल वाटरफॉल (प्रपात) बीफॉल के नाम से प्रसिद्ध है। यहां अप्सरा विहार, रजत प्रपात, महादेव के नाम पर शिवलिंग व पहाड़ पर गुफाओं में उकेरे चित्र हैं। यहां जटाशंकर एक पवित्र गुफा है।

धूपगढ़‡ यह सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी है जो सूर्यास्त को देखने के लिए प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त पाण्डव गुफा, त्रिधारा, वनश्री विहार, रीछगढ़, संगम, कैथोलिक चर्च, क्राइस्ट चर्च, सतपुड़ा नेशनल पार्क, बाइसन लॉज इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं। यहां वर्ष भर पर्यटक आते हैं।
अमरकंटक‡ अमरकंटक के घने जंगलों में जन्मी पतित पावनी शिवपुत्री नर्मदा का जन्म स्थान मन को आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करता है। अमरकंटक एक छोटा सा कस्बा है। यहां 24 मन्दिर हैं जिसमें नर्मदा उद्गम, माता नर्मदा मन्दिर, त्रिमुखी मन्दिर, केशवनारायण मन्दिर, जिसका निर्माण नागपुर के भोसले शासक ने करवाया था। इसके अलावा सोनमुडा, माई की बगिया, कपिल धारा यह 24 मीटर ऊंचाई से गिरता नर्मदा का पहला प्रपात है। यहां (1440‡1518 ई.) का कबीरदास का कबीर चबूतरा भी है।

सांची‡ बौद्ध कला का स्वर्ण शिखर सांची के स्तूप, जिनका निर्माण ईसवी पूर्व तीसरी सदी से लेकर ईसवी सन बारहवीं सदी तक हुआ। इसमें मुख्य व विशाल स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने किया था। स्तूपों के तोरण द्वार पर भगवान बुद्ध का चित्रांकन प्रतीक रूप में हुआ है। स्तूप क्रं.3 में भगवान बुद्ध के दो सबसे पहले शिष्यों‡ सारिपुत्रा और महाभोगलेना के अवशेष इसके भीतर के कक्ष में प्राप्त हुए थे। यहां एक महापात्र है जो एक ही पाषाण खंड से तराशा हुआ है जिसमें बौद्ध भिक्षुओं के लिये बांटा जाने वाला भोजन रखा जाता था। यहां का अनुकूल मौसम जुलाई से मार्च है।

चन्देरी‡गौरवमयी विरासत‡ बेत्रवती एवं उर्वशी नदियों के मध्य विंध्यान्चल की सुरम्य चन्द्रकार पर्वत श्रेणियों में अवस्थित चंदेरी पौराणिक नाम चेदिराज के रूप में प्रख्यात थी।

इस प्राचीन नगरी पर गुप्त वंश, प्रतिहार वंश, गुलाम वंश, तुगलक वंश, खिलजी वंश, अफगान वंश, गौरी वंश, बुंदेली राजपूतों व सिंधिया वंश ने शासन किया। वर्तमान चंदेरी नगर को दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी के बीच प्रतिहार वंश महाराज कीर्तिमान कुरूमदेव ने बसाया था। अन्य दर्शनिय स्थल‡चंदेरी का किला, जागेश्वरी देवी मन्दिर, बूढ़ी चंदेरी, बैहरी मठ, देवी प्रतिमा, खंदार गिरी, दिल्ली दरवाजा, सिंहपुर महल पुरातत्व संग्रहालय, बत्तीस बावड़ी कटीघाटी, बादल महल दरवाजा, जौहर स्मारक आदि।

खजुराहो प्रेम की शाश्वत अभिव्यक्ति‡

सन 1950 से लेकर 1050तक चन्देल राजपूतों के शासन काल में जीवन के विविध कार्य-कलाप, रूप एवं मन:स्थितियों को यहां पाषाण में बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ उत्कीर्ण किया गया है। खजुराहों के मन्दिर विश्व को भारत की अनुपम देन है। यहां 85 मूल मन्दिरों में अभी 22 मन्दिर विद्यमान हैं, जो दुनिया के महान कलात्मक आश्चर्यों का अद्भुत उदाहरण हैं।

यहां के मन्दिर‡ कंदरिया महादेव, चौसठ योगिनी, चित्रगुप्ता मन्दिर, विश्वनाथ मन्दिर, लक्ष्मण मन्दिर, मातगेश्वर मन्दिर, पार्श्वनाथ मन्दिर (1860) घण्टाई मन्दिर, आदिनाथ मन्दिर, दूल्हादेव मन्दिर, चतुर्भुज मन्दिर हैं।

दर्शनीय स्थल‡ माधव राष्ट्रीय उद्यान, छतरियां, माधव विलाव प्रासाद, जॉर्ज कैसल, सख्या सागर बोट क्लब, भदैयश कुण्ड, आदि।

जबलपुर‡ यह संस्कारधानी के नाम से प्रसिद्ध बारहवीं सदी में गोड़ राजाओं की राजधानी थी। इसके पश्चात इस पर कलचुरी वंश का अधिकार हुआ। सन 1817 तक यह मराठों के अधीन रही, जिसे ब्रिटिश शासकों ने छीनकर अपनी बैरकों एवं विशाल छावनी के रूप में इस्तेमाल किया। आज जबलपुर एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केन्द्र तथा व्यावसायिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है।

दर्शनीय स्थल‡ मदनमहल फोर्ट 1116 में गोंड राजा मदन शाह ने चट्टान पर बनवाया था। इसके अलावा तिलवारा घाट, रानी दुर्गावती स्मारक संग्रहालय, नर्मदा क्लब आदि।

जबलपुर से बहकर पुण्य सलिला नर्मदा निकलती हैं। नर्मदा के प्राकृति सौन्दर्य के कारण कई रमणीय स्थल जबलपुर को मिले हैं जैसे‡मार्बल रॉक्स, भेड़ाघाट, आकाशोन्मुक्त शान्त एवं अनिमेष खड़ी हुई चट्टानें जिसके बीच से कल‡कल बहती हुई नर्मदा का अमृत तुल्य जल। मार्बल रॉक्स, धुआंधार प्रपात, चौसठ योगिनी मन्दिर, इत्यादि।

पेंच‡ मध्य प्रदेश के दक्षिणी भाग में महाराष्ट्र की सीमा से लगा यह राष्ट्रीय उद्यान 757.90 स्क्वायर कि. मी. के क्षेत्र में फैला है। इस वन प्रदेश के भीतर बहने वाली पेंच नदी के कारण ही इस उद्यान का नाम पेंच पड़ा। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध पुस्तक ‘द जंगल बुक’ पेंच के जंगलों की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी है।

यहां चीतल, सांभर, नील गाय, जंगली कुत्ता एवं जंगली सुअर पाये जाते हैं। यह नागपुर रेलवे स्टेशन से 92 कि.मी. की दूरी पर है।

महेश्वर‡ भारतीय सभ्यता के ऊषाकाल का यह शहर जिसका प्राचीन नाम महिष्मती था, जो राजा कार्त वीर्यार्जुन की राजधानी थी। रामायण और महाभारत के नगर का उल्लेख मिलता है। होल्कर वंश की रानी अहिल्याबाई ने इस नगरी की पुरातन गरिमा को पुनर्प्रतिष्ठित किया। महेश्वर के मन्दिर और दुर्ग का नीचे बहती हुई नदी में प्रतिबिम्ब दिखता है।

दर्शनीय स्थल‡ राजगद्दी और राजवाड़ा, घाट, मन्दिर, महेश्वर साड़िया आदि।

ग्वालियर‡ यह शहर शौर्य और पराक्रम की जीवन्त विरासत है। ग्वालियर राज्य की पुरातन राजधानी आज भी अपने वैभव से सुसज्ज है। यहां अनेक राजवंशों ने राजवंश के सम्राट और तोमर वंश विशेष उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने राज प्रासादों, मन्दिरों और स्मारकों के इस नगर पर अपने राज की अमिट छाप छोड़ी है। यहां के राजाओं, कवियों, संगीतज्ञों और साधु संतों ने अधिकाधिक समृद्धि और सम्पन्नता देकर इसे सारे देश में विख्यात किया है।

अन्य दार्शनिक स्थल‡ गूजरी महल, सूरज कुण्ड, तेली का मन्दिर, सास‡बहू मन्दिर, जयविलास महल और संग्रहालय, तानसेन समाधि, सूर्य मन्दिर, तात्या टोपे और लक्ष्मीबाई के स्मारक यहां हैं।

इंदौर‡ यह मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी कहलाती है। इंदौर होल्कर वंशों की राजधानी थी। इसे अहिल्या नगरी के नाम से भी जाना जाता था।

दार्शनीय स्थल‡ राजवाड़ा (1749) में मल्हार राव होल्कर ने इसका निर्माण कराया था। यह पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है।
लालबाग, कांच मन्दिर, बड़ा गणपति मन्दिर, खजराना मन्दिर का निर्माण रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।

माण्डू‡ जीवन के आमोद‡प्रमोद और पत्थरों में मुखरित प्रेम की अमरगाथा का जीवन्त साक्ष्य माण्डू जिसे कवि और राजकुमार बाजबहादुर ने अपनी प्रेयश्री रानी रूपमति के प्रेम की निशानी के रूप में बसाया था। समुद्र तल से दो हजार फीट की ऊंचाई पर विंध्य पर्वतमालाओं में बसा माण्डू प्रकृति के विविध सुरम्य रूपों को वादी में समेटे हुए है।

दर्शनीय स्थल‡ राजसी भवन, हिण्डोला महल, जानी मस्जिद, अशर्फी महल, रेवाकुण्ड, रूपमति का मण्डप, नीलकण्ड, नीलकण्ड महल आदि।

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