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उत्तराखण्ड आपदा में संघ सेवा कार्य

उत्तराखण्ड आपदा में संघ सेवा कार्य

by डॉ. प्रभाकर उनियाल
in अगस्त-२०१३, संघ, सामाजिक
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15, 16 जून को उत्तराखण्ड में लगातार दो दिनों तक हुई भारी व व्यापक वर्षा से राज्य में जैसे महाप्रलय ही आ गया था जहां केदारनाथ में हजारों लोग पानी और गाद के साथ बह गये, वहीं भारी चहल‡पहल वाले रामबाड़ा कस्बे का निशान तक मिट गया। यह आपदा बीती एक सदी में देश के विभिन्न हिस्सों में आई बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है जिसकी चपेट में करीब डेढ़ लाख लोग आए हैं। गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार दस हजार से अधिक लोग कालकवलित हुए हैं और लगभग इतने ही लापता बताये जा रहे हैं। अनेकों स्थानों पर बड़े‡बड़े भवन नदी में समा गये। आस‡पास के कस्बों और गांवों को जनहानि के साथ घर‡परिवार और पशुओं की भी क्षति हुई। यह विनाशलीला चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री और हेमकुण्ड साहब में भी हुई है। राज्य के अनेक भागों, विशेषकर तीनों सीमान्त जिलों- चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में भी भारी तबाही हुई। श्रद्धालुओं व स्थानीय निवासियों के ऊपर कई‡कई दिनों तक मौत का साया मंडराता रहा। त्रासदी की भयावहता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि एयरफोर्स के इतिहास में इस आपदा के दौरान बचाव एवं राहत अभियान में लगाए गए हेलीकाप्टरों और विमानों को अब तक का सबसे बड़ा हेली रेस्क्यू आपरेशन करार दिया है जिसमें सेना और अर्धसैनिक बलों के 12 हजार जवानों के साथ ही लगभग 70 हेलीकाप्टर व विमान लगाए गए थे। वायुसेना ने 2316 उड़ानों से 22,012 लोगों, सेना ने 784 उड़ानों से 3,406 लोगों को एयरलिफ्ट किया और सिविल हेलीकाप्टरों से चार हजार लोगों को एयरलिफ्ट किया। इसके अतिरिक्त हेलीकाप्टरों से अब तक 300 टन रसद भी पहुंचाई गई।

इस अभूतपूर्व आपदा में, जब किसी तरह जीवित बचे लोग अपने प्राण बचाने व सकुशल निकल जाने और अपना सब कुछ गंवा चुके ग्रमीण दाने‡दाने के लिए तरस रहे थे तो सबसे पहली आवश्यकता उन्हें राहत पहुंचाने की थी। सब जगह लोग स्वयं ही पीड़ितों की मदद के लिए आगे आये। यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं को मिला प्रशिक्षण और उनका स्वत:स्फूर्त सेवाभावी चरित्र भी काम आया। किसी के भी पहुंचने से पूर्व, पहली ही सूचना पर वे आपदा पीड़ितों की सहायता के लिए उपलब्ध थे। ग्रीष्मावकाश होने के कारण विद्या भारती के विद्यालयों के प्रधानाचार्य एवं आचार्य बन्धु भी क्षेत्र से बाहर थे तथा वरिष्ठ कार्यकर्ता संघ के वार्षिक प्रशिक्षण शिविरों (संघ शिक्षा वर्ग) में, परन्तु स्थानीय स्तर पर जो कार्यकर्ता क्षेत्र में थे, उन्होंने शीघ्रातिशीघ्र अपने ढंग से 17 जून से ही सहायता कार्य प्रारम्भ कर दिया, यद्यपि संघ के कई कार्यकर्ता स्वयं भी आपदा का शिकार हो गये थे।

संघ ने सन् 1991 में आये भूकम्प के समय ‘उत्तरांचल दैवी आपदा पीड़ित सहायता समिति’ का गठन किया था जो राज्य में आने वाली प्रत्येक आपदा के समय राहत व बचाव कार्य में सहभाग करती आयी है। मनेरी का सेवा आश्रम इस बार यात्रियों के विश्राम स्थल तथा सब प्रकार की सहायता का केन्द्र बना गया था, यद्यपि इस अतिवृष्टि में ही सेवा आश्रम के अपने 14 कमरे भी ध्वस्त हो गये। जैसे ही त्रासदी का समाचार मिला, सेवाश्रम के कार्यकर्ता 40 किलोमीटर दूर स्थित अपने गांव से पैदल चल कर मनेरी पहुंचे। प्रतिदिन वहां लगभग 1000 यात्रियों को भोजन तथा आवास की व्यवस्था की गई। सेना के लोगों ने भी वहां भोजन किया जिसका परिणाम यह हुआ कि 22 जून को सेवाश्रम का अन्न भंडार समाप्त होने पर सेना ने अपने गोदाम से 20 क्विंटल खाद्य सामग्री देकर अपने कार्यकर्ताओं को भोजनालय चलाने हेतु प्रोत्साहित किया।

इस बार भी संघ की प्रेरणा से चलने वाले इसी समिति के बैनर तले कार्यकर्ताओं ने राहत व बचाव कार्य किया। संघ के स्वयंसेवक 18 जून से पूरी तरह सक्रिय हो गये थे। सबसे पहले सभी प्रमुख आपदा ग्रस्त क्षेत्रों पर हेल्पलाइन केन्द्र प्रारम्भ किये गये। सभी केन्द्रों के मोबाइल नम्बर सम्पूर्ण देश में इन्टरनेट व सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित किए गये। प्रारम्भ में 9 हेल्पलाइन सेन्टर प्रारम्भ हो गये जिस पर देश भर से आपदाग्रस्त यात्रियों के बारे में पूछताछ प्रारम्भ हो गई। प्रान्त कार्यालय पर नियन्त्रण कक्ष चौबीसों घण्टे के लिए प्रारम्भ हो गया। पहली बार सहायता सामग्री खरीद कर भेजी गई। देहरादून महानगर में अलग‡अलग टोलियों में स्वयंसेवकों ने राहत सामग्री एकत्र कर संघ कार्यालय में जमा कराया, जिसे गाड़ियों के माध्यम से उत्तरकाशी, चम्बा, घनसाली, फाटा, गुप्तकाशी, जोशीमठ, श्रीनगर, कर्णप्रयाग आदि प्रभावित स्थानों के लिए भेजा गया। 19 जून से ही देश के कोने‡कोने से सहायता स्वरूप धन तथा सामग्री प्राप्त होना प्राप्त हो गई। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि स्थानों से राहत सामग्री मुख्यत: खाद्य सामग्री, अनाज, पानी की बोतल, जूस, बिस्कुट, फूड पैकेट्स, छाता, टार्च, रेनकोट, तिरपाल, बिछाने का केनवास, कम्बल, मसाला, मोमबत्ती, माचिस, चाय पत्ती, चीनी, मिल्क पाउडर, नये वस्त्र, बर्तन आदि प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए। आए हुए सामान का भंडारण देहरादून में दो स्थानों पर व ऋषिकेश, हरिद्वार, रुद्रपुर तथा हल्द्वानी में एक‡एक स्थान पर किया गया है। संघ द्वारा प्रान्त के सभी आपदा प्रभावित क्षेत्रों तक 150 से अधिक वाहनों द्वारा राहत सामग्री भिजवायी गई।

ऋषिकेश में लगभग 17000 को भोजन तथा 900 लोगों को चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई। हरिद्वार में 856 यात्रियों को स्नैक्स व पानी की बोतल दी गई। 1500 लोगों के फोन, 97 का ई‡मेल तथा 218 एस. एम. एस. अपने कार्यकर्ताओं को प्राप्त हुए। उत्तरकाशी के मनेरी शिविर में, सम्पर्क कटा होने के बावजूद 25 हजार यात्रियों को कराया गया भोजन। उत्तरकाशी के गंगोरी से मनेरी तक की सड़क जगह‡जगह कटी थी, फिर भी स्वयंसेवकों ने पीठ में राशन लाद कर पहुंचाया तथा 18 जून को ही भोजनालय प्रारम्भ कर दिया जिसमें पहले ही दिन 4 हजार यात्रियों ने भोजन किया। चम्बा के दिखोल गांव में सड़क किनारे लगाये गये शिविर में यात्रियों को भोजन/जलपान के अलावा दवाईयां भी दी गई। इस शिविर से लगभग 20 हजार यात्री लाभान्वित हुए। चिन्याली सौड़ एवं उत्तरकाशी में हॉलीकॉप्टर से आने वाले आपदा पीड़ित यात्रियों को अपने गन्तव्य तक पहुंचाने के लिए संघ कार्यकर्ताओं ने 90 से अधिक छोटे‡बड़े वाहनों की व्यवस्था की तथा उनके माध्यम से 25000 से अधिक यात्रियों को हरिद्वार व ऋषिकेश तक भेजा।

बद्रीनाथ में फंसे हजारों यात्री बामणी गांव तथा माणा गांव के निवासियों का दाल‡भात का लंगर कभी नहीं भूल सकेंगे। बद्रीनाथ में स्वयंसेवकों और पंडा पंचायत ने मिलकर एक भोजनालय चलाया था। चंबा में राहत शिविर के संचालन में संघ के साथ ही भाजपा और स्थानीय व्यापारी संयुक्त रूप से मदद करते रहे। इस शिविर में दो दिन में लगभग दस हजार लोगों को भोजन कराया गया। उत्तरकाशी के ‘मनेरी‡उत्तरकाशी बाढ़ पीड़ित सहायता शिविर’ के माध्यम से 21 जून को 4000, 22 जून को 1010 तथा 23 जून को 1213 लोगों को राहत प्रदान की गई। इस कार्य में 5 बसों, 8 ट्रकों, 6 टैंपो, पुलिस के 3 ट्रकों, 32 मैक्स, 12 टैक्सियों और 60 अन्य वाहनों की सहायता ली गई।
जोशीमठ में संघ द्वारा मुख्य सहायता केन्द्र सरस्वती शिशु विद्या मन्दिर में चलाया गया, जहां लगभग 800 यात्रियों को आवास सुविधा तथा लगभग 1600 यात्रियों को भोजन कराया गया। जोशीमठ मुख्य केन्द्र के अतिरिक्त गांधी मैदान, गोविन्द घाट तथा हेलीपैड पर भी स्वयंसेवकों द्वारा सहायता केन्द्र चलाए गये, जहां उतरते हुए यात्रियों को पानी, स्नैक्स तथा अपने परिवारजनों से वार्ता कराने की व्यवस्था की गई। इन सहायता केन्द्रों से सेना, आई. टी. बी. पी. व प्रशासन के लोगों को भी पानी व स्नैक्स दिए गये।

जोशीमठ खंड में भियुंडांड तथा लामबगड़ दो गांव में अधिक क्षति हुई है। भियुंडांड में 196 मकान क्षतिग्रस्त हुए केवल 4 मकान बचे हैं। लामबगड़ में भी 7 परिवारों के घर पूर्णत: ध्वस्त हो गये तथा 102 परिवार विस्थापित होने की स्थिति में हैं। उनके मकानों के नीचे से भूस्खलन हो रहा है। लामबगड़ में 6 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है। सहायता के रूप में संघ द्वारा भियुंडांड के 99 परिवारों के 425 सदस्यों और लामबगड़ में भी सभी परिवारों को सहायता सामग्री दी है।

पूरे प्रदेश में मनेरी, उत्तरकाशी, पीपलकोटी, ऋषिकेश, नारायणकोटी, जोशीमठ, चिन्यालीसौड़ आदि 20 स्थानों पर प्रारम्भ हुए जहां भोजनालय चलाने की व्यवस्था की गई तथा कुछ क्षेत्रों में निर्मित भोजन पीड़ितों के घरों में भी पहुंचाया। चूंकि 19 से 25 जून तक राहत कार्य का मुख्य केन्द्र बिन्दु बाहर से आए तीर्थयात्री थे, इस कारण राहत कार्य के रूप में यात्रियों को बचाना, बीमार यात्रियों को चिकित्सीय एवं उनके भोजन आदि की व्यवस्था कर उनके घरों से सम्पर्क कराने की व्यवस्था भी की गई। संघ के पांच कार्यकर्ताओं की टोली गौरीकुण्ड के ऊपर हैलीपैड तक गयी और दो कार्यकर्ता गोविन्द घाट हैलीकाप्टर से बदरीनाथ मन्दिर गये। एक टोली गंगोत्री मार्ग पर उत्तरकाशी से मनेरी तक गईं।

संघ द्वारा से किये गये सेवा कार्यों और समर्पण की व्यापक सराहना हुई है। यात्रियों को अनुशासित रीति से सामग्री का वितरण होते देख पुलिस व सेना के लोग भी प्रभावित थे। कार्यकर्ताओं की सेवा भावना तथा तत्परता की वे सराहना करने पर विवश थे जिससे स्वयंसेवकों को हैलीपैड पर बिना रोकटोक आने जाने की सुविधा हो गई। यह संघ का ही प्रभाव व चमत्कार था। मनेरी सेवा आश्रम में भी सेना के प्रभारी अधिकारी ने अन्त में, वापस जाने से पूर्व, आकर सभी कार्यकर्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा ‘हमारी तो ड्यूटी थी परन्तु आप लोगों की नि:स्वार्थ सेवा है।’ चिन्याली सौड़ में भी सेना वापसी के समय सेना के कैप्टन ने सहायता शिविर में आकर सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य व उनकी टोली के कार्य कर्ताओं के साथ फोटो खिंचवाया और अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सेवा का ऐसा उदाहरण उन्होंने कभी नहीं देखा और यह फोटो वे अपने कार्यालय में लगायेंगे ताकि दूसरों को प्रेरणा मिले।’

संघ द्वारा इस त्रासदी में लापता हो गये देश भर के लोगों की प्रभावित जानकारी जुटने का अभियान भी शुरू कर दिया गया है, इसके लिए संघ ने एक ई मेल‡ ाळीीळसिलहरीवहर्राीज्ञऽसारळश्र.लिा बनाकर प्रत्येक प्रान्त प्रचारक को पत्र भेजकर निवेदन किया है कि प्राथमिकता के आधार पर प्रत्येक जिले के लापता तीर्थ यात्रियों की प्रमाणिक जानकारी भेजें। संघ द्वारा आपदा में प्रभावित गांवों के पुनर्वास हेतु योजना बनाने तथा सेवा आश्रम मनेरी जैसा ही एक‡एक केन्द्र केदारघाटी तथा बद्रीनाथ घाटी में स्थापित करने का विचार किया जा रहा है। इसके अलावा दुर्घटना में अनाथ बच्चों महिलाओं तथा असहाय हो गये लोगों के लिए भी कार्य करने की योजना है।

आपदा को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केन्द्रीय नेतृत्व भी संवेदनशील और चिन्तित है। संघ के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल दो दिन तक उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में रहे तथा आपदा से सम्बन्धित सभी विषयों पर गहन विचार विमर्श किया। उन्होंने स्वयंसेवकों को राहत कार्यो में तेजी लाने और दीर्घकालीन योजनायें बनाने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने प्रेस को संबोधित करते हुए केदारनाथ की प्रतिष्ठा को पुन: बहाल करने के साथ ही मृतकों के विधिवत् अन्तिम संस्कार का भी सुझाव दिया।
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