बालकृष्ण भागवत एक सच्चे समाजसेवी

अपनी आयु के 60 वर्ष पूर्ण करने के बाद व्यक्ति नौकरी से भले ही निवृत्त हो जाये, परंतु वह सेवानिवृत्त नहीं होता। अपने परिवार के प्रति धीरे-धीरे उसके उत्तरदायित्व कम होने लगते हैं परंतु सामाजिक उत्तरदायित्व कम नहीं होते। अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति पूर्णत: सचेत रहने वाले, उनको पूर्ण करने के लिये सदैव तत्पर रहने वाले कई वयस्क आज समाज में कार्यरत हैं। उन्हीं में से एक हैं बालकृष्ण भागवत।

19 मार्च 1933 को जन्मे बालकृष्ण भागवत अपनी आयु के 80 साल पूर्ण कर चुके हैं। पेशे से अध्यापक रहे भागवत 64 वर्षों से अध्यापन का कार्य कर रहे हैं और आजीवन अध्यापन करने की उनकी मनीषा है। अपने इस कार्य को उन्होंने केवल किसी विद्यालय या महाविद्यालय तक सीमित नहीं रखा। 3 वर्ष माध्यमिक विद्यालय में और 30 वर्ष प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन करने के साथ ही उन्होंने ठाणे जिले में शिक्षण विस्तार योजना के अंतर्गत भी मार्गदर्शन किया। कई माध्यमिक शालाओं के 10 वीं के विद्यार्थियों को उन्होंने अपनी निवृत्ति के बाद भी मार्गदर्शन किया। एस.एन.डी.टी. महिला विद्यापीठ के माध्यम से पढ़ाई करने वाली महिलाओं को उन्होंने लगभग 15 वर्ष तक पढ़ाया। उनके इस निरंतर अध्यापन के कारण आज उनके कई छात्र-छात्राएं विभिन्न स्थानों पर महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। बालकृष्ण भागवत आज भी मुंबई के कई उपनगरों में विभिन्न विषयों पर व्याख्यान देते हैं।

बालकृष्ण भागवत का व्यक्तित्व केवल शिक्षक या व्याख्याता के रूप में सीमित नहींं है। वे एक सच्चे समाज सेवक हैं। एक आम आदमी अपनी रोजमर्रा की छोटी-छोटी परेशानियों को नजरअंदाज कर देता है परंतु बालकृष्ण भागवत इन परेशानियों को जानते हैं और अपनी पूरे सामर्थ्य के साथ उन्हें सुलझाने का प्रयत्न करते हैं। उनके द्वारा किये गये छोटे-छोटे परंतु बड़े परिणामों वाले कार्य कुछ इस प्रकार हैं-
रास्तों को चौडा करने के कारण कई बार उस रास्ते के इलेक्ट्रिक केबल बॉक्स रास्तों के बीचोंबीच आ जाते हैं। इनके कारण लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बालकृष्ण भागवत के घर के रास्ते के पास भी कुछ ऐसी ही परिस्थिति थी। इलेक्ट्रिक केबल बॉक्स और फुटपाथ के बीच इतना अंतर हो गया था कि उनके बीच से एक कार गुजर सकती थी। किसी भयानक दुर्घटना को यह एक खुला न्यौता था। बालकृष्ण भागवत ने उस केबल बॉक्स की पीछे लगवाने के लिये रिलायन्स के ऑफिस में सम्पर्क किया। एक बार पत्र और तीन बार रिमाइंडर भेजने के बाद यह काम हो गया।

एक और घटना देखें- हम सभी लोगों को कभी न कभी अपने वार्ड आफिस में जाना ही पड़ता है। भागवत जी के वार्ड का आफिस चौथी मंजिल पर है। वहां लिफ्ट तो नहीं है। सभी लोगों को सीढ़ियों से ही जाना पड़ता है। हैरानी की बात यह है कि सीढ़ियों के एक तरफ तो दीवार थी परंतु दूसरी ओर पाइप भी लगे नहीं थे। सीढ़िया बिलकुल खुली हुई थीं जिसके कारण लोगों को गिरने का डर बना हुआ था। इस आफिस में आनेवाले लोगों में बुजुर्ग ही अधिक होते हैं। अत: दुर्घटना की संभावना अधिक बढ़ जाती थी। भागवत जी ने इस हेतु भी निरंतर प्रयत्न किया और सीढ़ियों की दूसरी ओर सुरक्षा की दृष्टि से पाइप लगाये गये थे।

बैंक में पैसे जमा करने और निकालने के लिये स्लिप भरनी पडती है और अकसर अशिक्षित लोगों को इस काम में काफी मुश्किलें आती हैं। बालकृष्ण भागवत जी ने इस मुश्किल की थोड़ा आसान करने का जिम्मा लिया। वे निरंतर एक साल तक हफ्ते के तीन दिन बैंक जाते थे और स्वेच्छा से लोगों की स्लिप भरने में मदद करते थे। उन्होंने खासकर विधवा अशिक्षित महिलाओं की मदद की।

जब हम किसी बस स्टैण्ड पर जाते हैं, वहां के फलक पर बसों के आने-जाने की समय सारिणी लगी होती है। अक्सर देखा गया है कि ये सारणियां अपडेट नहीं की जातीं, जिससे यात्रियों को परेशानियां होती हैं। भागवत जी ने इसके लिये प्रयत्न किया। वे एस. टी. महामंडल के अधिकारियों के पास पहुंचे। लिखित रूप में उन्हें इन समस्याओं की जानकारी दी और फलकों को अपडेट करने की मांग की। उनके निरंतर प्रयास के कारण आज मुंबई के कई बस स्थानकों पर समय सारिणी अपडेट की गई है।

मुंबई में रहना अर्थात लोकल में सफर करना इस समीकरण का बहुत कम लोग अपवाद होते हैं। लोकल में सफर करते समय कौन सा स्टेशन किस ओर आयेगा इसकी चिंता सभी यात्रियों को होती है और खासकर उन्हें जो मुंबई में नये आये हैं। वृद्धों और बच्चों के साथ भी यह परेशानी आम है। अत: स्थानक पर उतरते समय गड़बड़ी होना स्वाभाविक है। आजकल लोकल के नये डिब्बों में अगला स्टेशन बताने वाला फलक लगा होता है। बालकृष्ण भागवत अब इस फलक पर एक चिन्ह अंकित होने के लिये प्रयत्नशील हैं जो यह दर्शायेगा कि स्थानक किस ओर आनेवाला है।

इन सभी उदाहरणों से यह ज्ञात होता है कि इन सभी कार्यों के पीछे बालकृष्ण भागवत जी का उद्देश्य केवल एक ही है और वह है संभावित दुर्घटना को टालना। ये सभी कार्य समाज हित को ध्यान में रखकर ही किये गये हैं। इसके अलावा भी भागवत जी अनेक सेवाभावी संस्थाओं से जुडे हैं। वे आदिवासी पिछडे इलाकों के बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। ज्येष्ठ नागरिक संघ का दायित्व वहन कर रहे हैं। मरणोपरांत भी यह शरीर किसी के काम आ सके अत: दधीचि देहदान संस्था के साथ मिलकर समाज में इस विषय पर जागृति फैल रहे हैं।

उनके कार्य करने का तरीका कुछ इस प्रकार है कि वे संबंधित कार्यालय या अधिकारी को पहले पत्र लिखते हैं। इस पत्र को या तो वे स्वयं देते हैं या कुरियर करते हैं जिससे उनके पास प्रमाण रहे। फिर हर महीने उसे रिमाइंडर भेजते हैं। दो महिने में अगर काम नहीं हुआ तो जनहित याचिका दायर करने का नोटिस भेजते हैं। कई बार उनके कामों बहुत देर लगी परंतु उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे और उन्हें सफलता मिली। बालकृष्ण भागवत जी काम होने के बाद बिना भूले संबंधित अधिकारी को धन्यवाद पत्र भी भेजते हैं।

80 वर्ष की आयु में समाज के लिये इतना वृहद दृष्टिकोण रखना एक आदर्श हैं। हम सभी को एक अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा इनसे लेनी चाहिये।
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