झूलेलाल का अवतार

महाभारत के भयंकर युद्ध का दृश्य। भारत वर्ष के लगभग सभी महान हजारों प्रतापी योद्धा एक दूसरे को समाप्त करने के लिए तैयार खड़े थे। जब पाप अपनी चरम सीमा तक पहुंच चुका था तब अर्जुन को उपदेश देते हुए श्री कृष्ण ने संसार की रक्षा के लिए कहा था-

यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत
अभ्यूत्थानमधर्मस्य, तदात्मानम् सुजान्यहम्।
परित्राणाय साधूनां, विनाशायचं दृष्कृताम्
धर्म संस्थापनार्थाय, सम्भवामि युगे युगे॥
राम जन्म के लिए भी तुलसीदास जी ने कहा था-
जब जब होई धर्म की हानी,
बढ़ही असुरे महाभिमानी
तब तब धर प्रभू मनुषु शरीरा,
हरहीं सकल सजन अब पीड़ा।

ठीक इसी अर्थ और भाव में, सिंधु नदी के किनारे हजारों सिंध के पीड़ित हिंदू भक्तों के सामने जल से जलवाणी (आकाशवाणी) गूंजी थी, ‘हिंदू भक्तों, तुम सभी निश्चिंत अपने घर जाओ। अपने धर्म पर दृढ़ रहो। मैं कुछ ही दिनों में नसरपुर में जन्म लूंगा और आप के सब संकट दूर कर धर्म की स्थापना करूंगा।’

यह इतिहास है करीब 900 वर्ष पहले का, जब सिंध प्रांत पर इस्लाम धर्म का राज आ चुका था। उस समय मकरब खान नाम का अत्यंत ही अत्याचारी, अहंकारी, जुल्मी एवं धर्मांध मुस्लिम सरदार राज्य करने लगा था। जो स्वयं को बाद में मरख शाह के नाम से बुलवाने लगा।

मरख शाह कट्टर मुसलमान एवं जुल्मी था। हिंदू जाति को नष्ट करने के लिए फरमान जारी करता रहता था। एक बार उसने सभी हिंदुओं के लिए फरमान जारी किया कि आप सभी हिंदू इस्लाम धर्म स्वीकार करो, वरना अपना भगवान प्रत्यक्ष प्रमाणित करो। नहीं तो जबरदस्ती आपका धर्मांतरण किया जाएगा।

जनता घबड़ा गई और खलबली मच गई। सारे सिंध प्रांत की संत मंडलियां सिंधी पंचाइतें वजीर से मिले और हाथ जोड़कर सात दिन का समय मांगा। बड़ी आनाकानी के बाद मरख शाह ने सिर्फ सात दिन का समय प्रदान किया।

सभी हिंदू सिंधु नदी पर दरयाह शाह (वरुण देव) से दया की भीख मांगने के लिए आकर जमा हो गए। किसी के हाथ में तबला था तो किसी के हाथ में मंजीरा, किसी के हाथ में झंडा तो किसी के हाथ में तंबूरा। सबने आरती उतारी और आराधना की। फिर भजन कीर्तन आरंभ हो गया। सारा दिन बिगर खाए-पिए आरजू भरे नयनों से भजन कीर्तन और प्रार्थनाएं होती रहीं। माताएं बहने यहां तक कि बच्चे भी भूख से परेशान हो गए लेकिन जल देवता पर श्रद्धा अचल और अटूट रही। 3 दिन गुजर गए पेट में अनाज का एक दाना भी नहीं था। सभी दुःखी और व्याकुल थे, लेकिन सब को विश्वास था कि सागर देवता कैसे भी मार्ग निकाल कर देंगे।

अंत में तीसरे दिन शाम को सिंधु सागर में जोरदा उछाल आई और आकाशवाणी हुई, ‘हिंदू भक्तों, आप सब घर जाओ। अपने धर्म पर दृढ़ रहो। आपका संकट दूर करने के लिए मैं शीघ्र ही नसरपुर शहर में जन्म लूंगा।’
सभी हिंदू आकाशवाणी सुनकर आनंद से नाच उठे। जय जल देवता-जय वरुण देवता के नारे लगाते हुए पूर्ण विश्वास से अपने अपने घर गए।

मरख शाह को जासूसों ने, जिन्होंने यह आकाशवाणी स्वयं सुनी थी, जाकर यह बात दरबार में वजीर एवं बादशाह को सुनाई। मरख शाह ने अपने एक वजीर को नसरपुर में ऐसे किसी बालक के जन्म लेने पर दृष्टि रखने को कहा।

संवत 1117 चैत्र मास शुक्ल 2 के दिन नसरपुर शहर में ठक्कर रतन शाह एवं माता देवकीबाई के घर में एक अत्यंत ही रूपवान, तेजस्वी, अत्यंत आकर्षक बालक ने जन्म लिया। बालक न रोता था, न मां का दूध लेता था, न पानी लेता था। जब सिंधु नदी का पानी उसके मुख में डाला गया तब ही उनसे बाकी क्रियाएं प्रारंभ कीं।

एक दिन मरख शाह का वजीर खबर सुनकर नसरपुर पहुंच गया। सीधा रतन शाह के घर पहुंच कर बच्चे को देखने की इच्छा प्रकट की। वजीर ध्यान से बच्चे को देखने लगा। अचानक वह आश्चर्य में पड़ गया। जब उसने देखा कि वह बालक घोड़े पर सवार सोलह बरस का सिपहसलार सा दिखने लगा और फिर कुछ ही क्षणों में सिंधु नदी के जल पर समाधि लगाए बैठा हुए दाढ़ी मूछोंवाला कोई सिद्ध पुरुष। अब उसे विश्वास हो गया कि आकाशवाणी सत्य सिद्ध होने जा रही है। उसने रतन शाह से कहा- बादशाह तेरे बालक के जन्म की बात सुनकर प्रसन्न हुआ है और उसे देखना चाहता है। तुम इसे दरबार में ले चलो। रतन शाह डर गया। हाथ जोड़कर बोला, अभी तो एकदम छोटा है। मैं 15 दिनों में इसे लेकर दरबार में हाजिर हो जाऊंगा।

वजीर वापस गया। जब वह सिंधु नदी के किनारे से गुजर रहा था, था उसने अजीब चमत्कार देखा। उसने देखा वह रतन शाह का बालक बीच धारा में प्रकट होकर सेना लेकर मखर शाह के राज्य और उसकी ओर बढ़ रहा है। साथ ही सिंधु नदी भी भयंकर रूप धारण कर मरख शाह की राजधानी की ओर दौड़ रही है। वजीर डर गया। हाथ जोड़कर बोला, ‘हे शाहों के शाह, मैंने तो आपको अकेले आने की बिनती की थी। कृपया अपनी सेना वापस कीजिए।’ बालक जिसका नाम उडेरोलाल था उसने कहा तथास्तू और फिर गायब हो गया।

वजीर चिंता में घर में रात बिता के दूसरे दिन जब मरख शाह के दरबार में पहुंचा तो देखा मरख शाह बेचैनी से चक्कर काट रहा था। वजीर अभी कुछ कहे उससे पहले ही वह कहने लगा, वजीर, कल शाम को तो चमत्कार ही हो गया। तू बच्चे को नसरपुर देखने और लेने गया था लेकिन बच्चा तो यहां आकर पहुंचा। किसी भी सिपाही के रोकने से नहीं रुक पाया। उसने अनेक रूप धारण किए, जवान सेना नायक का रूप धारण कर खिड़की में से बाहर खड़ी अपनी सेना दिखाई। इशारा करके मानो सिंधु नदी को बुला लिया। फिर उसका आक्रमणकारी बढ़ता हुआ रूप दिखाया। मानो एक प्रकार की चेतावनी दी। फिर शांत चित्त संत का रूप धारण कर उपदेश दिया, हिंदुओं को मत सताओ, हरेक को अपना अपना धर्म पालने दो। नहीं तो व्यर्थ में तू (मरख शाह) मुसीबत में आ जाओगे।

वजीर, यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। किसी के भी धर्म में हस्तक्षेप करना नहीं है। बस उसी दिन से मरख शाह का हिंदुओं पर अत्याचार और धर्म परिवर्तन बंद हुआ। अब ये बातें छिप तो नहीं सकतीं। स्वयं महल से भी बाहर आईं। जनता बहुत प्रसन्न हुई। अमरलाल, झूलेलाल, जिन्दहपीर एवं जल देवता कह कर उन्हें पूजने लगी। यह एक लंबी कहानी है कि पूज्य झूलेलाल जी ने जल, ज्योत और वेदों की महिमा कैसे बढ़ाई और शक्ति एवं भक्ति से धर्म का प्रचार कैसे किया। इस वरुण देवता को सिंधी समाज एवं कच्छ लोहाणी समाज अपनी इष्ट देवता मान कर पूजता है जिन्होंने राम और कृष्ण की तरह अपना कहा सच कर दिखाया।

लेकिन अफसोस। हम हिंदू सिंधी उनके आदेश और उनके उपदेश को भूल गए। उन्होंने आकाशवाणी की थी, हिंदू भाइयों, आप अपने धर्म पर पक्के रहो। हम सिंधी हिंदू कुछ वर्ष तो अपने धर्म पर डटे रहे परंतु बाद में लोभ में, लालच में, डर में, चालाकी में, वासाना में, कामनाओं में, हजारों लाखों में इष्ट देवता का कहा भूलकर मुसलमान होते गए। परिणाम बहुमत में से अल्पमत में आ गए। दुष्परिणाम-विभाजन-अपना वतन-अपना जन्म स्थान-अपना प्रांत छोड़कर प्रांतहीन बंजारा बनना पड़ा। काश! आज भी साईं झूलेलाल की आकाशवाणी याद रखें-

‘अपने धर्म पर डटे रहो- मैं आपकी रक्षा करुंगा।’
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