बारिश से लगभग डे़ढ-दो महीने पहले ही पशु-पक्षियों के माध्यम से हमें बारिश के संकेत मिलने लगते हैं। पक्षियों को सबसे पहले बारिश के संकेत मिलने लगते हैं। पक्षियों को संभावित मौसम जैसे सूखा, बा़ढ और वातावरण में होने वाले अन्य परिवर्तनों के संकेत मिलते रहते हैं। इन संकेतों के अनुरूप ही वे अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करते हैं। पक्षी अत्यंत संवेदनशील और बदलते मौसम से तालमेल रखने वाली प्रकृति की एक बेजो़ड रचना है।
बारिश का संकेत सबसे पहले अफ्रिका से आए चातक पक्षी देते हैं। जंगल में पे़डों की सरसराहट ब़ढने लगती है। जोरदार हवा चलने लगती है। आसमान में बादल छाने के संकेत इन पक्षियों को पहले ही मिल जाते हैं। अगर बारिश समय पर होने वाली है तो इन पक्षियों का आगमन जल्दी होता है और अगर उनका आगमन देर से हुआ तो बारिश भी देर से होगी, यह पत्थर की लकीर है। चातक पक्षी अगर ‘पिऊ पिऊ’करते हुए सांकेतिक भाषा का प्रयोग करे तो समझना चाहिए कि बारिश के दिन नजदीक हैं। प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का संकेत देने वाला एक और महत्वपूर्ण दूत है पवशा पक्षी। पहले के जमाने में जब यह पक्षी चिल्लाने लगता था तो किसान खेतों की जुताई शुरू करते थे। आज विज्ञान ने कितनी भी प्रगति कर ली हो, परंतु गांवों में आज भी इस पक्षी के संकेतों के बाद ही किसान खेती का काम शुरू करते हैं। यह पक्षी शायद इसलिए ही आता है कि किसान को कह सके कि अब बुआई शुरू कर दो।
काले-सफेद धब्बों वाले तीतर पक्षी जब खेतों-पठारों पर ‘कोड्यान केको….कोड्यान केको’ चहचहाने लगें तो समझना चाहिए कि जल्दी ही बारिश शुरू होने वाली है।
बारिश के संदर्भ में कौवों का निरीक्षण तो इन सभी से ज्यादा आश्चर्यजनक है। संस्कृत ग्रंथों में उल्लिखित स्निग्ध पे़डों जैसे आम, करंज या काटों वाले वृक्षों का कौवों से पुराना सम्बंध है। वातावरण में परिवर्तन, बारिश का अनुमान और सूखे की संभावना दर्शाने वाला यह एक नैसर्गिक चक्र है, परंतु नई पी़ढी इसका अध्ययन नहीं करती। कौवे अगर मई के महीने में अपना घोंसला बबूल या सावर जैसे कांटेदार वृक्षों पर बनाते हैं तो बारिश कम होती है। अगर वे आम या करंज के वृक्ष पर घोंसला बनाते हैं तो अच्छी बारिश होती है। यह जंगल का अनुभव है। नर और मादा कौआ दोनों ही घोंसला बनाने के लिए मेहनत करते हैं। नर कौआ घोंसला बनाने के लिए आवश्यक बारीक लक़िडयां और कपास लाकर देता है, तो मादा कौआ सुंदर घोंसले की रचना करती है। इस समय उनके सारे प्रयत्न देखने लायक होते हैं। उन्हें अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाने की जल्दी होती है। कौआ अगर पे़ड की पूर्व दिशा की ओर घोंसला बनाता है तो बारिश अच्छी होती है। अगर पश्चिम दिशा की ओर बनाता है तो सामान्य बारिश होगी। उत्तर-दक्षिण की ओर बनाए तो बारिश बहुत कम होती है। अगर कौवा पे़ड के शिखर पर घोंसला बनाता है तो बहुत उसे कम बारिश होने का संकेत कहा जा सकता है। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है परंतु अगर हुआ तो उसे सूखे का स्पष्ट संकेत मानना चाहिए। इससे भी मनोरंजक यह है कि मादा कौए ने कितने अंडे दिए हैं, इससे भी पुराने जमाने में बारिश का अंदाजा लगाया जाता था। अगर उसने चार अंडे दिए हैं तो यह अच्छी बारिश होने का संकेत है, अगर दो अंडे दिए तो कम बारिश के और एक ही अंडा दिया तो अत्यल्प बारिश होती है। अगर जमीन पर अंडा दिया है तो उस वर्ष सूखा प़डने की संभावना होती है। समुद्र और उसमें रहने वाले प्राणियों का अध्ययन करने पर भी बारिश के पूर्व संकेत मिल सकते हैं। बारिश होने के पूर्व वादली पक्षी किनारे की ओर आने लगते हैं। इन संकेतों को समझकर अपनी आजीविका के लिए समुद्र पर निर्भर रहने वाले मछुआरे अपनी नावें, जहाज समुद्र में नहीं ले जाते।
ऐसे समय में कभी भी बारिश होने की आशंका होती है। समुद्र की मछलियों में खलबली मच जाती है। उनके क्रिया-कलापों में अचानक गति आ जाती है और वे समुद्र में ऊंची छलांगे मारने लगती हैं।
पहली बारिश के बाद जब नदी-नालों और तालाबों का पानी समुद्र में आकर मिलता है तो ये मछलियां उस पानी में छलांग मारने लगती हैं और प्रवाह के विपरीत दिशा में तैरने का प्रयत्न करती हैं। पहा़डों से बहने वाली नदियों के पानी में वे अंडे देती हैं और वापस समुद्र में चली जाती हैं। यह नैसर्गिक जीवन चक्र है। इस बारे में अत्यंत बारीकी से जब निरीक्षण किया गया तो यह निष्कर्ष निकला कि इन अंडों से जब मछलियों के बच्चे बाहर निकलते हैं तो वे समुद्र की दिशा में तैरने लगते हैं और वह समय होता है बारिश खत्म होने का, अर्थात उत्तरा नक्षत्र का। अत: बारिश कब शुरू होगी और खत्म होगी इसका अनुमान मछलियों के जीवन क्रम से लगता है।
की़डों का जीवन क्रम जलवायु का अध्ययन करने वाले लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है, परंतु इन सांकेतिक परिवर्तनों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। हजारों की संख्या में काली चींटियां जब अपने सफेद अंडों को मुंह में लेकर सुरक्षित स्थान की ओर पलायन करती हैं तो यह समझना चाहिए कि निश्चित रूप से बारिश होगी। पुरातन काल से काली चींटियों की गतिविधियों से बारिश का अनुमान लगाया जाता रहा है। जंगल में वृक्षों में लगने वाले दीमक के कभी भी पंख नहीं दिखते, परंतु बारिश के पूर्व इन दीमकों के झुंड के झुंड बांबी के बाहर आने लगते हैं। यह भी बारिश शुरू होने के ही संकेत हैं। बारिश के पूर्व उ़डने वाले ये दीमक एक दूसरे से समागम करते हैं, जिससे उनकी अगली पी़ढी तैयार होती है, फिर ये पी़ढी नई बाम्बी का निर्माण करती है।
रेंगने वाले जीव भी जब अपने बिलों से बाहर आने लगें तो समझना चाहिए कि जल्द ही बारिश आने वाली है। इन जीवों से बारिश का पूर्वानुमान हो जाता है, अत: बिलों में पानी जाने के पूर्व ही ऊंचाई वाली जगह ढूं़ढने लगते हैं। बारिश के पूर्व सांप भी ब़डे पैमाने पर बिलों से बाहर निकलने लगते हैं।
नवेगावबांध पक्षी अभ्यारण्य के पक्षियों की जीवन शैली भी बारिश के संदर्भ में बहुत कुछ बताती है। यहां पर मोरनाची नामक कई स्थान हैं। बारिश के पूर्व इन जगहों पर हजारों की संख्या में मोर यहां एकत्रित होते हैं। उनमें से एक सुंदर मोर अपने पंख फैलाकर नाचने लगता है। उसका यह नृत्य अत्यंत लयबद्ध होता है। कभी दोनों पैरों पर कभी एक पैर पर तो कभी गोल-गोल घूमते हुए नाचने वाले इस मोर की ओर मोरनी आकर्षित होती है। वे समागम करते हैं। इसके बाद मोरनी मोर से दूर चली जाती है और कालांतर में अंडे देती है। इस स्थान के आदिवासी मोरनाची स्थान पर मोरों के जमा होने के अनुसार बारिश का अनुमान लगाते हैं, जो कि अत्यंत सटीक होता है।
वृक्षों में होने वाले परिवर्तनों के द्वारा भी बारिश का अनुमान लगाया जा सकता है। भिलावन के पे़ड पर बहार आना सूखे का संकेत देता है। बबूल और शमी के वृक्षों पर फूलों का खिलना कम वर्षा का संकेत देता है। हम कई प्रकार की लताओं को देखते हैं। इन लताओं के तंतु जब सीधे ख़डे हो जाएं अर्थात लता से नब्बे अंश का कोण बना लें, तो इसे अच्छी वर्षा का संकेत समझना चाहिए। जंगल का निरीक्षण करने वाले अधिकारियों को ऐसे परिवर्तनों का अध्ययन जरूर करना चाहिए। इस तरह के सूक्ष्म निरीक्षण मौसम का अनुमान लगाते समय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।