16 फरवरी 1915 को हिमाचल प्रदेश के ग्राम झाण्डवी में जन्मे ठाकुर राम सिंह ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ को अपना महत्वपूर्ण समय दिया और संघ के प्रचारक के तौर पर देश और जनता की सेवा की है। ठाकुर राम सिंह के पिता का नाम ठाकुर भागसिंह और माता का नाम श्रीमति निहातु देवी था। ठाकुर रामसिंह ने इतिहास से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। पढाई में अधिक रुचि रखने की वजह से ठाकुर को अपने अध्यापकों का प्यार हमेशा मिलता था। राजनीति विज्ञान और अंग्रेजी में इनकी रुचि अधिक थी जिससे इनको इन दोनों विषयों का अधिक ज्ञान था।
ठाकुर रामसिंह पढाई के साथ साथ खेल में भी रुचि रखते थे। वह हाकी के अच्छे खिलाड़ी थे और एक बार खेल में ही उनकी आंख में चोट लग गयी थी। अपनी पढ़ाई के दौरान ही ठाकुर रामसिंह संघ में शामिल हो गये और सन 1942 में वह संघ में प्रचारक हो गये। संघ में प्रचारक रहने के दौरान उन्होने देश सेवा की कई मिशाल पेश की जिसके लिए उन्हे हम आज भी याद करते है। ठाकुर जी किताबों में रुचि रखते थे इसलिए उन्होने संघ कार्यालय में एक पुस्तकालय भी खुलवा दिया और उसमें करीब पांच हजार पुस्तकों का संग्रह किया।
ठाकुर रामसिंह ने संघ को खड़ा करने में अहम भूमिका निभायी है। ठाकुर जी उस दौर में संघ से जुड़े थे जब गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। ठाकुर जी इसके खिलाफ भूख हड़ताल पर भी थे और उसका सकारात्मक फल भी मिला था। गांधी की हत्या के बाद संघ के उपर से प्रतिबंध खत्म हो गया जिसके बाद तत्कालीन सरसंघचालक श्री गोलवालकर जी ने ठाकुर जी को असम क्षेत्र में संघ को आगे बढ़ाने का काम दिया। सन 1949 से 1972 तक ठाकुर जी ने असम में तमाम कठिनाओं के बीच संघ को खड़ा किया और आगे ले गये। प्रथम प्रांत प्रचारक के रुप में काम करते हुए पूरे असम को राष्ट्रवाद के धागे में बांध दिया। इसी समय चीन की तरफ से असम पर आक्रमण किया गया था तब गैर-असमी लोग राज्य से पलायन कर रहे थे लेकिन ठाकुर रामसिंह वहां से नहीं हटे और संघ के स्वंय सेवकों को लेकर चीनी सैनिकों का डट कर मुकाबला किया।
संघ और देश के प्रति प्रेम रखने वाले ठाकुर रामसिंह ने असम में संघ की स्थापना की और उसे बहुत आगे तक ले गये जिसके बाद संघ ने उन्हे असम के कार्यों से मुक्त कर दिया और सन 1971 में ही उन्हे पंजाब का सह-प्रांत प्रचारक नियुक्त कर दिया। ठाकुर जी ने यहां भी पूरी लगन और ईमानदारी से काम किया। संघ को आगे बढ़ाने और राष्ट्र भावना जगाने के लिए उन्होने सन 1989 तक यहां लोगों के बीच काम किया। सन 1990 में ठाकुर जी के कंधों पर बाबा साहेब आप्टे स्मारक समिति और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना का भी दायित्व दे दिया गया जिसके बाद उन्होने पूरे देश का प्रवास किया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रवास कर रामसिंह ने सभी इतिहासकारों से मुलाकात की और भारत के इतिहास में एक नया अध्याय आरंभ कर दिया।
संघ जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे ही राम सिंह की उम्र भी बढ़ती जा रही थी जिसके बाद संघ की सन 2003 की कुरु-क्षेत्र बैठक में ठाकुर जी को सभी दायित्वों से मुक्त कर दिया गया क्योंकि अब उनकी उम्र प्रवास के लायक नहीं बची थी लेकिन निरंतर राष्ट्रसेवा की कसम खाने वाले ठाकुर जी को रुकना पसंद नहीं था उन्होने अपना काम निरंतर चालू रखा और देश सेवा से कभी भी पीछे नहीं हटे। ठाकुर रामसिंह अपने जीवन के आखिरी समय तक अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना और बाबा साहेब आप्टे स्मारक समिति का मार्गदर्शन करते रहे। खास बात यह रही कि जब वह 95 वर्ष के हो गये उसके बाद भी उन्होने अगले 5 साल के लिए योजनाएं बना रखी थी लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था। 06 सितंबर 2010 को उनकी आत्मा ने उनके शरीर का साथ छोड़ दिया। ठाकुर रामसिंह जी ने देश की सेवा में अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया और जिंदगी के आखिरी छण तक देश की सेवा करते रहे। आज की युवा पीढ़ी को ठाकुर जी से देश प्रेम सीखने की जरुरत है।