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भविष्य की चिकित्सा: दशा और दिशा

भविष्य की चिकित्सा: दशा और दिशा

by मनीष मोहन गोरे
in तकनीक, सितंबर २०१९
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भविष्य की चिकित्सा प्रणाली वर्तमान से एकदम अनोखी और सहूलियत भरी होगी। मरीज और चिकित्सक के बीच कोई अंतर नहीं होगा, साथ उनके बीच का संबंध क्रांतिकारी तरीके से बदल जाएगा। मरीज की स्वास्थ्य देखभाल आज से कई गुना अधिक वैयक्तिक, तीव्र और सटीक हो जाएगी।

‘सेहत हजार नियामत है’ यह एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है। एक स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। सेहतमंद होने पर ही समस्त सुखों की सम्पूर्ण अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। इसलिए निरोगी काया के महत्व को सर्वोपरि माना जाता है।

स्वास्थ्य और हमारी जीवनशैली:

आमजन के स्वास्थ्य से ही समाज और राष्ट्र का विकास सुनिश्चित होता है। अगर देश के नागरिक अस्वस्थ रहे तो वे सामाजिक और राष्ट्रीय विकास में अपनी सामर्थ्यपूर्ण भागीदारी नहीं निभा सकते। भारत में आज भी करीब 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। ऐसे में इन भावी कर्णधारों का स्वास्थ्य आगे चलकर कैसा होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। इसके अलावा, मौजूदा समय में भारत के लोग कैंसर, मधुमेह और ब्लडप्रेशर जैसे जीवनशैली और असंचारी रोगों से जूझ रहे हैं। हमारी अकर्मण्य जीवनशैली से जुड़े ये असंचारी रोग मलेरिया, हैजा, डेंगू, चिकनगुनिया जैसे संचारी रोगों से किसी मायने में कम घातक नहीं होते हैं। तनाव, मानसिक अशांति, धूम्रपान, शराब, फास्टफूड और तले-भुने खाद्य पदार्थों का सेवन, असंतुलित दिनचर्या और व्यायाम का अभाव इन असंचारी रोगों के अहम कारण होते हैं।

स्वास्थ्य देश-दुनिया के सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसलिए आरंभ से इसके अध्ययन-अनुसंधान पर विशेष बल दिया जाता रहा है। स्वास्थ्य को विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा का दर्जा दिया गया है। स्वास्थ्य विज्ञान के अंतर्गत दो अहम पहलू होते हैं। पहला मनुष्यों और जंतुओं में होने वाली क्रियाओं को समझने के लिए उनके शरीर का अध्ययन व अनुसंधान और उनके स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे तथा दूसरा स्वास्थ्य में सुधार लाने और बीमारी का इलाज या उससे बचाव करने में उस अध्ययन-अनुसंधान का व्यावहारिक उपयोग करना। स्वास्थ्य विज्ञान के कई महत्वपूर्ण घटक होते हैं जैसे कि जीवन विज्ञान, जीव रसायन, भौतिकी, रोग निदान, औषधशास्त्र और चिकित्सा सामाजिकी। स्वास्थ्य शिक्षा, जनस्वास्थ्य और जैवप्रौद्योगिकी जैसे नए क्षेत्रों की पहल के जरिए स्वास्थ्य विज्ञान मानव कल्याण के लिए प्रयासरत है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीकी उन्नति हमारे जीवन को सूक्ष्म स्तरों पर निरोगी बनाने में कारगर साबित हो रही है। भविष्य में स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में तकनीकी उन्नति आमूलचूल परिवर्तन लाने वाली है।

जनस्वास्थ्य और जागरुकता से भविष्य बनेगा बेहतर:

स्वास्थ्य विज्ञान के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं के आधार पर स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए संगठित हस्तक्षेप पर बल दिया जाता है और इसे चिकित्सा, पोषण, औषधनिर्माण विज्ञान, सामाजिक कार्य, मनोविज्ञान, व्यावसायिक चिकित्सा, शारीरिक चिकित्सा तथा अन्य स्वास्थ्य देखभाल व्यवसायों में प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति क्रियान्वित करते हैं। चिकित्सक मुख्य रूप से व्यक्तियों के स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं जबकि जनस्वास्थ्य के विशेषज्ञ समुदाय और आबादी के स्वास्थ्य की समग्र रूप से देखभाल करते हैं। आधुनिक परिवेश में कार्यस्थलों पर स्वास्थ्य एवं नीरोगता कार्यक्रमों को अनेक संस्थाओं, विभागों तथा स्कूलों ने अंगीकार किया है। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाना है ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर सकें।

जनस्वास्थ्य समाज के सभी तबके के लोगों की विवेकपूर्ण साझेदारी के द्वारा सबके स्वास्थ्य में सुधार लाने की एक प्रक्रिया होती है। इसमें एक समूची आबादी के विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए समुदाय की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और चुनौतियों का समाधान तलाशा जाता है। जनस्वास्थ्य की परिभाषा के अंतर्गत कुछ लोगों के एक समूह से लेकर अनेक क्षेत्राों या महाद्वीपों में फैली महामारी आती है। रोग-निदान विज्ञान, जैव सांख्यिकी तथा स्वास्थ्य सेवाओं को जनस्वास्थ्य की उपशाखाएं माना जा सकता है। इसके अलावा पर्यावरणीय स्वास्थ्य, सामुदायिक स्वास्थ्य, व्यवहारगत स्वास्थ्य और व्यावसायिक स्वास्थ्य भी जनस्वास्थ्य के अहम् क्षेत्र हैं।

अगर हम व्यापक स्तर पर बात करें तो जनस्वास्थ्य का मकसद रोगों से आम जन, समुदाय और पर्यावरण का बचाव करना तथा स्वास्थ्य व अन्य स्वास्थ्य दशाओं काा स्वस्थ व्यवहार के द्वारा निगरानी तथा प्रबंधन करना है। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के नियंत्राण को सुनिश्चित करने के लिए और दूसरे शब्दों में कहें तो जनस्वास्थ्य के मकसद को पूरा करने के लिए नीतियों के निर्माण और शैक्षिक कार्यक्रमों, व्यापक अभियान तथा अनुसंधान किए जाते हैं। उदाहरण के लिए पोलियो, हेपेटाइटिस आदि जैसी बीमारियों के वैक्सीन लगाकर तथा एड्स के नियंत्राण हेतु जनजागरूकता उत्पन्न कर अथवा कंडोम वितरण करके लोगों में स्वास्थ्य को लेकर चेतना का प्रसार किया जाता है। बच्चों की पाठ्य पुस्तकों में स्वास्थ्य से जुड़ी प्रामाणिक जानकारियों के समावेश द्वारा बच्चों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न की जाती है। समाज में स्वास्थ्य से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने और इन्हें नियंत्रित रखने के लिए सरकार द्वारा जनस्वास्थ्य के अंतर्गत अनेक प्रयास किए जाते हैं। एक देश की सरकार अपने देश के अंदर ऐसे प्रयास में संलग्न रहती है तो वहीं दूसरी ओर डब्ल्यूएचओ और यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसिया वैश्विक स्तर पर जनस्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करती हैं। मातृ व बाल स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सेवा प्रशासन, आपातकालीन कार्यवाही व रोकथाम एवं संक्रामक तथा असाध्य रोगों का नियंत्रण जनस्वास्थ्य प्रणाली के कुछ खास व्यावहारिक पहलू होते हैं।

यह जनस्वास्थ्य से जुड़े राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का ही प्रतिफल है कि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से दुनिया में लोगों की मृत्यु दर में गिरावट दर्ज की गई है और इसके ठीक विपरीत जीवन की प्रत्याशा में बढ़ोतरी हुई है। उस जमाने की कल्पना कीजिए, जब रोग-कारकों (जीवाणु, विषाणु आदि) के बारे में लोगों को ज्ञान नहीं था, तब लोग जागरूकता के अभाव में स्वच्छता का ध्यान नहीं रखते होंगे। तब तो रोगों-महामारियों के इलाज और दवाओं के आविष्कार भी नहीं हुए थे। इसलिए हजारों लोग उस जमाने में किसी बीमारी से मर जाते थे और जनसंख्या नियंत्राण का यह एक प्राकृतिक उपाय बना हुआ था। आज के समाज में संस्थागत और व्यक्तिगत प्रयासों से लोगों में स्वास्थ्य को लेकर व्यापक जागरुकता आई है। आज लोग शौच के बाद और खाना खाने से पहले साबुन से जरूर हाथ धोते हैं, छींकने से पहले नाक पर हाथ या रुमाल रखते हैं और तो और गांव में भी अनपढ़ नाई हर व्यक्ति की शेविंग नए ब्लेड से करता है और रेजर को डेटाल से स्वच्छ करता है। जन-जागरुकता का यह स्तर भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में स्वास्थ्य को लेकर एक क्रांति के समान है और इसके सुखद परिणाम हम सबको दिखाई भी दे रहे हैं।

तकनीक संवारेगा स्वास्थ्य का भविष्य:

पिछले कुछ दशकों के दौरान स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा के क्षेत्र में आशातीत प्रगति हुई है। यह प्रगति आधुनिक विज्ञान और तकनीक से हमें हासिल हुई है। मेडिकल डिवाइसों के लघु रूप और साट रोबोटिक्स के प्रवेश से स्वास्थ्य निदान और चिकित्सा सर्जरी के क्षेत्रों में क्रांति आई है। यही नहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग की सहायता से भी स्वास्थ्य सेक्टर ने अनेक रोगों का इलाज ढूंढा है। इन आधुनिक तकनीकों का चिकित्सा में प्रयोग अभी अपनी आरंभिक अवस्था में है। निकट भविष्य में या यूं कहें कि अगले दस वर्षों में इन तकनीकों के सहारे चिकित्सा विज्ञान की दशा-दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलेंगे।

आने वाले दस वर्षों में स्वास्थ्य सेक्टर बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की दिशा में आज से अधिक स्मार्ट भूमिका निभाने की तैयारी में है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग की मदद से मरीज के स्वास्थ्य का स्मार्ट तरीके से पूर्वानुमान होगा और चिकित्सक उसके अनुसार रोग उपचार का रोडमैप तय करेंगे। ये आधुनिक तकनीकें चिकित्सक को इलाज के बेहतर विकल्प भी प्रस्तुत करेंगी। भविष्य में मरीज के शरीर और उसके रोग की सूक्ष्म जानकारी आधुनिक तकनीक से प्राप्त होगी और उसके अनुसार चिकित्सक इलाज की रूपरेखा तय करेंगे। वैसे तकनीक अपने सटीक पूर्वानुमान और आंकड़े प्रस्तुत करेंगी परंतु उनके अनुसार इलाज का भावी मार्ग क्रियांवित करने का पूरा दारोमदार अंतत: चिकित्सक के हाथों में ही होगा।

साफ्ट रोबोटिक्स: भविष्य में इलाज की एक सशक्त तकनीक

साफ्ट रोबोटिक्स भविष्य में इलाज की एक सशक्त तकनीक के रूप में स्थापित होने जा रही है। इस तकनीक की सहायता से जैविक क्रियाओं के कृत्रिम विकल्प विकसित किए जाते हैं। इन विकल्पों की सबसे अधिक आवश्यकता मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में पड़ती है। त्वचा, मांसपेशीय ऊतक और कोमल आंतरिक अंगों के क्षतिग्रस्त होने पर उनके समान गुणों के साथ साफ्ट रोबोटिक्स एक कल्याणकारी विकल्प सामने रखता है। हृदय रोगों के मामले में धमनी या हृदय की वाल्व के साफ्ट रोबोट विकल्प तो जीवनरक्षक साबित हुए हैं।

गंभीर चोट या क्षत-विक्षत की स्थिति में साफ्ट रोबोटिक की मदद से शारीरिक अंग और मुलायम ऊतक को इस बारीकी से बनाया जाता है कि जिस व्यक्ति के शरीर में ये साफ्ट मशीन लगी होती है, उसे कोई असुविधा महसूस नहीं होती है। इस तकनीक में शरीर के ऊतकों के साथ ऐसा तालमेल बैठाया जाता है कि जोड़ के रिप्लेसमेंट, हृदय में स्टेंट और अन्य मेडिकल इम्प्लांट के साथ शरीर की सामान्य जैविक क्रियाओं में कोई परेशानी उत्पन्न न हो। साथ ही आंतरिक बल और दाब का वितरण भी नैसर्गिक दशा में बना रहे। साफ्ट रोबोटिक्स संबंधी इम्प्लांट ऊतक की वृद्धि, उसकी प्रत्यास्थता और गतिशीलता को जरा सा भी प्रभावित नहीं करते।

हड्डी के जोड़ों के ट्रांस्प्लांट में भी साफ्ट रोबोटिक सफल साबित हुई है। कम सक्रिय गति (जैसे ढलान से नीचे उतरना) में शरीर की प्रेरक मांसपेशी अहम भूमिका निभाती है। इसमें शरीर के भीतरी जोड़ की गति में अवरोध उत्पन्न किए बगैर यह तकनीक काम करती है। कठोर और श्रमसाध्य काम करने के लिए साफ्ट रोबोटिक्स से बनी कृत्रिम मांसपेशियों से वांछित यांत्रिक शक्ति प्राप्त होती है। क्षतिग्रस्त प्राकृतिक मांसपेशियों के स्थान पर इन कृत्रिम मांसपेशियों को लगाने के बाद व्यक्ति हाथों से सभी सामान्य कार्य करने लग जाता है जैसे वस्तुओं को पकड़ना, हाथ को घुमाना या तेजी से आती हुई गेंद को कैच करना।

साफ्ट रोबोट यांत्रिक दृष्टि से जैवअनुकूल और सजीव कार्यशीलता के लिए उपयुक्त होते हैं। कृत्रिम टखना इसका एक अच्छा उदाहरण है। जिन लोगों की चाल सामान्य नहीं होती है, उनके लिए कृत्रिम टखना बहुत कारगर होता है। इसकी सहायता से उनकी चाल सामान्य हो जाती है और व्यक्ति अपने पैरों को भी सहजता से हिला-डुला सकता है। टखने के जोड़ को घुमाना भी इसमें सहज होता है। कृत्रिम टखने की तरह कृत्रिम हथेली और उंगलियों का निर्माण भी साफ्ट रोबोटिक तकनीक से संभव हुआ है। हाथ के चोट के मामले में कृत्रिम हथेली कारगर है।

आजकल में स्ट्रोक की घटना तेजी से बढ़ रही है। स्ट्रोक से प्रभावित व्यक्तियों में एक सामान्य स्थिति उत्पन्न होती है, उनके हाथ या बांह की मांसपेशियों में निष्क्रियता। इसे ठीक होने में करीब छ: महीने का वक्त लगता है। थेरैपी के द्वारा मांसपेशियों में दोबारा सक्रियता आ जाती है। इस थेरैपी में सामान्यत: रोबोटिक हैंड का प्रयोग किया जाता है जिनके बहुत भारी होने के कारण मरीज की रिकवरी देर से होती है। इस समस्या को दूर करने में साफ्ट रोबोटिक ग्लव्स हलके और अधिक लचीले होते हैं। इसके अलावा, इसका प्रयोग स्ट्रोक प्रभावित व्यक्ति घर पर स्वयं कर सकता है। उसे फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

भविष्य में चिकित्सक पहुंचेंगे मरीज की सेवा के लिए:

वर्तमान पद्धति है कि बीमार होने पर मरीज चिकित्सक के पास क्लिनिक या अस्पताल में जाता है और इलाज करवाता है। लेकिन भविष्य में यह इलाज सदस्यता माध्यम से होगा अर्थात चिकित्सक अपने मरीज की देखरेख अपने स्तर पर करते रहेंगे और तो और मरीज चिकित्सक के पास नहीं बल्कि चिकित्सक मरीज के पास जाकर उसका उपचार करेगा। मरीज के डिजिटल हेल्थ रिकार्ड की सहायता से भविष्य की यह उपचार प्रणाली कार्य करेगी। डिजिटल और आधुनिक तकनीक मरीज की सेहत का पहले से त्वरित आंकड़ा संप्रेषित कर देंगी जिनके आधार पर चिकित्सक तुरत-फुरत इलाज में जुट जाएंगे। इलेक्ट्रानिक हेल्थ रिकार्ड के द्वारा मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री संबंधित चिकित्सा संस्थान और चिकित्सकों को संप्रेषित हो जाएगी। इस तरह मरीज की खराब सेहत की दशा में उसे अपना कम्फर्ट जोन छोड़ने की भी जरूरत नहीं होगी और चिकित्सक या स्वास्थ्य सेवा दल बिना समय गंवाए उसके पास पहुंच जाएगा। मरीज की मेडिकल हिस्ट्री को संज्ञान में रखते हुए भविष्य की चिकित्सा तकनीकें उसके रोगों पर कड़ी नजर रखे रहेंगी और सेहत से जुड़े किसी भी उतार-चढ़ाव की स्थिति में एक एलर्ट मरीज और उसके चिकित्सक के पास एकसाथ पहुंचेगा, फिर उसके बाद आवश्यक उपचार प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी। भविष्य की चिकित्सा प्रणाली वर्तमान से एकदम अनोखी और सहूलियत भरी होगी। मरीज और चिकित्सक के बीच कोई अंतर नहीं होगा, साथ उनके बीच का संबंध क्रांतिकारी तरीके से बदल जाएगा।

इस तरह हम कह सकते हैं कि चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्रों में हो रही तकनीकी प्रगति के मद्देनजर निकट भविष्य में मरीज की स्वास्थ्य देखभाल आज से कई गुना अधिक वैयक्तिक, तीव्र और सटीक हो जाएगी। आधुनिक स्वास्थ्य संबंधी तकनीकों की सहायता से चिकित्सक के साथ-साथ मरीजों को भी समय-समय पर उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरी सूचना मिलती रहेगी जिनके सहारे वे दवाओं, जांच और सर्जरी को लेकर सजग रहेंगे।

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मनीष मोहन गोरे

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