डम्पिंग ग्राउंड बना कचरों का पहाड़

भारत में कचरे की समस्या खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और इसे काबू में करना बहुत जरूरी है। वर्तमान समय में भारत के हर नगर में कचरे के अंबार देखे जा सकते हैं। कचरा निर्मूलन के नाम पर केवल कचरे को डम्पिंग ग्राउंड में फेंक दिया जाता है। इसे ही हमारी महानगरपालिका व नगरपालिका अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है। इसीके चलते डम्पिंग ग्राउंड में कचरे का पहाड़ दिखाई देने लगा है। सही तरीके से रिसायकलिंग नहीं होने के कारण समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। कचरा कम करना और रिसायकलिंग बढ़ाऩा सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन इसका समाधान एक ही है-रेड्यूस, रियुज एण्ड रिसायकल। इसके अलावा अन्य भारतीय पारंपरिक तरीके हो सकते हैं। घनकचरा प्रबंधन के मामले और कचरे की समस्या को नियंत्रित करने में ओरेक्स नामक एक बेहतरीन तकनीक विकसित की गई है। इसकी सहायता से काफी हद तक कचरे का निपटारा किया जा सकता है।

भारतीय कंपनी (एसएफसी) ने 5 वर्ष तक गहन शोध व अध्ययन कर एक नई और लाभदायक आधुनिक तकनीक विकसित की। जिसके द्वारा मिश्रित कचरे का विभाजन कर बहुत ही सरल तरीके से रिसायकलिंग की जा सकती है। कंपनी का दावा है कि ऑर्गेनिक तथा इनऑर्गेनिक कचरे को अलग-अलग कर उस पर प्रक्रिया करने वाली तकनीक अभी तक दुनिया में नहीं बनी है। उनकी यह तकनीक ’मिक्स वेस्ट’ पर प्रक्रिया कर सकने वाली अनोखी तकनीक है। जिसे ओरेक्स टेक्नॉलॉजी फॉर म्यूनिसिपल स्पेलिड वेस्ट ट्रीटमेंट नाम दिया गया है। प्लास्टिक, लोहा, लकड़ी, कागज, मिट्टी, रसोई आदि के अनेक प्रकार के कचरे को मिक्स वेस्ट कचरा कहते हैं।

गौरतलब है कि भारत के हर शहर में कचरे के पहाड़ बन रहे हैं और उनकी उंचाई भी बढ़ती जा रही है। और इसके दुष्परिणाम स्वरूप पर्यावरण को काफी हानि हो रही है। इन कचरे के पहाड़ों में हवा जाने की भी गुंजाइश नहीं होती। अंतः मिथेन नामक गैस निकलती है, जो सूर्य के ताप को अवशोषित कर लेती है, जिससे वातावरण में गर्मी की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती हैं। और इस प्रकार यह ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए ही जिम्मेदार है। कार्बन डाय-ऑक्साइड की तुलना में यह 20 फीसदी अधिक ताप को अवसोषित करती है। इसके अलावा पुराने कचरे में से एक प्रकार का द्रव लीचेट निकलना शुरू हो जाता हैं। यह स्वास्थ्य के लिए घातक व जहरीला होता है। यह कूड़े व पहाड़ों के आसपास के भूजल और मिट्टी सें निकलकर जल, जमीन और वायु को भी जहरीला बना देता है। इस तरह प्रदूषण फैलता है।

डम्पिंग ग्राउंड में कचरे को ठिकाने लगाने के लिए ठेकेदार उसे जला देते हैं। जिससे हानिकारक धुंआ व बदबू फैलती है, और आसपास रहने वालों को बीमारियों की सौगात बांटती है।

आर्थिक राजधानी मुंबई के देवनार डम्पिंग ग्राउंड में जमा कचरा लगबग 20 मंजिली इमारत जितनी उंचाई का हो चुका है। हालात नियंत्रण के बाहर हैं। यह कचरा सूखे, गीले, रिसायकल या फिर खतरनाक किसी भी श्रेणी में विभाजित नहीं है और इसीलिए इसे निपटाना बहुत मुश्किल एवं खतरनाक है।

विशेषतज्ञ एवं जानकार बताते हैं कि देवनार में लगने वाली आग से निकलता खतरनाक धुंआ मुंबई की हवा को जहरीला बना रहा है। जानलेवा बीमारी फैला रहा है। देवनार डम्पिंग ग्राउंड की सबसे बड़ी आग 8 दिनों तक लगातार जलती रही। इस तरह मुंबई शहर पर मंडराता धुआं इतना घना था कि उसकी तस्वीर नासा के एक विमान ने अंतरिक्ष से जारी की थी। इन 8 दिनों में आग पर काबू पाने के लिए दमकल कर्मचारियों ने 14.4 लाख लीटर पानी का इस्तेमाल किया था। एक ओर महाराष्ट्र में अकाल की मार, दूसरी ओर इतने बड़े पैमाने पर पानी की बर्बादी क्या संदेश देती है?

कूड़ा प्रबंधन की जानकार अपर्णा कपूर ने ‘हिंदी विवेक’ से बातचीत में बताया कि जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता अभियान, शौचालय अभियान को पूरे देश में चलाया और उसे आर्थिक सहायता प्रदान की, उसी तरह कचरे के निर्मूलन हेतु भी राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ने की जरूरत है। तभी देश में कचरे के प्रति जागरुकता आएगी और प्रशासन इस ओर ध्यान देगा।
मिश्रित कचरे के वर्गीकरण और उनका सही उपयोग एवं उनका निर्मूलन करने हेतु ओरेक्स तकनीक बेहत लाभकारी एवं क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती है। इससे डम्पिंग ग्राउंड में पड़े कचरे का निपटारा करने में सहायता मिलेगी।

रही बात देवनार डम्पिंग ग्राउंड की तो वहां माफिया व अपराधियों का राज है। वहां पर आग लगती नहीं लगाई जाती है। कचरा गैंग स्थानीय लोगों का गिरोह है जो धातु याने मेटल आसानी से प्राप्त करने के लिए कचरे में आग लगाता है।

इसके अलावा हमें स्वीडन जैसे शून्य कचरे वाले देश से सीखना चाहिए। भूटान, थायलैण्ड जैसे देशों व हांगकांग जैसे शहरों से भी काफी कुछ सीखा जा सकता है।
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