हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
संगीत सम्राट उस्ताद रजब अली खां साहब

संगीत सम्राट उस्ताद रजब अली खां साहब

by रंजना पोहणेकर
in नवम्बर २०१४, सामाजिक
0

खां साहब पल भर के लिए भी स्वर संवेदन नहीं बिसरे थे जिसकी अनुभूति कई बार श्रोताओं ने अनुभव की है।… राग की विशालता परखना और उसे गहराई से गाना उनका स्वभाव था। संगीत जगत की अनंतता के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। वे संगीत जगत की एक बहुमूल्य हस्ती थे, जिनकी चौंका देने वाली पेशकश अविस्मरणीय होती थी।

उस्ताद रजब अली खां साहब भारतीय शास्त्रीय संगीत के बागीचे के वह फूल हैं जो चर्चित और राजसी रहे हैं, बेमिसाल रहे हैं। उस जमाने के दिग्गज इस बात को मानते हैं और आज के जमाने के दिग्गज भी मानते हैं। यों शास्त्रीय संगीत के इतिहास के भीतर प्रवेश करना किसी चक्रव्यूह में जाने की तरह है लेकिन यह स्पष्ट रूप से हमें महसूस होता है कि खां साहब जैसी जबरदस्त प्रतिभाएं कभी-कभी ही पैदा होती हैं।

अतीत के गलियारे और उस जमाने को भेदते हुए आगे बढ़ती हूं तो ढेर सारी यादें मेरी दहलीज पार कर मुट्ठीभर सितारे ले आती हैं और उस समय की किरणों से सारे आकाश पर किसी तिलिस्म की तरह बिछ जाती हैं। मेरे देवास शहर में एक संकरी गली के पार लाखों खयाल जगमगाएं हैं, उस जमाने में उनके अक्स न जाने कितनों के दिलों के सरोवर में झिलमिलाएं होंगे। यादें किसी तूफान की पोटली सी बंधी मेरे हाथों में आई है। निस्संदेह खां साहब संगीत जगत की एक बहुमूल्य विभूति थे।
आमतौर पर यह धारणा लोगों में है कि खां साहब एक जटिल व्यक्तित्व के थे। लेकिन, यह उत्सुकता बनी रही कि इस अद्भुत शख्सियत की विलक्षण प्रतिभा का राज क्या है? उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व के विशिष्ट तथा बहुआयामी स्वरूप को देखकर लोग हैरान हो जाते थे। केवल घटना के आधार पर किसी कलाकार को नापना, नाकाफी होगा। उनके जीवन में यदि हम झांकें तो कई प्रसंग भावुक प्रतिक्रिया की तरह दिखते हैंं ऐसे में हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे प्रखर गायक की अभिव्यक्ति को समझें तथा तहेदिल से सलाम करें।

संगीत जगत में शेर जैसी जिनकी धाक थी उन ‘संगीत सम्राट’ कहे जाने वाले उस्ताद रजब अली खां साहब की जन्म तारीख के बारे में कोई अधिकृत जानकारी तो उपलब्ध नहीं है फिर भी उनके द्वारा अपने बचपन के संबंध में जो उल्लेख किए जाते हैं उनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका जन्म सन 1865 से 1870 की समयावधि में ही हुआ होगा। रजब अली खां साहब का जन्म स्थान मध्य भारत क्षेत्र की नरसिंहगढ़ रियासत ही था।

उनके वालीद उस्ताद मुगलु खां साहब ख्याल गायक के रूप में प्रसिद्ध थे। मुगलु खां साहब सर्वप्रथम बड़े मोहम्मद खां साहब के गंडा-बंध शागिर्द बने थे किंतु संगीत की वास्तविक शिक्षा अपने गुरु बंधु अर्थात उस्ताद मुबारक खां साहब से ही मिलती रही। वैसे रजब अली खां साहब को ख्याल गायकी में प्रारंभिक शिक्षा उनके पिता उस्ताद मुगलु खां साहब से ही प्राप्त हुई थी, किंतु कुछ कर गुजरने की ललक के कारण रजब अली खां साहब का झुकाव बीन वादन की ओर होने लगा। उस जमाने के महान बीन उस्ताद बंदे अली खां साहब के प्रति रजब अली खां साहब के मन में अपार श्रद्धा थी। अत: जबकभी भी किसी साधारण बातचीत में बंदे अली खां साहब का केवल उल्लेख मात्र होते ही रजब अली खां साहब विनम्रता से अपने कान पकड़कर अपने गुरु के प्रति भाव विभोर होकर अपनी आदरयुक्त श्रद्धा व्यक्त करते थे। इतना ही नहीं वे बेहिचक यह कहने में गौरवान्वित होते थे कि वे उस्ताद बंदेअली खां साहब के शार्गिद थे। उस्ताद मुराद खां साहब एवं वहीद खां साहब आदि रजब अली खां साहब के सहपाठी थे। उन दिनों गुरु शिष्य परंपरा में पठन-पाठन की प्रक्रिया बड़ी जटिल रहा करती थी। ‘सीना-ब-सीना’ संगीत शिक्षा प्रणाली में गुरु से शिष्य द्वारा संगीत शिक्षा प्राप्त की जाती थी। इसमें पुरजोर रियाज करने के लिए शिष्य को विविध मार्गों से प्रेरित किया जाता था। इस प्रक्रिया में साम, दंड आदि प्रणालियों का भी सहारा लिया जाता था। उस जमाने में शिष्य, गुरु के घर सेवा चाकरी में ही अधिक व्यस्त रहा करता था।

उस्ताद रजब अली खां साहब को राष्ट्रपति जी द्वारा सम्मानित किए जाने के पश्चात कई स्थानों पर खां साहब को सम्मानित किया जाता रहा किंतु वृद्धावस्था के कारण दिन-प्रतिदिन शरीर जर्जर होता गया, लेकिन फिर भी गाने की तमन्ना एवं जोश उनमें पूर्ववत ही कायम था।

उस्ताद रजब अली खां साहब एक विलक्षण संगीत प्रतिभा के व्यक्ति थे। संगीत को एक नई दिशा देने में, उस्ताद अल्लादिया खां साहब, अब्दुल वाहिद खां साहब, बालकृष्ण बुआ इचलकरंजीकर, विष्णु नारायण भातखंडे और विष्णु दिगंबर पलुस्कर ही की तरह अपना सारा जीवन अर्पित किया। बीसवीं सदी के तीसरे दशक से प्राप्त करने वाले अनके गायकों पर उनकी गायकी और शैली स्पष्ट रूप से प्रभावित लगती है। यूं उनकी तनैती और राग के साथ आजादी बरतने और उनके उपज अंग की मुश्किलात का अनुसरण असंभव था, लेकिन बहुत से श्रेष्ठ गायकों ने उनके किसी-न-किसी तान प्रकार, किसी-न-किसी अंग को अपना कर अपनी गायकी को निखारा। उस्ताद अमीर खां साहब ने उनकी गायकी अपनाने की कोशिश की थी। उस्ताद जी अपनी इस अभिव्यक्ति प्रणाली को अपने तरीके से प्रवाहित करते गए। उस्ताद रजब अली खां साहब की 1884 में नरसिंहगढ़ छूटने के बाद सुदीर्घ संगीत यात्रा देवास से शुरू हुई थी।

उनके तीखे सवाल सामने वाले को रोशनी दिखाते थे। खयाल का, राग का सफलता पूर्वक बोध कराना, उसके रूप, रंग और गति को गढ़ना होता है; इस प्रक्रिया से उस रचना संसार का गौरव बनता चला जाता है।

बुजुर्गों से हासिल किया हुआ यह योग, सौंदर्य द्वीप की तरह था। राग की शुद्धता को कायम रखना, शास्त्रीय संगीत का सैद्धांतिक आधार था, जो संपूर्णता की ओर जाता था जो संगीत की सभ्यता और संस्कृति को समृद्ध करता गया। जहां तक खां साहब के सांगीतिक आयाम का सवाल है वह पत्थर की लकीर साबित हुआ है। आपकी ताने अनुपम होती थीं जिन्हें सुनकर आपके समकालीन गायक प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। तानों में मोती पिरोने की उनकी खासीयत एक अभिष्ट चिंतन बन जाती थी, जो मुश्किलात से भरपूर होती थी, और बड़ी पेंचीदा होती थी। ताने राग के अनुकूल होती थीं। विभिन्न अलंकारों के टुकड़ों को एक-दूसरे में मिलाकर एक नया रूप देने में खां साहब ने कुशलता प्राप्त कर ली थी। स्वरों के बर्ताव में किरानें का प्रभाव साफ नज़र आता था। उनके बहलावे मींड और अलंकार एक विशिष्ट रंग रखते थे। खां साहब बोलताने और सरगम भी बरतते थे। बोलतानों की लय बाट के साथ बरतने में उन्हें कमाल हासिल था। अजीब सा चैन उनकी बेचैनी में झांकता था और उस अस्तित्व पर तड़प छा जाती थी। ऐसा सुना है कि चांदनी रात में जागा हुआ आसमान सुकून पहुंचाता है और धरती पर कोई फूल खिल जाता है, ऐसा माहौल सुनने वाले महसूस करते थे। फूल का यह स्वरमय रिश्ता कभी नहीं टूटा बल्कि उस संवेदना की खुबसूरती से रोशनी दिखाता था। इसीलिए शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में आपका नाम बड़ी श्रद्धा और मान से लिया जाता है, क्योंकि राग के प्रस्तुतिकरण में आपकी प्रतिबद्धता थी, उसके लिए जीना-मरना, उसे पूरा करने के लिए समर्पण और आस्था रखना, आहुतियां देना बड़ी बात होती है, यह विश्वास उनमें था।

शुरुआती दौर से ही आपने शास्त्रीय गायन को व्यक्तिगत उष्मा दी थी। जो कई लोगों को चौंका देती थी, बेशक ऐसे प्रतिभाशाली गायक दुनिया में दोबारा आना नामुमकिन है। रजब अली खां साहब इस सृजन परंपरा के अविस्मरणीय गायक माने जाते हैं। अपने भीतर के सात्विक-संकल्प की सार्थकता को समझते थे, अपनी उपलब्धियों के नाम पर महानगरों में ऊंची-ऊंची भव्य इमारतें हम देखते हैं… लेकिन खां साहब के जीवन में उपलब्धियों के नाम पर इमारतें या बंगले नहीं थे बल्कि एक सहज ईमानदारी और दबंग होने की एक अलख थी जिसे वे जगाए रखते थे। सृजनशीलता को मुक्त छोड़ देना उन्हें पसंद था। संगीत के प्रति इस अनुराग में निष्ठा थी। वे एक समग्र दृष्टि के संपोषक थे, यह उनके व्यक्तित्व की जय है। नरसिंहगढ़ के इस स्वाभिमानी कलाकार की एक अलग पहचान बनती गई। कोल्हापुर से देवास स्थान परिवर्तन से आपकी संगीत के प्रति संवेदनशीलता और मजबूत होती चली गई यह आपके भीतरी संतुलन से उपजी जीवन लय थी। एक सात्विक आभा थी और यह स्थान परिवर्तन एक सार्थक मोड़ बन गया जो उस युग के संगीत स्पंदन से अछूते प्रकाश के झोंके प्रतिबिंबित गया।
खां साहब पल भर के लिए भी स्वर संवेदन नहीं बिसरे थे जिसकी अनुभूति कई बार श्रोताओं ने अनुभव की है- चांदनी केदार, शिवमत भैरव, ललिता गौरी, केदार, काफी कानडा, बसंतिकेदार, जौनपुरी, बागेश्री आपके प्रिय राग थे। राग की विशालता परखना और उसे गहराई से गाना, संगीत जगत की अनंतता के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। वे संगीत जगत की एक बहुमूल्य हस्ती माने जाते थे जिनकी चौंका देने वाली पेशकश अविस्मरणीय होती थी।

तिरोभाव और समीपवर्ती रागों की छाया दिखाने में उनका अपना कौशल था, शऊर था। विभिन्न अलंकारों के टुकड़ों को एक-दूसरे में मिलाकर नया रूप देने में आपको कुशलता हासिल थी। तानों का गुंफन पेंचीदा और तैयार था। आपके प्रिय शिष्य श्री कृष्णराव मजुमदार, उस्ताद अमानत खां, श्री गणपतराव देवासकर, श्री कृष्णशंकर शुक्ल, मेजर श्री शिवप्रसाद पंडित, श्री बेहरे बुआ, श्री ज्योतिराम, श्री नरेंद्र पंडित तथा महाराज किशन कौल, श्री योगेंद्र पंडित थे। उनकी गायकी बेहद पेचीदा थी, यह सर्वविदित है। उनके मिजाज को सम्हालना बेहद मुश्किल काम था, किसी को भी शिष्य बना लेना यह उनके स्वभाव में नहीं था। इसीलिए शिष्य के परखने के पश्चात ही वे सिखाते थे और यदि एक बार शागिर्द बन गए तब बड़ी तबीयत से उन्हें सिखाते थे, प्रेम रखते थे। उनकी स्मरण-शक्ति बड़ी तीव्र थी। हैदरबख्श साहब खां साहब से बड़ा स्नेह भरा रिश्ता रखते थे, सच बोलना और खरी-खरी सुनाना उनका स्वभाव था। उस्ताद अमीर खां साहब खां साहब के अभिन्न कृपापात्रों में थे।

अपनी साधारण अभिव्यक्ति द्वारा श्रोताओं को स्तब्ध करते थे और एक सशक्त, स्वर माधुर्य से भरा भंडार प्रस्तुत करते थे। बहुत विलक्षण गायकी थी उनकी। देवास और रजब अली खां साहब के नाम एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। उनका सांगीतिक नजरिया बहुत साफ था। लेकिन किसी साधारण गायक को उन तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त और आसान नहीं था। क्योंकि वे कभी अपने उसूलों से कभी पीछे नहीं हटते थे, यह उस जमाने के लोग भलीभांति जानते थे कि वह एक असाधारण संगीत का स्वर्णकाल था। जिसे कोई मिटा नहीं सकता। सूर्य की महिमा से कौन परिचित नहीं है? कलाकार का पुरुषार्थ उपलब्धियों के बजाए अपनी कला से अनुराग रखना अपने आप से ज्यादा महत्वपूर्ण समझते थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में आपका नाम बड़ी श्रद्धा और मान से लिया जाता है। ऐसे विलक्षण संगीत रत्न को प्रणाम। ऐसे महान संगीत सम्राट को सलाम!
————

रंजना पोहणेकर

Next Post
फिल्म संगीत एवं गजल गायकी

फिल्म संगीत एवं गजल गायकी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0