मुझे अच्छा काम करना हैः देवयानी मजूमदार

“नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत समझने में भी कुछ समय लगेगा। जो अच्छा और मौलिक होगा वह जरूर टिका रहेगा। मैं इस क्षेत्र में तुलना या प्रतियोगिता करने के लिए नहीं आई हूं। अच्छा काम करना ही मेरा उद्देश्य है।” किसी इंसान का पेशा और उसका शौक अलग-अलग हो सकता है। और कभी-कभी शौक व्यवसाय भी बन सकता है। आजकल भजन क्षेत्र में उभरते सितारे के रूप में सामने आनेवाली देवयानी मजूमदार के लिए यह बिलकुल सटीक बैठता है- प्रस्तुत हैं देवयानी के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश।

आप इस क्षेत्र में कैसे आईं?

मैंने बचपन से संगीत की शिक्षा ली थी। विशेषत: शास्त्रीय संगीत मुझे ज्यादा पसंद है। उम्र के चौदहवें वर्ष में मैंने संगीत प्रभाकर पदवी प्राप्त की। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने के कारण मेरा सफर आसान है। कोलकाता में मैंने गौतम मुखर्जी के यहां संगीत की शिक्षा ली। मुझे शुरू से ही भजन गायन में रुचि थी।

आज की युवा पीढ़ी के कई गायक सूफी संगीत को प्रधानता देते हैं, परंतु आपने वह मार्ग नहीं स्वीकारा, क्यों?
मुझे दिल से यह लगता है कि सूफी गायन के लिए मेरी आवाज उपयुक्त नहीं है। आज के जो गायक सूफी संगीत गाते हैं उनके विषय में मेरा कुछ कहना गलत होगा, परंतु मुझे लगता है कि सूफी गायन के लिए एक अलग प्रकार की आवाज की जरूरत होती है।

आपका पहला गीत संग्रह कौन सा है?

‘श्याम पिया’ मेरा पहला भजन संग्रह है। उसमें कुल आठ गाने हैं। उसमें से छ: भजन मैंने गाये हैं। एक भजन अनूप जलोटा जी ने गाया है। मैंने भी उनके साथ एक भजन गाया है। इस संग्रह के सभी भजन श्रीकृष्ण के लिए मीरा की भक्ति पर आधारित हैं। सुमित तप्पू ने इसे संगीतबद्ध किया है।

अनूप जलोटा जी के साथ ‘भजन संध्या’ संग्रह करने के दौरान आपका अनुभव कैसा रहा?

उनके साथ गाने पर मिले आनंद की अनुभूति को मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिला। उनका आत्मविश्वास कमाल का है और वे सुरों के भी बहुत पक्के हैं। सुरीला गाना और आत्मविश्वास के साथ गाना मैंने उनसे ही सीखा।

आपका आगामी भजन संग्रह कौन सा है?

उस्ताद रशीद खान साहब के साथ एक भजन की तैयारी हो चुकी है। परंतु इस इस संग्रह का नाम अभी तक तय नहीं हुआ है। इस भजन संग्रह से मेरी कई उम्मीदें जुडी हैं।

क्या आपको भजनों के अलावा गायन के अन्य प्रकारों में भी रुचि है?

मुझे अन्य गीत प्रकारों में भी रुचि है। एक ही तरह का गायन मुझे स्वीकार नहीं है। यह सही है कि मुझे भजनों में विशेष रुचि है परंतु मैं अन्य प्रकार के गीत भी गा सकती हूं और मौका मिलने पर मैं यह साबित भी कर दूंगी। मुझे गज़ल गाना पसंद है। भजन और गज़ल का फ्यूजन गाना भी मुझे पसंद है। और मुझे विश्वास है कि मुझे जल्द ही ऐसा मौका मिलेगा। पार्श्वगायन करने के लिए भी मैं तैयार हूं। मेरा विश्वास है कि जैसे-जैसे मैं आगे बढूंगी, मुझे मौके मिलते जाएंगे। कला क्षेत्र में जल्दबाजी ठीक नहीं। नए मौकों के साथ नई बातें सीखना आवश्यक होता है। मैं वही कर रही हूं।

आप डायटिशियन हैं, फिर संगीत क्षेत्र में कैसे?

आप ध्यान दें कि मैं पेशे से डायटिशियन हूं। लेकिन संगीत व भजन गायन मेरा जुनून है। मेरा जीवन ही संगीतमय वातावरण है। मेरे पिता उत्तम गायक था। वे संगीतकार सलिल चौधरी को पहचानते भी थे। मैं बचपन से ही देश विदेश में संगीत के कार्यक्रम कर रही हूं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मेरे खून में ही संगीत है। चौदह वर्ष की आयु में ही ‘प्रभाकर पदवी’ प्राप्त करने के बाद मैं मुंबई के इस्कान मंदिर में अनूप जलोटा जी से मिली। मैंने तभी तय कर लिया था कि मुझे इस क्षेत्र में आगे बढ़ना है। गुलाबी गैंग नामक फिल्म के शर्म लाज गाने के लिए माधुरी दीक्षित ने भी मेरी तारीफ की थी। बॉडीगार्ड फिल्म का कैटरीना कैफ पर चित्रित ‘आओ जी बाउजी, दिल से दिल मिलाओजी’ गाना भी मेंने गाया है। फिल्मों में पार्श्वगायन की ओर मेरा ध्यान ज्यादा रहेगा।

फिल्मी संगीत की भजन, गज़ल आदि संगीत से प्रतियोगिता कितनी है?

बहुत है। क्योंकि आज की मोबाइल इंटरनेट की पीढ़ी फिल्मों की चमकदार और धूम-धमाकेवाले संगीत की दीवानी है। उन्हें उसमें भरपूर आनंद मिलता है। वे जल्दी ही लोकप्रिय भी हो जाते हैं। भजन-गजल सुननेवाले पारंपरिक श्रोता भी हैं। नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत समझने में भी कुछ समय लगेगा। जो अच्छा और ओरिजनल होगा वह जरूर टिका रहेगा। मैं इस क्षेत्र में तुलना या प्रतियोगिता करने के लिए नहीं आई हूं। अच्छा काम करना ही मेरा उद्देश्य है।
देवयानी मजूमदार से हुई यह मुलाकात खत्म करते समय एक दृढ़निश्चयी गायिका से संवाद करने की अनुभूति हुई।

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