भक्ति कला क्षेत्र का अद्भुत संगीत

मेरे जीवन में आए बदलाव में ‘इस्कॉन’ संगीत का अत्यंत मौलिक योगदान है। संगीत ध्यान है। साथ ही जीवन को सकारात्मक रूप में परिवर्तित करने का साधन भी है। मैंने इस संगीत को जब पहली बार सुना, साधकों को ‘हरे राम….हरे कृष्ण….हरे हरे’ की धुन पर झूमते देखा तब मैं उनकी ओर खिंचता चला गया। -मधुसूदन सिंगड़ोदिया

अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संस्था अर्थात ‘इस्कॉन’ अध्यात्म एवं सेवा के माध्यम से समाज में जागृति लाने का कार्य करती है। दुनिया भर में इस्कॉन के भव्यतम मंदिर श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। इस्कॉन कामुंबई के जुहू उपनगर में भव्य मंदिर है। उस मंदिर से अनेक जनहित एवं अध्यात्म से जुड़ी गतिविधियां संपन्न होती हैं। इस्कॉन का एक विभाग है भक्ति कला क्षेत्र। ‘भक्ति कला क्षेत्र’ सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न करने का मंच है। इसमें नाटक, नृत्य, गायन, गीतों से जुड़े भव्य समारोह संपन्न होते रहते हैं। कार्यक्रम में देश के नामी कलाकार अपना सहयोग देते हैं। भक्ति कला क्षेत्र के वाइस चेयरमेन मधुसूदन सिंगड़ोदिया अत्यंत समर्पित भाव से इन कार्यों को संपन्न कराने में अपना योगदान दे रहे हैं।

मधुसूदन सिंगड़ोदिया 1980 में राजस्थान से मुंबई आए थे। जीवन में कुछ करने की इच्छा उन्हें मुंबई ले आई। शुरुआती दिनों में अत्यल्प वेतन(350/- रुपये) पर नौकरी करनेवाले मधुसूदन सिंगड़ोदिया आज फेब्रिक्स टेक्सटाइल इंडस्ट्री में अपना नाम बना चुके हैं। ‘फुल सर्कल टेक्सटाइल्स’ नाम से उनकी उद्योग संस्था कार्यरत है। मुंबई आने के बाद से ही उनका संघर्षों से गहरा नाता जुड़ गया। उन सभी से रास्ता निकालते हुए वे आज इस उद्योग में स्थिर हो गए हैं। पूर्ण समर्पण, कठोर परिश्रम एवं अनुशासन से काम करने की आदत उन्हें इस मकाम तक ले आई है। वे कहते हैं कि ‘मैं संगीत प्रेमी हूं।’ मुझे सांस्कृतिक, संगीत एवं सामाजिक विषय से जुड़े कार्य करने में आनंद मिलता है। उद्योग तो जीवनयापने करने के लिए है। मेरे अंदर की इच्छा मुझे सांस्कृतिक-सामाजिक कार्य की ओर खींचती है।

मधुसूदन सिंगड़ोदिया समय-समय पर संगीत के पुराने गानों, भजनों तथा अन्य कलाओं के कार्यक्रम करवाते रहते हैं। अपने दोस्तों एवं अन्य लोगों को बुलाकर उन्हें भी संगीतमय कर देना उन्हें अच्छा लगता है। किसी प्रसिद्ध कलाकार के संगीत कार्यक्रम में जाना और पहली पंक्ति में बैठकर उस कार्यक्रम का आनंद लेना मधुसूदन सिंगड़ोदिया को अत्यंत पसंद है।
मधुसूदन सिंगड़ोदिया एक ऐसे परिवार से जुडे हैं, जहां इन सब का बड़ा महत्व रहा है। उनके दादा, पिता तथा वे खुद राजस्थान में कांग्रेस के नेता रहे हैं। विद्यार्थी नेता के रूप में राजस्थान युवा कांग्रेस में अपना मौलिक योगदान उन्होंने दिया है। परंतु अब धीरे-धीरे राजनीति से दूर होकर उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों से खुद को जोड़ लिया है। आज उद्योग के साथ संगीत क्षेत्र में वह अपना योगदान दे रहे हैं।

‘इस्कॉन भक्ति कला क्षेत्र’ के माध्यम से प्रति वर्ष तीन बड़े समारोह संपन्न होते हैं। जिसमें से एक है जन्माष्टमी। इस वर्ष सम्पन्न हुए जन्माष्टमी के समारोह में दीपक पंडित, जसविंदर नरुला, अनूप जलोटा, देवयानी मुजुमदार, पंकज उधास, हेमा मालिनी जैसे गणमान्य कलाकारों ने अपना योगदान दिया। इस्कॉन की ओर से साल में एक रथयात्रा का आयोजन होता है। राम नवमी के समय भव्य समारोह होता है। इन तीन प्रमुख समारोहों को छोड़कर पूर्ण सालभर में विविध कार्यक्रम होते रहते हैं। भक्ति कला केंद्र का मुख्य उद्देश्य लोगों को अध्यात्म एवं संगीत के संस्कार प्रदान करना है। मनुष्य अपने जीवन में आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन पद्धति को अपनाता है। उनके मन में एक संगीत निर्माण होता है, वह संगीत उसे आनंद देता है। संगीत के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए मधुसूदन सिंगड़ोदिया बताते हैं कि संगीत में जादू होता है। वह साधक को भगवान के अस्तित्व का परिचय करवाता है। ‘इस्कॉन’ के संगीत की विशेषता बताते हुए वे कहतेे हैं कि ‘इस्कॉन’ के संगीत में साधक को तल्लीन करने की ताकत है। जब इस्कॉन का भजन, संगीत बजता है, तो साधक उनकी ताल से, लय से जुड़ जाता है। वह झूमने लगता है। ईश्वर भक्ति में समरस होने का अनुभव करता है। इस्कॉन में ‘राम-कृष्ण’ समझाए जाते हैं। उनके जीवन का सार भक्तों तक पहुंचाया जाता है। इसी के कारण ‘हरे रामा, हरे कृष्ण, कृष्णा-कृष्णा हरे हरे’ की धुन में भक्त अपने आप को रमा हुआ पाता है। वे आगे कहते हैं कि ‘इस्कॉन’ के संगीत को मैं शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हूं। पर उसी संगीत से अपने आप में आया हुआ परिवर्तन महसूस कर सकता हूं। उसे अंदर से महसूस कर सकता हूं। संगीत ध्यान है। साथ ही जीवन को सकारात्मक रूप में परिवर्तित करने का साधन भी है। मेरे जीवन में जो बदलाव आया है उसमें ‘इस्कॉन’ के संगीत का अत्यंत मौलिक योगदान है। मैंने इस संगीत को जब पहली बार सुना, साधकों को ‘हरे राम….हरे कृष्ण….हरे हरे’ कि धुन पर झूमते देखा तब मैं उनकी ओर खिंचता चला गया। संगीत मेरे जीवन में ‘मेडीटेशन’ का काम है।

भारतीय परंपरा में उसे देखेंगे तो गोस्वामी तुलसीदासजी ने संगीत को भगवान की प्राप्ति का साधन बताया है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने बताया है कि राम के गुणों का गायन, उनका संगीतमय स्मरण जीवन में ‘आनंद की स्थिति’ प्रदान करता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में शब्दों को किन रागों में, सुरों में गाने पर ‘परम आनंद’ मिलता है, इसका जिक्र मिलता है। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया है, वह भी गा कर दिया है। इसी कारण ‘कृष्ण वचन’ को ‘गीता’ कहा गया है। संगीत का इससे बड़ा महत्व और क्या हो सकता है?

मधुसूदन सिंगड़ोदिया कृष्ण भक्त हैं। साथ में संगीत के प्रति उनके मन में लगाव भी रहा है। ये दो बातें उन्हें इस्कॉन में एकसाथ मिली हैं। इसी कारण वे वहां मन:पूर्वक जुड़ गऐ। प्रत्यक्ष कार्य करते समय उनका परिचय इस्कॉन के मुख्य ट्रस्टी पूजनीय सूरदास प्रभु जी से हुआ। उन्होंने मधुसूदन सिंगड़ोदिया को भक्ति कला क्षेत्र की कार्यकारणी में आमंत्रित किया। मधुसूदन सिंगड़ोदिया, प्रभुजी की आज्ञा का पालन करते हुए कार्य में रम गए। वे अपना योगदान समर्पित भाव से कर रहे हैं। साथ-साथ जीवन में आनंद की अनुभूति भी महसूस कर रहे हैं।

मधुसूदन सिंगड़ोदिया मानते हैं कि भक्ति कला क्षेत्र समारोह जब संपन्न होते हैं तो उन समारोहों में भारतीय संस्कारों के मूल्य समाविष्ट होते हैं। जब समारोह संपन्न होता है, दर्शक लौट रहे होते हैं तब वे सद्विचार एवं सद्भावनाएं लेकर जाते हैं। यही इस्कॉन के भक्ति कला क्षेत्र के द्वारा संपन्न होनेवाले समारोह की विशेषता है। राम-कृष्ण के नाम में एक अद्भुत आकर्षण होता है। जब कोई साधक ‘राम-कृष्ण’ के नाम के नजदीक आता है, नाम जपता है तब वह प्रेम की भावना में बहने लगता है। राम कृष्णमय हो जाता है। जीवन में सकारात्मक सोच का संगीत लाने का आकर्षण ‘राम-कृष्ण’ नाम में है। इसी कारण जब ‘हरे राम…हरे कृष्ण’ इन दो शब्दों का उच्चार होता है तो साधक के मन में संगीत जागृत होता है।

भक्ति कला क्षेत्र की स्थापना परमपूजनीय आचार्य भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी ने सन 1978 में की। भक्ति एवं कला का प्रचार करना और इसी के माध्यम से साधकों को आध्यात्मिक समाधान देना ही भक्ति कला क्षेत्र की स्थापना का मूल उद्देश्य है।

अपने आज तक के जीवन प्रवास के संदर्भ में अत्यंत समाधान व्यक्त करते हुए वे कहते हैं कि, ‘मैं हमेशा अच्छे लोगों के सान्निध्य में रहा हूं। इसी कारण जब मैं संकट में होता हूं तो, मेरी बुनियाद मजबूत होती है। मै अंदर-बाहर से स्थिर होता हूं। इसी कारण से संकट मुझ में बिखराव निर्माण नहीं कर पाता है।
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