मेरा शहर उल्हासनगर

असल में उल्हासनगर कोई शहर नहीं था, सेना का कल्याण कैम्प था। 1947 के दरम्यान सिंध प्रांत से आए हुए सिंधी हिंदुओं को रहने के लिए यहां जगह दी गई। 8 अगस्त 1949 को भारत के पहले गर्वनर जनरल श्री राजगोपाल आचार्य ने कैम्प का नाम बदल कर उल्हासनगर कर दिया, क्योंकि उल्हास नदी यहां बहती हैं। उल्हासनगर के वासी उसे सिंधुनगर भी कहते है। यह सिंधियों का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल है। अब तो इस शहर में सभी प्रांतों, धर्मो एवं पंथों के लोग बस गए हैं। क्योंकि उल्हासनगर में बड़े-बड़े कारखाने और लघु उद्योग बसते गए। लघु उद्योग का बड़ा केंद्र बन गया। करीब 13 कि.मी. में फैला हुआ यह शहर मुंबई से 60 कि.मी. की दूरी पर और सब से बड़े जंक्शन कल्याण स्टेशन से 4 कि. मी. की दूरी पर है। इस शहर से 4 रेल्वे स्टेशन जुड़े हुए हैं। (उल्हासनगर, विट्ठलवाडी, शहाड और अंबरनाथ)। उल्हासनगर को 5 कैम्पों में बांटा गया है। उन में सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है, सबसे महत्वपूर्ण है इष्टदेव झूलेलाल का मंदिर और उल्हासनगर में बिर्ला मंदिर (विट्ठल-रुक्मीणी) मंदिर। उल्हासनगर शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर है। यहां के स्कूलों और कॉलेजों की मैनेजमेंट सिंधियों ने संंभाली है।

इस शहर में सरकारी एवं प्राइवेेट हॉस्पिटल, धर्मशाला और शादियों के हॉल हैं। उल्हासनगर शहर का पहला कामकाज नगरपालिका संभालती थी, लेकिन बढ़ते शहर और विकास के कारण अब उसका कामकाज महानगरपालिका संभालती है। पानी विभाग, सफाई विभाग, बिजली विभाग दूरध्वनि विभाग अभी यहां पर काफी सक्रिय है। उल्हासनगर शहर ठाणे जिले का सबसे तेजी से बढ़ता शहर है। जनसंख्या करीब 8 लाख है। उल्हासनगर कैम्प नं. 2 में जापानी बाजार नाम से महशूर बाजार है। इस शहर के महशूर स्थानों में ‘शिरु चौक,’ ‘गोल मैदान’, ‘सपना गार्डन’, ‘टाऊन हॉल’ और सिंधु यूथ सर्कल है। इस शहर में राजनीतिक दल सक्रिय हैं। उनसे ज्यादा सामाजिक संस्थाएं भी सक्रिय हैं जैसे लायन्स क्लब, रोटरी क्लब, सिनियर सिटीजन्स क्लब और सब से ज्यादा सक्रिय है सिंधी कौन्सिल ऑफ इंडिया!
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