कहाँ गये वो पंक्षी प्यारे, कहां गई वो गौरैया।
चूं चूं सुन मेरा मन बोले ता ता थैया थेया।।
किस बात से तुम गुस्साई, किस बात से घबराई हो।
मिलोगी जिस दिन तुम, पूछेंगे तुमसे सब पापा भैया।।घर के छत पर आने से घर की रंगत बढ़ जाती थी।
देश तुझे यू वो छोटी बच्ची कितना मुस्काती थी।।
तेरे पीछे चलना तुझे पकड़ना सपना होता था।
धीरे धीरे चलना फिर तेरा फुर्र हो जाना होता था।।
अपनी छोटी सी छत पर ही होती थी भूलभूलैया।
कहाँ गये वो पंक्षी प्यारे, कहां गई वो गौरैया।।
गांव के कच्चे घरों में पहले गौरैया का निवास अक्सर देखने को मिलता था। कच्चे घरों पर रखे अनाज और घर के आंगन में गिरा चावल खाने के लिए यह आपस में ही लड़ जाती थी। घर के बच्चे भी इनके पीछे पीछे दौड़ते और पकड़ने की कोशिश करते। गौरैया भी आंगन में इधर से उधर दौड़ती लेकिन घर नहीं छोड़ती थी। मानों यह उनका ही घर हो। पूरा दिन गौरैया की आवाज़ घर में गूंजती रहती थी।
पश्चिमी सभ्यता ने बड़ी ही तेजी से भारतीय सभ्यता पर कब्जा किया, कहने के लिए तो हम एडवांस होने लगे लेकिन इस एडवांस बनने के चक्कर में हमने अपना बहुत कुछ गंवा दिया और अभी भी गंवाते जा रहे है। तेजी से बढ़ते भौतिक सुख के चक्कर में हम तमाम ऐसी चीजों को अपने आस-पास इकट्ठा कर रहे है जिसका दुष्प्रभाव हमारे शरीर और पर्यावरण दोनों पर पड़ रहा है और हम ऐसे तमाम जीव जंतुओं को नुकसान पहुंचा रहे है जिससे हमारे जीवन में फायदे थे।
गौरैया पक्षी भी मनुष्य के साथ करीब 10 हजार साल से रह रही है लेकिन अब इनकी संख्या बहुत ही तेजी से कम होती जा रही है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में गौरैया की संख्या में करीब 60 फीसदी की कमी आयी है। शहरीकरण के लगातार हो रहे विस्तार की वजह से पक्षियों के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा है। ऊंची ऊंची इमारतों के लिए जंगल और पेड़ काटे जा रहे है जिससे तमाम जीव जंतुओं का निवास खत्म हो जा रहा है। पक्षी के लिए पेड़ और पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है जिससे इनका जीवन समय से पहले खत्म हो जा रहा है। जंगल से इन्हे रहने के लिए घर और खाने के लिए फल मिलते थे, नदीं से यह अपनी प्यास बुझाते थे लेकिन अब यह सब खत्म हो रहा है जिससे छोटे बड़े सभी जीवों का जीवन खत्म होता जा रहा है।
हमारे तेजी से बदलते जीवन गौरैया का लिए हानिकारक साबित हो रहे है। पेड़ों की कटाई, खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल, मोबाइल टॉवर से निकलती तरंगे, इमारतों पर लगे शीशे और कंक्रीट की बनती ईमारतें इनके जीवन को बाधित कर रही है। इतना ही नहीं अब गांव में भी घरों और रास्तों को तेजी से पक्का किया जा रहा है जिससे इन्हे घोंसला बनाने के लिए मिट्टी और खरपतवार नहीं मिल रहा है। गौरैया को आप ने धूल में भी खेलते देखा होगा जो अब बिल्कुल भी नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे विलुप्त होते जीवों के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है जिसके लिए कुछ दिन भी निश्चित किये गये है। 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को जागरूक किया जाता है और इन्हे बचाने के लिए लोगों से अपील की जाती है और अपने घर की बालकनी और छत पर पानी और रहने के लिए छोटे घरों को रखने के लिए कहा जाता है। तमाम एनजीओ की तरफ से नुक्कड़ नाटक किया जाता है और लोगों को इनके महत्व के बारे में बताया जाता है।
गौरैया की तेजी से घटती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने सन 2002 में इसे लुप्त प्राय प्राणियों की श्रेणी में शामिल कर दिया और फिर 20 मार्च 2010 को गौरैया दिवस घोषित कर दिया गया। दिल्ली सरकार ने 14 अगस्त 2012 को गौरैया पक्षी को राज्य पक्षी घोषित कर दिया है। 20 मार्च 2011 से गौरैया पुरस्कार की भी शुरुआत की गयी है और इस क्षेत्र में विशेष कार्य करने वालों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
हिन्दी विवेक भी आप सभी से अपील करता है कि आप भी इस पक्षी को बचाने में अपना सहयोग दें।
*घर के छत, आंगन या बालकनी में पक्षी के लिए दाना और पानी जरूर रखें।
*बाजार से कृत्रिम घोंसला भी लाकर रख सकते है।
*गांव के घरों में धान, बाजरा और गेहूं की बालियां लटकाएं।
*घर में गौरैया घोंसला बना रही है तो उसके आस पास जरुरी सामान रख दें।
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बहुत अच्छा लगा। कहां गई वो गौरैया पढ़ते ही जैसे बचपन लौट आया! मेरे बचपन का एक अभिन्न अंग थीं वो! अब तो बस कभी कभी ही नज़र आती हैं। दिल्ली सरकार के इनके संरक्षण के लिए किए गए प्रयास सराहनीय हैं।