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बढ़ता विकास – घटती प्रसन्नता

बढ़ता विकास – घटती प्रसन्नता

by प्रो. श्रीराम अग्रवाल
in विशेष
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(….प्रतिवर्ष बढ़ती हुई राष्ट्रीय जी. डी. पी. वैश्विक स्तर पर विकसित एवं विकासशील राष्टृों के मध्य मुखर प्रतियोगिता का आधार बन गया है। परन्तु उसके विपरीत इन देशों में घटती हुई सामाजिक समरसता, परस्पर सहयोग, उदारता एवं सहनशीलता जन सामान्य के मध्य राष्ट्रीय प्रसन्नता स्तर को कम कर रहे हैं।….)

 (…यद्यपि भारत में गत कुछ वर्षों से तेजी से उन्नत होती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ ही सामाजिक सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा तथा कौशल, सस्ते आवास व रोजगार अवसरों की उपलब्धता बढ़ी है, परन्तु उनका लाभ प्राप्त करने के उपरान्त भी, सत्ता लोलुप राजनीति द्वारा समाज को क्षेत्र, जाति, धर्म तथा समुदाय के आधार पर बांटने व वाह्य आतंक व आन्तरिक राष्ट्रविरोधी विघटनकारी तत्वों व भ्रष्टाचार से आशंकित भारतीय समाज का प्रसन्नता स्तर कम होता जा रहा है। कोई भी प्रजातान्त्रिक सरकार किसी कानून अथवा प्रशासनिक सख्ती से भारतीय समाज को बांटने वाले राजनीतिक तथा राष्टृविरोधी तत्वों से अकेले नहीं निपट सकती जब तक कि इसके लिये देशवासी स्वयं ही सामाजिक सद्भाव, शांति व उदारता बनाये रखकर इन विघटनकारी तत्वों के कुत्सित प्रयासों को निष्फल करने के लिये तत्पर न हों।…)

वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिद़ृश्य में, अमरीका, चीन, जापान तथा जर्मनी आदि जैसे अति विकसित तथा भारत, ब्रिटेन तथा फ्रान्स जैसे तेजी से विकासशील राष्ट्रों के मध्य, तेज गति से अपनी जी.डी.पी. बढ़ाते हुये विश्व के सर्वाधिक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में पहुंचने की प्रतियोगिता बढ़ती जा रही है। कोरोना संकट काल के पूर्व विश्व की सर्वाधिक जी. डी. पी. वाली 5वीं अर्थव्यवस्था बन चुके भारत नेे, 2024 तक अपनी जी.डी.पी. को 5 ट्रिलियर डालर तक पहुंचाकर विश्व की 3री सबसे बड़ी अर्थव्सवस्था बनने का लक्ष्य निर्धारित किया था। लगभग 1 वर्ष तक वैश्विक महामारी से सफलतापूर्वक जूझने के बाद भी, अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने, भारतीय अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक तेजी से पुन: तेज विकास दर प्राप्त करने के सम्बन्ध में जो सकारात्मक सम्भावनायें व्यक्त की है, वह अचानक आयी दैवीय विपत्तियों से हमारी एकजुट होकर जूझने की विलक्षण राष्ट्रीय मनोबल का परिचायक है।

परन्तु राष्ट्रीय जी.डी.पी. तथा उस पर आधारित प्रति व्यक्ति आय के बढ़ते ऊँचे से ऊँचे पायदान पर पहुंच कर बढ़ती आर्थिक खुशहाली का दावा करने वाली इन अर्थव्यवस्थाओं के लोग प्रसन्नता अनुभव करने में, कम जी.डी.पी. वाले कई छोटे राष्ट्रों के लोगों की प्रसन्नता अनुभव से बहुत पीछे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ विगत 2012 से विभिन्न देशों में लोगों की प्रसन्नता अनुभव करने के स्तर का सर्वेक्षण कर विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट (डब्ल्यू,एच.आर.) के आंकड़े प्रकाशित करता आ रहा है। 2019-20 के मध्य किये गये 156 देशों के सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाशित 2020 की इस विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में सर्वाधिक जी.डी.पी. वाले अमेरिका के लोग विश्व में सर्वाधिक प्रसन्न नहीं है अपितु 18वीं पायदान पर हैं। इसी प्रकार सर्वाधिक जी0डी0पी0 में क्रमश: दूसरी, तीसरी व चौथी पायदान पर बैठे राष्ट्रों के लोग, प्रसन्नता स्तर पर चीन में 94वीं, जापान में 62वीं जर्मनी में 17वीं, तथा पांचवी सर्वाधिक जी.डी.पी. वाले हमारे भारत में 144वीं पायदान पर हैं।

विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट का आधार है कि केवल तीव्र आर्थिक विकास से लोगों की भौतिक सन्तुुष्टि तथा वाह्य खुशहाली तो बढ़ सकती है परन्तु आवश्यक नहीं है कि लोग अन्दर से भावनात्मक रूप से भी उतनी ही बढ़ती प्रसन्नता का अनुभव करते हों। इस सर्वेक्षण में जहां प्रति व्यक्ति जी.डी.पी./ आय को भी सम्मिलित किया गया है वहीं स्वस्थ दीर्घायु की संभावना, जीवनयापन के अधिक से अधिक उपलब्ध विकल्प तथा उन्हें चुनने की स्वतंत्रता, आपसी सामाजिक सहयोग व परस्पर मेलभाव, तथा शासन व्यवस्था व समाज में न्यूनतम भ्रष्टाचार की सम्भावनाओं की प्रतीति भी आवश्यक मानी गयी है। अमरीका, चीन और भारत जैसे देशों में तमाम कोशिशों के बावजूद भ्रष्टाचार की पीड़ा अधिक पायी गयी है। भारत अधिक आय, बेहतर जीवन प्रत्याशा तथा जीवन को अपने ढंग से जीने की स्वतंत्रता में बेहतर स्तर पर होते हुये भी, तुलनात्मक रूप से पाकिस्तान में अधिक सामाजिक भाईचारे, परस्पर सहयोग तथा अपेक्षाकृत कम सार्वजनिक भ्रष्टाचार के कारण प्रसन्नता की सूची में 66वीं पायदान पर हैं। चीन सभी मापदण्डों पर बेहतर होकर भी, भ्रष्टाचार की अपेक्षाकृत अधिक आशंका के कारण पाकिस्तान से भी पीेछे 94वीं पायदान पर रह गया है।

आश्चर्यजनक तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र के ही धारणीय विकास के 17 पैमानों पर आधारित मानव विकास रिपोर्ट (ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट) 2020 के आधार पर, पाकिस्तान 154वीं पायदान पर रहकर भारत की 131वीं तथा चीन की 85वीं पायदान से बहुत पीछे है। मानव विकास के इन पैमानों में आय के अतिरिक्त स्वास्थ्य, शुद्ध जल, उन्नत शिक्षा, कौशल विकास, शुद्व पर्यावरण, आरामदायक आवास, लैंगिक समानता, न्यून शिशु मृत्यु दर, आदि जैसे विकास के वे पैमाने हैं जिन पर राष्टृ की बढती आय को अधिकतम लोगों की खुशहाली के साधनों तथा विकास वातावरण की उन्नति पर व्यय किया जाता है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में तीव्र गति से बढती राष्टृीय आय को, सापेक्षतया गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले कम सम्पन्न तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बेहतर जीवनयापन सुविधायें उपलब्ध काराने पर व्यय किया जा रहा है। स्वच्छ पेयजल, सामुदिक विकास, स्वास्थ्य योजनायें, प्रदूषणमुक्त रसोई हेतु उज्जवला योजना, निर्धन वर्ग के लिये शहरी व ग्रामीण आवासीय योजनायें, वरिष्ठ नागरिक विशेष पेंशन योजनायें, कृषि विकास क्षेत्र में पूर्व की अपेक्षा कई गुना अधिक व्यय योजनायें, स्टार्टअप, कौशल विकास तथा स्वरोजगार हेतु प्रेरणा, तथा अन्त्योदय जैसी योजनाओं ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पंख लगा दिये हैं। वहीं आम आदमी भी न केवल अपनी अपितु अपनी आगे आने वाली पीढ़ी की निरन्तर अधिक खुशहाली के प्रति भी आश्वस्त होता जा रहा है।

इस सबके बावजूद भारत के लोग वैश्विक प्रसन्नता के मापदण्ड पर लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। जहां भारत 2011 में विश्व के तमाम देशों की तुलना में 111वीं पायदान पर, 2018 में 133वीं, 2019 में 140वीं पायदन पर था वही अब नीचे खिसकता हुआ 2020 की रिपोर्ट में 144वीं पायदान पर पहुंच गया है। सरकार द्वारा आर्थिक विकास तथा खुशहाल जीवन की क्रमश: अधिक से अधिक सुविधायें उपलब्ध कराने के उपरान्त भी लोगों की प्रसन्नता स्तर में गिरावट का कारण वे गैर-आर्थिक सामाजिक व भवनात्मक तत्व हैं, जिनको कोई भी सरकार किसी सख्ती अथवा योजना के द्वारा परिवर्तित नहीं कर सकती। अभी हाल ही में आई0आई0टी0 / आई0आई0एम0 के कुछ प्रोफेसरों ने प्रो0 पिलानिया के नेतृत्व में, भारत के लगभग सभी राज्यों में 16,950 परिवारों से पूछताछ कर, भारत की प्रथम ‘इण्डिया हेप्पीनेस रिपोर्ट -2020’ प्रकाशित कारायी है। यह रिपोर्ट भी अपनी सक्षमतानुसार आयपरक रोजगार से कार्य करने, स्वस्थ जीवनयापन की सुविधाओं के उपभोग, सुखद पारिवारिक रिश्तों, सौहाद्रपूर्ण सामाजिक परस्परता एवं आपसी विश्वास, तथा निश्ििचन्ततापूर्ण आध्यात्मिक झुकाव जैसे कारकों से प्राप्त आत्मिक प्रसन्नता पर आधारित है। इस रिपोर्ट के अनुसार विवाहित तथा परिवार के साथ रहने वाले लोग अधिक प्रसन्न पाये गये हैं। देश के राज्यवार प्रसन्नता सूचकांक पर, क्रमश: मिजोरम, पंजाब, अण्डमान, पुडुचेरी तथा सिक्किम प्रथम 5 पायदानों पर तथा बड़े राज्यों में, प्रथम 3 पायदानों पर पंजाब, गुजरात तथा तेलंगाना पाये गसे हैं।

वास्तविकता यह है कि आर्थिक खुशहाली वाह्य वातावरण व सुविधाओं पर निर्भर करती है जबकि प्रसन्नता लोगों के सोच, व्यवहार, परस्पर सहयोग, निर्भरता एवं विश्वास पर निर्भर करती है । हमारे देश में प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में प्राप्त निजी जीवन की अबाध स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठाकर, भारतीय दलगत राजनीति के दलदल ने समाज की अनेकता में एकता के पारम्परिक ताने-बाने को जाति, सम्प्रदाय, धर्म, क्षेत्र, अगड़े-पिछड़े के नाम पर छिन्न-भिन्न कर दिया है। वाह्य ताकतों व विदेशों से आयातित आतंकवाद से प्रभावित भारतीय समाज का एक बड़ा तबका राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त है। मात्र राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के उद्देश्य से चलाये जाने वाले कथित चक्का जाम, धरना और िंहंसक आन्दोलन से आम आदमी सदैव सशंकित रहता है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद भी आम प्रशासनिक एवं व्यापारिक व्यवहार में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सका है। अमनचैन पसंद आम भारतीय जनों के बड़े तबके को हमारे समाज की प्रसन्नता को कम करने वाली इन परिस्थितियों से स्वयं ही सचेत रहकर अपने व्यवहार को बदलना होगाा। ऐसे सामाजिक विघटनकारी तत्वों की पहचान कर उनको नकारना होगा।

अनेकता में एकता भारत की पारम्परिक संस्कृति की पहचान रही है। हमें किसी भी कीमत पर सामाजिक सद्भाव, परस्पर सहयोग, उदात्त सहिष्णुता तथा सहनशीलता के साथ अपनी सामाजिक संवेदना बनाये रखनी होगी तभी हम अपनी उन्नतशील आर्थिक खुशहाली के अनुरूप, जीवन में आन्तरिक प्रसन्नता के स्तर पर भी विश्व में आगे की पंक्ति में खडे हो सकेंगे। सरकार द्वारा सभी प्रकार की सुविधायें मुहैया कराये जाने के बावजूद अपनी प्रसन्नता को अक्षुण्ण रखने के लिये हम स्वयं जिम्मेदार हैं। सबके साथ और सबको साथ रखकर ही विकास की अगली पायदानों पर चढ़ते हुये हम जीवन आनन्द एवं प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।

ॠग्वेद के अन्तिम सूक्त 10/191/2-4 में कहा गया है कि – ‘‘सह गच्छध्वं सं वदध्वं सं वोजनाति जानताम्। समानो मंन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सह चित्तमेषाम्॥ समानं मन्त्रमभि मन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि। समानी व आकूति: समाना हृदयानि व:। समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति॥’’ – हम सब मिलकर चलें। समान रूप से ज्ञानी हों। समान रूप से मिलजुलकर बैठें, विचार करें, कर्म करें। हमारे हृदय समान हों, हमारा मन, विचार, संकल्प समान हों ताकि हम सुसंगठित होकर समान प्रसन्नता के साथ अपने जीवन उद्देश्यों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष- चारों पुरूषार्थों को प्राप्त कर सकें।

 

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