संघ, गांधी और मोदी

पूरी सेक्युलर जमात आजकल नरेन्द्र मोदी के विरोध में महात्मा गांधी नामक अस्त्र लेकर खड़ी है। उसका कारण यह है कि नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर अर्थात गांधी जयंती के अवसर पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत की। …गांधी विचाररूपी महासागर से उन्होंने केवल एक कण उठाया। इन सेक्युलर भूत-पिशाचों को इतना भी सहन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत चीखना-चिल्लाना शुरु कर दिया।

सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइनस्टाइन ने गांधी जी के बारे में कहा है, “Generations to come, it may will be, will scarce believe that such a man as this one ever in flesh and blood walked upon this earth.” इसका भावार्थ यह कि हाडमांस का एक ऐसा व्यक्ति इस भूमि पर पैदा हुआ था, इस बात पर शायद अनेक पीढ़ियों को विश्वास नहीं होगा। महात्मा गांधी की योग्यता को परखने के लिए हमारे अंदर भी उतनी ही योग्यता होना आवश्यक है। आइनस्टाइन को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। आज विज्ञान के क्षेत्र में जो भी प्रगति हुई है उसका आधार आइनस्टाइन के सैद्धांतिक विचार ही उपयोगी रहे हैं। संसार को बदलाव लाने वाला एक वैज्ञानिक, भारत के एक फकीर की योग्यता को सही मायनों में समझ सकता था।

ऐसे महात्मा गांधी का भारत के दोगले गांधी भक्तों को, मानवतावादियों को, सेक्युलरवादियों को क्या उपयोग है? महात्मा गांधी का उन्हें एक ही उपयोग है। वह है। रा.स्व.संघ की धुनाई करने और भाजपा पर हल्ला बोल करने के लिए। क्योंकि ये सभी तथाकथित गांधीवादी भारत के भोंदुओं की सबसे बड़ी जमात है। वे खुद तो पांचसितारा जीवनशैली में रहेंगे, अनेक लफड़ें करेंगे, ब्रह्मचर्य व्रत की ऐसीतैसी करेंगे, खूब शराब डकारेंगे, स्त्री-पुरुष संबंधों के बारे में अनिर्बंध रहेंगे और ढोंग करेंगे गांधीभक्त होने का। महात्मा गांधी ने एक पत्नीव्रत का जीवनभर कठोरता से पालन किया। लेकिन इन तथाकथित गांधीभक्तों ने खुद कितनी पत्नियां रखीं यह वे ही बताएं तो बेहतर है।

यह सारी सेक्युलर जमात फिलहाल नरेन्द्र मोदी के विरोध में महात्मा गांधी नामक अस्त्र लेकर खड़ी है। कारण यह कि, नरेन्द्रभाई मोदी ने 2 अक्टूबर अर्थात गांधी जयंती के दिन ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरु किया। इसके पूर्व उन्होंने एक भाषण में सवाल उठाया था कि महात्मा गांधी ने हमें स्वतंत्रता दी, हम उन्हें क्या देंगे? गांधीजी को कुछ देने के लिए उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। उन्होंने गांधी विचाररूपी महासागर से केवल एक कण उठाया। यह भी इन सेक्युलर भूत-पिशाचों को सहन नहीं हुआ और तुरंत चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। वे बेचारे करें भी तो क्या, ये उनकी रोजी- रोटी का सवाल है। संघ, भाजपा को बदनाम करने का काम न करें तो उन्हें उनके ‘पापी पेट का सवाल’ शांत नहीं बैठने देगा।

आम आदमी पार्टी के दिल्ली के उम्मीदवार हैं आशुतोष (जो हमें कुछ समय खबरी चैनल पर दिखाई देते थे)। वे लिखते हैं कि, ‘न्यूयार्क में नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी की प्रशंसा की। इसके दो अर्थ हैं। पहला यह कि संघ ने महात्मा गांधी की शरण ले ली है और दूसरा यह कि महात्मा गांधी की विरासत को छीनने का संघ का यह प्रयत्न है। कांग्रेस के पतन के कारण जो शून्यता पैदा हुई है उसे संघ को भरना है। इसके लिए संघ को अपनी विचारधारा को मान्यता दिलवानी है। संघ अपने जन्म से ही गांधीजी का विरोधी है। गांधीजी अहिंसा का पालन करते थे, जबकि संघ का अहिंसा के तत्वज्ञान पर विश्वास ही नहीं था।’ प्रत्येक सेक्युलरिस्ट वैसे पढ़ाकू होता है, और अपने समर्थन में उद्धरण पर उद्धरण पेश करता है। आशुतोष ने भी अपने लेख में प. पू. श्री गुरुजी के कुछ उद्धरण दिए हैं। उद्धरण देते समय सेक्युलरिस्ट संदर्भों को कभी ध्यान में नहीं रखता और उद्धरणों से अपने मनमाफिक अर्थ निकालता है। श्री गुरुजी ने गांधीजी की अहिंसा को नकारा था। संघ का यह मत है कि अहिंसा का अतिरेक होने के कारण देश कमजोर हुआ और क्षात्रशक्ति का कोई विकल्प नहीं है। आशुतोष महाराज का कहना है कि, “हिंसा संघ के तत्वज्ञान का अंग है। वे शस्त्रों की पूजा करते हैं।” अहिंसा के नाम पर आक्रमणकारियों के अत्याचार सहने की नपुंसक शिक्षा संघ नहीं देता, इसका मतलब संघ हिंसाचारी है, यह अर्थ कोई भी विकृत सेक्युलरिस्ट ही निकाल सकता है। अपने पुरुषार्थ के बल पर जीना चाहिए, अपने सामर्थ्य के दम पर हमें जीना चाहिए, इसमें हिंसा कहां से आ गई?

नरेन्द्र मोदी ने गांधी जी के नाम पर देशभर में स्वच्छता का अभियान शुरू किया है। इस अभियान में शशी थरूर भी शामिल हुए। वे स्वयं कई लफड़ों में फंसे हैं, अत: आजकल मोदी जी का गुणगान करते रहते हैं। इससे कांग्रेस का प्रवक्ता पद भी उन्हें गंवाना पड़ा। वे कहते हैं, ‘स्वच्छ भारत अभियान को कोई लेबल लगाने की आवश्यकता नहीं है। स्वच्छ भारत का गांधीजी का स्वप्न किसी राजनैतिक पार्टी के पलड़े में क्यों डाल दें? वह किसी भी पार्टी की बपौती नहीं हो सकती। अपना परिसर स्वच्छ रखना चाहिए यह संदेश सर्वप्रथम महात्मा गांधीजी ने ही दिया था।‘

शशी थरूर को स्वच्छता के बारे में कुछ नहीं कहना है; उनका दर्द यह है कि गांधीजी के नाम का उपयोग भाजपा और नरेन्द्र मोदी ने किया है। वे कहते हैं, गांधी जी पर किसी पार्टी का एकाधिकार नहीं हो सकता। शशी थरूर की यह बात मान लेते हैं। फिर पिछले 68 सालों में गांधीजी के नाम की माला जपने वाली कांग्रेस क्या अब सो रही थी? क्या कांग्रेस को गांधीजी के विचार समझ में नहीं आ रहे थे? या वे उनका आकलन नहीं कर पा रहे थे? नरेन्द्र मोदी ने तो स्वच्छता जैसा सामान्य विषय ही उठाया है। इस विषय में महात्मा गांधी कहते हैं, ‘हमारे स्वच्छतागृह, हमारी सभ्यता को धूल में मिलाते हैं। हम आनंददायी स्नान चाहते हैं; लेकिन कुओं, तालाबों और नदियों को गंदा करने में शर्म नहीं आती। उनके किनारों पर ही हम अपने पवित्र धार्मिक कृत्य करते हैं। इस तरह के कर्मकाण्डों को भयंकर पाप समझना चाहिए। इनके कारण हमारे गावों की स्थिति दयनीय हो गई है। इसी कारण पवित्र नदियों के तट अनेक रोगों के जन्मदाता बन गए हैं।’ महात्मा गांधी के स्वच्छता के संबंध में कई ऐसे वचन हैं। शशी थरूर से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि स्वतंत्रता के बाद वे गांधीजी के विचारों के संबंध में क्या कर रहे थे? मोदी द्वारा गांधी विषय उठाने के बाद आप के पेट में क्यों दर्द होने लगा?

जयलक्ष्मी के ने 2 अक्टूबर 2014 के अपने लेख में महात्मा गांधी के ‘हिंद स्वराज्य’ में छपे कुछ उद्धरण दिए। इसका कारण भी नरेन्द्र मोदी ही हैं। नरेन्द्र मोदी जब विदेश जाते हैं तो वे वहां के अनिवासी भारतीयों और पूंजीपतियों से भारत में निवेश करने का आह्वान करते हैें। अमेरिकी यात्रा के दौरान भी उन्होंने अनिवासी भारतीयों के समक्ष भाषण करते समय उनसे भारत में निवेश करने और भारत के विकास में हाथ बंटाने का आह्वान किया था। इस जयलक्ष्मी के को भी मोदी के कारण ही गांधीजी के हिंद स्वराज्य का स्मरण हुआ। बाकी समय शायद यह महिला हिंद स्वराज्य को अपने तकिए के नीचे रखकर सोती होगी। वे गांधी का उद्धरण प्रस्तुत करती हैं, “मनुष्य की वृत्तियां चंचल होती हैं, यह हम देखते हैैं। उसका मन हमेशा चंचल होता है। शरीर को हम जितना दें उतना वह अधिक मांगता है। अधिक लेकर भी वह सुखी नहीं होता। भोगने से अधिक भोगने की इच्छा पैदा होती है। अत: हमारे पूर्वजों ने मर्यादा निश्चित की। काफी सोच-विचार के उपरांत उन्होंने पाया कि सुख-दुख सब कुछ मन के ही है। धनी अमीरी से सुखी नहीं है, गरीब गरीबी से दुखी नहीं है। धनी लोग दुखी दिखाई देते हैं, गरीब भी सुखी दिखाई देते हैं।” अपने लेख का समापन करते हुए वे लिखती हैं, ‘हमें कारखानों के उत्पादनों के पीछे पड़ने के बजाय खेती को अधिक महत्व देकर गावों को मजबूत करने के गांधीजी के विचार पर अमल करना चाहिए। वर्तमान में दुनिया में ग्रॉस नेशनल हैपिनेस (सकल राष्ट्रीय सुख) संकल्पना की चर्चा हो रही है। जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद की चर्चा अब नहीं होती। हमें भी सकल राष्ट्रीय सुख का विचार करना चाहिए।’

विचार तो बेहतरीन है; परंतु मोदी के द्वारा गांधीजी का उच्चारण होने के बाद ही इसकी याद क्यों, पहले क्यों नहीं आई? गांधी और संघ के संदर्भ में लिखते समय हर लेखक लिखता है कि नथूराम ने गांधीजी की हत्या की, नथूराम हिंदुत्ववादी था और खींचतान कर संघ को उसमें उलझाते हैं। लेकिन गांधीजी की वैचारिक हत्या किसने की इस पर कोई कुछ नहीं लिखता। अचानक किसी की नींद खुलती है और वह हिंद स्वराज्य पर बोलने लगता है, लिखने लगता है। पंडित नेहरू ने ही गांधी विचारों को तिलांजलि दी, सारे विचारों को दफना दिया इसके बारे में कोई गांधी भक्त कुछ नहीं लिखता। पंडित नेहरू ने यंत्रयुग पर बल दिया, उपभोग पर बल दिया, गांवों के विनाश पर बल दिया, खादी को खादी ग्रामोद्योग मंडल का बंधक बना दिया। सरकारी समाजवाद ले आए। गांधी जी की स्वयंपूर्ण गावों की कल्पना को बंगाल की खाड़ी में विसर्जित कर दिया। गांधीजी की साधन-शुचिता, नैतिक शिक्षा, धर्म-जीवन यह सब अरब सागर में डुबो दिया। इस वैचारिक हत्या के लिए कोई सेक्युलर आंसू बहाते नहीं दिखता। क्योंकि उनकी राय में गांधीजी के गांवों के बारे में विचार, गांधीजी के आर्थिक स्वावलंबन के विचार, गांधीजी के चरित्र संबंधी विचार, गांधीजी की श्रम प्रतिष्ठा यानी मध्ययुगीन पिछड़ापन ही था। गांधीजी के आर्थिक विचारों से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं था। इसलिए इन गांधी भक्तों को बेईमान कहना होगा। गांधीजी हमेशा तीसरे दर्जे से यात्रा करते थे और शशी थरूर को तो वातानुकूलित यात्रा भी कैटल क्लास की लगती है।

गांधी और संघ के बारे में मोदी की सोच पर भारत भूषण का एक लेख ‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ में प्रकाशित हुआ है। यह लेख 9 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ है। वे इस पसोपेश में हैं कि मोदी के मन में संघ और गांधी एक साथ कैसे रहते हैं? इसका उत्तर भी उन्होंने ही दिया है। उत्तर यह है किे, मोदी को जनता में अपनी राजनेता की छवि बनानी है। साथ ही वे संघ भी नहीं छोड़ना चाहते। चुनाव प्रचार के समय उन्हें संघ की फौज की आवश्यकता पड़ती है। राजनेता बनने के लिए ही उन्हें गांधीजी और सरदार पटेल की आवश्यकता है। उन्होंने बड़ी चतुराई से गांधीजी का उपयोग किया है। स्वच्छता अभियान के माध्यम से भी यही संदेश दिया जा रहा है कि भारत को समर्थ नेतृत्व केवल मोदी ही दे सकते हैं। मोदी राजनैतिक संदेश देने में कुशल हैं। देश के समक्ष जटिल सामाजिक समस्याओं, धार्मिक समस्याओं, आर्थिक विषमता, स्वच्छता के साथ आनेवाली स्वास्थ्य समस्याओं, आवास की समस्याओं के बारे में वे कुछ नहीं बोलते। इस प्रकार मोदी लोकप्रिय प्रतीकों/लोगों को साथ लेकर भागवत और संघ को गांधी और पटेल के समकक्ष खड़ा चाहते हैं।

सेक्युलरवादी कैसी और क्या खोज करेंगे यह या तो वे ही जाने। भागवतजी और संघ को गांधीजी और सरदार पटेल के समकक्ष लाने की क्या आवश्यकता है? रा. स्व. संघ अपने कर्तृत्व के कारण बहुत बड़ा है। वह गांधी और पटेल के कारण बड़ा नहीं होगा या अत्यंत विनम्रता से यह कहा जाए कि गांधी और पटेल ही संघ के कारण बड़े होंगे। मेरा मत है कि यह ऐतिहासिक कार्य भविष्य में संघ को ही करना होगा। हालांकि अनेक लोगों को यह बात हजम नहीं होगी। रा. स्व. संघ तीन प्रमुख विषय लेकर काम करता है।

1) चारित्रबल निर्माण करना

2) देशभक्ति के संस्कारों को लोगों के मनों पर अंकित करना। देशभक्ति अर्थात जन, भूमि और संस्कृति के प्रति जाज्वल्य अभिमान निर्माण करना।

3) सभी भारतीयों में धर्मभाव जागृत करना। धर्म अर्थात स्वत: से लेकर सृष्टि तक के सभी कर्तव्यों का पालन करना।

महात्मा गांधी ने अपने जीवन में इन तीनों मुद्दों का कठोरता से पालन किया। उनकी भाषा अलग थी। कार्यक्रम अलग थे। सरदार वल्लभभाई पटेल अलग-अलग राज्यों में बिखरे हुए इस देश को एक राजनैतिक रचना में लाए और उसे बांधकर रखा। देश को एक करने के उनके कार्य को आनेवाली पीढ़ियां कभी नहीं भूलेंगी।

गांधीजी से मुस्लिम तुष्टिकरण को हटा दिया जाए तो जो महात्मा बचता है उसकी आज देश को आवश्यकता है। गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति देश को बहुत महंगी पड़ी। उसे भुलाया नहीं जा सकता। इस नीति का पालन पुन: नहीं हो सकता। फिर भी गांधी जी के हिंदू मुस्लिम एकता के विचार को अलग नहीं किया सकता। गांधी जी का हिंदू मुस्लिम एकता का मार्ग गलत साबित हुआ और देश को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। गांधीजी का हिन्दू मुस्लिम एकता का स्वप्न भविष्य में साकार होगा; परंतु वह गांधीजी के मार्ग से नहीं संघ के मार्ग से होगा। मोहनजी भागवत ने इस एकता की शुरुआत कर दी है। उन्होंने कहा-हिंदुस्तान में रहनेवाला हिंदू है।’ महात्मा गांधीजी यह जानते थे। अत: हिन्द स्वराज्य में उन्होंने लिखा, ‘मियां-महादेव कभी नहीं जमेगा, इसे मात्र मुहावरा मान लें। ऐसे कई मुहावरे प्रचलित होते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे मुहावरों के कारण हम इस बात की ओर ध्यान नहीं देते कि कई हिंदू और मुसलमानों के पूर्वज एक ही थे। हमारा खून एक ही है। धर्म बदलने के कारण क्या हम शत्रु हो गए? क्या दोनों का ईश्वर अलग है? धर्म का अर्थ है एक स्थान पर पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं। हमने अलग-अलग रास्ते अपनाए तो क्या हुआ? उसमें लड़ने जैसा क्या है?’

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधी विचारों में से केवल एक विषय उठाया है। परंतु यह गाड़ी यहीं नहीं रुकेगी। भारत का उत्थान अर्थात हिंदुओं का उत्थान, हिन्दुओं का उत्थान अर्थात धर्म का उत्थान, धर्म का उत्थान अर्थात धर्मपुरुषों का उत्थान और भारत के धर्म पुरुषों में महात्मा गांधी की गणना की जाती है। इसलिए ‘यह केवल अंगडाई है। आगे ललकारी आएगी।’ उस समय के लिए मोदी, भाजपा संघ पर प्रहार करने के लिए सेक्युलर, मानवतावादी, गांधीवादी लोगों को अपनी बंदूकों की गोलियां बचाकर रखनी चाहिए। उन्हें यह चिंता करनी चाहिए कि सभी गोलियां अभी खत्म कर दीं तो आगे की सैद्धांतिक लड़ाई के लिए उनके पास कुछ नहीं बचेगा। कहीं ऐसा न हो। एक बार चीटियों और केचुओं के बीच लड़ाई हुई। बहुत दिनों तक चली। अंत में निर्णायक युद्ध करना तय हुआ। वैशाख मास की तारीख निश्चित हुई। तय तिथि पर चीटियां युद्ध के मैदान पर पहुंचीं और केंचुओं की राह देखने लगी। परंतु वैशाख में केंचुएं कैसे आएंगे? अब यह देखना है कि क्या सेक्युलर फौज वैशाख मास तक रहेगी?
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