उत्तम अभिनेता उत्कृष्ट व्यक्ति-सदाशिव अमरापुरकर

उम्र के 64 वे वर्ष में सदाशिव अमरापुरकर का दुखद निधन अत्यंत धक्कादायक था। वे केवल अभिनेता नहीं थे। अपने आसपास होनेवाली सामाजिक घटनाओं के प्रति भी वे काफी सजग थे। सामाजिक कृतज्ञता, पुस्तक वाचन, समाज में घडनेवाली घटनाओं पर स्पष्ट वक्तव्य उनके व्यक्तित्व की खास विशेषताएं थी।

वे केवल अभिनेता के रुप में नहीं जिये। इसलिये वे अलग थे। सामान्य जीवन में उनका रहन सहन अभिनेता की तरह नहीं था फिर भी पारंपरिक लोकप्रिय हिंदी फिल्मों में सफल रहे। उन्होंने स्वत: का अस्तित्व निर्माण किया।
14 मई 1950 में अहमदनगर में जन्मे इस बहुरंगी कलाकार ने अपनी तेज तर्रार आखों, सरस देहबोली और उत्कृष्ट अभिनय के बल पर यश अर्जित किया। प्रा. मधुकर तोरडमल जैसा गुरु मिलने के बाद तो सदाशिव अमरापुरकर अत्यंत उत्तम पद्धति से आगे बढे। ‘एक रात्र अमवस्येची’, ‘लाल बत्ती’, सैनिक नावाचा माणुस इत्यादि नाटकों (एकांकिया) में उन्होंने अपने महाविद्यालयीन काल में विशेष भूमिकाएं की। सन 1977 में मुंबई आने के बाद उनकी विशेष यात्रा प्रारंभ हुई। हालांकि वे कभी किसी सांचे में बंधे नहीं रहे। और न ही उन्हें लोकप्रियता बदल सकी। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हे बहुत सफलता प्रदान की। न वे कभी फिल्मी हुए और न ही उस इंडस्ट्री में ‘फिट’ बैठनेवाली डींगे होगी।

मराठी नाटक, मराठी व हिंदी फिल्में और कुछ समय पश्चात वे कुछ मराठी सीरियल में भी दिखाई दिये। वे मराठी नाटकों में ही अधिक रमे हुए नजर आये। वहीं उनकी ‘पहचान’ बनी। ‘छिन्न’ नाटक में तो उन्होंने सभी को अपने अभिनय का लोहा मनवाया।

वे हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में कइ साल रहे परंतु वहां संस्कृति को उन्होंने नही अपनाया। विजय तेंडुलकर की पटकथा और गोविंद निहलानी द्वारा निर्देशित अर्धसत्य में निर्माता रामा शेट्टी के किरदार ने सदाशिव अमरापुरकर को लोकप्रिय बना दिया। पुलिस विभाग में फैले भ्रष्टाचार पर आधारित इस फिल्म के नायक अनंत वेलणकर (ओम पुरी) को समीक्षकों और दर्शकों की सहानुभूति मिली। भ्रष्ट व्यवस्था के कारण अनंत वेलणकर का हतबल होना दर्शकों को झकझोर गया। रामा शेट्टी (सदाशिव अमरापुरकर) झोपडपट्टी का दादा है जो बल के कारण जुनाव जीतता है। और अनंत वेलणकर को भी बहुत परेशान करता है। यह फिल्म सन 1984 की सफल फिल्मों में गिनी जाती है। उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के कारण रामा शेट्टी दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बना। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा की सफल चेहरे की जरुरत होती है। उस चेहरे को साइन करने के लिये हर कोई हर संभव प्रयास करता है। अमरापुरकर ने इस अवसर का लाभ उठाया। और उनकी हिंदी मराठी तर्ज की होने के बावजूद लोगों ने उन्हें स्वीकारा। फिल्म इंडस्ट्री किसी सफल चेहरे को उसके गुण दोषों के साथ अपना लेती है।

निर्देशक महेश भट्ट ने ‘सडक’ फिल्म के महारानी नामक किरदार के लिये सदाशिव अमरापुरकर को चुना यह एक तृतीयपंथी की क्रूरतापूर्ण व्यक्तिरेखा थी जिसे परदे पर प्रस्तुत करके सदाशिव अमरापुरकर ने दहशत फैला दी। ‘डर मत मेरी जान डर मत…मैं कुछ नहीं करुंगी…मैं कुछ कर भी नहीं सकती जानती हो क्यों… क्यों कि मैं आधा मर्द हूं और आधी औरत…इस संवाद को सदाशिव अमरापुर ने इतनी क्रूरता से पेश किया कि परदे पर पूजा भट्ट जिस तरह कांपी उसी तरह थियेटर के अंधेरे में बैठे दर्शक भी डर गये। हिन्दी फिल्म में वे केवल खलनायक के तौर पर ही नहीं आये। उन्होंने इश्क, आंखे जैसी फिल्मों में हास्य भूमिकाएं भी निभाई। कुछ फिल्मों में चरित्र, भूमिकाएं भी की अत: यह कहना उपयुक्त नहीं होगा कि वे केवल ‘खलनायक’ ही थे।

वे व्यक्ति के रुप में भी बहुरंगी थे। अनेक समाज सेवी संस्थाओं को मदत करते रहे जिसका किसी को पता नहीं थी। मेधा पाटकर, अण्णा हजारे जैसे लोगों के आंदोलन में उन्होंने प्रत्यक्ष सहभाग लिया। फिल्मों से मिली लोकप्रियता का फायदा उठाने की कई कलाकारों की आदत होती है। परंतु सदाशिव अमरापुरकर ने कभी यह लालसा नहीं रखी। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे अलग ‘स्कूल’ के अभिनेता थे।

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