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पारिवारिक व्यवसाय की दिशा

पारिवारिक व्यवसाय की दिशा

by डॉ मीता दीक्षित
in अप्रैल -२०१६, उद्योग
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पारिवारिक स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों को बदलते परिदृश्य और नई पीढ़ी की अपेक्षाओं के अनुरूप बदलना होगा। परम्परागत प्रबंध की अपेक्षा उन्हें व्यावसायिक प्रबंध की ओर जाना होगा। ऐसे कुछ बदलाव हो भी रहे हैं। उम्मीद है कि भारतीय कार्पोरेट जगत में अगले दशकों में वे अवश्य अगुवा होंगे।

भारतीय कम्पनी जगत वैश्विक अर्थव्यवस्था में अग्रिम स्थान की ओर अग्रसर हो रहा है। छोटे और मध्यम प्रतिष्ठान (एसएमई) अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है; क्योंकि उनका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), रोजगार और निर्यात में उल्लेखनीय योगदान है।

छोटे और मध्यम उद्योगों में लगभग 92 से 95 प्रतिशत पारिवारिक व्यवसाय है। यह भी ध्यान देने लायक बात है कि श्रेष्ठ 500 सूचीबद्ध कम्पनियों में करीब 70 फीसदी का संचालन पारिवारिक तौर पर होता है। परिवारों द्वारा संचालित कारोबार में लगभग 70 फीसदी उद्योग विभिन्न कारणों से चर्चा में होते हें, जो श्रेष्ठ प्रगति से लेकर दीवालियापन, धर्मदाय से लेकर आपसी कलह के लिए चर्चा में होते हैं। चाहे वह अंबानी, बजाज एवं मफतलाल परिवारों का बिखराव हो अथवा गोदरेज एवं मुरुगप्पा परिवारों की चार-पांच पीढ़ियों से चल रहा कारोबार हो, पारिवारिक व्यवसाय का सामाजिक- आर्थिक संस्कृति में बड़ा योगदान है।

प्रभावी बदलाव
भारत 2020 तक एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। पारिवारिक व्यवसाय के अनुसंधानकर्ता के रूप में मैं पारिवारिक व्यवसाय में नेतृत्व के स्तर पर एक बड़ा बदलाव देख रही हूं। दो या तीन पीढ़ियों से चल रहे कई पारिवारिक व्यवसायों में ‘लाला कम्पनियों’ से लेकर ‘व्यावसायिक कम्पनियों’ के रूप में बड़ा परिवर्तन आ रहा है। परिवार की युवा पीढ़ी शिक्षित है, विनीत है और उसके पास व्यापक दृष्टि और वैश्विक उम्मीदें हैं। भविष्य के नेता के रूप में, यह पीढ़ी परम्परागत रूप से संचालित कारोबार का परिदृश्य बदलने के लिए तैयार हो रही है। वे आधुनिक प्रबंधन तकनीक से व्यवसाय करना चाहते हैं, सक्षम टीम लाना चाहते हैं और पारदर्शिकता अपनाना चाहते हैं। पारिवारिक मामलों, रिश्तों में टकराव एवं परम्परागत प्रबंध में उलझने की अपेक्षा युवा पीढ़ी व्यावसायिक संस्कृति पैदा करने में रुचि रखती है।

बड़ा प्रश्न
अगली पीढ़ी के उत्तराधिकारियों की बदलती प्राथमिकताओं के कारण पारिवारिक व्यवसाय क्या ‘परिवार प्रथम’ की भावना को बचा पाएंगे? क्या पारिवारिक स्वाभाविकता, संस्कृति एवं व्यक्तिगत जरूरतों, मुनाफा, पारदर्शिता की व्यवसाय की जरूरतों के साथ संतुलन बनाए रखना संभव होगा? क्या परिवार के सदस्य, नाते-रिश्ते से जुड़े लोग एकसाथ काम कर पाएंगे और बिना किसी विवाद या स्वार्थ के पारिवारिक व्यवसाय की प्रगति कर सकेंगे?

पारिवारिक संचालन- अगला रास्ता
गोदरेज, मुरुगप्पा, डाबर के बर्मन, जीएमआर जैसे विवेकशील परिवारों ने अपना पारिवारिक कारोबार दीर्घावधि संस्थानों के रूप में कायम किया है। उन्होंने पारिवारिक अपेक्षाओं, व्यवसाय की जरूरतों एवं स्वामित्व के ढांचे को संतुलित रूप से विकसित किया है। इन परिवारों ने जटिल पारिवारिक समस्याओं एवं जीवनशैली, उत्तराधिकार, पैसे के मामलों में अनिश्चितताओं के लिए अपने परिवार के सदस्यों के लिए दिशानिर्देश एवं नीतियां तय की हैं और अपने पारिवारिक मूल्यों को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर रहे हैं।

इसी तरह निजी स्वामित्व वाले जो परिवार कारोबार का नेतृत्व एवं स्वामित्व अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने जा रहे हैं उन्हें पारिवारिक संचालन की संस्कृति को विकसित करना होगा। यह एक ऐसी प्रणाली है, जिसे पारिवारिक व्यवसाय सलाहकार या बाहरी विशेषज्ञ की सहायता से लागू किया जाता है। पारिवारिक कारोबार में परिवार के सदस्यों के बीच आपसी मतभेदों को सुलझा कर व्यक्ति की शक्ति पर बल देते हुए खुले संवाद की संस्कृति पनपानी होती है। विभिन्न नीतियों एवं नियमों के जरिए, पारिवारिक कारोबार में पारदर्शिता, व्यावयायिक भूमिकाओं और पारिश्रमिक के स्वरूप के बारे में स्पष्टता विकसित की जा सकती है, जिससे दीर्घावधि में परिवार का भला ही होगा।

पारिवारिक स्वामित्व एवं प्रबंध कारोबार के लिए दृष्टिकोण में बदलाव महत्वपूर्ण है, और यदि बदलते परिदृश्य और नई पीढ़ी की अपेक्षाओं के अनुरूप ऐसा नहीं करते तो वे संकट में पड़ जाएंगे। जो दूरदृष्टि रखते हैं और व्यावसायिक घरानों में तब्दील होना चाहते हैं उन्हें पारिवारिक व्यवसाय का व्यावसायिक प्रबंध करना ही होगा। उम्मीद है कि भारतीय कार्पोरेट जगत में अगले दशकों में वे अवश्य अगुवा होंगे।

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डॉ मीता दीक्षित

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