जून माह में संघ संस्थापक पूजनीय डॉ हेडगेवार जी के स्मृति दिन के अवसर पर उनके कथनों की विवेचना करने वाला ग्रंथ प्रकाशित किया जा रहा है। इस निमित्त उनके अनेक विचार सूत्रों की खोज मैंने की। उन सब का सूक्ष्मता से अध्ययन किया और उनके विवेचनात्मक अध्ययन के लिए उन्हें वरिष्ठ संघ कार्यकर्ताओं के पास भेज दिया।
इसी समय मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति के संबंध में अभ्यास प्रारंभ किया। इसमें Modi Doctrine इन अर्थात मोदी सिद्धांत का शब्द प्रयोग बार-बार आता है। इस शब्द पर दो पुस्तकें भी लिखी गई हैं। डॉक्ट्रिन यह शब्द मेरे लिए नया नहीं है। विदेश नीति के संदर्भ में इस शब्द का प्रयोग बारंबार होता है।भारत की विदेश नीति का विचार करते समय नेहरू डॉक्ट्रिन, इंदिरा डॉक्ट्रिन, गुजराल डॉक्ट्रिन, डॉ मनमोहन डॉक्ट्रिन, ऐसे शब्द प्रयोग विशेषज्ञ करते हैं। भारतीय विदेश नीति के सिद्धांत का श्रेय विदेश नीति के कुछ जानकार पंडित नेहरू को देते हैं। उन्हें भारतीय विदेश नीति का शिल्पकार भी कहा जाता है।
इंदिरा गांधी से मनमोहन सिंह तक सभी ने पंडित नेहरू की विदेश नीति का ही पालन किया। पंडित नेहरू की विदेश नीति की सबसे कटु आलोचना डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने की। नेहरू की विदेश नीति के कारण विश्व में भारत का कोई मित्र नहीं रहा, शत्रुओं की संख्या बढ़ी। इसका कारण नेहरू जी की विदेश नीति की नींव वामपंथी विचारों पर रखी गई थी। विदेश नीति का एकमेव आधार राष्ट्रहित ही होता है। अपने अतिरिक्त कुछ ना देखते हुए देखने वाली (आंख बंद) विचारधारा विदेश नीति का आधार हो ही नहीं सकती। परंतु आज भी कुछ लोगों को नेहरू जी के प्रति अगाध प्रेम है। अपर्णा पांडे की पुस्तक फ्रॉम चाणक्य टू मोदी के पहले अध्याय का प्रत्येक वाक्य नेहरू स्तुति से भरा है। विदेश नीति के संबंध में नरेंद्र मोदी नेहरू के अनुयाई नहीं है। फिर वे किस के अनुयाई हैं?
वे कहते नहीं हैं परंतु वे डॉ हेडगेवार के अनुयायी हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करने के पूर्व वे गुजरात में संघ के वरिष्ठ प्रचारक रह चुके थे। डॉक्टर हेडगेवार सभी स्वयंसेवकों के प्रेरणा स्रोत हैं तो नरेंद्र मोदी इसका अपवाद कैसे हो सकते हैं? विदेश नीति के संबंध में डॉ हेडगेवार उनके प्रेरणास्थान है ऐसा कहने से कईयों की भौहें तन जाएंगी, यह मुझे ज्ञात है। विदेश नीति के संबंध में डॉ हेडगेवार के क्या सिद्धांत हैं, ऐसा भी पूछा जा सकता है?
इस संदर्भ में डॉक्टर हेडगेवार ने कोई भी किताब, कोई सिद्धांत नही रखे हैं। उन्होंने मंत्र दिया है। विदेश नीति के संबंध में उनका मंत्र है, “हिंदू संस्कृति का ध्येय अत्यंत उदार है तथा ‘जग हिताय कृष्णाय’ यह हमारी कार्य की भूमिका होने के कारण केवल हिंदुस्तान की परतंत्रता दूर करना ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में अन्याय दूर करने का काम संघ को करना है।”
डॉक्टर जी के मंत्र के तीन अर्थ होते हैं।एक, हिंदु संस्कृति का ध्येय जगत कल्याण का है। दो, हमारा कार्य केवल हिंदुस्तान का स्वार्थ नहीं और तीन, विश्व में अन्याय की समाप्ति हमें करनी है। दूसरे अर्थों में यह विदेश नीति के व्यावहारिक सूत्र हैं। मोदी जी ने इन सूत्रों का यथार्थ अवलंबन किया है।
कोरोनाग्रस्त संसार को उन्होंने गत वर्ष वैक्सीन की आपूर्ति की। अमेरिका को दवाइयों की आवश्यकता होने पर उसकी आपूर्ति की। अफ्रीका के गरीब मुल्कों को डॉक्टरी सहायता की। वैश्विक पर्यावरण के संदर्भ में एक निश्चित भूमिका रखी। अफ्रीका के अनेक देशों में, मध्य एशिया के अनेक देशों में भारत के लिए आवश्यक खेती के उत्पादन हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की। आतंकवाद यह अंतरराष्ट्रीय समस्या है। आतंकवाद से लड़ने हेतु विश्व को एक करने का प्रयत्न किया। आतंकवादी युद्ध के विरोध में उन्होंने अमेरिका की सहायता की। संघ की बाल्यावस्था में डॉक्टर हेडगेवार ने संघ का विशाल ध्येय कार्यकर्ताओं के सामने रखा, वह याने विश्व के कल्याण हेतु हमें कार्य करना है।
विदेश नीति के संदर्भ में डॉक्टर हेडगेवार का एक और मंत्र है, “हम पर अब तक जितने आक्रमण हुए और अन्याय हुआ उसका एक ही उत्तर है, वह याने अति शक्तिशाली बनना।” नरेंद्र मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं, हम शक्तिशाली भारत का अनुभव कर रहे हैं। कांग्रेस के कालखंड में भारत में आतंकवादी हमले हुए, जिसमें पाकिस्तान का हाथ था, उसमें हमारे कई नागरिक मारे गए। हम केवल उनके शव गिनते बैठे रहते थे। कायराना हमला, मानवता के लिए कलंक, इस प्रकार की अर्थहीन बातें करते रहते थे। कैंडल मार्च निकालते रहते थे। आतंकवादियों के इन हमलों का नरेंद्र मोदी ने जो उत्तर दिया उसे स्वर्ग में नेहरू जी की आत्मा भी कांप गई होगी। पहले सर्जिकल स्ट्राइक की उसके बाद बालाकोट का आतंकवादी अड्डा हवाई हमला कर नष्ट कर दिया। पैगांग लेक में चीन से दो-दो हाथ किये। हमारा सामर्थ्य क्या है यह विश्व को दिखा दिया। डॉक्टर हेडगेवार को भी यही अपेक्षित था।
पूजनीय डॉक्टर जी का विदेश नीति के संबंध में अगला मंत्र था, किस ध्येय की प्राप्ति के लिए हम सिद्ध हो रहे हैं? हमारी इतनी ही इच्छा है कि हमारा पवित्र हिंदू धर्म और हमारी प्रिय हिंदू संस्कृति को विश्व में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हो और वह चिरंजीवी बने। मोदी ने यही मंत्र अमल में लाया। इसके पूर्व किसी भी प्रधानमंत्री ने हमारे तत्वद्न्यान का श्रेष्ठ ग्रंथ भगवत गीता किसी विदेशी नेता को भेंट में नहीं दिया था। मोदी जी ने जापान के प्रधानमंत्री को सर्वप्रथम वह दिया। बाद में अनेक देशों के राज्य प्रमुखों को दिया। भगवत गीता याने हिंदू धर्म और भगवत गीता यानी हिंदू संस्कृति। केवल ग्रंथ देने से हमारा धर्म या संस्कृति गौरव सहित चिरंजीवी नहीं होगी, उसके लिए हमारे सांस्कृतिक मूल्य विश्व को देना आवश्यक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने प्रस्ताव रखा कि 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रुप में मनाया जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने उसे मान्य किया और आज विश्व के सभी प्रमुख देशों में 21 जून योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। योग यह विश्व को भारत की देन है। योग से शारीरिक आरोग्य तो ठीक रहता ही है साथ ही मानसिक आरोग्य भी ठीक रहता है। आतंकवाद को मानने वाले एक प्रकार से मानसिक रोगी ही हैं। उन सब को यदि योग कराया जाए तो निरपराध व्यक्तियों को मारने का अघोरी काम वे भी नहीं करेंगे।
विदेश नीति के संबंध में डॉक्टर जी का अगला मंत्र है अहिंसा का महत्व तभी है जब उसके पीछे शक्ति हो। उनके मत में शक्ति का अर्थ राष्ट्र भावना, राष्ट्र जागृति एवं जनता की संगठीत ताकत है। बल (ताकत) के बिना रक्षा संभव नहीं है। पंडित नेहरू के भावनिक गुरु थे महात्मा गांधी एवं वैचारिक गुरु थे मार्क्स। गांधी और मार्क्स एक साथ नहीं रह सकते। नेहरू ने उन्हें एकत्र करने का प्रयत्न किया। गांधी जी की अहिंसा का पाठ विश्व को देना प्रारंभ किया। सामर्थ्य हीन देश की कोई नहीं सुनता। चीन ने नेहरु जी की पीठ में ऐसा खंजर मारा जिससे नेहरू संवर नहीं सके। शस्त्र के लिए भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी से याचना करनी पड़ी। गांधीजी की अहिंसा से चीनी सेना हिमालय पार कर हमारी सीमा में आ गई। पाकिस्तान ने एक तिहाई कश्मीर पर कब्जा कर लिया।
नरेंद्र मोदी स्वतः अहिंसा वादी हैं परंतु उनकी अहिंसा के पीछे सामर्थ्य का बल है। इसके कारण उनकी अहिंसा के उपदेश को विश्व में सम्मान मिलता है। यदि सुना नहीं तो प्रतिकार होगा, यह पाकिस्तान के विषय में मोदी जी ने विश्व को दिखा दिया है। चीन के ध्यान में भी यह बात आ गई है। चीन की सीमा तक सैनिक वाहनों के आवागमन के लायक चौड़े और मजबूत रास्ते बनाए गए हैं। यह करने की हिम्मत नेहरू घराने के शासकों की कभी नहीं हुई।
डॉक्टर हेडगेवार का एक मंत्र है, “राष्ट्रहित सर्वोपरि”। पहले राष्ट्र फिर सिद्धांत या किताबी ज्ञान। मोदी जी ने यह मंत्र 100% अमल में लाया है। इजरायल के साथ संबंध रखने के लिए कांग्रेस सरकार बहुत घबराती थी। भारत के मुसलमानों में उससे असंतोष होगा फल स्वरुप उनके मत कांग्रेस को नहीं मिलेंगे, इस विचार से कांग्रेस ने इजरायल के साथ संबंध स्थापित करने का कभी साहस ही नहीं किया। इजरायल का दौरा करने वाले श्री नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं। टेक्निकल नॉलेज में इजरायल ने बहुत अधिक प्रगति की है। रेगिस्तान में खेती करने की कला इजराइल के पास है। इजराइल से हम बहुत सीख सकते हैं। मुसलमानों को क्या लगेगा, इसकी चिंता मोदी जी ने नहीं की। देश का हित किसमें है यह उन्होंने देखा।
देश हित में मोदी जी ने सऊदी अरेबिया, यूएई, ईरान, इन देशों से संबंध बढ़ाये। ईरान में एक बंदरगाह बांधने का काम भी स्वीकार किया। इन सब में किसी भी मत का आंख मूंदकर विचार नहीं तो देश हित में क्या है उसे करना। वह किसी पुस्तक या मत की भाषा में फिट बैठता है या नहीं यह ‘नेहरू विचार’ नहीं किया।
इतिहास में भी भारत कभी विस्तारवादी देश नहीं रहा। दूसरे देशों को गुलाम बनाकर उन्हें लूटना यह भारत की संस्कृति कभी नहीं रही। इससे उलट छोटे देशों को उनके पैरों पर खड़ा करना, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना, यह भारत की संस्कृति है। दक्षिण के चौल राजवंश ने पश्चिम एशिया के लगभग सभी देशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार किया। वहां हिंदू साम्राज्य खड़ा किया परंतु वे साम्राज्य तलवार के बल पर नहीं तो लोक मान्यता के आधार पर खड़े किये। यूरोप के देश पूरे विश्व में फैले। उनके द्वारा की गई लूट एवं मानववाद का इतिहास मनुष्य जाति पर काला धब्बा है। हमें वैसा नहीं करना है, यह बात डॉक्टर हेडगेवार ने बार-बार कही है। विश्व को हमारा धर्म देना है अर्थात मनुष्य मनुष्य का आपसी प्रेम एवं आत्मीयता का व्यवहार यह तत्वद्न्यान देना है। पूजनीय डॉक्टर जी का एक वचन इस प्रकार है, “आज विश्व में चारों और अन्याय अत्याचार और अधार्मिकता का साम्राज्य फैला है। वह जब तक नष्ट नहीं होगा तब तक हम चाहे कितने ही अनुष्ठान करें मोक्ष के अधिकारी नहीं हो सकते।”
विश्व में यदि अन्याय, अत्याचार, अधार्मिकता समाप्त करनी हो तो हिंदू समाज संगठित होना चाहिए। उसका राजनीतिक नेतृत्व मजबूत होना चाहिए, और उस नेतृत्व की विदेश नीति भारत का गौरव बढ़ाने वाली और विश्व शांति की दिशा में होनी चाहिए। मोदीजी यही काम कर रहे हैं, ऐसा मुझे लगता है। हेडगेवार विशेषांक से प्रारंभ यह चिंतन यात्रा मुझे मोदी जी की विदेश नीति तक इस प्रकार से ले गई।
आपने जो लिखा है एकदम सही है