बलूचिस्तान में आज़ादी की लड़ाई

अंग्रेजों की कूटनीति के चलते 1948 में बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय कर दिया गया, जिसे बलूच लोगों ने कभी स्वीकार नहीं किया। हाल में धर्मशाला में हुए सम्मेलन के लिए आईं बलूच नेता नईला कादरी बलूच ने इस साक्षात्कार में स्पष्ट किया है कि बलूचिस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन और कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन की तुलना ही नहीं हो सकती; क्योंकि कश्मीर हमेशा से हिंदुस्तान का हिस्सा रहा है, जबकि बलूचिस्तान सदा स्वतंत्र देश रहा है।

आप भारत किस उद्देश्य से आई हैं?

भारत की चेतना को जगाने के लिए। पिछले 15 सालों में पाकिस्तान ने हमारे खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। पाकिस्तानी फौज मानव अधिकारों का उल्लंघन कर रही है, हमारे लोगों की हत्याएं कर रही है। महिलाओं और बच्चों समेत 25,000 लोग लापता हैं। उन्हें या तो पाकिस्तानी फौज ने मार डाला है या उन्हें अगवा कर लिया है।

हालात नरसंहार जैसे हैं- बलूचिस्तान में सामूहिक दफनगाह हैं। वे हमारे गांवों पर धावा बोल देते हैं, अंधाधुंध गोलीबारी करते हैं, बच्चों को मार डालते हैं, लड़कियों से बलात्कार करते हैं और यातनाएं देते हैं।

एक पत्रकार ने 25 वर्षीय बलूच अध्यापिका को बलात्कार प्रकोष्ठ में देखा। उसने ‘एशियन ह्यूमन राइट्स वॉच’ नामक संगठन को इसकी विस्तृत जानकारी दी।

पाकिस्तानी फौज ने हमारी हजारों महिलाओं को अगवा किया है और बलूच जमात को नष्ट करने के लिए बलात्कार का हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

क्या पाकिस्तान बलूचिस्तान में बगावत रोकने के लिए संघर्ष नहीं कर रहा है?

यह तो स्वतंत्रता आंदोलन है- हम पर पाकिस्तान ने 1948 में जबरन कब्जा कर लिया है। तब से हम आज़ादी के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं।

क्या बलूचिस्तान विलय-संधि के कारण पाकिस्तान का अंग नहीं बन गया है?

यह सुविधा रियासतों को थी- बलूचिस्तान कभी रियासत नहीं था। वह तो 1410 में स्थापित एक स्वतंत्र देश था। जब पाकिस्तान ने हम पर हमला किया तब हमारी संसद थी, स्वतंत्र सीमाएं थीं, कानून का राज्य था और था हमारा संविधान।
हमारा देश तो सैंकड़ों वर्ष पूर्व से अस्तित्व में था- पाकिस्तान तो ब्रिटिशों द्वारा निर्मित ‘टेस्ट ट्यूब बच्चा’ है।

बलूचिस्तान का कुछ हिस्सा ब्रिटिशों को लीज पर दिया गया था। लेकिन ब्रिटिश बलूचिस्तान ब्रिटिश हिंदुस्तान से बिल्कुल पृथक था। ब्रिटेन ने 1947 में उनके अधीन बलूचिस्तान के इलाकों को मुक्त कर दिया था।

जिन्ना बहुत धोखेबाज आदमी था। जब ब्रिटिश यहां थे तब जिन्ना ने ब्रिटिशों के समक्ष बलूचिस्तान का पक्ष लेकर वकीली की थी। उसने भरोसा दिलाया था कि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान या भारत में शामिल होने के लिए किसी तरह का दबाव नहीं डाला जाएगा। लिहाजा, जिन्ना जानता था कि बलूच लोग कभी एक नहीं होंगे और इसलिए पाकिस्तान ने हम पर आक्रमण कर दिया।

यह तो जिन्ना की साजिश थी। पाकिस्तान ने हमे पैगाम भेजे कि ‘चूंकि हम मुस्लिम हैं, इसलिए पाकिस्तान में शामिल हों।’ हमारी संसद ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि धर्म के नाम पर देश की निर्मिति क्यों हो? धर्म के नाम पर हमें पाकिस्तान में शामिल होने का आग्रह करने के पहले पाकिस्तान धर्म के ही नाम पर खुद सऊदी अरब में क्यों शामिल नहीं होता?

कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन की तुलना में बलूचिस्तान का संघर्ष किस तरह अलग है?

कश्मीर कभी देश नहीं था। वह महाराजा की रियासत थी। कश्मीर हमेशा भारत का अंग था।
बलूचिस्तान कभी भारत का हिस्सा नहीं था। बलूचिस्तान हमेशा आज़ाद मुल्क रहा है। बलूचिस्तान एवं कश्मीर की इसी कारण तुलना नहीं हो सकती। भारत की कमजोर कूटनीति के कारण दोनों की समस्याएं एक जैसी लगती हैं।
बलूचिस्तान की आज़ादी की बात करने का मतलब क्या पाकिस्तान को खंडित करने की बात नहीं होगी?
हां, होगी।

क्या इससे झगड़ें और नहीं बढ़ेंगे?

इसीलिए हम राष्ट्रसंघ से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन चाहते हैं।
यह गांठ तो कैंसर जैसी है। इस गांठ को काटने से हम घबरा रहे हैं, क्योंकि और गुत्थियां बढ़ने का डर है। पाकिस्तान तो आतंकवाद की भूमि है। जहां कहीं भी आतंकवाद हो, उसकी जड़ पाकिस्तान में ही मिलती है।

हम कह रहे हैं, चलो साथ आएं, शल्यक्रिया करें, कैंसर की इस गांठ को काटे और दुनिया को चैन से रहने दें।
सब से बड़ी जिम्मेदारी भारत की है। पाकिस्तान भारत की परेशानी है- भारत ने इस कैंसर को हम पर क्यों थोप रखा है?
हिंदुस्तान को विभाजित न होने देने की जिम्मेदारी गांधी-नेहरू की थी। विभाजन उचित नहीं था। आपने उसे हम पर थोप दिया, अब उसे वापस ले लो।

पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे का बलूचिस्तान क्यों विरोध कर रहा है?

इससे मानव अधिकारों का उल्लंघन नरसंहार तक बढ़ चुका है। उन्हें केवल बलूच भूमि चाहिए, बलूच लोग नहीं। उनके लिए तो हमारी जमीन, हमारी सम्पदा नोंचने-खरोचने के लिए ही है।

यह न भूलें कि पाकिस्तान का वजूद बलूचिस्तान पर निर्भर है। बलूचिस्तान के खनिजों के अलावा पाकिस्तान के पास कोई प्राकृतिक सम्पदा नहीं है। बलूचिस्तान के बिना तो वे अपने आप घिर जाएंगे।
जब बलूचिस्तान आज़ाद हो जाएगा, तब पाकिस्तान एक दिन भी नहीं बचेगा।

क्या हिंसा ही इसका एकमात्र रास्ता है?

अब तक बलूच लोगों ने पाकिस्तान पर हमला नहीं बोला है- लेकिन कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?
यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय हस्तक्षेप नहीं करता और नरसंहार जारी रहता है तो मुझे लगता है कि पाकिस्तान में हमले अवश्य होंगे। हम तो बहुत थोड़े लोग हैं, वे हमारा खात्मा कर देंगे।
लेकिन लड़ाई का मैदान तो पाकिस्तान ही होगा।

बलूचिस्तान को हथियार कौन देता है?

हम तो हमेशा हथियारबंद रहे हैं। हम हमारे हथियार खुद बनाते हैं; क्योंकि हम मसालों और रेशम पथ तथा सोने एवं खनिजों से लदी भूमि पर रहते हैं।
हम विदेशी आक्रमण को कभी सहन नहीं करते।

इस बार भारत से क्यों अपेक्षा कर रहे हैं?

प्रधान मंत्री मोदी को भारत का जनादेश मिला है- मोदी जांबाज एवं मजबूत नेता हैं। इसके पहले भारत के किसी प्रधान मंत्री को ऐसा जनादेश, ऐसी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था एवं ऐसा अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं मिला।

इंदिरा गांधी की अपनी आंतरिक समस्याएं थीं। बावजूद इसके वे बांग्लादेश के पक्ष में खड़ी हुईं- फिर मोदी क्यों नहीं?

यदि मोदी ठोस कदम उठाए तो उन्हें अवश्य समर्थन मिलेगा। धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में दुनिया में भारत का नाम है। पाकिस्तान ने तो द्वेष के ही बीज बोये हैं। उसी के लिए वह जाना भी जाता है।
(टाइम्स ऑफ इंडिया, दिल्ली- 2 मई 16 से साभार)

Leave a Reply