‘टार्गेट’ युवा

आज का युवा समझदार है। उसे आवश्यकता है केवल उचित मार्गदर्शन की। अभिभावकों, शिक्षकों, नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे आने वाली पीढ़ी का उनकी ही भाषा में मार्गदर्शन करें। उन्हें ‘टार्गेट’ न करें; बल्कि ‘टार्गेटेड अप्रोच’ करने की ओर प्रवृत्त करें।

“मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी के अंदर से मेरे कार्यकर्ता बाहर आएंगे, वे पूरी समस्या का हल कर देंगे, शेरों की तरह।’ -स्वामी विवेकानंद

युवाओं के संदर्भ में कहे गए स्वामी विवेकानंद के ये वाक्य युवा पीढ़ी के अंदर भरे हुए अदम्य साहस, उत्साह, ऊर्जा और ताकत को परिलक्षित करते हैं। स्वामी जी ने भारत के युवाओं से जो उम्मीद रखी है वह देश, काल, परिस्थिति के सापेक्ष परिवर्तित होने वाली नहीं है। स्वामी जी को उस समय जो उम्मीद थी वही देश को आज भी है। इसलिए युवा आज भी ‘टार्गेट‘ हैं।
अंगे्रजी के शब्द ‘टार्गेट’ के मायने कई तरह से, परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग निकाले जाते हैं। जब किसी व्यक्ति, समाज, दल, राष्ट्र पर अन्याय होता है तो कहा जाता है कि उन्हें ‘टार्गेट’ किया जा रहा है। कॉर्पोरेट सेक्टर में मार्च के अंतिम सप्ताह में ‘टार्गेट’ पूरे करने की होड़ होती है और किसी की सफलता को देखकर कहा जाता है कि उसने ‘टार्गेट’ रख कर सकारात्मक दृष्टि से मेहनत की इसलिए उसे सफलता मिली। हालांकि शाब्दिक अर्थ हर जगह ‘लक्ष्य’ ही है परंतु उसके प्रयोग में भिन्नता है।

युवाओं के संदर्भ में अगर हम विचार करें तो आज जरूरत है उन्हें ‘टार्गेट‘ रख कर उन पर सकारात्मक दृष्टि से मेहनत करने की, उन्हें संस्कारित करने की; परंतु समाज की वास्तविक स्थिति को देखें तो उन्हें अपने फायदे के लिए ‘टार्गेट’ किया जा रहा है। यह परिवर्तन 2014 में भाजपा सरकार के आने बाद विशेष रूप से दिखाई देने लगे हैं। 2014 के चुनावों के बारे में सभी राजनीतिक विशेषज्ञों तथा चुनाव विश्लेषकों का यह एकमत रहा है कि यह लोकसभा चुनाव प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं के बल पर जीता है। मोदी लहर की रफ्तार बढ़ाने और उसे सारे देश में फैलाने में जो तत्व सबसे ज्यादा प्रभावी रहा वह है युवा। युवाओं के बल पर प्रधान मंत्री ने लोकसभा का चुनाव जीता और अब मोदी के विरोधक भी युवाओं का ही इस्तेमाल कर रहे हैं।
सन 1989 में चीन की राजधानी बीजिंग के तियानमेन चौक पर दिल दहला देने वाली घटना हुई थी। तियानमेन चौक पर भारी संख्या में युवा एकत्र हुए थे और सरकार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। उनके इस प्रदर्शन को स्थानीय लोगों का भी समर्थन मिला था। तत्कालीन चीन सरकार ने सेना की मदद से इन सभी प्रदर्शनकारियों पर हमला करवा दिया था। उस वक्त दुनिया भर में चीन सरकार का जबरजस्त विरोध हुआ, परंतु उसके बाद किसी ने भी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने की हिम्मत नहीं की।

ऐसी ही एक घटना कुछ महीनों पूर्व दिल्ली के जेएनयू कैंपस में हुई थी। वहां भी कुछ युवाओं द्वारा देश विरोधी नारे लगाए गए थे। कन्हैया ने जो कि इस पूरी घटना का तथाकथित हीरो रहा, इस देश विरोधी कृत्य के लिए और देशद्रोही अफजल को अपना आदर्श बताने संबंधी बयान के लिए जेल की हवा भी खा ली। परंतु जेल से छूटने के बाद उसे मुख्य धारा की मीडिया ने कुछ इस तरह प्रचारित किया मानो वह कोई क्रांतिकारी हो। हालांकि जेल से छूटने के बाद उसने बयान दिया कि उसका आदर्श अफजल नहीं, रोहित वेमुला है।

गौरतलब है कि रोहित वेमुला वही नौजवान है जिसने कुछ महीनों पूर्व हैदराबाद विश्वविद्यालय में आत्महत्या कर ली थी। उसकी लिखी हुई अंतिम चिट्ठी पढ़ कर यह कहीं भी जाहिर नहीं होता कि दलित होने के कारण उसे कुछ परेशानियां हुईं जिनके कारण वह आत्महत्या कर रहा है। बल्कि वह अपने ही नकारात्मक भावों से अत्यधिक घिर चुका था और नैराश्य के कारण उसने आत्महत्या की थी। यह रोहित वेमुला भी अफजल के समर्थन में आयोजित सभाओं में जा कर उसके प्रति अपनी संवेदना जता चुका था।

आपको हार्दिक पटेल याद है? जी हां, वही जिसने गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन का बीड़ा उठा रखा था। आंदोलन का रंग उतरने के बाद से इनको न किसी मीडिया हाउस ने पूछा, न कोई राजनेता इनके पास नजर आया। पाटीदार आंदोलन ठीक उसी समय शुरू हुआ था जब बिहार चुनाव की तैयारियां अपनी चरम सीमा पर थी। भाजपा के सभी शीर्ष नेताओं ने अपना ध्यान बिहार पर केंद्रित कर रखा था। ऐसे में पिछले लगभग 15 वर्षों से भाजपा के गढ़ रहे गुजरात में इस प्रकार का बवंडर उठना भाजपा नेताओं के लिए चिंता का विषय था। बिहार में भाजपा बुरी तरह हार गई। हालांकि इसका सारा ठीकरा पाटिदार आंदोलन और हार्दिक पटेल पर नहीं फोड़ा जा सकता परंतु कुछ हद तक उसने भाजपा नेताओं का ध्यान भंग जरूर कर दिया था।

कल्याण और देश अन्य विभिन्न भागों से पकड़े गए उन युवाओं की उम्र क्या होगी जो इसिस जैसे संगठन में शामिल होने के लिए अपने घर से भागे थे। आतंकवाद जैसा जहर जो सारी दुनिया को तबाह कर रहा है उसकी ओर आकर्षण का कारण क्या हो सकता है? ‘नेम, फेम एण्ड मनी’ यह वह सूत्र है जिनके पीछे आज का युवा भाग रहा है परंतु यहां तो बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलता। हां! पैसा जरूर मिलता है वह भी अपनी जान गंवाने के बाद।

ये उदाहरण युवाओं के प्रातिनिधिक स्वरूप में यहां प्रस्तुत किए गए हैं। मुख्य उद्देश्य यह कहना है कि आज देश के युवाओं को हथियार बनाकर उनका उपयोग किया जा रहा है। जब जहां जिसकी आवश्यकता नजर आई उस हथियार का उपयोग कर लिया; परंतु बाद में उसकी कोई सुध नहीं लेता। रोहित वेमुला की आत्महत्या पर इतना शोरशराबा हुआ कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी को सदन में सफाई देनी पड़ी। कई दिनों तक सदन में कोई कामकाज नहीं हुआ।
परंतु उसके बाद क्या हुआ? क्या रोहित के परिवार की किसी ने खोजखबर ली? जो मीडिया उसके दलित होने का प्रचार कर रही थी उसने तब क्यों चुप्पी साध ली जब उसके परिवार ने ईसाई धर्म छोड़ कर बुद्ध धर्म अपना लिया? मुख्य धारा की मीडिया ने भले ही इसे तरजीह न दी हो परंतु सोशल मीडिया में यह खबर छाई रही। पश्चिम बंगाल के चुनावों के दौरान कन्हैया के वहां जाकर प्रचार करने की खबरें तेज थीं परंतु अभी तक ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया वरन उसकी मुंबई-पुणे हवाई यात्रा की ही चर्चा अधिक रही।

ये सारी घटनाएं कुछ युवकों तक सीमित नहीं रहती हैं। बल्कि इनके पीछे खड़ा सारा युवा समुदाय भी इससे प्रभावित रहता है। इस तरह की देश विरोधी घटनाएं अगर निरंतर होती रहीं और उसमें युवाओं की सहभागिता बढ़ती रही तो भविष्य में भारत को गृहयुद्ध की खाई में धकेलने वाले भी यही युवा होंगे। अत: समय रहते ही उनका उचित मार्गदर्शन करना आवश्यक है। विद्यालयों/महाविद्यालयों में जाने वाले युवा सबसे अधिक अपने शिक्षकों से प्रभावित रहते हैं। शिक्षकों से यह अपेक्षा है और यह उनका कर्तव्य भी है कि वे इस प्रकार की घटनाओं को होने से रोकें परंतु जेएनयू के कुछ शिक्षकों की तरह अगर अन्य शिक्षक भी इन गतिविधियों का समर्थन करें, उन्हें प्रोत्साहित करें या स्वयं उनमें शामिल हो जाएं तो युवाओं का मार्गदर्शन कौन करेगा? उन्हें सही-गलत की पहचान कौन कराएगा? उन्हें गलत मार्ग पर जाने से कौन रोकेगा?

इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ते समय एक विचार मन में उठता है कि क्या सच में आज का युवा मानसिक या बौद्धिक दृष्टि से इतना कमजोर है? जो युवा निर्भया कांड के बाद अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए हजारों की संख्या में रास्ते पर प्रदर्शन कर सकता है, अण्णा हजारे के समर्थन में उतर कर वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन कर सकता है, भारी संख्या में मतदान कर नरेन्द्र मोदी की जीत सुनिश्चित कर सकता है; वह निश्चित ही सोचने-समझने और आंकलन करने में सक्षम है। और तो और वह सिर्फ सोचता नहीं है बल्कि अपने आसपास घट रही घटनाओं पर प्रतिक्रिया भी देता है।

उन्नत तकनीक ने आज दुनिया भर में घटने वाली घटनाओं को युवाओं के हाथों में समेट दिया है। अब युवाओं को यह समझना आवश्यक है कि उसका प्रयोग किस तरह किया जाए। समय तथा तकनीक का उत्तम समीकरण साध कर अपने ज्ञान भंडार का विस्तार किया जाए या कैण्डी क्रश सागा खेलकर दोनों को बर्बाद किया जाए। आधुनिक सॉफ्टवेयर का निर्माण कर देश की विभिन्न समस्याओं का समाधान किया जाए या बनी हुई साइट्स के डेटा को हाइक (चोरी) करके अपना और देश का नुकसान किया जाए। राष्ट्रीय विचारों से जुडे संगठनों में जाकर कुछ समाजोपयोगी कार्य किए जाएं या इसिस जैसे संगठनों से जुड़ कर दुनिया खत्म करने की तैयारी की जाए।

युवाओं की नई सोच और उससे उनको तथा देश को होने वाले फायदे की कुछ मिसालें हैं- नकुल खन्ना, आर्द्रा चंद्रमौली व गायत्री तंकाच्ची, आदित्य गांधी व साहिबा ढंढानिया, श्याम शाह व सुरभि श्रीवास्तव, कुमार सिद्धार्थ आदि। ये नाम अभी बहुत प्रसिद्ध नहीं हुए हैं परंतु युवाओं की नई सोच का आगाज जरूर हैं।

नकुल खन्ना (उम्र 24 वर्ष) ने इंस्टागो तथा आईकस्टमाइज्ड नामक दो एप बनाए हैं। इंस्टागो टेक्सी सुविधाओं को सूचिबद्ध करता है और आईकस्टमाइज्ड ग्राहकों की पसंद की टीशर्ट बनाता है। आईकस्टमाइज्ड ने 4 साल में 7 अंकों का कारोबार किया है।

आर्द्रा चंद्रमौली व गायत्री तंकाच्ची ने ऐसे बायोकेमिकल बनाने की शुरुआत की है जो उर्वरकों तथा कीटनाशोकों का विकल्प हो सकते हैं।

आदित्य गांधी (उम्र 25 वर्ष) व साहिबा ढंढानिया (उम्र 23 वर्ष) ने पर्पल रक्चरल की शुरुआत की है जो छात्रों को संवाद कौशल सुधारने तथा उद्योगों से जुड़ने के लिए प्लेटफॉर्म प्रदान करती है।

श्याम शाह (23 वर्ष) व सुरभि श्रीवास्तव (24 वर्ष) ने इनोविजन नामक उद्यम की शुरुआत की है जो कम लागत वाले ब्रेल उपकरण बनाता है। इसे मोबाइल, टैब से जोड़ कर दृष्टिहीनों के लिए इनकी सुविधाएं मुहैया कराई जा सकती हैं।
उद्यम शुरू करते समय सबसे बड़ी जरूरत होती है निवेश की। यहां भी इन युवाओं ने अपने बलबूते पर आईआईटी मुंबई, मणिपाल यूनिवर्सिटी तथा कई देशी विदेशी निवेशकों को अपने साथ जोड़ लिया है।

आज का युवा समझदार है। उसे आवश्यकता है केवल उचित मार्गदर्शन की। अभिभावकों, शिक्षकों, नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे आने वाली पीढ़ी का उनकी ही भाषा में मार्गदर्शन करें। उन्हें ‘टार्गेट‘ ना करें बल्कि ‘टार्गेटेड अप्रोच’ करने की ओर प्रवृत्त करें। स्वामी विवेकानंद का सपना साकार करने के लिए युवाओं में आवश्यक गुणों का विकास करें। वरना बस यही कहते रह जाएंगे कि ‘बोया बीज बबूल का आम कहां से आएं?’
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