असम में हिंदू जागरूकता का परचम

हाल में हुए पांच राज्यों के चुनावों ने हिंदुओं की राजनीतिक जागरूकता को रेखांकित किया है। असम में भाजपा का सत्ता में आना और केरल जैसे राज्य में उसके मोर्चे को मिले वृद्धिगत वोट इसके साक्ष्य हैं। विशेष रूप से असम में आई जागरूकता का प्रभाव भविष्य में बंगाल में भी दिखाई दे सकता है। लेकिन इस आपाधापी में कांग्रेस के बेहाल ने लोकतंत्र में सबल विपक्ष पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद कांग्रेस का क्या होगा? वास्तव में क्या भारत कांग्रेस मुक्त होगा? इसकी चर्चा शुरू हो गई। चर्चा का कारण यह है कि असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। असम में 15 वर्षों तक सत्ता में रहने वाले अरूण गोगोई का शासन समाप्त होकर वहां भाजपा की सत्ता स्थापित हुई है। पश्चिम बंगाल एवं तमिलनाडु में पुनः ममता बैनर्जी एवं जयललिता सत्तासीन हुई हैं। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस को क्रमशः 44 एवं 22 सीटें प्राप्त हुई हैं। केरल में उनकी सत्ता समाप्त हो गई है। केवल पांडिचेरी में कांग्रेस को सत्ता मिली है। चुनावों के यश-अपयश को आधार बना कर किसी अखिल भारतीय पार्टी के भविष्य पर प्रश्नचिह्न उपस्थित करना ठीक नहीं होगा; क्योंकि चुनावों का यश अथवा अपयश मुख्यतः चुनावों की व्यूहरचना, साथी दलों का चयन, योग्य विषयों का चयन, चुनावों में प्रादेशिक नेतृत्व इत्यादि पर निर्भर होता है। भाजपा ने इस सम्बंध में दिल्ली एवं बिहार में गलतियां कीं एवं उसका परिणाम उन्हेंं भुगतना पड़ा। कांग्रेस ने यही गलतियां असम, केरल, बंगाल में कीं। उसके परिणाम सबके सामने हैं। इस पराजय का विचार किस प्रकार से करना है यह कांग्रेस का प्रश्न है। उन्हें सलाह देने की कोई आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा, “हम पराजय की समीक्षा करेंगे एवं जनता की सेवा हेतु पहले की अपेक्षा अधिक जोरदार तरीके से कार्य करेंगे।“ कांग्रेस के दूसरे नेता शशि थरूर ने कहा, “आत्मचिंतन पुराना विषय हो गया है, अब कृति करने का समय आ गया है। अब सर्वोच्च नेताओं के द्वारा निष्कर्ष निकाल कर उस पर अमल करने का समय आ गया है।” दिग्विजय सिंह ने कहा, “चुनाओं के परिणाम निराशाजनक होते हुए भी अनपेक्षित नहीं हैं। अब पार्टी को एक बड़ी सर्जरी की आवश्यकता है। कांग्रेस के नेता पार्टी में आवश्यक बदलाव लाएंगे और एक शक्तिशाली पार्टी के रूप में इसे खड़ा करेंगे ऐसी अपेक्षा करने में कोई आपत्ति नहीं है; क्योंकि उसके सिवाय संसदीय प्रणाली नहीं चल सकती।

संसदीय प्रणाली में विरोधी पार्टी के बिना शासन का कोई अर्थ नहीं है। वास्तव में प्रजातंत्रीय प्रणाली की संकल्पना ही निरंकुश सत्ता पर नियंत्रण रखने की है। सत्ता के अनेक गुणधर्म हैं। सत्ता जैसी भ्रष्ट करती वैसे ही सत्ताधारियों के मन में तानाशाही की भावना निर्माण करती है। मैं सर्वसत्ताधीश हूं। मुझे कौन हाथ लगाएगा? ऐसी भावना सत्ताधारियों के मन में निर्माण होती है। इसी से अत्याचारी वंश निर्माण होता है। यह तंत्र जैसे राजशाही में होता है, सैनिक शासन में होता है वैसे प्रजातंत्र में भी हो सकता है। जयललिता इसका जीता-जागता उदाहरण है इसलिए सत्ताधारियों के मन में एक डर हमेशा होना चाहिए कि मैं हमेशा सत्ता पर काबिज नहीं रहूंगा। कल जनता मुझे उठा कर फेंक सकती है। इसके लिए विरोधी दल आवश्यक है। वह सबल होना चाहिए। लोक स्वातंत्र्य की गारंटी प्रबल विरोधी दल ही है। इसलिए कांग्रेस मुक्त भारत नहीं कांग्रेसयुक्त भारत होना चाहिए।

विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अच्छी जीत प्राप्त की है। पहले दिल्ली और फिर बिहार में भाजपा को हार मिली थी। इसलिए टीका-टिप्पण्णी करने वालों को भाजपा पर टीका करने का विषय मिल गया था। मोदी लहर समाप्त हो गई है, हार के लिए अमित शाह- नरेन्द्र मोदी- अरुण जेटली जिम्मेदार हैं ऐसी खोज अरूण शौरी ने की। अब भाजपा को जो जीत प्राप्त हुई है उस पर शौरी की प्रतिक्रिया क्या होगी?

इन चुनावों में भाजपा की जीत भारतीय राजनीति पर बहुत महत्वपूर्ण परिणाम दर्शाने वाली होगी। 2014 के लोकसभा चुनाव परीणामों पर लंदन के समाचार पत्र ‘गार्डियन’ ने लिखा कि भारत अब सही अर्थों में स्वतंत्र हो रहा है। अंग्रेजों की सत्ता भारतवर्ष से सही अर्थों में समाप्त हो गई है। गार्डियन ने जो नहीं कहा, पर कहना चाहिए वह यह कि 67 वर्षों के बाद भारत का हिंदू मतदाता राजनीतिक दृष्टिकोण से जागरूक हो रहा है। हिंदू समाज को सामाजिक रूप से जागरूक करने का काम अनेक महापुरुषों ने किया। यह जागरुकता मुख्यतः सामाजिक दोषों से संबंधित थी। दूसरे प्रकार की जागृति की भी आवश्यकता थी। यह जागृति राजनितिक, सत्ता से संबंधित और उसमें हमारे सहभाग से सम्बंधित थी। इस जागृति का श्रेय विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी एवं अन्य संगठनों को देना होगा। असम एवं केरल के चुनाव परिणाम इस जागृति का प्रवाह कैसा है यह बताते हैं।

असम में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ बड़े पैमाने पर होती रहती है। इसके कारण असम की जनसंख्या में मुसलमानों का प्रतिशत 34 हो गया है। यह एक प्रकार का आक्रमण ही है। इस आक्रमण को अंग्रेजी में डिमोग्राफिक अ‍ॅग्रेशन कहते हैं। इस जनसंख्या आक्रमण के कारण असम का हिंदू जीवन खतरे में पड़ता जा रहा है। इस विषय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गत तीन दशकों से अभियान चला रखा है। बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोको, उनको वापस भेजो और असम को घुसपैठियों से मुक्त करो। बांग्लादेशी मुसलमान होने के कारण मुस्लिम प्रेमी सेक्युलर जमात ने इसके विरुद्ध बहुत चीख-चिल्लाहट की। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार ने घुसपैठियों को हर प्रकार से मदद की। कांग्रेस ने भी वही किया। घुसपैठिए हमारे मतदाता हैं इसलिए उनका संरक्षण करना चाहिए; यह कांग्रेस की भूमिका थी। इस चुनाव में 38% मुसलमानों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया और हिंदुओं ने कांग्रेस से मुंह फेर लिया।

‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ में श्री श्रेयस सरदेसाई एवं धु्रवा प्रीतम शर्मा का एक लेख है। वे कहते हैं, 63% हिन्दू मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में 58% हिन्दू भाजपा के साथ था, उसमें 5% की बढ़ोत्तरी हुई है। मतदान हेतु जाने वाले हिन्दू मतदाताओं की संख्या में भी बड़ी संख्या में वृद्धि हुई है। लेखकों के मत से 2009 में 66% हिन्दू मतदाता मतदान हेतु बाहर निकले थे तो 2016 में यह प्रतिशत 86% है।

असम में बांग्लादेशी घुसपैठ जैसा ज्वलंत प्रश्न है वैसा ही दूसरा प्रश्न बांग्लाभाषियों का है। असमी भाषी एवं बंगला भाषियों में संघर्ष होता रहता है। परंतु इस बार असमी एवं बंगालियों ने भाषा प्रश्न अलग रख कर हिंदू अस्तित्व के प्रश्न को प्रमुख माना। इसके कारण, असम के असमी भाषियों एवं बंगला भाषियों ने हिन्दू के रूप में मतदान किया। इसका परिणाम बंगाल के अगले चुनाओं पर पड़े बिना नहीं रहेगा। ममता बैनर्जी भी मुस्लिम वोटों की राजनिति करती है। परंतु जब हिन्दू जाग जाता है तब राजनीति का या तो गुजरात होता है या असम होता है। इसलिए बंगाल भी आज या कल इसी मार्ग पर चले बिना नहीं रहेगा।
केरल चुनाव के नतीजे भी महत्वपूर्ण हैं। केरल में तीन मोर्चे थे। कांग्रेस के नेतृत्व में युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, साम्यवादियों के नेतृत्व में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और भाजपा के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स। इसमें भाजपा का मोर्चा तुलनात्मक रुप से नया था। यह भाजपा का मोर्चा कांग्रेस याने यूडीएफ की 26 स्थानों पर हार का कारण बना। यूडीएफ के 7% वोट कम हुए। भाजपा के मोर्चे को इस बार 16% वोट मिले। इसका अर्थ केरल में हिन्दू अब राजनितिक दृष्टि से जागरुक हो गया है और वह भाजपा मोर्चे के पक्ष में खड़ा हो रहा है। 16% वोट बहुत बड़ी राजनितिक शक्ति है। अगले चुनाव में यह शक्ति केरल के अनेक गुटों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहेगी। भाजपा के वोटों में भी ऐसी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। केरल चुनाव के वोटों का जो गणित सामने आया है उससे एक बात ध्यान में आती है कि केरल का ईसाई यूडीएफ के पक्ष में खड़ा है। ईसाई बहुल एर्नाकुलम, इडुकी, कोट्टायम इत्यादि जिलों में यूडीएफ को अच्छे वोट मिले हैं और सीटें भी मिली हैं, परंतु त्रिशूर का हिन्दू मतदाता कांग्रेस के साथ नहीं खड़ा हुआ। तिरुअनंतपुरम में भी इस बार वह भाजपा के साथ खड़ा हुआ।

अब असम में घुसपैठियों का प्रश्न मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल याने भाजपा किस प्रकार हल करती है इस ओर सारे देश का ध्यान रहेगा। मूलत: यह प्रश्न अत्यंत विकट है। विरोधी बेंचो पर बैठ कर घुसपैठियों को भगाओ कहना सरल है, परंतु सत्ता में आने के बाद उसको अमल में लाने में कई प्रकार की अड़चने आएंगी। बांग्लादेशी घुसपैठिए बांग्लादेश से आते हैं। वे मुसलमान हैं। वे जैसे विदेशी नागरिक हैं वैसे ही वे भारत में रहने वाले मुसलमानों के धर्मभाई भी हैं। मुसलमान धर्मशास्त्र के अनुसार सभी मुसलमान एक होते हैं। उनमें देशों की सीमाएं नहीं होतीं। उन्हें मुस्लिम उम्मा कहते हैं। इस कारण बांग्लादेशी मुसलमानों को हाथ लगाना याने इस देश के मुसलमानों को हाथ लगाने जैसा होता है। इस देश के मुसलमान इसके विरोध में क्या प्रतिक्रिया देंगे यह देखने वाली बात होगी।

दूसरा प्रश्न आता है बांग्लादेश का। बांग्लादेश आज एक स्वतंत्र एवं सार्वभौम राष्ट्र है। यदि उस देश में भारत से बांग्लादेशी नागरिक बड़ी संख्या में वापस जाने लगे तो बांग्लादेश की क्या प्रतिक्रिया होगी? फिर वह प्रश्न असम एवं बांग्लादेश का नहीं रहेगा वरन् भारत एवं बांग्लादेश का हो जाएगा। उसका अंतरराष्ट्रीय परिणाम होगा। दोनों देशों के राजनीतिक सम्बंध तनावपूर्ण रखना है या सौहार्द्रपूर्ण यह प्रश्न उत्पन्न होगा। पहले ही भाजपा की प्रतिमा तथाकथित सेक्युलर जमात ने मुसलमान विरोधी बना रखी है। इसके लिए भाजपा को अत्यंत सावधानीपूर्वक कदम उठाने पड़ेंगे। देशी मुसलमान एवं विदेशी मुसलमान ऐसा भेद करना पड़ेगा। देशी मुसलमान हमारा है एवं विदेशी मुसलमान परदेशी है ऐसा बताना एवं स्पष्ट करना होगा।

असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल कहते हैं, “जब मोदी सरकार ने जमीन के संदर्भ में बांग्लादेश के साथ समझौता किया था तब एक बात स्पष्ट की थी कि दोनों देशों के बीच सीमा बंद की जाएगी। इसका यह अर्थ हुआ कि सीमा पार से अवैध परिवहन बंद होगा। इसके कारण असम के लोगों के आत्मसम्मान की रक्षा होगी। घुसपैठियों की पहचान कर उनका पता लगा कर उन्हें वापस भेजने से सामान्य असमी लोगों को उनके अधिकार वापस मिलेंगे। मैं यह जोर देकर कह सकता हूं कि असम की जनता ने हमें विकास, उत्तम प्रशासन एवं सुरक्षा हेतु वोट दिए हैं। अत: हमारा पहला काम घुसपैठियों का पता लगाने का होगा। असम सीमावर्ती राज्य होने के कारण यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे देश का नागरिक ही घुसपैठियों के कारण अपने आप को असुरक्षित क्यों समझता है यह प्रश्न है। हम सभी को सुरक्षा की गारंटी देना चाहते हैं।”

असम के मुख्यमंत्री का यह वक्तव्य आशाजनक है। अवैध रूप से भारत में घुसे हुए बांग्लादेशियों को उनके देश में वापस भेजना आवश्यक है। परंतु आगे प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या घुसपैठियों की पहचान कर, सीमा बंद कर, उनकी पहचान कर उन्हें वापस भेजने से घुसपैठ की समस्या समाप्त हो जाएगी? बांग्लादेश में जनसंख्या का विस्फोट हो गया है। भयानक गरीबी है लोगों के पास कामधंधा नहीं है। प्रकृति का कब एवं कैसा प्रकोप होगा कहा नहीं जा सकता। राजनीतिक स्थिरता जैसी होना चाहिए वैसी नहीं है। राजनीति दो महिलाओं के इर्दगिर्द सिमट गई है। आर्थिक विकास की गति धीमी है। ऐसे अनेकों कारणों से बांग्लादेश से स्थलांतर हो रहा है।

यह रोकने का एक रामबाण उपाय है, बांग्लादेश का भारत में विलीनीकरण। एक राज्य के रूप में भारतीय संघराज्य में उसका विलीनीकरण होना चाहिए। बांग्लादेश भारत का हिस्सा होने के बाद घुसपैठियों की समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी। वैसे भी बांग्लादेश यह अकृत्रिम देश है। पहले वह पूर्व पाकिस्तान था। पश्चिम पाकिस्तान के अत्याचार के कारण, वहां गृहयुद्ध हुआ एवं बांग्लादेश का निर्माण हुआ। भारतीय सैनिकों ने ही वह किया। उनकी भाषा बंगाली है। उनकी संस्कृति बंगाली है। भारत के एक राज्य के रूप में उसका अस्तित्व निर्माण होने पर भी शासन उनके हाथ में ही रहने वाला है। एक राज्य बनने के बाद उनके विकास की सारी जिम्मेदारी सम्पूर्ण भारत की होगी। इस दृष्टि से भी असम एवं केन्द्र सरकार को विचार करना चाहिए।

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