हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
पानी पाने का कानूनी अधिकार

पानी पाने का कानूनी अधिकार

by गंगाधर ढोबले
in जुलाई-२०१६, सामाजिक
0

हाल में जारी ‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक 2013’ के प्रारूप में पहली बार सामान्य व्यक्ति को पानी पाने का कानूनी अधिकार दिया गया है। प्रारूप में गरीब तबके, अनुसूचित जातियों/जनजातियों, महिलाओं तथा अन्य कमजोर वर्गों को जल विकास की इस प्रक्रिया में शामिल करने का प्रावधान है। इसमें जनसहयोग से जल उपयोग, संरक्षण एवं संवर्धन पर अधिक बल दिया गया है। सबका साथ, सबका विकास!

‘जीवन के लिए पानी’ पाने का अधिकार दिलाने वाला नया कानून प्रस्तावित है। जिस तरह संविधान में व्यक्ति को बुनियादी अधिकार प्रदान किए गए है, उसी तरह पीने, रसोई, घर की स्वच्छता व अन्य घरेलू उपयोग के लिए न्यूनतम पानी प्राप्त करने का व्यक्ति को कानूनी अधिकार प्राप्त होगा। पैसा न हो तब भी पानी के अधिकार से आपको वंचित नहीं किया जा सकेगा। इस तरह गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को पानी के बारे में इस तरह संरक्षण दिया गया है। पानी की न्यूनतम कानूनी मात्रा राज्य सरकार पंचायतों, स्थानीय निकायों तथा स्थानीय लोगों के सहयोग से तय करेगी। लिहाजा, जो प्रस्तावित विधेयक है उसमें प्रति व्यक्ति प्रति दिन न्यूनतम 25 लीटर पानी पाने का व्यक्ति का कानूनी अधिकार होगा। इस प्रस्तावित विधेयक का मसविदा हाल में केंद्र सरकार के जल स्रोत मंत्रालय ने जारी किया है और नागरिकों से सुझाव एवं आपत्तियां मांगी हैं।
इस तरह के कानून की बहुत वर्षों से मांग की जा रही थी। विभिन्न देशों में इस तरह के कानून बने हैं। पिछले 10 वर्षों में इसके लिए कई कोशिशें की गईं, कई समितियां बनीं, उनकी रिपोर्टें भी आईं। अंत में राष्ट्रीय जल स्रोत परिषद ने 2012 में राष्ट्रीय जल नीति को मंजूरी दी और राष्ट्रीय स्तर पर जल ढांचा बनाने की सिफारिश की। इसी के अनुरूप 2013 का यह प्रस्तावित प्रारूप तीन साल के बाद अब जारी हुआ है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के कारण इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया था। मोदी सरकार ने इसमें अब पहल की है। चूंकि मसविदा 2013 में ही बना था, इसलिए विधेयक का नाम ‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक 2013’ है। इस विधेयक का प्रारूप इस वर्ष मई के अंतिम सप्ताह में जारी किया गया।

प्रारूप में जिस तरह व्यक्ति को न्यूनतम पानी का अधिकार दिया गया है, उसी तरह ‘जल संवर्धन एवं संरक्षण’ की कानूनी जिम्म्ेदारी राज्यों की होगी। केंद्र सरकार समन्वयक की भूमिका में होगी। चूंकि संविधान में पानी राज्य का विषय है, इसलिए इस सम्बंध में राज्यों को ही कदम उठाना होगा। राज्य इस जिम्म्ेदारी को पंचायतों, नगर पालिकाओं, महानगरपालिकाओं एवं स्थानीय जनता के सहयोग से पूरा करेंगे। इस प्रारूप को मुख्यमंत्रियों के विरोध का एक कारण यह भी है कि उन्हें लगता है कि अब तक जल विवादों में मध्यस्थ की भूमिका अदा करने वाली केंद्र सरकार को प्रस्तावित कानून से नियंत्रण का अधिकार प्राप्त हो जाएगा और पानी के सम्बंध में राज्यों की नकेल केंद्र के हाथ में होगी। राज्यों की इस आशंका को दूर करना केंद्र की पहली जिम्मेदारी होगी, ताकि इस लोकहितकारी विधेयक का मार्ग प्रशस्त हो सके।

विधेयक के प्रारूप में कहा गया है कि पानी के बारे में विभिन्न राज्यों की नीतियों में अंतर है। यह स्वाभाविक भी है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर पानी के बारे में एक नीति की आवश्यकता महसूस होती है। यह नीति ‘व्यापक राष्ट्रीय मतैक्य’ के जरिए स्थापित करना आवश्यक है। जल स्रोतों की सुरक्षा करना, पानी को संग्रहीत करना, उसका संवर्धन करना और वह अगली पीढ़ियों को सौंपना राष्ट्रीय कर्तत्य माना गया है।

इस प्रारूप को आठ अध्यायों में विभाजित किया गया है। पहले अध्याय में प्रारूप में प्रस्तावित शब्दावलियों के विस्तृत अर्थ दिए गए हैं। दूसरा अध्याय जल प्रबंध के बुनियादी सिद्धांत विशद करता है। तीसरा अध्याय पानी का अधिकार, पानी की गुणवत्ता की रक्षा एवं पानी की मूल्य नीति के बारे में है। चौथे अध्याय में जल स्रोत परियोजनाओं के नियोजन एवं प्रबंध के बारे में धाराएं हैं। पांचवां अध्याय पानी के बारे में प्रौद्योगिकी एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने वाला है। छठा अध्याय विभिन्न जल योजनाओं के संयोजन को विशद करता है। सातवां अध्याय जल योजनाओं के समन्यय एवं नीतिगत समर्थन व्यवस्था का जिक्र करता है। और अंतिम आठवां अध्याय कानून को किस तरह लागू किया जाएगा, केंद्र, राज्य एवं स्थानीय निकायों के क्या अधिकार और कर्तव्य होंगे इसका विवरण देता है। इस प्रारूप में यह प्रावधान नहीं है कि इस कानून के उल्लंघन करने पर किसे और किस तरह दण्डित किया जाएगा। शायद इस पर बाद में विचार किया जाएगा।

इस प्रारूप की कानूनी भाषा समझना किसी कानूनविद् का ही काम है। इसलिए इस आलेख में केवल जनसाधारण की दृष्टि से उपयोगी और जानने लायक प्रावधानों का ही उल्लेख किया जा रहा है। प्रथम अध्याय में कहा गया है कि अंतरराज्यीय नदियों, घाटियों के बारे में केंद्र सरकार का अधिकार होगा, जबकि केवल राज्यों में ही बहने वाली नदियों के बारे में राज्य सरकार का अधिकार होगा। इसमें ‘सामुदायिक संस्थाओं’ और ‘पात्र परिवार’ को भी परिभाषित किया गया है। यह भी कहा गया है कि ‘जल’ और ‘जल स्रोत’ में भूमि पर एवं भूमिगत दोनों जल स्रोतों का समावेश है।

दूसरे अध्याय में अन्य प्रावधानों के अलावा यह भी प्रावधान है कि पानी जनता का सामुदायिक स्रोत है और अतः उसका प्रबंधन, संरक्षण भी स्थानीय जनता को ही करना चाहिए। पानी मानवी जीवन का प्रथम आधार है, इसलिए कृषि, उद्योग, वाणिज्य एवं अन्य उपयोग के मुकाबले पेय जल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। नदियों के जिन जलागम, जल वितरण क्षेत्रों में पहले ही अतिक्रमण हुआ होगा, तो वह और न हो इसके लिए कदम उठाने होंगे और जहां अतिक्रमण हटाना जरूरी ही होगा वहां उस तरह के कदम उठाने पड़ेंगे। पानी की मांग का नियमन करना होगा। खेती को पानी देते समय यह देखना होगा कि उसका महत्तम उपयोग हो और पानी की बर्बादी न हो। एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि पानी के उपयोग की हर गतिविधि या उत्पाद में पानी के उपयोग पर राष्ट्रीय स्तर पर जल उपयोग मानक तय होंगे। इस उपयोग को न्यूनतम करना भी सब की जिम्मेदारी होगी। पानी के मूल्य, वितरण के लिए विभेदात्मक नीति होगी। व्यक्ति और घरेलू उपयोग के लिए कम मूल्य एवं उद्योगों समेत अन्य उपयोग के लिए अधिक मूल्य चुकाना होगा। राज्यों के जल नियमन प्राधिकरण इस बारे में निर्णय करेंगे।

तीसरा अध्याय सब से महत्वपूर्ण है, जिसमें व्यक्ति के पानी प्राप्त करने के कानूनी अधिकार का जिक्र है। इस अध्याय की धारा 1 में कहा गया है कि हर व्यक्ति को स्वास्थ्य एवं स्वच्छता तथा पेय जल के रूप में न्यूनतम मात्रा में पानी पाने का अधिकार होगा। यह पानी भी हर घर को आसानी से उपलब्ध होना चाहिए। धारा 2 में कहा गया है कि न्यूनतम पेयजल की मात्रा विशेषज्ञों की राय एवं स्थानीय लोगों से विचार-विमर्श से सम्बंधित सरकार तय करेगी, लेकिन यह मात्रा प्रति दिन प्रति व्यक्ति 25 लीटर से कम नहीं होगी। धारा 3 कहती है कि जल सेवा के निजीकरण या निगमीकरण के बावजूद राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होगी कि वह लोगों के ‘जल अधिकार’ की पूर्ति करें। पानी के मूल्य के बारे में कहा गया है कि सब को जल एवं उसके उचित मूल्य के लिए राज्य स्वतंत्र वैधानिक जल नियमन प्राधिकरण स्थापित करेंगे। प्राधिकरण के निर्णय को अदालत में चुनौती भी दी जा सकेगी (धारा 6.1)। पेयजल एवं स्वच्छता, खाद्यान्न सुरक्षा, गरीबों के जीवनयापन के लिए आवश्यक पानी को कम दाम पर उपलब्ध कराना होगा। राज्य सरकार चाहे तो घरेलू उपयोग के लिए पात्र लोगों को निःशुल्क पानी भी मुहैया करा सकती है। (धारा 6.4)

जल परियोजनाओं के नियोजन एवं प्रबंध के बारे में चौथे अध्याय में कहा गया है कि केंद्र सरकार जल स्रोतों के मुहानों पर पानी के बेहतर उपयोग, नियमन एवं संवर्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना करेगी। केंद्र सरकार इंटरनेट आधारित जल स्रोत सूचना प्रणाली (इंडियाडब्लूआरआईएस) स्थापित करेगी और उसका संचालन करेगी। इससे देशभर में जल स्रोतों की ताजा स्थिति का पता चलेगा और जरूरत पड़ने पर उचित कदम उठाए जा सकेंगे। इसके अलावा वर्षा, नदियों में जलप्रवाह, सिंचित कृषि एवं फसलें और भूमि पर एवं भूमिगत जल स्रोतों का इस्तेमाल का विवरण हर दस दिन के बाद जारी करने के लिए एजेंसी की स्थापना की जाएगी। बाढ़ और सूखा नियंत्रण के लिए भी विभिन्न उपायों का प्रावधान किया गया है। एक प्रावधान यह भी है कि परियोजनाओं की योजना एवं प्रबंध में पंचायतों, नगर पालिकाओं महानगरपालिकाओं और जल उपभोक्ता संगठनों जैसी स्थानीय व्यवस्थाओं को शामिल किया जाएगा। अनुसूचित जातियों/जनजातियों, महिलाओं एवं अन्य कमजोर वर्गों को इसमें उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।

भूमिगत जल के उपयोग का नियमन किया जाएगा। किसी भी क्षेत्र में भूमिगत जल के दोहन पर स्थानीय संस्थाओं का नियमन होगा। भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को नियमित करने के लिए बिजली के नियमन का भी सुझाव दिया गया है। भूमिगत जल दोहन के लिए स्वतंत्र बिजली फीडर स्थापित किया जाएगा और बिजली का नियमन करने से भूमिगत जल का दोहन भी नियंत्रित हो जाएगा। सम्बंधित सरकारों एवं स्थानीय निकायों को उनके क्षेत्र में भूमिगत जल की स्थिति के बारे में जानकारी रखनी होगी और उसे जनता को उपलब्ध कराना होगा। शहरी क्षेत्रों में पानी आपूर्ति के लिए सब को मीटर लगाने ही होंगे और पानी के उपयोग की मात्रा पर शुल्क लगाए जाएंगे। उनके बिल में मलनिस्सारण शुल्क भी लगाया जाएगा। पानी का अधिक उपयोग करने वाले उद्योगों एवं व्यवसायों को सालाना ‘वाटर रिटर्न’ भरने होंगे, जिसमें प्रति उत्पाद इकाई पानी के उपयोग, प्रदूषित जल निकासी की व्यवस्था, वर्षाजल संग्रह की व्यवस्था, पानी के पुनर्उपयोग का विवरण एवं ताजा जल उपयोग की जानकारी देनी होगी।

आगे पांच से लेकर आठवें अध्याय तक प्रौद्योगिकी, समन्वय आदि के बारे में विविध जानकारी है, जो महज तकनीकी होने से जनसाधारण के लिए बहुत उपयोगी नहीं है। निष्कर्ष यह कि यह विधेयक जनसहयोग से जल उपयोग, संरक्षण एवं संवर्धन पर अधिक बल देता है। पहली बार पानी के सामान्य व्यक्ति के अधिकार को कानूनी रूप से स्वीकार करता है। गरीब तबके, अनुसूचित जातियों/जनजातियों तथा महिलाओं को जल विकास की इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहता है। सम्पूर्ण देश को एक इकाई मान कर सर्वसम्मत जल संवर्धन एवं वितरण नीति को स्वीकार करता है। सबका साथ, सबका विकास! लेकिन यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि महज प्रारूप जारी होने से वह शीघ्र ही कानूनी रूप ले लेगा। इसमें बहुत चर्चाएं, बहसें होंगी। हो सकता है और कमेटियां भी बने। लोकतंत्र में यह दीर्घ प्रक्रिया होती है। फिर भी अगले 2025 के लिए भी हम इस पर अमली जामा पहना सके, तो बहुत होगा।

गंगाधर ढोबले

Next Post
दलित राजनैतिक ‘भ्रांति’ को समझें

दलित राजनैतिक ‘भ्रांति’ को समझें

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0