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सुनील बाबूराव काले   एक शांत, संयमी व्यक्तित्व

सुनील बाबूराव काले  एक शांत, संयमी व्यक्तित्व

by कांचन काले
in व्यक्तित्व, सितंबर- २०१६
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वि द्यार्थी जीवन में सुनील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता    था| संघ विचारों की छाया में ही उसका व्यक्तित्त्व निर्माण हुआ| कोई भी काम हो, वह पूरे ध्यान से, कष्ट से, अपना समझ कर व अपने आप को उसमें पूरी तरह लगाने की वृत्ति संघ शाखा में नियमित जाने से ही तैयार हुई| संघ कार्य में पूरी तरह निमग्न व हमारे पिताजी के परिचित स्व. केशवराव केलकर का वह लाड़ला था| तानाजी शाखा की मई ६९ साल की संघ शिक्षा वर्ग की उसकी डायरी अभी भी है| उसमें अनेक संघगीत हैं| ‘‘केशव तुम्हें प्रणाम’’,‘‘व्हावे जीवन यज्ञसमर्पण’’,‘‘ कर्तव्याचे पूजक आम्ही’’,‘‘संघ माझा चांगला’’, ‘‘गाव समदा रंगला’’ जैसे पुराने गीत भी उसमें हैं| काका केलकर की इच्छा थी कि उसे प्रांत प्रमुख का पद संभालना चाहिए परंतु व्यावसायिक व सांसारिक जिम्मेदारी के कारण उसने इस पद हेतु स्वीकृती नहीं दी| फिर भी संघ स्वयंसेवकों से उसका संपर्क था व जो भी संभव हो वह सहयोग भी करना था| गणित उसका पसंदीदा विषय था एवं उसमें उसने प्रवीणता हासिल की| इंजीनियर बनने की इच्छा होने के बाबजूद, पिताजी का व्यवसाय आगे चलाने हेतु उसने कॉमर्स विषय के साथ कानून की पढ़ाई भी की|

शहर के सामाजिक जीवन में भी उसका योगदान था| कलवा संगीत प्रेमी मंडल का वह सदस्य था| उसकी अपनी आवाज भी मीठी थी| भावगीत, देशभक्ति पर गीत, अभंग व सिनेसंगीत भी अच्छा गाता था| तेलवने सर के यहां उसने तबला बजाना सीखा था|

उम्र के २३वें साल में उसने ढरींर जळश्र चळश्रश्र के लश्रशरीळपस रपव षेीुरीवळपस गोडाउन के प्रबंधन का कार्य अंत्यत उत्तम रीति से किया| उम्र के २८वे वर्ष में पिताजी के निधन के बाद व्यवसाय की संपूर्ण जिम्मेदारी उसी पर आई| वह उसने ३१ से ६५ वर्ष तक अविरत प्रयत्न से, कष्ट से व अभ्यासपूर्वक निभाई| ढशश्रले कंपनी का महाराष्ट्र, गोवा व कर्नाटक का ट्रान्सपोर्टेशन का काम, काले गुड्स कैरियर नामक कंपनी के माध्यम से गत चालीस वर्षों से चल रहा है| ढशश्रले का संपूर्ण दक्षिण भारत का ट्रान्सपोर्टेशन का काम मिले इसके लिए सुनील प्रयत्नशील था| इसके निधन के बाद, हाल ही में वह काम कंपनी को मिला है| उसके जीवित रहते समय ही ज्ञसल ङेसळीींळल नामक ीळीींशी लेपलशीप के माध्यम से ाशीलशवशीश इशपू, षळरीं, एुळवश इरींींशीळशी, इजडउक इन कंपनियों के ङेसळीींळल के काम भी प्रारंभ हो गए थे| अब व्यवसाय की संपूर्ण जिम्मेदारी हमारे भाई विनय व सुनील के पुत्र हर्षद के कंधों पर है और वे उसे अच्छी प्रकार से निभाएंगे यह विश्‍वास सुनील को था|

युवावस्था में ही सुनील ने बेलगांव की परम पूज्य आई श्री कलावती देवी के उपासना मार्ग का स्वीकार किया था| परमार्थ निकेतन के ठाणे, दादर, गिरगांव की शाखाओं के ट्रस्ट का काम भी उसने सेवा भाव से किया|

इेालरू ॠेेवी ढीरपीिेीीं ईीेलळरींळेप (लीींर) इस व्यावसायिक संगठन का वह सदस्य कार्यकर्ता था| वहां भी अत्यंत मन लगाकर जिजीविषु वृत्ति से वह कार्य करता था| उसके इस स्वभाव के कारण उसने वहां अध्यक्ष कोषाध्यक्ष व सचिव  के पदों पर कार्य किया| इन पदों के माध्यम से उसने परिवहन व्यवसाय के उपयुक्त निर्णय लिए| ऑक्ट्राय टोल नाकों के विरोध में अनेक प्रदर्शन किए| संबंधित मंत्रियों से मिलकर अपनी बात समझाने में वह आगे बढ़ कर भाग लेता था|

अपने आचार-विचार, मतों पर वह अडिग रहता था| क्योंकि वे पूर्ण विचार व अभ्यास कर लिए होते थे| प्रसंगवश अपनी गलती सुधारने में भी उसने कमी महसूस नहीं की| उसका आहार-विहार, व्यायाम, उपासना अतिशय नियमित थे|

‘‘विवेक’’ व ठशरवशी’ी ऊळसशीीं ये उसकी पसंदीदा मासिक पत्रिकाएं थीं| उम्र के १५हवें वर्ष से वह उसका पाठक था| अपने पुत्रों, नातियों से उसका आग्रह हुआ करता था कि उन्हें इन मासिक पत्रिकाओं के अध्ययनपूर्ण लेख पढ़ने चाहिए| हम बहनों को भी वे पढ़ने चाहिए इसलिए हमें ससुराल में भी वह ये मासिक पत्रिकाएं भेजते थे|

र्उेािीींशी और चेलळश्रश का जमाना आने पर उसमें भी उसने अध्ययन कर अपना प्रभुत्व स्थापित किया| अपने रोज के जीवन व व्यवसाय में वह उनका उपयोग करने लगा|

इन सब कामों में उसकी पत्नी संपदा ने उसकी मौलिक मदद की| वह उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होने के कारण वह सभी मोर्चों पर व्यवस्थित लड़ सका| सुनील के व्यवस्थित रहने में, बच्चों की पढ़ाई, अध्ययन, हमारी मां की वृद्धावस्था में सेवा में संपदा ने योगदान तो दिया, साथ ही साथ स्वयं के कलागुणों का विकास भी किया| इस कारण ससुराल, मायका व अन्य सभी सम्बंधियों में उसे ‘आदर्श गृहिणी’ की मान्यता मिली|

सुनील का बड़ा पुत्र ‘हर्षद’ अत्यंत गुणी है| अपने पैतृक व्यवसाय को अपने कर्तृत्व से आगे बढ़ा रहा है| २५ मार्च १६ को हर्षद की चालीसवी सालगिरह हम सबने मनाई| उस समय सुनील ने संदेश दिया था, ‘‘तुम्हारे यश एवं संपन्नता का उपयोग परिवार एवं समाज के लिए करो|’’ इससे सुनील का बड़प्पन एवं पुत्र पर विश्‍वास दृष्टिगोचर होता है|

उसकी पुत्री ‘‘मयुरा’’अमेरिका में स्थायी रूप से बस गई है| जून के अंत में सुनील नातियों से मिलने अमेरिका जाने वाला था| परंतु वह स्वप्न पूरा न हो सका|

ठाणे के मो.ह.विद्यालय का वह १९६१ से १९६७ (५वीं से ११हवीं) का विद्यार्थी था| इस साल विद्यालय शताब्दी महोत्सव मना रहा है| उसका वह सक्रिय सदस्य था| उस संदर्भ में आयोजित सभा में (८ मई को)उपस्थित रह कर, घर वापस आते समय काल का ग्रास बना| उसका संसार सफल संपूर्ण था| व्यवसाय उत्तम चल रहा था| जीवन में कहीं कोई कमी नहीं थी| ऐसी संतोषप्रद अवस्था में किसी से भी सेवा, दवा, अस्पताल के चक्कर न लगवाते हुए उसके जीवन का अंत हुआ| वास्तव में हमारा भाई पुण्यात्मा था|

उसे हमारा शतश: प्रणाम|

 

Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepersonapersonal growthpersonal trainingpersonalize

कांचन काले

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