ग्राम विकास  वर्तमान एवं दिशाबोध

प्रचलित विकास से बनी परिस्थिति से आज देश अशांति की ओर बढ़ रहा है| भारतीय विकास चिंतन के प्रकाश में अपने पुरुषार्थ के आधार पर हमें पुनः भारत का गत वैभव प्राप्त करना है| भारत को स्वतंत्र गांवों का स्वतंत्र देश बनाना है|

वि कास’ यह आजकल सबसे अधिक चर्चा का विषय बना  हुआ है| भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के हर क्षेत्र में विकास यात्रा पहुंचाने के प्रयास सरकार द्वारा जोरशोर से किए जा रहे हैं| ‘विकास’ संकल्पना के अन्दर समाहित विभिन्न पहलुओं पर विभिन्न क्षेत्रों में कम-अधिक मात्रा में कार्य प्रगति पर दिखाई दे रहा है|

‘विकास’ की इस यात्रा में गैर सरकारी सामाजिक प्रयास भी बड़ी मात्रा में दिखाई दे रहे हैं| कुलमिला कर ‘विकास’ की स्वाभाविक प्रक्रिया वर्तमान समय में एक विशिष्ट सोच के आधार पर विशिष्ट गति से चल रही है|

विकास की इस प्रक्रिया का प्रभाव और अभाव आज विभिन्न क्षेत्रों में दृष्टिगोचर हो रहा है| फलस्वरूप विभिन्न संशोधकों, अध्ययनकर्ताओं, सरकार का ध्यान इस तरफ जा रहा है| अतः विकास के कारण बन रही परिस्थिति का अध्ययन भी साथ-साथ चल रहा है| कुछ अध्ययन सरकार द्वारा विशेष कार्य हेतु गठित समितियों द्वारा हो रहा है जैसे कि पश्चिम घाट का अध्ययन, महाराष्ट्र में क्षेत्रीय विकास असंतुलन का अध्ययन, वर्षा आधारित खेती की परिस्थिति का अध्ययन, पर्यावरण में हो रहे बदलावों का अध्ययन इत्यादि| सरकारी अध्ययन के अलावा बड़ी मात्रा में सामाजिक संगठन, गैर सरकारी संस्थाएं, अन्वेषक भी जैसे उशपींशी षेी डलळशपलश  एर्पींळीेपाशपीं, ढरींर खपीींर्ळींीींश ेष डेलळरश्र डलळशपलश विकास के चलते बन रही परिस्थिति का अधययन कर रहे हैं|

भारत के प्रायः सभी विकास संबंधित अध्ययन निम्न तथ्य को, निष्कर्षों को उजागर कर रहे हैं-

      १) देश के अधिकांश जिलों का नैसर्गिक संसाधन सूचकांक घटा है|

      २) जल, जमीन, जंगल क्षतिग्रस्त हो रहे हैं|

      ३) जैवविविधता खतरे में है|

      ४) कृषि भूमि की उर्वरा शक्ती दांव पर लगी है |

      ५) कृषि योग्य भूमि (मिट्टी) का बड़े पैमाने पर क्षरण हो रहा है|

      ६) भारतीय नस्ल के गोवंश में तेजी से गिरावट आ रही है| बैलों की संख्या अनेक स्थानों पर घट रही है|

      ७) ग्रामीण परंपरागत ज्ञान को नकारा जा रहा है|

      ८) ग्रामीण क्षेत्र से शहरों की और पलायन बढ़ रहा है| अर्थात विकास अशांति को जन्म दे रहा है|

क्या उपरोक्त स्थिति से उबरने हेतु कही काम चल रहा है? तो इसका जबाब ‘हां’ है| बहुत स्थानों पर पृथक-पृथक प्रकल्पात्मक, उपक्रमात्मक प्रयास चल रहे हैं| सरकारी तौर पर भी सुधार के प्रयास चल रहे हैं| मगर यह तो केवल मरहमपट्टी की तरह है| इससे मूल समस्या का समाधान नहीं दिखाई देता|

प्रचलित विकास के चलते बन रही इस परिस्थिति से सभी देशभक्त वैज्ञानिक, समाजशास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता चिंतित हैं| परिस्थिति की सटीक चिकित्सा द्वारा देश के नैसर्गिक संसाधनों की स्थिति को दुरुस्त करते हुए ग्रामीण अंचलों में स्थिरता प्रदान करना यह सभी के दृष्टि से सर्वोच्च वरीयता प्राप्त कार्य है|

 विकास की वर्तमान स्थिति

प्रख्यात विचारक, जेष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता मा.श्री धर्मपालजी इस समस्या की चिकित्सा करते समय कहते हैं, सभी समस्याओं की जड़ विकास की अभारतीय सोच ही है| यूरोपीय दृष्टि में समस्त मनुष्य, अन्य समस्त जीव एंव वनस्पतियां, वन, भूमि, जल, खनिज इत्यादि साधन स्रोत शासकों के विचार और व्यवहार रुपी सभ्यता के संसाधन है| अर्थशास्त्र की प्रमुखता का यही अभिप्राय है| अभारतीय विकास दृष्टि संसाधनों के उपभोग का भाव बढ़ाते हुए शोषण की नीति को प्रोत्साहित करती है| इस संकट से उबरने के लिए भारत को अब अपनी पुनर्योजना, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को आगे रख कर करनी होगी| इस पुनर्योजना में अर्थशास्त्र नियामक सिध्दांत कदापि नहीं हो सकता| प्रत्येक सभ्यता में विविध अवधारणाओं की एक क्रमव्यवस्था होती है| अब हमें अवधारणाओं को प्रधान-गौण-क्रम का यह उलट गया बोध फिर से व्यवस्थित करना होगा|

अपनी विख्यात पुस्तक ‘ग्राम स्वराज्य’ में महात्मा गांधीजी लिखते हैं, ‘सच्चे अर्थ में सभ्यता जीवन की आवश्यकताओं को बढ़ाने में नहीं परन्तु जानबूझकर और स्वेच्छा से उनकी मर्यादा बांधने में है| दुर्भाग्य से आर्थिक जीवन के इस नैतिक और अध्यात्मिक पहलू की हमेशा उपेक्षा की गई है जिसके फलस्वरूप सच्चे मानव कल्याण को बड़ी हानि पहुंची है| ‘स्वराज्य’ का अर्थ है सरकार के नियंत्रण से स्वतंत्र रहने का निरंतर प्रयास, फिर वह सरकार विदेशी हो या राष्ट्रीय!

इस परिस्थिति को देखकर स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘नए युग का विधान है कि जनता ही जनता का परित्राण करें| अब तुम लोगों का काम है प्रान्त, प्रान्त में, गांव-गांव में जाकर लोगों को इस मंच से दीक्षित करो और सरल भाषा में उन्हें व्यापार, वाणिज्य, कृषि आदि गृहस्थ जीवन के अत्यावश्यक विषयों का उपदेश करो जो भारतीय दृष्टिकोण पर आधारित हो|

 विकासः भारतीय दृष्टिकोण 

भारत में आए वैचारिक, आर्थिक संकटों को दूर करने के लिए भारतीय दृष्टिकोण आधारित युगसुसंगत चिंतन समयानुसार प्रस्तुत करना यह भारतीय मनीषियों की हमेशा से ही विशेषता रही है| ‘विकास’ के वर्तमान संकट से उबरने के लिए म.गांधी, पं.दीनदयाल उपाध्याय, पू. विनोबाजी भावे, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने समाज के पुरुषार्थ पर संपूर्ण विश्वास रखकर दिशादर्शन किया, मार्ग दिखाया|

पं.दीनदयालजी अपने एकात्म मानव दर्शन में धारणाक्षम अर्थात शाश्वत विकास हेतु कहते हैं-

 -संयत उपभोग से अधिकतम आनंद प्राप्ति का ध्येय हमें रखना चाहिए|

 -नैसर्गिक संसाधनों का दोहन करने वाली व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए|

 -जरूरतें निर्माण करने वाली व्यवस्था छोड़ मात्र जरूरतें पूरी करने वाली व्यवस्था निर्माण करनी चाहिए|

 -विकास जनचेतना के आधार पर होना चाहिए| शासन की भूमिका केवल मार्गदर्शक, प्रेरक, सहयोगी तक सीमित हो|

 -अधिकार, निर्णय प्रक्रिया, प्रयत्न, उत्पादन तथा स्वामित्व के विकेंद्रिकरण को बढ़ावा देना चाहिए|

 -परंपरागत तथा आधुनिक समुचित प्रौद्योगिकी के संयुक्त उपभोग को बढ़ावा देना चाहिए|

 -स्वयंशासी एवं स्वायत्त व्यवस्था निर्मिति को बढ़ावा देना चाहिए|

कैसे करें प्रारंभ- दिशाबोध

अखिल गायत्री परिवार के प्रमुख पू.डॉ.प्रणवजी पंड्या कहते हैं, शोषण आधारित वर्तमान विकास प्रणाली से न केवल प्रकृति कुपित है वरन बहुसंख्यक समाज पीड़ित एंव अभावग्रस्त है| इससे गांव का स्वरूप बिगड़ा है और शहरों की समस्याएं बढ़ रही हैं| इन चुनौतियों से जूझना अब केवल राजतंत्र के बस की बात नहीं है| जनता की शक्ति को जागृत कर अब उसी के बलबूते विकास का सामाजिक तंत्र खड़ा करना होगा तथा ऋषि चिंतन व सूत्रों के आधार पर अर्थव्यवस्था की दिशा देनी होगी|

पू.विनोबाजी कहते हैं, प्रचलित व्यवस्था द्वारा जिन लोगों को दरिद्र बनने के लिए विवश किया गया है, जो व्यापक वंचना के शिकार बनाए गए हैं, जिनका आत्मगौरव छिना गया है उन्हीं करोड़ों लोगों की सृजनात्मक एवं प्रवर्तनकारी मेधा को जागृत करके ही प्रचलित समस्या हल की जा सकती है|

 कैसे करें प्रारंभ-  कृतिबोध

१) अध्ययनः आज प्रचलित विकास से धरातल पर बन रही परिस्थिति का, नैसर्गिक संसाधनों का स्थान-स्थान पर शास्त्रशुध्द अध्ययन करना होगा| यह अध्ययन व्यक्ति, संस्था द्वारा स्थानीय समाज समूह को सम्मिलित करते हुए करना चाहिए| निष्कर्ष से गांव समाज के सभी वर्गों को अवगत करना चाहिए|

२) भाव जागरणः राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज कहते हैं, भाव जागरण के बिना काम नहीं बनेगा-

      गांव जगत का सुंदर नक्शा, उस पर निर्भर देश परीक्षा|

      गांव की सेवा प्रभु सेवा है| यही भाव सब में भरना है॥

      बने संगठन गांव में सुंदर| यही प्रभु की पूजा गुरुतर॥

३) गांव के संसाधनों पर आधारित विकास नियोजनः संसाधन आधारित विकास नियोजन बनाने के लिए विविध तज्ञ व्यक्ति, शासन द्वारा निर्मित कृषि विज्ञान केंद्र, ठ-ीशींळ, जन शिक्षण संस्थान जैसी विविध संस्थाओं का उपयोग करना चाहिए|

४) ग्राम समूह संकल्पनाः  एक गांव के संसाधन यदि पर्याप्त न हो तो ग्राम समूह की संकल्पना को बल देना चाहिए| ग्राम समूह चयन की कल्पना जलागम क्षेत्र ( थरींशीीहशव ) के आधार पर होनी चाहिए|

५) ग्रामोपयोगी नूतन कानून का उपयोगः आज ग्रामसभा को मजबूती प्रदान करने वाले विविध क़ानूनी प्रावधान उपलब्ध हुए हैं| जैसे जनजाति क्षेत्र में झएडA, ऋेीशीीं ठळसहीं Aलीं अन्य सभी ग्रामों के लिए इळेवर्ळींशीीळींू Aलीं, मनरेगा | इन सभी कानूनी प्रावधानों का सही इस्तेमाल ग्रामवासियों को सीखना चाहिए| इसे व्यावहारिकता में उपयोग करना चाहिए|

६) संस्थागत रचना निर्माणः ग्राम समूह स्तर पर, ग्राम स्तर पर गांव के लोगों द्वारा संचालित, विकास हेतु नूतन संस्थाओं का निर्माण करना अत्याधिक आवश्यक है| ये संस्थाएं सर्वसहमति से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन हेतु ग्रामस्तरीय रीति-नीति सुनिश्चित कर सकती है|

७) प्रेरणा प्रवासः  गांव के प्रमुख कार्यकर्ताओं को कुछ चुनिंदा स्थानों पर जाकर विकास के अनुकरणीय प्रयास देखने चाहिए और वहां से प्रेरणा लेनी चाहिए| वहां के सफल-असफल प्रयासों की चर्चा करनी चाहिए जैसे बारीपाडा, धुले जंगल आधारित शाश्वत आजीविका, खांडबारा ग्राम समूह, नंदुरबार नदी आधारित शाश्वत आजीविका, हिवरे बाजार अहमदनगर वर्षाजल नियोजन, चित्रकूट उत्तर प्रदेश समग्र ग्रामविकास|

 धारणाक्षम विकास हेतु शिक्षा योजना

विकास की इस असमंजस स्थिति से शाश्वत अर्थात धारणाक्षम विकास की दिशा में, वैज्ञानिक पध्दति द्वारा दृढ़तापूर्वक कदम बढ़ाने हेतु ‘योजक’ द्वारा दो वर्षीय शिक्षा योजना का प्रारंभ किया गया है| इस योजना में विकासरत व्यक्ति, समूह, स्वयंसेवी संस्था, जन संगठन के प्रतिनिधि सम्मिलित हो सकते हैं|

 हमारा लक्ष्य 

प्रचलित विकास से बनी परिस्थिति से आज देश अशांति की ओर बढ़ रहा है| भारतीय विकास चिंतन के प्रकाश में अपने पुरुषार्थ के आधार पर हमें पुनः भारत का गत वैभव प्राप्त करना है|

 -भारत स्वतंत्र गांवों का स्वतंत्र देश था|

 -मुगल शासन में यह स्वतंत्र गांवों का गुलाम देश बना|

 -अंग्रेज शासन में यह गुलाम गांवों का गुलाम देश देश बना|

 -स्वतंत्रता के बाद यह गुलाम गांवों का स्वतंत्र देश बना|

  हमें फिर से-

  -भारत को स्वतंत्र गांवों का स्वतंत्र देश बनाना है|

  -यही हमारा युगमंत्र है यही हमारा युगधर्म है|

भारत माता की जय॥

 

Leave a Reply