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 कृषि-आधारित ग्रामीण उद्योग

 कृषि-आधारित ग्रामीण उद्योग

by महेश अटाले
in ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, सामाजिक
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 किसान अपने नियमित कृषि कार्य के साथ ऐसे अनेक सहायक व्यवसाय कर सकते हैं| आवश्यकता है तो किसी एक व्यवसाय को प्रारम्भ करने की| इसे करते समय एक बात का हमेशा स्मरण रहें- ये सारे सहायक व्यवसाय हैं| अपना मूल व्यवसाय है खेती, क्योंकि हम हैं तो किसान ही ना|

भा रत कृषि-प्रधान देश है| जय जवान, जय किसान यह हमारा      नारा है| किसी भी देश का विकास उसकी कृषि पर निर्भर होता है| भूमि के उत्पादन का देश के विकास में बहुत बड़ा योगदान होता है| कृषि विकास के कारण ही इजरायल जैसे छोटे देश आज अग्रणी बने हुए हैं|

भारत की भूमि सुजलाम् सुफलाम् है| अधिकृत जानकारी के अनुसार भारत की ६० प्र.श. भूमि कृषि भूमि है| फिर भी आज किसान निराशाग्रस्त है| वह आत्महत्या कर रहा है| खेती बेच रहा है| जो किसान सारे देश को अन्न की आपूर्ति कर रहा था, वह अब अपने परिवार का पालन करने में भी असमर्थ है, यह यथास्थिति स्पष्ट दिख रही है|

इस स्थिति के कईं कारण हैं| जलवायु की अनिश्‍चितता, बढ़ता हुआ प्रदूषण, कृषि-उत्पादन की कम कीमत, दलालों के द्वारा किया जा रहा शोषण, आधुनिक विकास का अभाव, भविष्य का विचार न करते हुए लिए गए निर्णय, महंगाई, व्यसनाधीनता आदि अनेक कारणों से किसान निराशाग्रस्त बना हुआ है| इन सबके साथ, कृषि के साथ अन्य कोई उप-व्यवसाय न होना भी इस दुर्दशा का एक प्रमुख कारण है|

कृषि के साथ-साथ अन्यान्य उप-व्यवसाय या लघु-उद्योग किए जा सकते हैं| इस तरह के व्यवसाय से प्राप्त कमाई का बहुत बड़ा आधार किसान के परिवार को मिल सकता है| किसान इन उद्योगों का स्वयं मालिक होता है, और इनके लिए उसे दलालों पर निर्भर रहना नहीं पड़ता| वैसे ही इनमेंं कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं कि जिन पर जलवायु की अनिश्‍चितता का विशेष प्रभाव नहीं होता| इसके अलावा इन में शारीरिक श्रम भी कम होते हैं, इसलिए अधिक आयु के और शारीरिक दृष्टि से कमजोर अन्य परिवारजन भी इनमें सहायता कर सकते हैं| चलें, हम ऐसे कुछ लघु-उद्योगों की जानकारी प्राप्त करें|

कृषि का नाम लेते ही हमें स्मरण होता है, बैलजोड़ी का| पहले किसान के पास गाय-बैल होते ही थे| इनके गोबर का उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में होता था| जमीन, दीवारें लीपना, जलन के लिए कण्डे बनाना आदि अनेक प्रकारों से गोबर का उपयोग हुआ करता था| इसी के साथ किसानों को गोबर-खाद भी अपने-आप मिला करती थी|

आज किसानों की दीवारें गोबर से लीपी नहीं जातीं| बैलों के स्थान पर ट्रेक्टर आ गए हैं| किसानों को पशुधन की आवश्यकता ही नहीं होती| यह बहुत बड़ी हानि है| किसानों के लिए ‘पशुपालन’ महत्वपूर्ण उद्योग है| गाय, बैलों के साथ बकरी-भेड़ पालन, कुक्कुट पालन जैसे उप-व्यवसाय किसान कर सकता है| पशुपालन से आवश्यक दूध आदि भी सहज उपलब्ध हो जाता है|

उनकी गोबर से, गोमूत्र से उत्कृष्ट स्तर की खाद भी प्राप्त होती है| इस गोबर से गोबर गैस भी बनाई जा सकती है| यह गैस खाना बनाने के लिए उपयुक्त तो होता ही है, आवश्यकतानुसार इससे बिजली भी बनाई जा सकती है| ऐसे गोबर गैस संयंत्र की स्थापना खेत के किसी कोने में सहज ही की जा सकती हैै| इस का मूल्य भी कोई अधिक नहीं होता और इसका तंत्र भी सरल होने से किसान किसी तंत्रज्ञ की सहायता के बिना ही वह उसका रखरखाव कर सकता है|

मधुमक्खी पालन भी किसानों के लिए सरल लघु-उद्योग है| मधुमक्खियों से फलन-क्रिया भी शीघ्रता से होती है, फलत: कृषि-उत्पादन में भी वृद्धि होती है| जिन किसानों ने मधुमक्खी पालन का उद्योग आरम्भ किया है, उन सब की आर्थिक स्थिति में तीव्रता से वृद्धि हुई है|

खेतों की मेड़ों का उपयोग मधुमक्खियों के कृत्रिम छत्तों के लिए किया जा सकता है| इसके लिए भी किसी भी विशेष तंत्रज्ञान की आवश्यकता नहीं होती, और इसके रखरखाव में लगने वाला व्यय भी नगण्य होता है| छोटे बच्चे भी इसका रखरखाव सहज कर सकते हैं| इससे पूरे वर्षभर कमाई हो सकती है| ये मधुमक्खियां प्राकृतिक रूप से अनेक प्रकार के कीड़ों को फसल से दूर रख कर फसल की उनसे रक्षा करती हैं|

किसान कृषि के साथ व्यवसाय के रूप में मेड़ों पर फलों के पेड़ भी लगा सकते हैं| केले, पपीता जैसे फलदार वृक्षों से किसान की आय में वृद्धि तो होती ही है, साथ में भूमि को क्षरण से बचाया जा सकता है| वैसे ही सहजन के पेड़ों से भी बहुत लाभ हो सकता है| सहजन की फल्लियां बेच कर आय तो बढ़ती ही है, साथ में उसके पत्तों की सब्जी भी खाने के लिए उपलब्ध होती है| सहलन के पेड़ो का रखरखाव भी सहज होता है|

मेड़ों पर कुमारी, निर्गुण्डी, वज्रदन्ती, कंटकारी आदि औषधीय वनस्पतियां उगाई जा सकती हैं, जिससे आर्थिक आय तो होती ही है, खेत की रक्षा भी होती है| आजकल अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुछ स्थानों पर धान की खेती के साथ मछलीपालन भी किया जा रहा है| धान की खेती के लिए संग्रहित पानी में ही केकड़े और मछलियों की खेती की जाती है| इन मछलियों के मल से धान की खेती को भी लाभ होता है और खाद देने की आवश्यकता नहीं होती और मत्स्यखेती भी भरपूर कर होती है| आर्थिक लाभ प्रदान करने वाला यह भी अच्छा व्यवसाय है|

धान की खेती के लिए ही किया जा सकने वाला पर सम्पूर्ण उपेक्षित व्यवसाय है – मशरूम उत्पादन| यह थोड़े से परिश्रम से साध्य होने वाला व्यवसाय है| मशरूम के लिए आवश्यक धान का पैरा धान खेती में पर्याप्त मात्रा में होता है| इस पैरे पर ही केंचुओं का उत्पादन किया जाता है| आज पूरे विश्‍व में मशरूम के लिए बहुत मांग है| मशरूम की मांग की तुलना में उसका उत्पादन काफी कम है इसलिए उसे बाजार में अच्छा मूल्य मिलता है| सरकार ने सब दूर मशरूम उत्पादन के लिए नि:शुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था की है|

वृक्षारोपण करना किसान के स्वभाव में ही है| उनके द्वारा रोज पेड़ लगाए जा रहे हैं, बढ़ाए जा रहे हैं| आज मुंबई और अन्यान्य शहरों में नर्सरी स्वतंत्र व्यवसाय बना हुआ है| यह व्यवसाय अपनाने से किसान भाइयों के लिए यह आय का बड़ा स्रोत बन सकता है| विभिन्न प्रकार के फूलपौधे, फलवृक्षों के पौधे छोटी थैलियों में लगा कर बढ़ाए तो उन्हें अच्छा मूल्य मिल सकता है| किसानों को इन पौधों की उचित जानकारी मिली तो अनेकानेक पौधें बनाए जा सकते हैं|

इससे आगे का चरण है – बोन्साय बनाना| बोन्साय याने ‘कुण्ठित वृक्ष’| इनकी मांग भी है, मूल्य भी मिलता है| किसानों द्वारा कृषि कार्य करते हुए यह उद्योग सहज ही किया जा सकता है| इसके साथ कुछ और व्यवसाय भी किए जा सकते हैं जैसे – खेत में और आसपास उगे हुए फूलों के पराग कणों को भी काफी मांग है| ये पराग कण एलर्जी की औषधियों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं| इन्हें देशविदेश की कम्पनियों की ओर से बड़ी मात्रा में मांग है| पराग कणों को इकट्ठा करने के लिए किसी विशेष तंत्रज्ञान या शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती है| किसान परिवार के सभी लोग इन्हें सहज एकत्र कर सकते हैं|

इन लघु-उद्योगों का राजा जिसे कह सकते है वह है, कृषि पर्यटन या एग्रो-टूरिज्म| शहर के लोगों को खेती का पर्यटन कराने वाले ये केन्द्र दिनोंदिन बढ़ ही रहे हैं| इन यात्राओं से किसान और समाज परस्पर जुड़ता जा रहा है| शहर निवासियों को कुछ समय के लिए प्रदूषणमुक्त हवा, वातावरण, निसर्ग सानिध्य का लाभ मिलता है और उसके लिए वे पैसे देने के लिए भी तैयार रहते हैं| इस अवधि में उनकी कुछ अधिक अपेक्षाएं भी नहीं होती और वे लौटते समय कोई कृषि उपज बाजार भाव से खरीद भी सकते हैं| इस तरह से इस कृषि यात्रा का किसानों को तिहरा लाभ होता है|

किसान अपने नियमित कृषि कार्य के साथ ऐसे अनेक सहायक व्यवसाय कर सकते हैं| आवश्यकता है तो किसी एक व्यवसाय को प्रारम्भ करने की| इसे करते समय एक बात का हमेशा स्मरण रहें- ये सारे सहायक व्यवसाय हैं| अपना मूल व्यवसाय है खेती, क्योंकि हम हैं तो किसान ही ना|

 

महेश अटाले

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