रोशनी  की  तलाश

 दोनों की रोशनी की तलाश खत्म हुई और जगमगाते उजाले लेकर दीवाली की वह रात आई जिसका न जाने कब से उनको इंतजार था|

उ त्तम मातृभक्त तो था ही, भगवान के प्रति भी उसकी बहुत      आस्था थी| वह हर वर्ष गणेश चतुर्थी के समय अपने गांव गणपतीपुले के पुश्तैनी घर में पूरे विधि-विधान के साथ श्रीगणेशजी की स्थापना करता और दस दिन तक श्री गणेशजी की पूजा, आरती, भजन- कीर्तन, और सेवा में लगा रहता| वह सबके साथ मिलजुलकर रहना पसंद करता था| सारे रिश्तेदार भी उसे बहुत पसंद करते थे| पर मंदाकिनी को यह सब पसंद नहीं था| इसलिए उसने बहुत पहले अपना पल्ला झाड़ लिया, उत्तम को तलाक देकर खुद पुणे चली गई| पर इस दुनियां में किसी के बिना कहां कुछ रुक जाता है| उसके बाद भी  उत्तम के सारे काम खुद-ब-खुद हो रहे थे| अब की बार उसने सोचा अपनी नंदिनी को भी अपनी मां के साथ गांव ले जाएगा, क्योंकि उसकी मां की काफी उम्र हो चुकी थी| वहां मां को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो इसलिए उसने नंदिनी को मां का वास्ता देकर मना लिया| नंदिनी सुंदर पर गरीबी की सताई मध्यम उम्र की औरत थी, गरीबी ने उसके हाथ भी पीले होने नहीं दिए| उसे उसकी उतनी चिंता नहीं थी पर जीवित रहने के लिए काम ज्यादा जरूरी लग रहा था| इसलिए उसने ना-नुकुर नहीं की|

नंदिनी ने बहुत अच्छी तरह से उसकी मां का ध्यान रखा|  समय पर सारे काम निपटा कर ज्यादा से ज्यादा समय और ध्यान उत्तम की मां को देती| बिल्कुल अपनी मां की तरह उसका खयाल रखती| जब से मंंदाकिनी चली गई, उसकी मां को एक बहू की  कमी खल रही थी पर नंदिनी के आने के बाद वह कमी भी पूरी होती  नजर आ रही थी| उत्तम भी खुश था| गणपतीपुले में उसने घर के सदस्य जैसा उसका ध्यान रखा |

मां को उत्तम की बहुत चिंता थी| इकलौती संतान होने के कारण कुछ ज्यादा ही लगाव था| अक्सर वह सोचती मेरे बाद उत्तम का क्या होगा? नंदिनी से उत्तम की मां भी खुश थी| मन ही मन सोचती काश! मंंदाकिनी के बदले नंदिनी इस घर की बहू बन कर आती तो बहुत अच्छा होता|

नंदिनी एक दिन कपड़े धोने नदी पर चली गई| पानी के तेज बहाव से उत्तम की मां की साड़ी बहने लगी, जिसे बचाने की कोशिश में लगी नंदिनी का पैर फिसल जाता है, पर वह साड़ी नहीं छोड़ती| इसी समय उत्तम सब्जी लेकर साइकिल से आ रहा था| उसने किसी को पानी में बहते देखा| साइकिल रोक कर उसने उतर कर नदी में उसी दिशा में छलांग लगाई और जल्दी तैरते हुए बहने वाले को पकड़ लिया और किनारे पर ले आया| नदी के बाहर आने पर जब उसने बहने वाले को किनारे पर रखा तो उसके हाथ में तब भी उसकी मां की साड़ी लिपटी हुई थी| इसीसे उसने पहचाना कि वह नंदिनी है|

उसे झटकासा लगा| उसने उसके पेट को धीरे-धीरे दबा-दबाकर सारा पानी निकाल दिया| उसके बाद उसे घर ले गया और उसकी भाभी से कह कर उसके कपड़े बदलवाए और सीधे बैद्य के पास ले जाने के लिए कहा| उसे ठंड लगने से बुखार चढ़ गया| वहां से आने पर उसकी बहुत अच्छी तरह देखभाल की| वह बेचारी अनाथ थी| उसका इस दुनिया में कोई न था| उत्तम सब जानता था| जब उत्तम की मां को पता चला कि उसकी साड़ी बचाते-बचाते वह बह गई थी, तो पास ही सोई नंदिनी जब होश में आई तो उससे बोली अरे साड़ी बह जाती तो जाने देती, अपनी जान जोखिम में डालने की क्या जरूरत थी? वह कुछ नहीं बोली|

उत्तम की भाभी ने नंदिनी के बारे में सबसे पहले उत्तम से राय पूछी|  उसकी राय अच्छी थी|  भाभी को भी नंदिनी पसंद थी| उत्तम की मां की सेवा के प्रति समर्पित भावना देख कर उसने उत्तम की मां को सुझाव दिया कि क्यों न, नंदिनी को वह बहू बना कर सारी जिंदगी आराम से सेवा करवा ले| उत्तम की मां को सुझाव पसंद आया| नंदिनी से पूछने पर वह शरमा गई| फिर क्या था एक सुबह गूंज उठी शहनाई और उत्तम और नंदिनी जीवन की डोर से बंध गए| दोनों की रोशनी की तलाश खत्म हुई और जगमगाते उजाले लेकर दीवाली की वह रात आई जिसका न जाने कब से उनको इंतजार था| सारा गांव जगमगाते दिये से जगमगा उठा| नंदिनी सजधजकर आंगन में जगमगाते दिया सजा रही थी| आकाश कंदिल भी मुस्कुराकर जगमगा उठा| रंगोली उसकी रोशनी में खिल उठी| सारे घर में खुशी की लहरें दौड़ने लगीं|

 

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