नदी जोड़ परियोजना अड़ंगे

नर्मदा और क्षिप्रा को जोड़ने की पहली नदी जोड़ परियोजना म.प्र. ने साकार कर दी है| अब उत्तर प्रदेश की केन और म.प्र. की बेतवा नदी को जोड़ने की योजना है| यदि इसकी बाधाएं दूर हो गईं तो वह देश

कृत्रिम रूप से जीवनदायी नर्मदा और मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदियों      को जोड़ने के बाद केन और बेतवा नदियों को जोड़ने का सपना साकार होता दिखने लगा था, किंतु इस परियोजना में वन्य जीव समिति बड़ी बाधा के रूप में उभरी है| जबकि ये नदियां परस्पर जुड़ जाती हैं तो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखण्ड क्षेत्र में रहने वाली ७० लाख आबादी खुशहाल होगी| यही नहीं नदियों को जोड़ने का यह महाप्रयोग सफल हो जाता है तो अन्य ३० नदियों को जोड़ने का सिलसिला भी शुरू हो सकता है| नदी जोड़ों कार्यक्रम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है| इस परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाली पर्यावरण संबंधी बाधाओं को दूर कर लिया गया है| मध्य प्रदेश में जरूर अभी भी पन्ना राष्ट्रीय उद्यान बाधा बना हुआ है| वन्य जीव समिति इस परियोजना को इसलिए मंजूरी नहीं दे रही है, क्योंकि इसमें कोई राजनीतिक व्यक्ति सदस्य नहीं है, इसलिए यहां नौकरशाही हावी है| हालांकि मध्य प्रदेश और केंद्र में एक ही दल- भाजपा की सरकारें हैं, लिहाजा उम्मीद है कि आ रही बाधाएं जल्द दूर कर ली जाएंगी|

नर्मदा-क्षिप्रा जोड़ परियोजना का सफल क्रियान्वयन राष्ट्रीय नदी जोड़ो परिकल्पना की एक छोटी, किंतु बेहद अहम् कड़ी थी| भविष्य में बड़ी नदियों को जोड़ने की प्रेरणा इसी परियोजनाओं से मिली है| इस बहुप्रतिक्षित व महात्वाकांक्षी परियोजना को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प ने मूर्त रुप देने का काम किया था| इन नदियों के जुड़ने के बाद मप्र देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है, जिसने नदियों को जोड़ने का ऐतिहासिक काम किया| जो राज्य अपने राज्य में जल की बहुलता होने के बावजूद जल संकट झेल रहे हैं, वे अपने स्तर पर अपने राज्यों में इस अनूठी परिकल्पना से प्रेरित होकर राज्य की नदियों को जोड़ने के काम को आगे बढ़ा सकते हैं| क्योंकि इस परियोजना को पूरा करने के लिए केंद्र से कोई आर्थिक और तकनीकी मदद नहीं ली गई थी| इस योजना के फलीभूत होने के कारण ही उज्जैन के सिंहस्थ मेले में क्षिप्रा नदी पानी से भरी रही|

केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकल कर ४२७ किमी उत्तर की ओर बहने के बाद बांदा जिले में यमुना नदी में जाकर गिरती है| वहीं बेतवा नदी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से निकल कर ५७६ किमी बहने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिलती है| यानी ये दोनों ऐसी नदियां हैं,जो दोनों ही प्रदेशों में ज्यादा पानी बरसने पर बाढ़ और कम पानी बरसने पर सूखे का कारण बनती हैं| इस लिहाज से ये नदियां परस्पर जोड़ दी जाती हैं तो इन दोनों प्रांतों को बाढ़ और सूखे से राहत मिलने की उम्मीद बढ़ जाएगी|

केन-बेतवा नदी जोड़ो योजना की राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण एनडब्ल्यूडीए की रिपोर्ट के अनुसार डोढ़न गांव के निकट ९००० हेक्टेयर क्षेत्र में एक बांध बनाया जाएगा| इसके डूब क्षेत्र में छतरपुर जिले के बारह गांव आएंगे| इनमें पांच गांवों आंशिक रूप से और सात गांव पूर्ण रूप से डूब में आएंगे| कुल ७००० लोग प्रभावित होंगे| इन्हें विस्थापित करने में इसलिए समस्या नहीं आएगी, क्योंकि ये ग्राम जिन क्षेत्रों में आबाद हैं, वह पहले से ही वन सरंक्षण अधिनियम के तहत अधिसूचित हैं| इस कारण रहिवासियों को भूमि-स्वामी होने के बावजूद जमीन पर खेती से लेकर खरीद-बिक्री में परेशानियों का सामना करना पड़ता है| इसलिए ग्रामीण यह इलाका मुआवजा लेकर आसानी से छोड़ने को तैयार हैं| यह परियोजना बहुआयामी होगी| बांध के नीचे दो जल विद्युत संयंत्र लगाए जाएंगे| २२० किलोमीटर लंबी नहरों का जाल बिछाया जाएगा| ये नहरें छतरपुर, टीकमगढ़ और उत्तर प्रदेश के महोबा एवं झांसी जिले से गुजरेंगी| जिनसे ६०,००० हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होगी| विस्थापन और पुनर्वास के लिए २१३.११ करोड़ रुपए की आर्थिक मदद की जरूरत पड़ेेगी, जो केंद्र सरकार के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है|

डीपीआर के मुताबिक उत्तर प्रदेश को केन नदी का अतिरिक्त पानी देने के बाद मध्य प्रदेश करीब इतना ही पानी बेतवा की ऊपरी धारा से निकाल लेगा| परियोजना के दूसरे चरण में मध्य प्रदेश चार बांध बना कर रायसेन और विदिशा जिलों में नहरें बिछा कर सिंचाई के इंतजाम करेगा| इन प्रबंधनों से केन में अक्सर आने वाली बाढ़ से बर्बाद होने वाला पानी बेतवा में पहुंच कर हजारों एकड़ खेतों में फसलों को लहलहाएगा| मध्य प्रदेश का यही वह मालवा क्षेत्र है, जहां की मिट्टी उपजाऊ होने के कारण सोना उगलती है| इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो जाता है तो यही खेत साल में २ से लेकर ३ फसलें तक देने लग जाएंगे| साफ है, मालवा और सूखाग्रस्त रहने वाले बुंदेलखण्ड के ७० लाख लोगों को इस परियोजना से प्रत्यक्ष लाभ होगा| इन क्षेत्रोंं से महानागरों की ओर होने वाला पलायन भी थम जाएगा|

देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने का सपना स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद देखा गया था| इसे डॉ. मोक्षगुडंम विश्‍वेश्‍वरैया, डॉ. राममनोहर लोहिया और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसी हस्तियों का समर्थन मिलता रहा है| हालांकि परतंत्र भारत में नदियों को जोड़ने की पहली पहल ऑर्थर कॉटन ने बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में की थी| लेकिन इस माध्यम से फिरंगी हुकूमत का मकसद देश में गुलामी के शिकंजे को और मजबूत करने के साथ, बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा का दोहन भी था| क्योंकि उस समय भारत में सड़कों और रेल मार्गों की संरचना पहले चरण में थी, इसलिए अंग्रेज नदियों को जोड़ कर जल मार्ग विकसित करना चाहते थे| हालांकि आजादी के बाद १९७१-७२ में तत्कालीन केंद्रीय जल एवं ऊर्जा मंत्री तथा अभियंता डॉ. कनूरी लक्ष्मण राव ने गंगा-कावेरी को जोड़ने का प्रस्ताव भी बनाया था| राव खुद जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकारों में जल संसाधन मंत्री भी रहे थे| लेकिन जिन सरकारों में राव मंत्री रहे, उन सरकारों ने इस महत्वाकांक्षी प्रस्ताव को कभी गंभीरता से नहीं लिया, अन्यथा चालीस साल पहले ही नदी जोड़ो अभियान की बुनियाद रख दी गई होती| हालांकि इस प्रस्ताव से प्रभावित होकर प्रख्यात तमिल कवि सुब्रह्मण्यम भारती ने भी अपनी कविताओं में कामना की थी कि उत्तर भारत की पवित्र नदियों की अटूट जलराशि दक्षिण की शुष्क भूमि के लिए वरदान बने|

प्रस्तावित १२० अरब डॉलर अनुमानित खर्च की नदी परियोजना को दो हिस्सों में बांट कर अमल में लाया जाना है| एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना| दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना| प्रायद्वीप भाग में १६ नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बना कर जोड़ा जाना है| इसमें महानदी और गोदावरी को पेन्नार, कृष्णा, वैगई और कावेरी से जोड़ा जाएगा| पश्‍चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा| इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है| केरल और कर्नाटक की पश्‍चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी| यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना परियोजना का हिस्सा है| हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं| ताकि वर्षाजल इकट्ठा हो और उत्तर प्रदेश, बिहार एवं असम को भंयकर बाढ़ का सामना करने से मुक्ति  मिले| इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी| इसी क्षेत्र में कोसी, घाघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरबन, स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा|

करीब १३५०० किमी लंबी ये नदियां भारत के संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों में अठखेलियां करती हुईं मनुष्य और जीव-जगत के लिए प्रकृति का अनूठा और बहूमूल्य वरदान बनी हुई हैं| २५२८ लाख हेक्टेयर भू-खण्डों और वन प्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति ६९० घनमीटर जल है| कृषि योग्य कुल १४११ लाख हेक्टेयर भूमि में से ५४६ लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत प्रति वर्ष सिंचित की जाकर फसलों को लहलहाती हैं| यदि नदियां जुड़ जाती हैं तो सिंचित रकबा भी बढ़ेगा| मोक्षदायिनी इन नदियों से बाढ़ के हर साल पैदा होने वाले संकट से भी किसी हद तक छुटकारा मिलेगा| ऐसे हालात में बाढ़ग्रस्त नदी का पानी सूखी नदी में डाल कर जल की धारा मोड़ दी जाएगी|

पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में इस योजना को मूर्त रुप देने की योजना बनी| परंतु एक कार्यबल बनाने के सिवा वाजपेयी भी योजना का क्रियान्वयन नहीं करा सके| दरअसल, योजना के औचित्य पर इतने सवाल खड़े कर दिए थे कि इसे शुरू कर पाना संभव ही नहीं हो पाया| खासकर पर्यावरणविद् नदियों के प्राकृतिक बहाव में किसी भी तरह के कृत्रिम हस्तक्षेप के विरुद्ध थे| इसके साथ ही इस योजना के अमल में बड़ी मात्रा में धन जुटाने और भूमि अधिग्रहण जैसी चुनौतियां भी पेश आईं| इन्हीं विवादों के क्रम में यह योजना उच्चतम न्यायालय में विवाद के हल के लिए पहुंचा दी गई| अंतत: २८ फरवरी २०१२ को न्यायालय ने सरकार को नदी जोड़ो परियोजनाओं को चरणबद्ध तरीके से अमल में लाने की हरी झंडी दी| इस बाधा के दूर होने पर नर्मदा और क्षिप्रा को जोड़ने की पहली इच्छाशक्ति मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिखाई और उन्होंने तय समय-सीमा में दो नदियों को जोड़ने के स्वप्न को साकार किया| इसके बाद मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के भूगोल में बहने वाली केन और बेतवा नदियों को जोड़ने पर सहमति बनी| दोनों प्रदेशों के बीच आने वाली बाधाएं लगभग दूर हो गई हैं| किंतु पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के बीच में आने से वन्य जीव समिति इसमें बड़ी बाधा बन रही हैं| केंद्र सरकार को जरूरत है कि वह इसमें हस्तक्षेप कर बाधा तो दूर करे ही, इसमें राजनैतिक व्यक्तियों को सदस्य बना कर इसके चरित्र को बहुलतावादी रूप दे, जिससे इसमें व्याप्त नौकरशाही पर अंकुश लगे और समिति का मानवतावादी स्वरूप सामने आए|

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