जन सहयोग से सूखा लातूर ‘जलयुक्त’ बना

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महाराष्ट्र के मराठवाड़ा संभाग के लातूर शहर ने भूकम्प और सूखा इन दोनों संकटों का सामना किया है। यहां तक कि पिछले वर्ष लातूर में ट्रेन से पानी लाकर लोगों की प्यास बुझानी पड़ी। इससे सचेत होकर लातूर के सूज्ञ नागरिकों ने जन सहयोग से ऐसा चमत्कार करवाया कि मांजरा नदी लबालब भर गई। प्रस्तुत है इस परियोजना के बारे में श्री अशोक कुकडे (वरिष्ठ संघ स्वयंसेवक) से हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश, जो सूखाग्रस्त गांवों के लिए पथ प्रदर्शक होंगे।

खिलता कमल

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देश में ४ फरवरी से लेकर ८ मार्च तक लोकतंत्र तक सब से बड़ा उत्सव होने जा रहा है। सब से बड़ा उत्सव इसलिए कि देश के लगभग २० फीसदी मतदाता पांच राज्यों में हो रहे इन विधान सभा चुनावों में अपने प्रतिनिधि चुनेंगे। मतदाताओं की संख्या कुल १६.८ करोड़ होगी। कुल ६९० स

रोमांचक हृदय स्थली मध्यप्रदेश

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      मध्यप्रदेश भारत के बीचोबीच होने के कारण इसे ‘भारत का हृदय’ कहा जाता है| क्षेत्रफल के हिसाब से यह भारत के दूसरे क्रमांक का राज्य है| कुल ५१ जिले इस राज्य के अंतर्गत आते हैं| मध्यप्रदेश की राजधानी ‘भोपाल’ है|

मानवीय अतिक्रमण से जंगलों को हानि

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जो ‘जंगलधन’ चला गया है उस पर अफसोस करने से कोई लाभ नहीं होगा| नया जंगल पनपे इसलिए अपनी ओर से पौंधे लगाना शुरू कर दें| इससे फिर जंगल पनपेंगे| हमें ‘पौधा लगाओ, हरियाली बचाओ’ नारे पर अमल करना होगा| पर्यावरण की रक्षा में यह अहम् भूमिका अदा करेगा|

पेड़-पौधे सुंदर घर की पहचान

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वैसे तो हर कोई चाहता है कि, उसका घर सुंदर लगे, और आने  जाने वालों के लिए मिसाल बने| लेकिन घर को सुंदर सजा संवार कर रखना कोई आसान बात तो नहीं| आजकल कोई फेंगशुई के सामान से घर को सजाता है, तो कोई चायनीज सजावटी सामान से| कोई मिट्टी के बर्तनों से तो कोई विविध कांच के झूमर और शो पीस से|

जैव विविधता

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सन १९८५-९० के दौरान प्रचलित शब्द ‘जैव विविधता’ का     अभिप्राय है, ‘पृथ्वी पर परिलक्षित विविध प्रकार के प्राणी, पौधे और परिस्थितिक चक्र एवं मानव में पारम्परिक विभिन्नता, उनके आकार-प्रकार, व्यवहार, जीवन-चक्र और प्रकृति में उनका योगदान|’ यह जैव विविधता करोड़ों- अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के निरंतर विकास-प्रक्रिया का प्रतिफलन है|

प्रदूषण के कारण नष्ट हो रहीं जैविक प्रजातियां

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प्रदूषण आज  की एक गंभीर समस्या है| इसकी चपेट में मानव-  समुदाय ही नहीं, समस्त जीव-समुदाय आ गया है| इसके दुष्प्रभाव चारों ओर दिखाई दे रहे हैं|

पर्वतारोही द्वारा भोजवृक्षों को जीवनदान

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पर्वतारोहियों के लिए पहाड़ भले ही फतह करके वाहवाही लूटने  का माध्यम हों, लेकिन उत्तराखंड की पर्वतारोही डॉ. हर्षवंती बिष्ट के लिए वे हर परिस्थिति में संरक्षित करने की प्रकृति प्रदत्त संपदा हैं|

पर्यावरण और वनवासी सहजीवन की मिसाल

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पर्यावरण की व्याख्या व्यापक है| संक्षेप में हम कह सकते हैं कि  हम अपनी सभी इंद्रियों- तात्पर्य ज्ञानेंद्रियों, कर्मेद्रियों और अंत:करण (मन, बुध्दि, चित्त, अहंकार) - से जो भी अनुभव, अनुभूति लेते हैं वह सभी पर्यावरण का ही घटक है|

भारतीय चिंतन में पर्यावरण

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प्रदूषण वर्तमान समय का एक विकराल समस्याकारी शब्द है| विश्व की संभवतः यह एकमात्र ऐसी समस्या है जिसका किसी क्षेत्र, जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि से सम्बंध नहीं है| यह समस्या आज समूचे विश्व को जैसे लील लेने को उद्युक्त दिखती है| आजकल समूचे विश्व में पर्यावरण की चर्चा करना एक नया फैशन बन गया है|

नदी जोड़ योजनाओं पर अमल आवश्यक

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     जब पहली बार यह चेतावनी दुनिया के सामने आई कि अगला  विश्‍वयुद्ध पानी के मुद्दे पर लड़ा जाएगा तो ज्यादातर लोगों ने या तो इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया या फिर उसे हंसी में उड़ा दिया| लेकिन आज हम देख रहे हैं कि हालात ठीक उसी दिशा में जा रहे हैं जिस दिशा में उनके जाने का संकेत वर्षों पहले दुनिया को मिल चुका है|

नदी जोड़ परियोजना अड़ंगे

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नर्मदा और क्षिप्रा को जोड़ने की पहली नदी जोड़ परियोजना म.प्र. ने साकार कर दी है| अब उत्तर प्रदेश की केन और म.प्र. की बेतवा नदी को जोड़ने की योजना है| यदि इसकी बाधाएं दूर हो गईं तो वह देश

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