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कचरे का करिश्मा

कचरे का करिश्मा

by डॉ. सुषमा श्रीराव
in सामाजिक, स्वच्छ भारत अभियान पर्यावरण विशेषांक -२०१८
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घर में निकलने वाले गीले कचरे से घर में ही कम्पोस्ट बनाई जा सकती है| इससे न केवल घरेलू कचरे की समस्या दूर हो जाएगी, बल्कि बड़े पैमाने पर करें तो लाभ भी होगा|

भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान देश भर में व्यापक तौर पर राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में शुरू किया गया है| सरकारी कर्मचारियों से लेकर उद्योगपतियों तक और बॉलीवुड अभिनेताओं से लेकर सामान्य जन तक सभी ने इस कार्य के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है| फिर महिलाएं सिर्फ रसोई की स्वच्छता तक सीमित क्यों रहें? अगर वे चाहें तो कचरे से भी करिश्मा कर सकती हैं|

कल सुबह घर से खुशी खुशी निकली थी, कि मेरे सामने कूड़ा करकट लेकर जाने वाली गाड़ी जाती दिखी| ट्रैफिक की वजह से काफी दूर तक हम साथ-साथ थे| कचरे से निकलने वाली बदबू से सिर भारी तो हुआ ही खुशी भी काफूर हो गई| कचरे की गाड़ी काला धुआं भी बहुत छोड़ रही थी| सोचिए यह बदबू और धुआं कितना प्रदूषण फैलाता होगा, वह भी रोज|

क्या आप जानते हैं,  अकेले मुंबई शहर में ४ हजार से ६ हजार टन कचरा रोज जमा होता हैं?

 कैसे होता है, कचरे का निपटान

* खुली जगह पर डाला जाता है|

* जलाया जाता है|

* रिसायकिल (पुन:उपयोग के लिए प्रक्रिया) किया जाता है|

होनेवाला नुकसान

* खुली जगहों पर कचरा डालने से स्वास्थ्य हानि होती है|

* इससे प्रदूषण फैलता है| यही सब कचरा जलाने और रिसायकिल करने से होता है|

* कचरे के सड़ने से जो रिसाव होता है, वह जमीन के अंदर जाता है और उसके उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाता है|

* कचरे और गंदगी से शहर का सौंदर्य भी बाधित होता है|

अब समस्या यह है कि इस कूड़ा करकट का क्या करें? उपाय है और वह भी बहुत सरल| यदि इसकी कम्पोस्ट खाद बनाई जाए तो सारी समस्या हल हो जाएगी|

इस कार्य के लिए महिलाओं को आगे आना होगा| जिस तरह वह रसोई की स्वच्छता और घर के अन्य कार्यो का व्यवस्थापन करती हैं उसी तरह कम्पोस्ट खाद बनाकर कचरे का व्यवस्थापन करके अपने आसपास का परिसर स्वच्छ रखने में अपना योगदान दे सकती हैं|

जैसा कि हम जानते हैं, घरों में २ तरह का कचरा होता है| एक सूखा कचरा और दूसरा गीला कचरा| यह कचरा अलग-अलग जमा करना अब तो अनिवार्य कर दिया गया है| रास्तों पर, सड़कों के किनारे, इस तरह लिखे हुए अलग-अलग कूडेदान होते हैं| पर मुश्किल यह है कि हम उनको प्रयोग ठीक तरह से करना ही नहीं चाहते परंतु हमें अपनी यह आदत बदलनी होगी|

आइए देखें कि सरलता से घर में, सोसायटी में या फिर छोटी बस्तियों में किस तरह कम्पोस्ट खाद बनाई जाती है| इसे बनाना इतना आसान है कि आप घर की बालकनी में ही २-३ गमले रखकर इसे बना सकते हैं|

कचरे का वैज्ञानिक वर्गीकरण

१. गीला कचरा या बायोडिग्रेडेबल वेस्टः  इसमें अन्न पदार्थ, हरी सब्जियों की डंडियां, फलों और सब्जियों के छिलके, सूखी पत्तियां, घास आदि यह आसानी से सड़ जाता है| इसी से कम्पोस्ट खाद बनती है|

२. सूखा कचरा या नॉनबायोडिग्रेडेबल वेस्टः इसमें प्लास्टिक, कांच, कागज जैसी चीजें आती हैं| इन्हें आसानी से सड़ाया नहीं जा सकता| इनसे कंपोस्ट खाद नहीं बनती|

कंपोस्ट खाद बड़े पैमाने पर बनाने के लिए

इसके लिए एक चौरस मीटर गड्ढा बना लें| चारों ओर तीन फुट ऊंची दीवार बनाएं| सबसे नीचे ईटों के टुकड़े और चूने के मिश्रण की २-२ इंच मोटी परत डालें| इस पर ५-६ इच मोटी मिट्टी की तह बिछाएं| इस पर २-३ इंच मोटी ‘‘वर्मीपोस्ट कल्चर’’ की परत डालें| यह बाजार में मिलता है| (इसमें केचुओं के अंडे होते हैं,  जिसमें से छह हफ्ते में छोटे केंचुए निकलते हैं)| उस पर सूखा कचरा जैसे सूखे पत्ते, घास आदि ३-४ इंच बिछा दें|  इसमें नियमित रूप से थोड़ा-थोड़ा पानी छिड़कते रहें| छह हफ्ते बाद गीला कचरा डालना शुरू करें| ऊपर जाली का ढक्कन रखें|

 घर में बनाने के लिए

यदि गमले में खाद बनानी हो, तो ३-४ गमले, ४-५ सदस्यों के एक परिवार में सामान्यत: आधा किलो कचरा रोज मिल जाता है| ऊपर बताई विधि अनुसार एक-एक परत जमाती जाएं| चार पांच महीने में खाद तैयार होती जाती है|

इसकी विशेषता यह है कि यह एकदम काली भुरभुरी होती है और इसमें से बदबू नहीं आती| पहले छोटे पैमाने पर शुरू करें, अनुभव हो जाने पर बड़े पैमाने पर बनाएं|

 अनेक फायदे

* ट्रक से कचरा ले जाते समय और इसे खुली जगह डालने से होने वाले प्रदूषण और बीमारियों से बचाव हो सकता है|

* अभी हमें खेतों के लिए रासायनिक खाद बनानी पड़ती है,  उसका खर्च भी कम हो जाएगा, इस खाद से होने वाले दुष्परिणाम से भी बच जाएंगे|

* होटलों में यह प्रकल्प अवश्य शुरू करना चाहिए| वहां बहुत अधिक मात्रा में खाना बच जाता है, उसका सदुपयोग हो सकेगा|

* होटलों के अपने लॉन, बगीचे और पेड़ पौधे होते हैं| लॉन की कटी घास और पेड़ों की कटी बारीक टहनियां फेंकने की बजाय इनसे कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है|

* यही खाद पुन: बगीचों और पेड़ पौधों में डाली जा सकती है| इससे खाद भी मुफ्त में मिल जाएगी और कचरे की समस्या भी हल हो जाएगी|

* इसे एक व्यवसाय की तरह विकसित करके काफी कमाई की जा सकती है| बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में महिलाए स्वयं रोजगार मदद ग्रुप बनाकर कम्पोस्ट खाद का उत्पादन कर रही हैं और घरेलू मोर्चे के साथ-साथ आर्थिक मोर्चा भी संभाल रही हैं|

* इसमें कृषि विकास योजना के अंतर्गत अनुदान भी देय है|

क्या आप जानते हैं? जमीन से ७० लाख टन जैविक पदार्थ हर साल कम हो जाते हैं और अनेक वर्षों तक इनकी पूर्ति नहीं होती| यदि हम ३५ शहरों का कचरा इकट्टा कर उसकी कपोस्ट खाद बनाए तो हर साल घटने वाले जैविक पदार्थों की कमी पूरी हो सकती है|

यदि हम ऐसा करने का निश्‍चय कर लें तो स्वच्छता, पर्यावरण और ऊर्जा सरंक्षण में, यह हमारा छोटा सा परंतु महत्वपूर्ण योगदान होगा|

 

डॉ. सुषमा श्रीराव

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