शून्य कचरा घर

कचरा वर्गीकरण एवं उसका निपटान कर हम हमारे घरों-बिल्डिंग के कचरे को जमीन में दबाने हेतु भेजने का प्रमाण शून्य पर ला सकते हैं| यदि हम सभी इसका पालन करें तो स्वच्छ भारत का स्वप्न हम निश्‍चित पूर्ण कर सकेंगे|

वर्तमान युग में हमारी प्रत्येक कृति एक नए प्रकार के कचरे को जन्म देती है| साधारणत: बीस वर्ष पूर्व से बढ़ता हुआ प्लास्टिक का उपयोग, तकनीकि ज्ञान में बड़े पैमाने पर बदल, बदलती हुई जीवन शैली, इन सबके कारण नए-नए प्रकार का कचरा तयार हो रहा है| इसके कारण अनेक प्रकार की समस्याएं निर्माण हो रही हैं| कुछ समस्याएं तो हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं, परंतु कुछ हमारी समझ से परे होती हैं|

भारत में प्रति व्यक्ति अनुमानत: २०० से ६०० ग्राम कचरा रोज निर्मित होता है| ग्रामीण क्षेत्र में इसका प्रमाण २०० से ३०० ग्राम तो शहरी क्षेत्र में ४०० से ६०० ग्राम होता है| इस गणना से महाराष्ट्र के पांच प्रमुख शहरों के कचरे का परिमाण निम्नानुसार है-

मुंबई – ९००० टन प्रति दिन

ठाणे – १२०० टन प्रति दिन

पुणे – १७०० टन प्रति दिन

नाशिक- ८०० टन प्रति दिन

नवी मुंबई, कल्याण-डोंबिवली- ७०० से ९०० टन प्रति दिन

शेष सभी महानगर पालिकाएं-अंदाजन ४०० से ७०० टन प्रत्येक

वर्तमान व्यवस्था के अनुसार सभी कचरा जमीन में दबा दिया जाता है| इसके लिए बड़े पैमाने पर स्थान की आवश्यकता होती है| सभी शहरों में स्थान एक बड़ी समस्या है| जगहों के बढ़े हुए भाव, जगह की कमी एवं जगह उपलब्ध न होने के कारण कचरे के बड़े बड़े टीले खड़े हो जाते हैं जो स्वास्थ की समस्या, हवा एवं पानी में प्रदूषण पैदा करते हैं| इन सबका परिणाम पर्यावरण पर एवं मानव स्वास्थ पर होता है| महानगर पालिकाएं साधारणत: ५००/- से १०००/- प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष के हिसाब से कचरा व्यवस्थापन पर खर्च करती हैं| फिर भी पूरे समाधान पर उत्तर प्राप्त होना अभी भी बाकी है|

इसका प्रमुख कारण यानी समाज में कचरे के विषय में जानकारी का अभाव एवं समस्या के प्रति उदासीनता| हमारी केवल एक कृति से हम इस खर्च का आधा बचा सकते हैं जिससे वह अन्य उपयुक्त जगह पर खर्च हो सके| हमारे घर का कचरा डिपो पर जाए ही नहीं, इसके लिए हम हमारे घर, इमारत में सरल प्रयत्न कर सकते हैं, जिससे हमारा घर, इमारत शून्य कचरा घर, इमारत हो सकती है| ऐसे ही कुछ प्रयासों की जानकारी हम आज प्राप्त करने जा रहे हैं|

शून्य कचरा मुहिम का एक महत्वपूर्ण घटक यानी कचरे का योग्य एवं उसी स्थान पर वर्गीकरण| इसमें मुख्यता गीला, सूखा एवं घातक कचरा के तौर पर वर्गीकरण किया जा सकता है| एक बार यदि हमने अपने घर में ही इस प्रकार कचरा वर्गीकृत कर लिया तो उस पर की जाने वाली प्रक्रिया सरल हो जाती है| इस विषय में अधिक जानकारी निम्मानुसार है|

१.गीला कचरा:- हमारे घरों में जो कचरा निकलता उसमें से करीब ५० से ६० प्रतिशत कचरा गीला होता है| वह यदि अलग किया गया एवं उसका निपटान घर में ही कर दिया गया तो उसके ले जाने पर जो खर्च आता है उसमें ५०% की बचत हो सकती है| गीला कचरा सरल प्रक्रिया के माध्यम से अच्छे खाद के रुप में परिवर्तित किया जा सकता है| इस खाद का उपयोग हमारे घर के बगीचे में किया जा सकता है| इस खाद के द्वारा घर में सब्जियां भी उगाई जा सकती है जिससे घर खर्च में प्रत्यक्ष बचत हो सकती है|

२.सूखा कचराः- इस कचरे में अनेक प्रकार की चीजें शामिल होती हैं जैसे कागज, प्लास्टिक, धातु की वस्तुएं, कपड़ा, कांच, रबर इत्यादि| ये चीजें अलग कर प्रति हफ्ते, प्रति माह रद्दी सामान खरीदने वाले कबाड़ी को बेच सकते हैं जिससे उसका उचित उपयोग तथा  निपटान हो सके एवं हमें कुछ अर्थ प्रप्ति भी हो सकती है| परंतु यदि ये सब वस्तुएं गीले कचरे के साथ एकत्रित की जाएं तो फिर न गीले कचरे का और न ही सूखे कचरे का उपयोग हो सकता है और उसे जमीन में गाड़ना ही पड़ता है|

इसके अतिरिक्त सूखे कचरे में डाली जाने वाली एक और घातक वस्तु यानी सेनिटरी नेपकिन, डायपर एवं उपयोग किए गए कंडोम इत्यादि हैं| इन्हें अलग कागज में लपेट कर सूखे कचरे में डालना चाहिए जिससे वे अन्य कचरे में नहीं मिले|

३.घातक कचरा:- इसमें उपयोग किए जा चुके सेल, निरुपयोगी एवं अवधि समाप्त दवाइयां, इंजेक्शन, इंजेक्शन की सुइया एवं ई कचरे का समावेश है| यह कचरा घातक होने के कारण इसे अलग से इकट्ठा कर निपटान हेतु किसी सरकारी एजेन्सी को सौंपना ही अच्छा होगा|

इस रोज के कचरे के साथ ही, नैमित्तिक कचरा भी घर, इमारत में तैयार होता रहता है| उसका योग्य विचार कर एवं उसे योग्य जगह देकर उसका उचित निपटान संभव है| ऐसा कचरा निम्नांकित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है|

ई-कचरा:-बदलती तकनीक, कालानुरूप आवश्यक उपकरणों का हम सतत उपयोग करते रहते हैं और उसे अपडेट करते रहते हैं| इसके कारण पुराने उपकरण चालू होते हुए भी बदलता पड़ता है|  उदा:-टी. वी., ट्यूब लाइट, इत्यादि|  इसके कारण ये सभी इलेक्ट्रानिक वस्तुएं ई-कचरे के रूप में घर से बाहर निकाल दी जाती हैं| भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन १० किलो ई-कचरा तैयार होता है| अर्थात संपूर्ण भारत में ८ लाख टन ई-कचरा तैयार होता है| इसमें से मुंबई में २५००० टन एवं पुणे १०००० टन कचरे का निर्मण होता है| यदि इस कचरे का निपटान योग्य तरीके से नहीं किया गया तो इससे हवा, पानी एवं जमीन में प्रदूषण फैलता है| यह न हो इसलिए भारत सरकार के ई- कचरा नियम २०१६ के अनुसार ऐसा कचरा शासन से मान्यता प्राप्त संस्था के पास जमा करना अनिवार्य है| यह नियम सभी संस्थाओं एवं व्यक्तियों पर लागू है| इसके कारण इस कचरे का योग्य पद्धति से निपटान होना संभव होगा| पुणे में पूर्णम इको विजन फाउंडेशन संस्था की ओर से २२ साप्ताहिक ई-कचरा संकलन केंद्र चलाए जाते हैं|

२.कपड़े:- वर्तमान में देश में कपड़ा खरीदी का परिमाण प्रति व्यक्ति प्रति माह एक जोड़ी है| इसके कारण प्रत्येक वर्ष उपयोग से बाहर किए गए कपड़ों का परिमाण भी उतना ही है| पुराने कपड़ों का क्या करें यह सर्वसामान्य लोगों के सामने प्रश्‍न उठता है| कई शहरों में कई संस्थाएं इस हेतु काम करती हैं| वे इस प्रकार के पुराने कपड़ों को इकट्ठा कर जिन लोगों को उनकी आवश्यकता है, उन तक पहुंचाती हैं|

३. चप्पल-जूते:- अलग-अलग मौसमों के चप्पल-जूते एक अगल प्रकार का कचरा इकठ्ठा करते हैं| उनका निपटान करने हेतु कुछ संस्थाएं या पुराना सामान खरीदने वाले हैं| ग्रीनसोल संस्था ऐसे चप्पल-जूते जिन्हें आवश्यक हैं ऐसे लोगों तक पहुंचाने का कार्य करती है|

इस प्रकार कचरा वर्गीकरण एवं उसका निपटान कर हम हमारे घरों-बिल्डिंग के कचरे को जमीन में दबाने हेतु भेजने का प्रमाण शून्य पर ला सकते हैं| यदि हम सभी इसका पालन करें तो स्वच्छ भारत का स्वप्न हम निश्‍चित पूर्ण कर सकेंगे| आवश्यकता है कचरा वर्गीकरण हेतु प्रत्येक व्यक्ति के एक कदम आगे बढ़ाने की!

Leave a Reply