हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अंधेरी से त्रिपुरा वाया दिल्ली सुनील देवधर

अंधेरी से त्रिपुरा वाया दिल्ली सुनील देवधर

by दिनेश कानजी
in अप्रैल २०१८, व्यक्तित्व, सामाजिक
0

त्रिपुरा विजय के शिल्पकार सुनील देवधर की खासियत यह है कि जब किसी काम में जुट जाते हैं तो उसमें अपने को पूरी तरह झोंक देते हैं। रात्रि में देर तक बातचीत-वार्ताएं, महज चार घंटों की नींद, सतत प्रवास, जनसंपर्क, प्रवास में नींद पूरी करने की आदत, आसपास अपने कार्य हेतु आए लोगों का जमावड़ा, घर में हमेशा कार्यकर्ताओं एवं अभ्यागतों का आनाजाना श्री देवधर जी की विशेषता है। उन्हें ये बातें ऊर्जा देने का काम करती हैं।

त्रिपुरा की जीत के बाद सुनील देवधर का डंका देश भर में बज रहा है। अंधेरी (मुंबई) के मध्यमवर्गीय परिवार के एक तरुण से लेकर त्रिपुरा के मजबूत लाल गढ़ को ध्वस्त करने वाले भाजपा नेता के रूप में सुनील देवधर की यात्रा वास्तव में लोमहर्षक है। रा.स्व. संघ का पारस-स्पर्श क्या चमत्कार कर सकता है, इसका जीवंत उदाहरण है सुनील देवधर।

प्रत्येक प्रेरणा विजय ही से नहीं मिलती, बल्कि कुछ पराजय भी प्रेरणादायी होते हैं। देवधर जी को भी ऐसी ही प्रेरणा मिली थी। किस्सा सन 1984 का है। इंदिरा गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद हुए आम चुनाव में भाजपा की भारी पराजय हुई थी। कांग्रेस के प्रवाह में विरोधी पक्ष बह गए। भाजपा के केवल 2 ही सांसद चुनकर आए। चुनाव परिणाम से देश भर के दक्षिणपंथियों में घोर निराशा व्याप्त हो गई थी। अनेक लोगों को यह दारुण पराभव कांटे के समान चुभ रहा था। भवन्स कॉलेज के बी.एससी. द्वितीय वर्ष के छात्र सुनील देवधर भी उनमें से एक थे।

सुनील के पिता वि. ना. देवधर (दादा) एक वरिष्ठ पत्रकार थे एवं संघ विचारों के कट्टर पुरस्कर्ता थे। इस कारण घर का वातावरण संघमय था। यद्यपि सुनील देवधर संघ शाखा में नहीं जाते थे फिर भी संघ से उनका अच्छा परिचय था। लोकसभा चुनाव की हार उन्हें अस्वस्थ कर रही थी। परंतु वे हार से निराश होकर हाथ मलते हुए बैठने वालों में से नहीं थे। पिता से चर्चा करते समय इस प्रकार से जनादेश देने वाली जनता को वे कोस रहे थे। पिता ने उन्हें तुरंत रोका क्या, डांटा भी। पिता ने पूछा, जनादेश को गलत या सही ठहराने वाले हम कौन? जनता द्वारा मतपेटी के माध्यम से दिए गए निर्णय को यदि तुम गलत मानते हो तो जनता का वोट योग्य दिशा में बने इसके लिए तुमने क्या किया?

इसी मनःस्थिति में संघ के सक्रिय कार्यकर्ता श्री किशोर बढेकर से उनकी मुलाकात हुई। एक बार किशोर जी देवधर जी को संभाजीनगर सायं शाखा में ले गए। किशोर जी ने उनसे बिना पूछे घोषित कर दिया कि आज अपनी शाखा में मेहमान आए हैं एवं वे आपको कहानी सुनाएंगे। एक प्रकार की इस फुलटास गेंद पर देवधर जी ने भी खूब छक्का लगाया। शाखा के स्वयंसेवकों को जरासंध की कहानी सुनाई। बच्चों को कहानी बहुत पसंद आई। शाखा समाप्त होने के बाद बच्चों ने प्रश्न किया, शिक्षक जी कल कौनसी कहानी सुनाएंगे? देवधरजी का कहना है कि बच्चों का यह आग्रह ही उनका शाखा में रोज जाने का कारण बना।

मोहन अय्यर संघ के नित्यानंद मंडल के कार्यकर्ता थे। सुनील एवं मोहन जी नित्यानंद नगर की एक ही इमारत में रहते थे। मोहन जी देवधर जी से उम्र में बड़े थे, परंतु फिर भी दोनों में अच्छी मित्रता थी। सुनील बीच-बीच में शाखा में जाने लगा है यह उनके ध्यान में आया। उन्होंने सुनील को संभाजी सायं शाखा की जवाबदारी दी।

अंधेरी स्टेशन के पास की संभाजी शाखा देवधर जी के जीवन का टर्निंग प्वाइंट सिद्ध हुई। उनका स्वभाव था कि या तो देखें ही नहीं या मैदान में उतरने का निश्चय कर ही लिया तो त्वरित गति से काम में जुट जाना है। इस कारण सायं शाखा का काम भी उन्होंने उसी तत्परता से शुरू किया। उस समय शाखा की उपस्थिति 100 से ऊपर रहा करती थी। जायंट रोबो नाम का सीरियल उस समय बच्चों में खूब लोकप्रिय था। इसके कारण गुरुवार को शाखा में उपस्थिति कम रहने लगी। यह ध्यान में आते ही देवधर जी ने शरलाक होम्स की कथाएं सुनानी शुरू कीं। कहानी का एक भाग सुनाना एवं उसे ऐसे मोड़ पर छोड़ देना जिससे बच्चों की उत्कंठा बढ़े। यह प्रयोग अति सफल रहा। स्वयंसेवक नए शिक्षक से मोहित थे। संभाजी नगर बहुत बड़ी झोपडपट्टी थी परंतु देवधर जी का संपर्क प्रत्येक घर से था। नित्यानंद नगर के उनके घर में बस्ती के कार्यकर्ता हमेशा आते रहते थे। चाय, नाश्ता, भोजन का कार्यक्राम चलता ही रहता था। व्यापक संपर्क के कारण देवधर जी का घर शक्ति केन्द्र में परिणित हो गया। साठे कॉलेज, डहाणुकर, भवन्स आदि कॉलेजों में चुनाव होते थे। उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के विद्यार्थी नेता हमेशा उनसे मिलने आते रहते थे। ‘हर मैदान बने संघ स्थान’ यह उपक्रम देवधर जी ने नित्यानंद मंडल में प्रारंभ किया। तरुणों के साथ संपर्क बढ़ाने हेतु वाचनालय एवं क्लासेस की शुरुआत की। मिलिंद जोशी के आशीर्वाद बंगले की छत पर वाचनालय प्रांरभ किया गया।

सन 1985 में वि. न. देवधर के यहां सरसंघचालक बालासाहेब देवरस आए थे। सुनील के बड़े भाई आनंद का उसी समय विवाह हुआ था। अतः नवदंपत्ति को आशीर्वाद देने हेतु वे आए थे। देवधर जी ने वाचनालय एवं क्लासेस चलाने वाले तरुणों का परिचय बालासाहेब से कराया। पूजनीय सरसंघचालकजी ने इस सेवा कार्य की बहुत प्रशंसा की। उस वर्ष के अकोला में हुए संघ शिक्षा वर्ग (द्वितीय वर्ष) के कार्यक्रम में उन्होंने अंधेरी से आए हुए स्वयंसेवक विलास शिंदे से अंधेरी के इस सेवा कार्य की जानकारी तरुणों को देने हेतु कहा। मोहन अय्यर एवं अशोक तेंडोलकर जैसे नगर स्तर पर कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन में देवधर जी संघ कार्य में आगे बढ़ रहे थे।

नब्बे के दशक के प्रारंभ में पूरे देश में राम मंदिर आंदोलन की धूम थी। रामशिला पूजन के कार्यक्रम अंधेरी पूर्व के इलाके में देवधर जी ने पूरे धूमधाम से संपन्न कराए। 86 स्थानों पर उन्होंने शिला पूजन के कार्यक्रम संपन्न कराए। पहली कार सेवा में भी उन्होंने भाग लिया।

27 जुलाई 1991 को सुनील देवधर ने प्रचारक जीवन प्रांरभ किया। महाराष्ट्र का विकल्प होने के बावजूद भी उन्होंने तुलनात्मक रूप से कठिन पूर्वोत्तर भारत का चुनाव किया। दादर-गुवाहाटी एक्सप्रेस से वे पूर्वोत्तर भारत पहुंचे। प्रांत प्रचार प्रमुख मुकुंदराव पणशीकर की श्री देवधरजी की लीक से हट कर काम करने की पद्धति का पता था। उन्हें मेघालय में इसी प्रकार के प्रचारक की आवश्यकता थी। संघ ने देवधर जी को मेघालय रवाना कर दिया। इस प्रांत में बंगाली एवं मारवाड़ी निवासियों में संघ की पैठ हो चुकी थी। वनवासियों की दृष्टि में वे बाहरी थे, उनकी पहुंच भी वनवासियों में नहीं थी। लाबान नांग थू माई के संघ कार्यालय में देवधरजी ने नए-नए प्रयोग करने प्रांरभ किए। संघ कार्यलय में पोहा, हलुआ, खिचड़ी इत्यादि बनाना प्रारंभ किया। वे कार्यालय के अगल-बगल के बच्चों को बुलाते थे एवं उन्हें ये सभी पदार्थ खाने को देते थे। मई माह में कम से कम एक बार आमरस-पुड़ी बनाने एवं खिलाने का कार्यक्रम होता था। देवधरजी जानते थे कि ‘हृदय में स्थान बनाने का मार्ग पेट से होकर जाता है’। साथ-साथ भोजन करने से व्यक्ति और पास आता है, यह अनुभव होने के कारण उन्होंने वनवासियों के घर जाकर सूअर का मांस खाना प्रारंभ किया। वनवासी क्षेत्र में काम करने का एक रोल माडल ही पहले उन्होंने विकसित किया।

प्रचारक के रूप में काम करते हुए उन्होंने अनेक बार लीक से हट कर कार्य किया। जीन्स, टी शर्ट पहन कर एवं हाथ में डिजिटल टेलीफोन डायरी उपयोग करने वाला प्रचारक लोगों के लिए नया ही था। लीक से बाहर जाने पर उन्होंने अनेकों की नाराजगी भी झेली। परंतु उद्देश्य केवल एक ही था, व्यक्तियों को जोड़ना। मेघालय में हिंदी सिनेमा का क्रेज बहुत ज्यादा है। यह ध्यान में आने पर खासी समुदाय के 10-12 युवकों के साथ वे महीने में एक-दो बार सिनेमा देखने भी जाया करते थे। इसके लिए पैसे वे स्वतः के खर्च करते थे। इस तरह के अलग-अलग प्रयोग सफल होने लगे। मेघालय के खासी समुदाय में देवधर  नाम न केवल लोकप्रिय होने लगा वरन आतंकवादियों को भी उनका डर लगने लगा। मेघालय छोड़ कर चले जाने की धमकियां मिलने लगीं। डर लगा परंतु जीवटता ने  उस पर मात की। कठिन समय में पिता की सलाह लेना यह निश्चित था। मेघालय में धमकियां मिलने के बाद भी उन्होंने पिता से सलाह ली। पिता ने उन्हें वापसी की राह न दिखा कर वहीं जीवटता से खड़ेे डटे रह कर पैठ जमाने की सलाह दी। देवधर जी ने आठ वर्ष प्रचारक के रूप में मेघालय में कार्य किया। जब वे लौट कर गुवाहाटी आए तो 3 बस भर कर खासी बंधु उन्हें बिदा करने आए थे।

किसी काम में इससे अच्छा और क्या हो सकता है?

आगे दो वर्षों तक नगर जिले में प्रचारक रहे। पूर्वोत्तर भारत में वनवासी बच्चों के लिए दोसल शुरु करने हेतु राज्य भर का सघन दौरा किया। पूर्वोत्तर भारत विषय में हजार से अधिक भाषण दिए।

प्रचारक कार्य से वापस आने पर जीवन-यापन का प्रश्न तो था ही।  यहां भी श्री मोहन अय्यर उनकी मदद हेतु आगे आए। उनका अय्यर क्लासेस अंधेरी में काफी लोकप्रिय था। सुनील हेतु उन्होंने अय्यर स्कूल अकादमी प्रारंभ की। 4 विद्यार्थियों से प्रारंभ यह संस्था तीन वर्षों में ही 100 के आकड़े तक  पहुंच गई। परंतु क्लासेस के कारण ‘मैं अंधेरी में ही फंस कर रह गया हूं’, यह टीस उनके मन में उठती रही। उन्होंने मोहन अय्यर जी से यह बात साझा की। सुनील जी को तो देश भर में कार्य करना था। मोहन अय्यर जी कहते हैं, जब देवधर जी के पास कुछ भी नहीं था उस समय भी उनके मन में देशव्यापी काम का विचार था। अय्यर जी के ध्यान में आया कि इसमें देश भर में कार्य करने की ललक है और इसे अब कोई नहीं रोक सकता। अय्यर जी ने भी बिना ना-नुकुर के उन्हें अनुमति दी। यदि देश के लिए काम करना है तो मेरे रोकने का कोई प्रश्न ही नहीं है, यह कह कर उन्होंने देवधर जी का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

2005 में माय होम इंडिया नामक संस्था की स्थापना कर देवधर जी ने अपने देशव्यापी काम का प्रांरभ किया। पूर्वोत्तर भारत से रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ एवं पर्यटन हेतु आने वाले तरुणों के लिए शेंब देय में काम प्रारंभ किया। नितीन गड़करी जब भाजपा के अध्यक्ष बने तब उन्होंने देवधर जी का यह कार्य देख कर उन्हें भाजपा के नार्थ-ईस्ट सेल की जवाबदारी सौंपी। यह प्रकोष्ठ पहली बार ही बनाया गया था। देवधर जी के अंधेरी में रहने वाले मित्र श्री राजेश शर्मा ने इसके लिए श्री गड़करी से पैरवी की थी। किसी भी राजनीतिक दल में ऐसे प्रकोष्ठ तो और कहीं पद न मिलने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं की आरामगाह होती हैं। परंतु देवधर जी ने पूर्वोत्तर में इस अवसर का लाभ उठा कर, कार्यकर्ताओं का जाल बुनना प्रारंभ किया। भाजपा के दिल्ली स्थित अशोक रोड कार्यालय में पूर्वोत्तर के कार्यकर्ताओं की आवाजाही प्रारंभ हुई। देवधर जी किराए का मकान लेकर दिल्ली में रहने लगे। भाजपा का काम करते हुए माई होम इंडिया की टीम को भी सक्रिय किया। नए कार्यकर्ताओं को इस टीम के साथ जोड़ कर उसका भी देश भर में प्रचार-प्रसार किया। अमित शाह जब भाजपा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तब सही मायने में देवधर जी का कर्तृत्व चमकनेे लगा। गड़करी ने हीरा परखा था, शाह ने उसे तराशा। 2012 के गुजरात के चुनाव में दाहोद में काम करते समय  अमित शाह का देवदर जी से परिचय हुआ। यह व्यक्ति केवल दो घंटे सोकर शेष समय में अथक कार्य कर सकता है, यह उन्होंने देखा। वाराणसी की जवाबदारी दाहोद में किए काम का फल था। प्रधान मंत्री पद के घोषित उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी का चुनाव क्षेत्र (वाराणसी) होने के कारण मीडिया का परिचय श्री सुनील देवधर से हुआ। त्रिपुरा विजय के बाद तो यह नाम अब देश के घर घर में परिचित हो गया है। पूर्वोत्तर में काम करने का, वनवासियों में काम करने का, लोगों में घुलने-मिलने का, उनकी भाषा सीखने का अनुभव उन्हें यहां काम आया। केवल साढ़े तीन साल में एक नए राज्य में सुनील देवधर नाम की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि लोग कहने लगे कि इसी व्यक्ति को मोदीजी मुख्यमंत्री बनाएंगे। लेकिन देवधर जी ने कहा कि यह तो पुत्र के लिए दुल्हन खोजने निकले पिता का स्वयं ही विवाह कर लेने जैसा होगा। इसलिए देवधर जी की कभी ऐसी बातों में रुचि नहीं रही। युवा प्रदेशाध्यक्ष श्री विप्लव देव के पीछे वे चट्टान की तरह खड़े रहे। त्रिपुरा में मार्क्सवादियों का गढ़ छीन कर उन्होंने भाजपा का झंड़ा फहराया। विप्लव देव अब त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बन गए हैं। देवधर जी कहते हैं कि त्रिपुरा की गाड़ी ठीक तरह से पटरियों पर चलते तक मैं त्रिपुरा का काम करता रहूंगा।

रात्रि में देर तक बातचीत-वार्ताएं, कुल जमा चार घंटों की नींद, सतत प्रवास, जनसंपर्क, प्रवास में नींद पूरी करने की आदत, आसपास अपने कार्य हेतु आए लोगों का जमावड़ा, घर में हमेशा कार्यकर्ताओं एवं अभ्यागतों का आनाजाना श्री देवधर जी की विशेषता है। परंतु स्वास्थ पर बुरा प्रभाव डालने वाली ये बातें श्री देवधर को ऊर्जा देने का काम करती हैं। ईश्वर ने उनको वैसा ही बनाया है।

 

Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepersonapersonal growthpersonal trainingpersonalize

दिनेश कानजी

Next Post
राजनीति में उलझा कावेरी जल-विवाद

राजनीति में उलझा कावेरी जल-विवाद

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0