श्रीगुरुजी और स्वामी विवेकानंद पर नाटक

द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी और स्वामी विवेकानंद पर नाटकों को पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुत किया गया। मात्र मनोरंजन की अपेक्षा सामाजिक प्रेरणा के उद्देश्य से लिखे गए इन नाटकों को काफी सराहना मिली। सारिका और संजय पेंडसे ने ये नाटक प्रस्तु किए हैं।

हमारे देश में रंगमंच पर नाटकों के माध्यम से विविध विषयों की प्रस्तुति करने की पुरानी परंपरा रही है। आज भले ही फिल्मों के बढते प्रभाव ने नाटकों का मंचन कम कर दिया हो परंतु अभी भी महाराष्ट्र और बंगाल में नाटकों की परम्परा जारी है। हालांकि व्यावसायिकता से नाटक भी अछूते नहीं हैं और उनमें भी समाज प्रेरणा से अधिक जोर मनोरंजन को दिया जाने लगा है; परंतु आज भी कुछ नाटककार ऐसे हैं  जो समाज को प्रेरणा देने के उद्देश्य से नाटकों की रचना करते हैं। ऐसा ही एक नाम है सारिका पेंडसे का जो विगत 40 साल से नाटकों का निर्देशन और अभिनय कर रही हैं। वे धरमपेठ महिला मल्टीस्टेट को.ऑप.सोसायटी की उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने समाजशास्त्र में एमए किया है। उन्होंने व्यावसायिक नाटकों के साथ ही संघ के द्वितीय सरसंघचालक   माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरूजी तथा स्वामी विवेकानंद जी पर नाटकों का मंचन किया।

सारिका पेंडसे ने श्रीगुरुजी को रामकृष्ण मठ में आते-जाते देखा था। तब वे बहुत छोटी थीं और श्रीगुरुजी भी उतने प्रसिद्ध नहीं हुए थे। परंतु धीरे-धीरे श्रीगुरुजी की पहचान होने पर सारिका पेंडसे के मन में उनके प्रति आदर व सम्मान की भावना द्विगुणित होती गई।

श्री गुरुजी पर आधारित नाटक के विषय में बताते हुए वे कहती हैं  “सन 2006 में गुरुजी की जन्मशताब्दी थी। नागपूर में कई लोग अलग-अलग तरह के कार्यक्रम कर रहे थे। चुंकि मेरे पति और मैं रंगमंच से जुडे हैं अत: हमने सोचा कि हम श्रीगुरुजी पर आधारित नाटक करेंगे। अब नाटक करना है तो संवाद, गुरुजी को साकार करने वाला कलाकार सभी की खोज शुरू हुई। लेखिका के रूप में हमें मिलीं शुभांगी भडभडे, जिन्होंने अभी तक लगभग 75 उपन्यास लिखे हैं। उन्होंने हमें लगभग 2 घंटे के नाटक की पटकथा लिखकर दी। श्रीगुरुजी रा.स्व.संघ के द्वितीय सरसंघचालक थे। अत: यह आवश्यक था कि संघ की ओर से इस नाटक के मंचन हेतु मंजूरी मिले। हम जब ये नाटक पहली बार करने का विचार कर रहे थे उस समय संघ में कार्य करने वाले कुछ लोगों ने गुरूजी को देखा था। संघ कार्यालय में रहने वाले मामा मुठाल, जो कि 10 साल गुरुजी के साथ रहे थे, को हमने वह स्क्रिप्ट दिखाई। वहां रविजी भुसारी भी थे। उन्होंने हमें बताया कि मुठाल मामा ही आपको नाटक सैंक्शन करवा  देंगे। फिर मुठाल मामा ने स्क्रिप्ट पढ़कर जो कुछ थोडी बहुत गलतियां थीं, उसमें सुधार किया।“

श्रीगुरुजी पर आधारित नाटक हर तरह से मंचन के लिए तैयार हो गया था। सन 2006 में एक बार इसका मंचन हुआ, परंतु चुंकि यह सामान्य व्यावसायिक नाटकों की तरह नहीं था अत: इसके मंचन के लिए विशेष प्रयास करने आवश्यक थे। पहले यह नाटक उन लोगों तक पहुंचाना जरूरी था जो संघ तथा श्रीगुरुजी को पहचानते हैं। ऐसे लोगों से सम्पर्क करने के अपने प्रयासों के बारे में सारिका कहती हैं “हमने फिर एक बार रविजी भुसारी से बात कि हम इस नाटक के अन्य शो कैसे कर सकते हैं? उन्होंने देश भर के संघचालकों से बात करके हमारे शो की व्यवस्था करने को कहा। इसके बाद रविजी के मार्गदर्शन में ही हमने अंदमान-निकोबार से लेह तक 119 शो किये थे। जन्मशताब्दी वर्ष अर्थात 2006 में हमने 23 शो किये थे।”

अपनी नाटक टीम के बारे में सारिका बाताती हैं “हमारी टीम में लागभग 35 लोग काम करते हैं। श्रीगुरुजी पर आधारित नाटक के पूर्व हमने हास्य नाटक किये थे। लेकिन गुरूजी का नाटक सामाजिक तथा गहन विषय पर था। हमने श्रीगुरुजी के किरदार के लिए कई लोगों के ऑडिशन लिए। क्योंकि किसी को भी हम श्रीगुरूजी नहीं बना सकते। फिर हमने जिसका चुनाव किया उन्हें दो-चार किताबे पढ़ने के लिए दीं और हमने उनको संघ शाखा में भी जाने के लिए कहा। रवीजी भुसारी ने भी उन्हें बहुत सारी बातें बताई। इसके बाद हमारे गुरूजी तैयार हो गये।”

इस नाटक का मंचन सारिका जी की टीम ने विभिन्न जगहो पर भिन्न-भिन्न लोगों के सामने किया। संघ के  तृतीय वर्ष के शिविर में भी उन्होंने इस नाटक को प्रदर्शित किया। यहां उनका उद्देश्य धन संग्रह नहीं अपितु शिक्षा वर्ग में आए हजार से अधिक स्वयंसेवकों तक पहुंचना था। इसके बाद उन्हें श्रीकांत देशपांडे ने अंदमान निकोबार बुलाया। इस दौरे के लिए सभी कलाकारों ने अपना टिकिट स्वयं के खर्चे से निकाला। इंद्रेश जी से बात करके सारिका पेंडसे की टीम ने लेह लद्दाख में भी श्रीगुरुजी के नाटक कामंचन किया।

नाटक मंचन के अपने प्रयोगों को मिली प्रतिक्रियाओं से भाव विभोर होते हुए वे बताती हैं कि “श्री गुरूजी का प्रयोग हमने चेन्नई में किया लेकिन चेन्नई में उन लोगों ने कहा कि यहां हिंदी नाटक कोई नहीं समझेगा। अत: हमने पूरी स्क्रिप्ट उन्हें इंग्लिश में समझाई फिर हिंदी में नाटक का मंचन किया। इसी प्रकार गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के कहने पर गोवा में मराठी में नाटक का मंचन किया गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश में 7-8 जगह किया। मध्यप्रदेश में विदीशा नामक शहर के इंजिनीयरींग कॉलेज में नाटक किया। हमने पहला प्रवेश शुरू किया तो बच्चों ने बहुत हल्ला मचाया। लेकिन जब उनको लगा कि उसमें कुछ देखने लायक है तो उन्होंने दो घंटे तक पूरा नाटक देखा। नाटक के दूसरे दिन हुए वार्तालाप में हमें बच्चों ने कहा कि हमारे कॉलेज में 100 किताबे हैं संघ और श्रीगुरुजी पर। लेकिन हमने कभी पढी नहीं, पर अब हम वे जरूर पढेंगे। मुझे उनकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी। हमारे नाटक का उद्देश्य सफल हो गया था।

पठान कोट में जब हमने ये नाटक किया तो वहां के  पंजाब सरकार के मंत्री मास्टर मोहनलाल को नाटक बहुत अच्छा लगा और उन्होंने हमें एक लाख का पुरस्कार दिया था।“

सन 2011 तक श्री गुरूजी नाटक का मंचन करने के बाद सन2012 से सारिका पेंडसे तथा उनकी टीम ने स्वामी विवेकानंद की 150 वीं सार्धशति वर्ष के अवसर पर स्वामी विवेकानंद पर आधारित नाटक का मंचन किया। इस नाटक के लिए वे विवेकानंद केंद्र की उपाध्यक्ष निवेदिता भिडे से मिले। इस नाटक की पटकथा भी शुंभागी भडभडे ने ही लिखी है। इस नाटक के लगभग 147 प्रयोग पूरे भारत में हुए।

सामान्य नागरिकों के अलावा देश के कई गणमान्य नागरिकों जैसे राज्यपाल राम नाईक, मुख्यमंत्री रमण सिंह जी, संघ के अखिल भारतीय सहसरकार्यवाह मनमोहन वैद्य, पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन जी,  मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया, राम माधव जी, हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार जी, आदि लोगों ने भी श्रीगुरुजी नाटक को देखा और उसकी प्रशंसा की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस समय की घटना का वर्णन करते हुए सारिका जी बताती हैं “एक दिन गुजरात सरकार के कार्यालय से फोन आया कि गुजरात में स्वामी विवेकानंद नाटक का मंचन करना है। आप नाटक अपनी पूरी मेहनत लगाकर कीजिए नहीं तो मोदी जी 5 मिनिट में चले जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मोदी जी को नाटक इतना पसंद आया कि उन्होंने दो घंटे बैठकर पूरा नाटक ध्यान से देखा। मोदी जी ने हमारे साथ बहुत सारे फोटो भी लिए। वहां मोदी जी ने हमसे मराठी में बात की।”

विवेकानंद केंद्र के कार्यकर्ता ओधरानी जी ने स्वामी विवेकानंद नाटक को दुबई तक पहुंचाया। हमने दुबई में दो शो किए, जिसमें से एक को देखने भारत के एम्बेसडर आए थे।

अब स्वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो में भाषण दिये जाने को 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। सारिका पेंडसे तथा उनकी टीम की यह इच्छा है कि अपने नाटका मंचन भी शिकागो के उसी हॉल में करें जहां स्वामी जी ने जगविख्यात भाषण दिया था।

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