कृषि में मूल्यवर्धित उत्पादों का बड़ा हिस्सा

देश में ‘मेक इन इंडिया’ के साथ ही साथ ‘ग्रो इन इंडिया’ अभियान चलाए जाने की भी आवश्यकता है जो कि पूरी तरह कृषि उत्पादन एवं उसके व्यापार पर केंद्रित हो। आज भी अनाजों के मुकाबले अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों का कृषि जीडीपी में बहुत बड़ा हिस्सा है।

पिछले कुछ दशकों में भारतीय कृषि में एक व्यापक बदलाव आया है। पूरी तरह खाद्य अनाज के उत्पादन  में बदलाव करते हुए भारतीय कृषि की जीडीपी का 50 प्रतिशत हिस्सा उच्च मूल्य वाले भागों जैसे कि फल, सब्जियों, दुग्ध उत्पाद, कुक्कुट एवं मछली उत्पादन से आता है। दूसरे शब्दों में भारतीय कृषि खाद्य अनाज केंद्रित नहीं रही। 2014-15 में फलों एवं सब्जियों के उत्पादन ने देश की खाद्य अनाज उत्पादकता में 31 मिलियन टन की बढ़ोत्तरी की। खाने की रीति, आदतों, कुछ कारकों के उद्भव जैसे कि शहरीकरण, आमदनी की बढ़ोत्तरी, बदलती जनसांख्यिकी इस संक्रमण के प्रमुख कारणों के तौर पर रेखांकित किए जा सकते हैं। इस बदलाव ने कुछ समय पूर्व की विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय कृषि को काफी विविधता दी है।

छोटे एवं सीमांत किसानों का अस्तित्व पारिवारिक श्रम एवं उनके द्वारा की जा रही वर्ष भर की गहन बहुफसली कृषि आशीर्वाद के रूप में सामने आई है। इसके अलावा वे कृषि के बाकी बचे अनुपयोगी भाग से पशुधन और मुर्गी पालन का प्रबंध करते हैं। इस अंतर्निहित विशेषता ने विभिन्न चुनौतियों के प्रति हमारे कृषि मूल्यों को विविधता प्रदान की है।

प्रति एकड़ उपज के आधार पर भारत की कृषि उपज आय का आकलन करने का पारंपरिक तरीका सही नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में दूध, अंडा और मांस के उत्पादन में महत्वपूर्ण बढ़त हुई है जिसने मूल्यों की श्रृंखला को अधिक मजबूत किया है। वर्तमान में, वैश्विक स्तर पर दुग्ध उत्पादन में भारत का पहला जबकि अंडे के मामले में तीसरा स्थान है। पिछले पांच वर्षों में मत्स्य उत्पादन 6.2 प्रतिशत की बड़ी दर से बढ़ा है। बागवानी उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर (चीन के बाद) पहुंच गया है। देश की बागवानी उपज का 91 प्रतिशत सब्जियों व फलों का है।

बहु-उपजीय, बहु-मौसमी और मिश्रित खेती (फसल एवं पशु पालन) के कारण ही कम वर्षा के बावजूद खेती पर कम प्रभाव पड़ा है। 2010-11 में 20 प्रतिशत कम वर्षा के बावजूद, ज्यादातर क्षेत्रों में शून्य कमी को दर्ज करते हुए, कृषि उत्पाद 203 बिलियन डॉलर का रहा।

मूल्य स्थिरता- मुंबर्ई के पर्यावरण एवं कृषि केंद्र ने टाटा रणनीतिक प्रबंधन समूह के साथ मिलकर अध्ययन कर सरकार से निवेदन किया है कि वह उत्पादन की बजाय देश के अंदर व बाहर उसकी खपत बढ़ाकर किसानों की आमदनी दुगुनी करें। किसानों की आमदनी को दुगुना करने का एक रास्ता यह है कि 2022 तक निर्यात लगभग 100 बिलियन डॉलर का हो जाए। विश्व व्यापार संगठन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कृषि उत्पादों का वैश्विक निर्यात 1500 बिलियन डॉलर सालाना का है। इसमें से भारत का हिस्सा मात्र 35 बिलियन डॉलर का है। सीसीएफआई के सलाहकार एस. गणेशन के अनुसार “बढ़ती अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति हमारे बढ़ते उत्पादन गल्ट को कम करने में सहायक होगी। साथ ही यह मूल्य स्थिरता लाने में भी सहायक सिद्ध होगा।”

अध्ययन कहता है कि बहुत अधिक मात्रा में खाद की अनुपलब्धता तथा कम पैदावार के कारण आर्गेनिक खेती सतत नहीं है। रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल वाली उपज कुल पैदावार की मात्र 1 प्रतिशत है। पर्यावरण एवं कृषि केंद्र के प्रवक्ता का कहना है कि, ”भोज्य पदार्थों में कीटनाशकों के अवशेष के कारण होने वाले स्वास्थ्य संबंधित खतरों की बात केवल विदेशों द्वारा चंदा पाने वाले एनजीओ संस्थाओं द्वारा भारतीय कृषि को कलंकित करने की चाल मात्र है।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जीएसटी आने के बाद, कई कृषि उत्पाद सरल तरीके से एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजे जा सकेंगे। भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ के साथ ही साथ ‘ग्रो इन इंडिया’ अभियान चलाए जाने की भी आवश्यकता है जो कि पूरी तरह कृषि उत्पादन एवं उसके व्यापार पर केंद्रित हो। रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “कृषि क्षेत्र को व्यापक गति देने के लिए एक मजबूत पी पी पी मॉडल अपनाया जा सकता है।”

कृषि उत्पादन के मामले में भारत का वैश्विक स्तर पर दूसरा (2014 में 367 बिलियन डॉलर) स्थान है जबकि सेवा एवं निर्माण में क्रमशः 11वां एवं 12वां स्थान है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान ग्रामीण क्षेत्र से आगे बढ़कर निर्माण एवं सेवा क्षेत्र की कई गतिविधियों तक भी जाता है। कृषि क्षेत्र का अतिरिक्त निर्यात निर्माण क्षेत्र से अधिक है। भारतीय कृषि उत्पादन पिछले 11 वर्षों में 12.6 प्रतिशत के चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ा है जबकि 2010-11 व 2014-15 में कृषि उत्पादों का निर्यात 21 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ा है।

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