ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि मानसिक बीमारियां हमारे मस्तिष्क की क्रियाशीलता को प्रभावित करने वाले जैविक, आनुवंशिक या पर्यावरणीय (आसपास का माहौल) कारकों की अव्यवस्थित कार्यवाही का परिणाम होती हैं। यह पूरी तरह से सच नहीं है। कई बार मानसिक बीमारियों का कारण शारीरिक भी होता है, जैसे – दिमागी चोट, स्नायु विकार, सर्जरी, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक यंत्रणा आदि का प्रभाव भी व्यक्ति की मस्तिष्कीय क्रियाशीलता पर पड़ सकता है।
केस स्टडी : रमा पिछले आठ सालों से एक लड़के के साथ रिलेशनशिप में थी। उस लड़के की किसी दूसरे शहर में नौकरी लग गई। उसने वहां जाने से पहले रमा से वादा किया कि वह नौकरी ज्वॉइन करके जल्दी ही वापस लौटेगा और रमा के घरवालों से शादी की बात करेगा, लेकिन वहां जाने के कुछ महीनों बाद ही रमा को पता चला कि उसने किसी दूसरी लड़की से वहीं शादी कर ली है। यह जान कर रमा को तीव्र मानसिक आघात पहुंचा। वह बिल्कुल चुप-सी हो गई। किसी से मिलना-जुलना या बात करना बंद कर दिया। खान-पान में भी कोताही बरतने लगी। रात-रात भर कमरे की छत देख कर गुजार देती। धीरे-धीरे उसने बातों को और लोगों को भूलना शुरू कर दिया। उसके पूरे शरीर में खुजली और जलन महसूस होने लगी। कुछ भी खाते ही उल्टी कर देती। उसके माता-पिता बेटी की इस हालत को देख कर बेहद चिंतित थे। कई डॉक्टरों को दिखाया, पर कोई फायदा नहीं हुआ। अंततः किसी की सलाह पर मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए गए। तब जाकर रमा की समस्या दूर हो पाई।
ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि मानसिक बीमारियां हमारे मस्तिष्क की क्रियाशीलता को प्रभावित करने वाले जैविक, आनुवंशिक या पर्यावरणीय (आसपास का माहौल) कारकों की अव्यवस्थित कार्यवाही का परिणाम होती हैं। यह पूरी तरह से सच नहीं है। कई बार मानसिक बीमारियों का कारण शारीरिक भी होता है, जैसे – दिमागी चोट, स्नायु विकार, सर्जरी, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक यंत्रणा आदि का प्रभाव भी व्यक्ति की मस्तिष्कीय क्रियाशीलता पर पड़ सकता है। ऐसे मानसिक विकारों को कायिक मनोविकार या कायिक मस्तिष्कीय विकार (Organic Brain Syndrome) कहते हैं। वैसे यह अपने आपमें कोई विशेष बीमारी नहीं है, बल्कि इस शब्दावली का उपयोग ऐसी दशाओं को रेखांकित करने के लिए किया जाता है, जिसकी वजह से धीरे-धीरे व्यक्ति की मस्तिष्कीय या दिमागी क्रियाशीलता में कमी आने लगती है।
ऐसी दशा में व्यक्ति के सोचने-समझने, सीखने और याद रखने की क्षमता में कमी आने लगती है। उसकी निर्णय क्षमता इतनी कमजोर हो जाती है कि उसे निरंतर देखरेख या सुपरविजन की जरूरत पड़ती है। ऐसे लोगों को अगर उनके अपने हाल पर छोड़ दिया जाये, तो लक्षण बिगड़ भी सकते हैं। इससे कई तरह की अन्य समस्याएं जैसे कि- आर्गेनिक मनोविकार, अस्थायी और तीक्ष्ण या घातक (डेलीरियम-उन्माद या मूर्छा) या स्थायी और दीर्घकालीन (डिमेन्शिया-मनोभ्रंश) पैदा हो सकती हैं।
आर्गेनिक या कायिक मनोविकार के कारण
कायिक मनोविकार के मुख्यत: दो कारण होते हैं-
- मस्तिष्क की कोशिकाओं का क्षतिग्रस्त होना (सिर पर भारी प्रहार, आघात, रासायनिक और विषैले पदार्थों से संपर्क, आर्गेनिक दिमागी रोग, नशे की लत आदि के कारण)
- मनोवैज्ञानिक कारण ( गहरा सदमा, तीव्र भावनात्मक आघात, शारीरिक या मानसिक शोषण और अत्यधिक मनोवैज्ञानिक यंत्रणा आदि के कारण)
इनके अलावा भी कई अन्य कारण हो सकते हैं-
– मस्तिष्क के भीतर रक्त स्राव यानि खून का बहना
– मस्तिष्क के इर्दगिर्द की जगह में रक्त स्राव यानि खून का बहना
– खोपड़ी के भीतर खून का थक्का जम जाना जिससे दिमाग पर दबाव पड़ता है
– मस्तिष्काघात
– सांस संबंधी दशाएं
– शरीर में अल्प ऑक्सीजन
– शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता
– हृदयाघात/दौरा
– कई दौरों की वजह से होने वाला डिमेन्शिया
– हृदय संक्रमण
उम्र के साथ होने वाले विकार जैसे कि
– अल्ज़ाइमर रोग
– डिमेन्शिया
– हंटिन्गटन रोग
– मल्टीपल स्कलेरोसिस
– पार्किन्सन रोग
– आर्गेनिक एम्नीशिक सिंड्रोम : इसके प्रभावस्वरूप लघुकालीन स्मृति व दीर्घकालीन स्मृति का क्षय हो जाता है, जबकि तात्कालिक स्मृति बनी रहती है। नई चीजों को सीखने की क्षमता समय के साथ घटती जाती है।
– सन्निपात या मूर्छा : यह एक तीक्ष्ण और अस्थायी आर्गेनिक सेरिब्रल सिंड्रोम है, जो व्यक्ति की चेतना, ध्यान, नजरिया, सोच, स्मृति, व्यवहार और सोने और जगने के शेड्यूल को प्रभावित करता है।
आर्गेनिक या कायिक मनोविकार के लक्षण
आर्गेनिक या कायिक मनोविकार के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि व्यक्ति के मस्तिष्क का कौन-सा हिस्सा प्रभावित हुआ है। मस्तिष्क का जो हिस्सा प्रभावित होता है, उससे संबंधित विकार के लक्षण ही व्यक्ति में देखने को मिलते हैं। सामान्य से दिखने वाले ऐसे कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
– स्मृति लोप या याददाश्त का चले जाना : व्यक्ति परिवार और मित्रों को भूल सकता है। वह उन्हें या उनसे जुड़ी किसी भी बात को याद करने में असमर्थ होता है।
– दुविधा या भ्रम : व्यक्ति में हमेशा एक भ्रम की स्थिति बनी रहती है। वह यह नहीं जान पाता कि वह कहां है, क्या कर रहा है और उसके आसपास क्या तथा क्यों घटित हो रहा है।
– उसे किसी साधारण-सी बातचीत को भी समझने में कठिनाई होती है।
– उसके मन में हमेशा घबराहट और डर की स्थिति बनी रहती है।
– किसी चीज पर वह अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर पाता।
– उसे अपने रोजमर्रा के कामकाज करने में कठिनाई होती है।
– उसे अपनी ऐच्छिक स्नायु गतिविधियों पर नियंत्रण करने में कठिनाई महसूस होती है।
– वह देखने, सुनने आदि में अवरोध महसूस करता है।
– उसकी निर्णय क्षमता कमजोर पड़ जाती है। वह यह नहीं तय कर पाता कि उसे क्या, कब, क्यों और कैसे करना है।
– वह खुद को संतुलित नहीं रख पाता। यहां तक कि उसे खड़े होने में या चलने में भी दिक्कत होती है।
– प्रभावित व्यक्ति का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं होता। कभी तो बिना किसी बात के वह अत्यधिक गुस्से का प्रदर्शन कर सकता है, कभी बेवजह हंसने या रोने लग सकता है।
आर्गेनिक या कायिक मनोविकार का इलाज
इस बीमारी का इलाज चोट की गंभीरता या बीमारी के प्रकार पर निर्भर करता है। अस्थायी आर्गेनिक मनोविकार जैसे मस्तिष्काघात में व्यक्ति को सिर्फ आराम और व्यक्तिगत परामर्श की जरूरत होती है, जबकि कई विकार पुनर्वास और सहायता आधारित देखरेख से ठीक हो जाते हैं। इनमें शारीरिक थेरेपी जैसे कि चलने में मदद और व्यस्त रखने वाली थेरेपी और ऑक्युपेशनल थेरेपी जैसे- रोजमर्रा के कामों को सिखाने का प्रशिक्षण देना शामिल हैं।