अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के मनोविज्ञान को समझें और तद्नुरूप उनसे बर्ताव करें। उन पर जबरन कोई चीज थोपने का विपरीत असर भी हो सकता है। उनसे ममता और विश्वास के साथ व्यवहार हो तो अनुशासन भी उनमें अपने-आप आएगा।
माता-पिता होना एक सुखद एवं आनंददायक अनुभव होता है। आपके एक हो या चार बच्चे-सभी को शिक्षित करना होता है। यही क्यों, उनके व्यवहार को देखकर हमें भी दिन-प्रतिदिन सीखना पड़ता है, उनके साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है। कभी-कभी एैसा लगने लगता है कि हमारे 3 बच्चे तो अच्छा सीख रहे हैं, अच्छा व्यवहार कर रहे हैं किंतु चौथा बच्चा बेहद शरारती है, बेहद क्रोधी, जिद्दी और लड़ाकू प्रवृत्ति का है। उसे समझाना बेहद कठिन होता है। उसे हम जिस काम के लिए मना करते हैं वही वह करता है तो हमें गुस्सा आता है। हम उसेे दण्डित करने की सोचने लगते हैं। लेकिन ऐसा सोचना सही नहीं है। बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने के पहले कुछ खास बातों का ध्यान रखें, जिससे आपका बच्चा स्कूल के अन्य बच्चों के साथ हिलमिल कर रह सके। उसके लिए कुछ खास बातें नोट कर लीजिए।
घर का वातावरण सकारात्मक रखना
छोटे नादान बालकों का अच्छे से लालन-पालन करने हेतु घर का वातावरण सकारात्मक होना बेहद जरूरी है। बच्चों को अच्छे संस्कार देने और उन्हें सुख-शांति एवं प्रेमपूर्वक रहने की आदत डालने के लिए निर्मल प्रेम, ममता देने के साथ ही बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना जरूरी है। इसके साथ ही घर का वातावरण इतना शुध्द सात्विक, धार्मिक, ज्ञानवर्धक, सुदंर, आकर्षक हो कि बालक का मन प्रसन्न रहे और उसकी बुद्धि का विकास क्रमानुसार होता रहे।
घर का अवांछित वातावरण बच्चों के लिए बेदह हानिकारक होता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। घर में रोजाना पारिवारिक झगड़े होने से बालक का मन बैचैन हो उठता है। उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और आक्रामक रूप में वह दिखाई देने लगता है। उदाहरण के रूप में यदि बच्चा बार-बार झगड़ा करने पर उतारू हो, किसी भी बात का उल्टा जवाब देने लगे तो सर्तक हो जाए और स्वयं में सुधार कर अपने आप को बदलिए। यदि आप अपने बच्चों का स्वभाव मृदुल, सौम्य, मनमोहक एवं विनम्र बनाना चाहते हैं तो सर्वप्रथम आप स्वयं को बदलिए और घर में सकारात्मक वातावरण बनाने का प्रयास कीजिए।
बच्चों में आत्मविश्वास जगाएं
ज्यादातर लोगों को लगता है कि बच्चों के घर में आने के बाद शिक्षक की भूमिका अपनानी पड़ती है। परंतु मेरा मानना है कि बच्चों के घर में आने के उपरांत शिक्षक बनने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमें स्वयं सीखने की शुरूआत करनी चाहिए। अक्सर देखा गया है कि माता-पिता अपने बच्चे को जबरदस्ती अपनी पसंद के क्षेत्र में जाने के लिए कहते हैं या उन्होंने जिस क्षेत्र में सफलता के झंड़े गाड़े हैं उसी क्षेत्र में अपने बच्चों को भी लाना चाहते हैं। यह अनुचित है। अभिभावकों को अपनी इच्छाएं अपने बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए बल्कि बच्चों की पसंद के अनुसार उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।
आज की पीढ़ी इतनी तेज व ज्ञान से लबरेज है कि हमने जिसके बारे में कभी सोचा ही नहीं या जो किया भी नहीं ऐसे अद्भुत मुश्किल भरे काम करने में भी वह पीछे नहीं हटती है। बड़ी से बड़ी चुनौतियों को पार करने की क्षमता व अपार साहस उनमें मौजूद है। अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को इतना प्रोत्साहन दें कि वे दुनिया को अपनी ज्ञान शक्ति, अपने सामर्थ्य का दर्शन करा सकें।
कुछ बच्चों में शांत, मौन, शर्मिले और अकेले रहने की आदत होती है। यह बच्चों के आत्मविश्वास हेतु घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। ऐसे संवेदनशील बच्चों से बेहद प्यार व विश्वास के साथ पेश आएं। उन्हें रोज गार्डन, पार्क, मार्केट घुमाने ले जाएं, उन्हें कभी अकेला न रहने दें। बच्चों को अधिक सक्रिय रखने हेतु उन्हें परिचित लोगों या अपने रिश्तेदार-मित्रपरिवार आदि लोगों से मिलाएं। इससे बच्चों का संवाद बढ़ेगा, भावनात्मक संबंध मजबूत होगा और वे जल्द ही पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने सारे कार्य निर्भयता से करने लगेंगे।
पारिवारिक विचार-विमर्श
नियमित रूप से पारिवारिक विचार-विमर्श करने से हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। ऐसे मेलजोल के माध्यम से हम बच्चों को शिष्टाचार, संयम, अनुशासन, निष्ठा, समर्पण, समय नियोजन, नियम आदि विषयों के संबंध में जानकारी दे सकते हैं। जैसे कि स्कूल जाने वाले बच्चों की दिनचर्या कैसी होनी चाहिए, उसका टाइम टेबल कैसे होना चाहिए, समय का महत्व उन्हें बेहतर तरीके से समझाया जा सकता है। ऐसी बातचीत के दौरान बच्चों के लिए जरूरी सभी छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा होनी चाहिए।
बच्चे अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखते रहते हैं इसलिए कुछ नया सीखने की उनकी जिज्ञासा के कारण कभी-कभी उनसे गलतियां भी हो जाती हैं। इन गलतियों को वह छुपाते हैं और अपने माता-पिता को वे अपने दिल की बात बताने में संकोच करने लगते हैं। उन्हें भय लगता है कि कहीं उनके माता-पिता उनकी गलतियों के बदले उन्हें कोई सजा न दे दें। ऐसी स्थिति बच्चों में न आए, इसके लिए माता-पिता को सख्त नहीं, नर्म रुख अपनाना चाहिए। सर्वप्रथम उन्हें प्यार व विश्वास से अपने बच्चों का विश्वास जीतना चाहिए। बच्चों को यह एहसास कराना चाहिए कि यदि उनसे कोई गलती हो भी जाए तो उन्हें सजा नहीं मिलेगी। बल्कि उन्हे समझाया जाएगा जिससे वे दोबारा गलती न करें। इस प्रकार का प्रोत्साहन देकर आप बच्चों के दिल का हाल आसानी से जान सकते हैं। इसके अलावा बच्चों से होने वाली छोटी-छोटी गलतियों के लिए उन पर चिल्लाना, डांटना-फटकारना नहीं चाहिए। उन्हें प्यार से समझा कर सही रास्ते पर लाने का प्रयास करना चाहिए। प्यार-विश्वास में तो इतनी शक्ति है कि वह किसी को भी बदल सकता है और ये तो नादान छोटे बच्चे हैं। उनके साथ हमेशा सहज, सरल, प्रेमपूर्वक ही रहना चाहिए।
तय करें नियम व अनुशासन
बच्चों के पूरे दिन की दिनचर्या का टाइम टेबल बनाए। उन्हें बताएं कि स्कूल से आने के बाद उन्हें क्या-क्या करना है। स्कूल बैग से टिफिन, पानी की बोतल बाहर निकाल कर रखने, बैग, जूते, मोजे आदि चीजें यथास्थान रखने और अपना काम खुद करने को कहें। रात में जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना आदि का अनुशासन रखना जरूरी है।