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पुनर्जीवित हो रही अयोध्या

by रामेन्द्र सिन्हा
in जनवरी २०१९, सामाजिक
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राम मंदिर निर्माण को लेकर न्यायिक प्रक्रिया या राजनीतिक दांवपेंच जो भी चले, त्रेता युग की अयोध्या को एक बार फिर पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू हो गया है।

अयोध्या में राम मंदिर का मामला एक बार फिर गर्म है। भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना और हिंदुत्ववादी संगठनों के नेताओं सहित साधु-संतों ने आम चुनाव के पहले केंद्र सरकार पर मंदिर निर्माण की दिशा में ठोस पहल करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है, हालांकि, राम मंदिर का मामला फिलहाल कोर्ट में है और अगली सुनवाई जनवरी में होनी है। उधर, अयोध्या के केशवरपुरम में राम जन्मभूमि न्यास द्वारा संचालित कार्यशाला में मंदिर निर्माण के लिए जरूरी पत्थर और अन्य सामग्रियों को तैयार करने का काम 1990 से जारी है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी जैसे अयोध्या को उसकी पौराणिक पहचान दिलाने का बीड़ा उठा लिया है। सरयू नदी के तट पर भगवान राम की विशालकाय मूर्ति की स्थापना और अयोध्या के सुंदरीकरण और पुनरुत्थान की अनेक योजनाएं मूर्त रूप ले रहीं हैं।

खुशी की बात है कि गत नवंबर में विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना की ओर से आयोजित दो कार्यक्रम बिना किसी बवाल के शांतिपूर्वक निपट गए। मंदिर के नारे, उत्साही लोगों की भीड़ और चारों तरफ खाकी की मौजूदगी। अयोध्या में नवंबर के उस रविवार को तनाव साफ महसूस किया जा सकता था, लेकिन उस पर पानी फेर रहा था रामभक्तों की टोली पर मुस्लिमों के एक समूह द्वारा स्वागत में फूलों की वर्षा का दृश्य। उत्साही युवाओं की टोली जब ’हर घर भगवा छाएगा, राम राज्य फिर आएगा’ जैसे उद्घोष करते हुए रास्तों से गुजर रही थी तो उनका स्वागत करने वालों में मुस्लिम भी थे। जबकि इसके एक दिन पहले ही वहां शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे राम मंदिर निर्माण की तारीख बताने के लिए सरकार को ललकार चुके थे। ठाकरे का नारा ”हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार” काफी चर्चित रहा।

विहिप की धर्मसभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विहिप के साथ साधु संतों ने दोहराया कि मंदिर बनाने के लिए पूरी ज़मीन मिलनी चाहिए। सभा में कई वक्ताओं ने कहा कि ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटने का हाईकोर्ट का आदेश स्वीकार्य नहीं था। मालूम हो कि 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था, दो हिस्से मंदिर के और एक मस्जिद का। दोनों पक्ष इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। इस माहौल में अयोध्या में कोई अप्रिय घटना नहीं घटी, यह प्रदेश सरकार की बड़ी कामयाबी थी।

दरअसल, राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में मंदिर के भविष्य पर सुप्रीम कोर्ट के रुख ने राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। अदालत ने तारीख बताने तक से इनकार करते हुए कहा कि अब जो भी होगा जनवरी में होगा। इस पर साधु संतों से लेकर भाजपा, शिवसेना और हिंदुत्ववादी संगठनों के कई नेताओं का सब्र जवाब दे गया। वे कह रहे हैं कि अब और इंतजार नहीं कर सकते इसलिए सरकार अध्यादेश लाकर मंदिर बनाए। वहीं मुस्लिम पक्षकार कहते हैं कि हिम्मत हो तो अध्यादेश लाकर दिखाइए। दूसरी ओर, अयोध्या के विवादित स्थल पर हक का दावा करते हुए उस पर मंदिर निर्माण की वकालत कर रहे उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी का कहना है कि ’मुगल वंश के संस्थापक बाबर के कुछ भटके हुए समर्थक 16वीं सदी में अयोध्या में मीर बाकी द्वारा बनाए गए विवादित ढांचे के नाम पर देश का माहौल खराब कर रहे हैं। मीर बाकी शिया था, लिहाजा बाबरी मस्जिद शिया वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। बोर्ड का अध्यक्ष होने के नाते मैं इस जमीन पर अपना दावा छोड़ रहा हूं और मंदिर बनाने की मांग कर रहा हूं।’

पिछले दिनों इस मामले में हिंदू महासभा की जल्द सुनवाई करने की याचिका को उच्चतम न्यायालय ने ठुकराते हुए कहा कि वह इस मामले में पहले ही अपना रुख साफ कर चुका है। सुनवाई के लिए पहले ही तारीख दी जा चुकी है। इसके पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में राम मंदिर निर्माण को लेकर बयान दिया कि भूमि के मालिकाना हक को लेकर फैसला लेने में तेजी लाई जानी चाहिए और सरकार को एक उचित कानून के जरिए भव्य मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करना चाहिए।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने एक अन्य बयान में कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1992 के पहले की न्यायिक परिस्थितियां फिर से बन रही हैं। उस समय राम मंदिर निर्माण को लेकर टाल-मटोल हुई थी। इसी के चलते वहां उस वक्त कुछ ऐसे नतीजे आए थे, जिसकी कई प्रकार से व्याख्या की जा सकती है। उसी प्रकार की देरी फिर से हमारे धर्म में सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से हो रही है। ये राजनीतिक मुद्दा नहीं है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर से इस मामले में अलग बेंच द्वारा सुनवाई करने की बात कही थी। मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट के अपने अलग मुद्दे हो सकते हैं। अब जनवरी से मामले की सुनवाई करने की बात कर रहे हैं। इससे हिंदू संगठनों में नाराजगी पैदा हुई। आरएसएस ने उसी को लेकर अपना पक्ष रखा है।

हालांकि यह कहने में जितना आसान है, करने में उतना आसान नहीं है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास लोकसभा में बहुमत है, लेकिन उसके कुछ अपने ही सहयोगी दल जैसे जेडीयू इस कानून का विरोध कर सकते हैं। उधर, राज्यसभा में एनडीए के पास बहुमत नहीं है। जबकि संसद के दोनों सदनों में बिल पास होना जरूरी है और फिर इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है, तभी यह कानून की शक्ल में आता है। बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराने और उसके बाद राष्ट्रपति की सहमति मिलने में समय लगता है। इसकी अपनी एक प्रक्रिया है जो प्रस्तावित कानून का ड्राफ्ट तैयार करने के साथ शुरू होती है। कानून को लागू होने में ही औसतन 9-10 महीने का समय लगता है।

दरअसल, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद कानून के अस्तित्व में आने के लिए नियमों और विनियमों को संविधान के अंतर्गत तैयार करना होता है। अयोध्या का मामला राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील है। नाराज पार्टियां ऐसे किसी भी कानून की संवैधानिक वैधता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी कानूनों और संशोधनों को खारिज कर चुका है जिससे भारतीय संविधान का उल्लंघन हुआ। हाल में धारा 377 के फैसले में भी ऐसा ही हुआ।

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने वस्तुस्थिति को समझते हुए ही शायद कहा कि राम मंदिर मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है। इस मामले में हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन कोई अयोध्या में भगवान राम की भव्य मूर्ति बनने से नहीं रोक सकता। अगर इसे कोई रोकता है तो हम देख लेंगे। अयोध्या का विकास करने से हमें कोई नहीं रोक सकता। उधर, वाराणसी में द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा बुलाई गई तीन दिवसीय ‘धर्म संसद’ में संकल्प पत्र जारी कर अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति स्थापित करने की योजना की निंदा की गई। संतों ने कहा कि ये भगवान का अपमान है। ईश्वर की पूजा की जानी चाहिए, उनका प्रदर्शन नहीं, जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद कर्ण सिंह ने अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची प्रतिमा की लम्बाई आधी करके उसके साथ सीता की भी मूर्ति लगाने का अनुरोध करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है।

अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यटन) अवनीश अवस्थी के अनुसार इस प्रोजेक्ट में सरकार भी योगदान कर सकती है, हालांकि क्राउड-फंडिंग के जरिए इसे बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। केवल राम मूर्ति ही नहीं बल्कि एक म्यूजियम और आस-पास के जगहों का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा।

सच तो यह है कि न्यायिक प्रक्रिया और राजनीति के बीच चाहे जो भी हो, त्रेता युग की अयोध्या को एक बार फिर पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू हो गया है। शुरुआत अयोध्या के प्राचीन और प्रसिद्ध विद्या कुंड से होगी। माना जाता है कि विद्या कुंड में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने विद्या अध्ययन किया था। उस पुराने माहौल को फिर से पर्यटकों को दिखाए जाने की योजना है। यही नहीं, सरयू नदी कुछ महीने क्यों सूख जाती है इसको लेकर रिसर्च किया जाएगा और उसकी प्रकृति को समझा जाएगा। इसका भी प्रस्ताव जल्द ही सरकार के सामने रखा जाएगा जिससे राम की पैड़ी में प्राकृतिक तरीके से सरयू का पानी लाया जा सके। अयोध्या क्षेत्र में स्थित 11 किलोमीटर की सड़कें जल्द ही नई हो जाएंगी, इसके लिए भारत सरकार द्वारा 37 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है। सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं के आकर्षण वाला क्षेत्र राम जन्मभूमि, हनुमान गढ़ी और कनक भवन के पास की रोड सोनभद्र के लाल पत्थर से बनेगी।

और अगर सब कुछ ठीक रहा तो राम मंदिर की तैयारी में लगे शिल्पकार हरी झंडी मिलते ही मंदिर की नींव रख देंगे क्योंकि पहले फ्लोर के ढांचे की तैयारी पूरी हो चुकी है। केशवपुरम की इस कार्यशाला के प्रभारी अन्नु भाई सोमपुरा के अनुसार पूरी तरह बनने के बाद मंदिर 268 फीट लंबा, 140 फीट चौड़ा और 128 फीट ऊंचा होगा। इस मंदिर में 212 खंभे होंगे। अन्नु भाई बताते हैं, ’हर तल पर 106 खंभे रहेंगे और हर खंभे में 16 मूर्तियां होंगी। मूर्तिकार इन सबके लिए काम पूरा कर चुके हैं।

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