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वैदिक धर्म से विमुख होना ही असली समस्या

वैदिक धर्म से विमुख होना ही असली समस्या

by pallavi anwekar
in आर्य समाज विचार दर्शन विशेषांक २०१९, साक्षात्कार
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महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर इस्लाम से वैदिक धर्म में लौट कर आर्य समाजी बने पंडित महेन्द्र पाल आर्य ने पिछले 36 वर्षों में वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने को समर्पित कर दिया। आर्य समाज के कार्यों, वैदिक धर्म के प्रति विमुखता से उपजे संकटों, हिंदुओं की ऐतिहासिक भूलों, इस्लाम व ईसाइयत जैसे पंथों, पुलवामा हमला आदि पर उनसे हुई विशेष बातचीत के प्रमुख अंशः-

आप मुसलमान थे और मुंबई की एक बड़ी मस्जिद के मौलाना थे, बावजूद इसके किन कारणों से आपने सत्य सनातन वैदिक धर्म स्वीकार किया?
मैं पहले वैदिक सिद्धांत नहीं जानता था। स्वामी दयानंद सरस्वती रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को पढ़ने के बाद मेरी बुद्धि विवेक की चेतना जागृत हुई और मैं सत्य की खोज में निकल पड़ा। सत्य सनातन वैदिक धर्म स्वीकार करने के पूर्व मेरे मन की जिज्ञासा के चलते मैंने कुछ प्रश्न अनेक बड़े-बड़े इस्लामिक शिक्षा संस्थानों से पूछे। परंतु कोई मेरे प्रश्नों का सही जवाब नहीं दे पाया। अंतत: ‘सत्यार्थ प्रकाश’ और वैदिक ग्रंथों को पढ़ने के बाद मुझे यह ज्ञात हुआ कि ईश्वर द्वारा केवल वेदों की रचना की गई है और सत्य सनातन धर्म ही पृथ्वी का एकमात्र ईश्वर की ओर से स्थापित धर्म है, जिसका पालन करने से हमें मोक्ष की प्राप्ति संभव है। इसलिए मैंने स्वेच्छा से सत्य सनातन वैदिक धर्म स्वीकार कर लिया।
आप आर्य समाज से क्यों जुड़े?
मुस्लिम समाज अंधविश्वासियों का समाज है। वह दुनिया की सच्चाई नहीं देखना चाहता। वह अपने नजरिए से ही पूरी दुनिया को देखना पसंद करता है। वहीं दूसरी ओर आर्य समाज शिक्षित लोगों का समाज है, वे सभी पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी हैं। मैं अपनी बाकी जिंदगी बुद्धिजीवीयों के साथ गुजारना चाहता था, इसलिए मैं आर्य समाज से प्रसन्नता पूर्वक जुड़ गया।
धर्म के विषय में आपका क्या मत है?
धर्म के गहरे अध्ययन के बाद मुझे ऐसा लगता है कि जो मानवता की बात करे वही वास्तविक धर्म है और मानवीय मूल्यों का उल्लेख वेदों में समाहित है। वेदों में पूरे विश्व के मानव मात्र के आत्मिक व आध्यात्मिक उत्थान हेतु मार्गदर्शन किया गया है। उसमें हिंदुओं की या किसी मत, पंथ, मजहब, संप्रदायों की बात नहीं है बल्कि पूरी मानवता एवं प्रकृति की भलाई की ही कामना की गई है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात पूरा विश्व हमारा परिवार है और ‘कृण्वंतो विश्वार्मायम्’ अर्थात पूरी दुनिया को श्रेष्ठ बनाओ का ध्येय वाक्य वेदों का ही दिया हुआ है। इसलिए मेरा मानना है कि ईश्वर के द्वारा केवल सत्य सनातन वैदिक धर्म की ही स्थापना की गई है। धर्म (सत्य) को कभी बदला नहीं जा सकता।
वैदिक धर्म स्वीकार करने के बाद आपको किस तरह के विरोध का सामना करना पड़ा?
जब 36 वर्ष पूर्व 1983 में 30 नवम्बर को मैंने सनातन धर्म स्वीकार किया उस समय मैं उत्तर प्रदेश में था। मेरा घर-परिवार, खानदान, रिश्तेदार सभी कोलकाता में रहते थे। इसलिए मुझे तब उनके विरोध का सामना करना नहीं पड़ा। हालांकि बाद में मुझे विरोध का सामना करना पड़ा। सबसे अधिक विरोध एवं दिक्कत मुझे तथाकथित हिंदुओं से ही हुई। बहरहाल, भारतवासियों से प्यार भी बहुत मिला।
वैदिक धर्म के किन गुणों और विशेषताओं की ओर आप आकर्षित हुए?
वैदिक ग्रंथों के सत्य विचारों का मुझ पर सबसे अधिक प्रभाव हुआ। वैदिक सिद्धांतों के सत्यगुणों की विशेषताओं से मैं आकर्षित हुआ। पुरातन सनातन के हजारों ऋषि-मुनियों ने जो सत्य का प्रतिपादन किया और आत्मकल्याण व मोक्ष का जो मार्ग बताया है, मैं उसी पर मार्गक्रमण कर रहा हूं।
सनातन धर्म में ऐसी कौन सी बात है जो इस्लाम या अन्य संप्रदायों के सिद्धांतों में नहीं है?
सत्य सनातन वैदिक धर्म ही ईश्वर प्रदत्त है जो आदि सृष्टि से है और अंत तक रहेगा। जैसे सूर्य अपना प्रकाश देने में किसी के साथ भेदभाव नहीं करता क्योंकि वह ईश्वर प्रदत्त है। उसी तरह धर्म भी ईश्वर प्रदत्त है। मैं बीते कई दशकों से पूरे विश्व के आंगन में यही सत्य उजागर करता आ रहा हूं। विश्व के मानव मात्र के लिए ईश्वर प्रदत्त धर्म ही है। व्यक्ति विशेष के द्वारा चलाए गए अभियान को धर्म नहीं कहते। उसे संप्रदाय, मत, पंथ, महजब कहते हैं। वेदों में जहा मानव मात्र के कल्याण का संदेश दिया है वहीं दूसरी ओर कुरान में केवल-हे इमान लाने वालो, ईमान लाने पर ही जोर दिया गया है। इस्लाम कहता है कि जो मुसलमान नहीं है, जिसका अल्ला पर ईमान नहीं है वे सभी बेईमान हैं। इस्लाम कहता है मुसलमान बनो, ईसाई कहते हैं ईसाई बनो तभी तुम्हारा कल्याण होगा वरना तुम नर्क भोगोगे, लेकिन वेद कहता है मनुर्भव: अर्थात मनुष्य बनो, इसी में तुम्हारा कल्याण निहित है। ऐसे अगणित दिव्य विचार एवं सिद्धांत सत्य सनातन वैदिक धर्म को छोड़कर ईसाई, इस्लाम या अन्य किसी मत, पंथ, संप्रदाय में नहीं है।
आपकी दृष्टि में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना क्यों की? क्या उनके विचार वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं?
अंग्रेंजो के शासन काल में भारत के चहुंओर ईसाइयों का धर्मांतरण चरम पर था, वहीं दूसरी ओर इस्लामिक धर्मांतरण भी फैलता जा रहा था। हिंदू धर्म में फैले कर्मकांड, अंधविश्वास एवं कुरीतियों के चलते धर्म की हानि हो रही थी। इससे व्यथित होकर पुन: सनातन धर्म की स्थापना और उसके रक्षण हेतु आर्य समाज की उन्होंने स्थापना की और उच्च स्तर पर सुधार आंदोलन की शुरूआत की। जो लोग हिंदू से मुसलमान व ईसाई बन गए थे उन्हें पुन: सनातन धर्म में वापस लाया। इसके अलावा अंग्रजों की दासता से मुक्ति दिलाने हेतु उन्होंने राष्ट्रभक्ति की अलख जगाई, जिससे प्रभावित होकर अनेकानेक क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान दिया। आज भी भारत में कर्मकांड, अंधविश्वास, कुरीतियों का बोलबाला है। धर्मांतरण तेजी से अपने पैर पसार रहा है इसलिए इसके समाधान हेतु वर्तमान समय में दयानंद सरस्वती के दिखलाए मार्ग आज भी प्रासंगिक हैं।
हमारे देश की मूल समस्या क्या है और उसका समाधान क्या हो सकता है?
जब-जब भारतवासियों ने सत्य सनातन वैदिक धर्म को भुलाया है तब-तब भारत का पतन हुआ है और भारत अनेकों बार गुलामी की जंजीरों में बंधा है। धर्म से विमुख होना ही देश की मूल समस्या है। धर्म मार्ग पर चलने से ही समस्याओं का समाधान संभव है। हम वेद से अलग होते गए और सत्य से विमुख होते गए। वेद ही सर्वोपरि है वह सभी के लिए है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध या अन्य किसी मत, पंथ, संप्रदाय का वेद में कहीं भी उल्लेख नहीं है। वह तो मानवता के कल्याण हेतु ईश्वर ने वरदान स्वरूप हमें प्रदान किया है। हम आर्यों (श्रेष्ठ) ने स्वयं के शक्ति को भुला दिया, इसलिए दयनीय अवस्था में पड़े हुए हैं।
वैदिक सिद्धांत का क्या अर्थ है?
सिद्धांत अपनी जगह अटल हैं, अनुगामी गलत हो सकते हैं किंतु सिद्धांत गलत नहीं हो सकते। वैदिक सिद्धांतों का व्यापक अर्थ निकलता है। इसे जानने-समझने हेतु हमें वेदों के सारगर्भित लेखों का पठन करना होगा। वेदों की ओर लौटने पर ही भारत का सर्वांगीण विकास संभव है। वेदों में 2 तरह के उपदेश दिए गए हैं- एक निषेध और दूसरा आदेश। निषेध का मतलब है कि वेदों में जिसका निषेध किया गया है उसके नजदीक भी न जाना और आदेश का मतलब है कि वेदों में दिए गए आदेश को अपने जीवन के आचरण में लाना। लेकिन हमने इसका उलटा कर दिया। आदेश को निषेध मान लिया और निषेध को आदेश मान लिया इसलिए काम उलटा हो रहा है।
वैदिक धर्म का प्रतिपादन और प्रचार-प्रसार करने हेतु क्या आप सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं?
जी हां, स्वधर्म एवं स्वदेश को मजबूत बनाने तथा वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करने हेतु सोशल मीडिया का मैं उपयोग करता हूं। देश-धर्म से जुड़े 500 से अधिक वीडियो मैंने यूट्यूब पर डाले हैं। यूट्यूब पर 73 लाख से अधिक लोग मुझसे जुड़े हुए हैं। मैंने सभी को वेद के साथ जोड़ा है। वेद ही सत्य है, सत्य ही परमात्मा है, परमात्मा ही धर्म है। जहां धर्म है वही राष्ट्र है। यह चार एक दूसरे के पूरक हैं। इस संबंध में ढ़ेर सारे वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।
आर्य समाज के महान कार्यों के अलावा उनसे कुछ गलतियां या कमियां रह गई होगीं, क्या इस संबंध में प्रकाश डालेंगे?
आर्य समाज की शुरू से ही एक परंपरा रही है। विद्वानों द्वारा ही उपदेश सुनाया जा सकता है; राजनीतिज्ञों या नेताओं द्वारा नहीं, बावजूद इसके दिल्ली में हुए आर्य समाज के सम्मेलन में नेताओं द्वारा विद्वानों को उपदेश सुनवाया गया। मुझे लगता है कि आर्य समाज को अपना मूल्यांकन करना चाहिए।
आप महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता क्यों नहीं मानते?
सर्वप्रथम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वामी दयानंद सरस्वती ने राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रभक्ति की अलख जगाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरू थे गोपाल कृष्ण गोखले, गोखले जी के गुरू थे महादेव गोविंद रानडे और रानडे के गुरू थे स्वामी दयानंद सरस्वती। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही क्रांतिकारियों को तैयार किया था। बावजूद इसके उनको भुला दिया गया और महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दे दी गई।
आपने ईसाई एवं इस्लामी जगत के बड़े-बड़े विद्वानों के साथ बहस में भाग लिया है और वैदिक सिद्धांत की श्रेष्ठता भी सिद्ध की है। इस बारे में कुछ बताए?
मेरा यह परम धर्म है कि वैदिक सिद्धांत का प्रचार-प्रसार करूं और ढोंगियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर पूरे विश्व में सनातन भगवा ध्वज फहराऊं। सो मैंने बड़े-बड़े विद्वानों के साथ चर्चा में भाग लिया है तथा वैदिक धर्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है और उनके ही मान्यतानुसार धार्मिक पुस्तकों की समीक्षा एवं विवेचना भी की है। जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। मैंने बाइबिल और कुरान की अंधविश्वासी, मनगढ़ंत कहानियों और पक्षपाती भेदभावपूर्ण हिंसक बातों को सामने लाकर उन्हें आईना भी दिखाया। वेद के सामने मैंने उनको खाता खोलने का भी मौका नहीं दिया और वैदिक धर्म की सर्वश्रेष्ठता शास्त्रार्थ में सिद्ध की है।
अब तक आपने कितने इसाई व इस्लामी धर्मावलंबियों की घर वापसी कराई है?
वेदों का प्रचार-प्रसार कर और सत्य के प्रकाश से अवगत करा कर अब तक मैंने लगभग 17 हजार से अधिक ईसाई व इस्लामी धर्मावलंबियों को सत्य सनातन वैदिक धर्म में घर वापसी कराई है। बड़े-बड़े अनेक ईसाई पादरी और मुल्ले-मौलवी को मैंने वैदिक धर्म में दीक्षित किया है।
क्या आपकी रा.स्व. संघ के साथ भी नजदीकियां रही हैं?
मेरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ घनिष्ठ संबंध है। संघ के ठेंगड़ी जी, देशमुख जी, बालासाहेब देवरस जी, रज्जू भैया, आचार्य गिरिराज किशोर जी, अशोक सिंहल जी आदि वरिष्ठ लोगों के साथ मिल कर मैंने काम किया है। सभी के साथ मैंने मंच साझा किया है। सुदर्शन जी के साथ तो मेरा पिता-पुत्र का संबंध था। सुदर्शन जी व उक्त दिव्यात्माओं के सानिध्य में रहना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। सुदर्शन जी के सामने ही दिल्ली के केशवकुंज भवन में जाटव जाति के 13 परिवारों के 80 लोग बाप्तिस्मा करने जा रहे थे जिन्हें मैंने बचाया। तब सुदर्शन जी ने मेरी खूब पीठ थपथपाई और कहा कि बाबा दयानंद जी का आप पर आशीर्वाद है। धर्म जागरण मंच द्वारा दिल्ली प्रांत में परावर्तन (घर वापसी) का जो कार्य होता है, पुरोहित के रूप में मेरे द्वारा ही वह संपन्न होता है।
राजा अकबर हिंदू धर्म स्वीकार करना चाहता था किंतु बीरबल की मूर्खता से ऐसा नहीं हो पाया। अतीत में हुई हिंदुओं की ऐसी ही ऐतिहासिक गलतियों पर प्रकाश डालिए?
मैं हिंदुओं की 3 ऐतिहासिक गलतियों की ओर इंगित करना चाहूंगा, जिसने भारत का इतिहास, भूगोल और भविष्य बदल डाला। पहली है, जब भारत पर राजा अकबर का शासन था, तब हिंदुओं की कर्तव्यनिष्ठा और धार्मिक आचरण से प्रभावित होकर अकबर हिंदू धर्म स्वीकार करना चाहता था, यह बात उन्होंने बीरबल को बताई तब बीरबल ने उनसे पूछा कि क्या गधा कभी घोड़ा बन सकता है? इस तरह बीरबल की बातों में आकर अकबर ने सदा के लिए हिंदू धर्म स्वीकार करने का विचार त्याग दिया। दूसरी है, कालाचंद राय जब काला पहाड़ बन गया। कालाचंद राय एक बंगाली ब्राह्मण युवक था। वह कद काठी से बेहद मजबूत और आकर्षक था। वह नदी के घाट पर स्नान के लिए जाया करता था। जिसे देख कर उस समय के मुस्लिम शासक की बेटी उस पर मोहित हो गई और उसे कालाचंद से प्रेम हो गया, वह उससे शादी करना चाहती थी। यह बात उसने अपने पिता (बादशाह) को बताई तब बादशाह ने बुला कर कालाचंद से पूछा कि क्या वह मेरी बेटी से विवाह करेगा? तब कालाचंद ने कहा कि आप मुस्लिम हैं और मैं हिंदू, कैसे होगा? इसके बाद कुछ विचार करने के बाद वह काशी के पंडितों के पास गया और उनसे पूछा किंतु काशी के रूढ़िवादी पंडितों ने साफ मना कर दिया, उन्होंने कहा कि यह शादी किसी भी हाल में नहीं हो सकती। जिसके बाद वह पुन: राजदरबार में पेश हुआ और यथास्थिति से अवगत कराया। इस बात से आहत होकर राजकुमारी आत्महत्या करने की ओर उन्मुख हुई। तब बादशाह ने कालाचंद से कहा कि हमने तो हमारी बेटी को तुम्हारे समाज में सौंपने हेतु अनुमति प्रदान की थी, अब राजकुमारी आत्महत्या करने जा रही है। इसके बाद लाचार होकर कालाचंद ने इस्लाम स्वीकार कर राजकुमारी से विवाह कर लिया। जिसके बाद उसने चुन-चुन कर ब्राह्मणों को मौत के घाट उतारा। साड़े चउहत्तर मन जनेऊ उसने इकट्ठा किए। काला कपड़ा पहनने और हिंदुओं पर पहाड़ बन कर टूटने के कारण उसका नाम काला पहाड़ बन गया। तीसरी घटना है कश्मीरी पंडितों की। कश्मीर के राजा रणबीर सिंह के काल में सभी कश्मीरी मुसलमान स्वेच्छा से हिंदू बनना चाहते थे, जिसका राजा रणबीर सिंह ने स्वागत किया परंतु वहां के कश्मीरी पंडितों ने इसका विरोध किया और इसके समाधान के लिए काशी के पंडितों के पास गए। तब काशी के पंडितों ने कहा कि जो दूध से दही बन गया वह फिर से दूध कैसे बन सकता है? इस तर्क का हवाला देकर उन्होंने परावर्तन को अस्वीकार कर दिया, बावजूद इसके राजा रणबीर सिंह मुसलमानों को हिंदू धर्म में लाना चाहते थे तब कश्मीरी पंडितों ने कहा कि यदि मुसलमानों को हिंदू बनाया गया तो हम नदी में डूब कर अपनी जान दे देंगे और ब्रह्महत्या का पाप तुम्हें लगेगा। हिंदुओं की अदूरदर्शिता के कारण मुसलमानों को हिंदू धर्म में नहीं लाया जा सका। कश्मीरी पंडित वर्तमान समय में उनके ही पूर्वजों की गलती की सजा भुगत रहे हैं। यदि उस समय कश्मीरी मुसलमानों को हिंदू धर्म में स्वीकार कर लिया गया होता तो आज कश्मीर समस्या नहीं होती और कश्मीरी पंडितों को अपना घर, संपत्ति छोड़ कर निर्वासित जीवन नहीं जीना पड़ता। यदि बंगाल के बादशाह की बेटी को हमारे समाज ने स्वीकार कर लिया होता तो कालाचंद कभी काला पहाड़ बन कर कत्लेआम नहीं मचाता। यदि बीरबल ने अपनी मूर्खता का परिचय न दिया होता तो न पाकिस्तान बनता और न ही बांग्लादेश बनता। इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएं दर्ज हैं फिर भी इतिहास से हम सबक नहीं ले रहे हैं।
पुलवामा में आंतकी हमले के बाद पूरा देश आहत है। इस्लामी जेहादी आतंकवादियों को देश से कैसे खत्म किया जा सकता है?
मैं सबसे पहले सेना के बलिदानियों को श्रध्दांजलि देता हूं और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। केवल जेहादी आंतकवादियों को मारना समस्या का हल नहीं है। हम केवल पेड़ के पत्ते काट रहे हैं, हमें जेहाद की जड़ पर प्रहार करना होगा। मैंने पहले भी कहा है कि मदरसा व मस्जिद जेहादी आंतकवाद के जन्मदाता हैं। कुरान के रहते हुए धरती पर शांति होना संभव नहीं है। कुरान में अल्ला ने खुद ताकीद किया है कि तुम 20 मुसलमानों 200 काफिरों पर भारी पड़ोगे। यदि तुम 100 हो तो 1000 काफिरों पर भारी पड़ोगे। जब अल्ला खुद मुसलमानों को ऐसी प्रेरणा दे तो मुसलमान इससे पीछे क्यों रहेंगे। कुरान में सैकड़ों आयतें ऐसी हैं जो मानवता के पूरी तरह खिलाफ हैं। कुरान में निर्देश दिया गया है कि काफिरों को मारो, काटो, लूटो, वही काम मुसलमान पूरे विश्व में कर रहे हैं। परिणामत: पूरी दुनिया में जेहादी आंतकवाद और आपराधिक गतिविधियों में मुसलमान सबसे आगे हैं। केवल मस्जिद-मदरसे नहीं बल्कि कुरान पर भी चीन की तरह प्रतिबंध लगाना जरूरी है। चीन ने जिस तरह इस्लामिक जेहाद को रोकने हेतु कड़ी कार्रवाई की है उसी तरह भारत में भी करने की आवश्यकता है। 1985 में कलकता हाईकोर्ट में कुरान पर प्रतिबंध लगाने हेतु याचिका दायर की गई थी किंतु उन दिनों ज्योति बसु ने इस याचिका पर सुनवाई होने नहीं दी। कुरान की मानवता विरोधी आयतों पर देश में बहस होनी चाहिए और मस्जिद-मदरसे व कुरान पर प्रतिबंध लगाए बिना इस्लामिक जेहादी आंतकवादियों को जड़-मूल से खत्म नहीं किया जा सकता। भारत देश के 3 टुकड़े होने के बाद भी इस्लामिक मानसिकता एवं कुरान पर शोध व बहस तक नहीं होती, आश्चर्य होता है।
आप पर अब तक कितने प्राणघातक हमले हुए हैं और भारत सरकार आपको सुरक्षा क्यों नहीं देती?
अब तक मुझ पर 6 बड़े हमले हुए हैं और हमलावरों के खिलाफ पुलिस ने कड़ी कार्रवाई तक नहीं की। केवल खानापूर्ति के लिए मामला दर्ज कर पुलिस दिखावटी कार्रवाई करने का ढोंग करती रहती है। सुरक्षा रक्षकों का खर्च स्वयं करना पड़ता है और मेरे पास इतनी आर्थिक संपन्नता नहीं है कि मैं उनका बोझ उठा पाऊं। देशविरोधी कश्मीरी अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में भारत सरकार पैसे खर्च कर सकती है किंतु राष्ट्रहित में कार्य करने वाले देशभक्त भारतीयों की सुरक्षा करने में उसे कोई रूचि नहीं है।
देश भर में फैले ‘हिंदी विवेक’ के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
‘हिंदी विवेक’ के विवेकशील पाठकों सहित देशवासियों को यही संदेश देना चाहूंगा कि देश अभी नाजुक दौर से गुजर रहा है। हमें ऐसे समय में एकजुट रह कर मुश्किलों का सामना करने हेतु तैयार रहना चाहिए। राष्ट्र हमारा सबसे पहले है। हमारा राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तो हम सुरक्षित रहेंगे।

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