हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अस्तित्व की लड़ाई  लड़ रहे वामपंथी

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे वामपंथी

by मुकेश गुप्ता
in दिसंबर २०१९, सामाजिक
0

भगवा जलेगा लिखने वाले वामपंथियों के जवाब में एक फेसबुक यूजर ने लिखा है, अबे जल तो तुम रहे हो जेएनयू के नक्सली आतंकियों, जब 370 हटा तब तुम जले, जब रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तब तुम जले, जब गरीबों के घर गैस सिलेंडर पहुंचा तब तुम जले, जब ट्रिपल तलाक हटा तब तुम जले… लिस्ट लंबी है। जिसमें तुम तिल – तिल कर जल रहे हो और आगे भी जलते रहोगे, तुम्हारी औकात नहीं भगवा जलाने की।

कांग्रेसी, वामपंथी, जेहादी आदि देश विरोधी और हिंदू विरोधियों का गढ़ कहे जाने वाले जेएनयू का असली सच अब देश के सामने आने लगा है। कहते हैं ना जो होता है वह अच्छे के लिए ही होता है और जो हो रहा है वह भी अच्छे के लिए ही हो रहा है। देश दुनिया में जेएनयू विवाद को चाहे जिस रूप में देखा जा रहा हो लेकिन मेरे नजरिए से यह राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी जीत है।

राष्ट्रवाद के उभार और मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही देश विरोधी तत्व बौखलाए हुए हैं। सोशल मीडिया एवं अन्य माध्यमों से जागृत होती देश की जनता की बुलंद होती राष्ट्रधर्म की आवाज से वामपंथियों की वर्षों पुरानी मेहनत पर पानी फिरता जा रहा है। जिस एजेंडे के तहत जेएनयू की स्थापना की गई थी आज वही एजेंडा वामपंथियों के सर्वनाश का कारण भी बनता जा रहा है। यह बात सच साबित हो रही है कि यदि आप किसी और के लिए ग- ा खोदेंगे तो उसमें तुम्हें भी एक न एक दिन गिरना पड़ेगा। जेएनयू में फ़ीस वृद्धि का विरोध करने की आड़ में वामपंथियों के इशारे पर हो रही गतिविधियों से पूरा देश जाग रहा है और जमकर देशवासियों द्वारा इसका विरोध हो रहा है। आज तक के इतिहास में जेएनयू का यह पहला छात्र आंदोलन है, जिसमें पुलिस लाठी चार्ज होने पर इसका जनता द्वारा विरोध नहीं किया गया बल्कि पुलिस की सराहना की गई।

भारत को बदनाम करने का षड्यंत्र

एक समय था जब दुनिया में भारत विश्व गुरु के पद पर आसीन था। भारत में तक्षशिला, नालंदा जैसे अनेक विश्वविद्यालय हुआ करते थे। पूरी दुनिया से छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत आया करते थे। आज फिर से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नए भारत का निर्माण हो रहा है। भारत फिर से तेजी के साथ वैभवशाली राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। देश में विकास, प्रगति और बदलाव के साथ ही सुधार प्रक्रिया तेजी से चल रही है। लेकिन राष्ट्र हित का कार्य देश विरोधी ताकतों को देखा नहीं जा रहा। अब वह पहले की तरह खुलेआम हमले तो नहीं कर सकते, इसीलिए देश दुनिया में मोदी सरकार और भारत को बदनाम करने के लिए नए प्रोपेगेंडा चलाते रहते हैं।

वामपंथियों को हटाने हेतु राष्ट्रवादी ताकतें हो एकजुट

वर्तमान समय में दुनिया के ज्यादातर देशों में राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट चल रहे हैं। हर जगह एक अलग मुद्दा लेकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। चिली में ट्रांसपोर्ट का किराया बढ़ने को लेकर, स्पेन के कोरोलेनिया में रेफरेंडम के लिए, जेएनयू के द्वारा फीस बढ़ोतरी को लेकर, इसी तरह इंग्लैंड, हैती, लेबनान में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। जहां कोई समस्या नहीं है वहां ग्रेटा थेनबर की क्लाइमेट चिंता को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। सभी प्रदर्शन राष्ट्रवादी सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ हो रहे हैं। देखकर लगता है कि किसी विदेशी ताकतों के इशारे पर एक गिरोह सब कर रहा है। प्रदर्शन का तरीका बिल्कुल वामपंथियों वाला है। बार्सिलोना में तो हमने ‘हंसुआ – हथोड़ा’ वाले झंडे भी देखे। जेएनयू में भी वामपंथियों ने ही हंगामा मचाया हुआ है। ऐसे समय में यह सवाल उठता है कि अगर दुनिया में सारे वामपंथी एक जैसा सोच सकते हैं और मिलकर संघर्ष कर सकते हैं। गृह युद्ध की नौबत ला सकते हैं, तो क्या सारे राष्ट्रवादी सरकारें मिलकर इन्हें सबक नहीं सिखा सकती ? अब समय आ गया है कि दुनिया की सभी राष्ट्रवादी सरकारें एकजुट होकर इनका सामना करें।

सोशल मीडिया पर जेएनयू का पर्दाफाश

सोशल मीडिया पर देश की जनता ने भी वामपंथियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है। भगवा जलेगा लिखने वाले वामपंथियों के जवाब में एक फेसबुक यूजर ने लिखा है, अबे जल तो तुम रहे हो जेएनयू के नक्सली आतंकियों, जब 370 हटा तब तुम जले, जब रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तब तुम जले, जब गरीबों के घर गैस सिलेंडर पहुंचा तब तुम जले, जब ट्रिपल तलाक हटा तब तुम जले… लिस्ट लंबी है। जिसमें तुम तिल – तिल कर जल रहे हो और आगे भी जलते रहोगे, तुम्हारी औकात नहीं भगवा जलाने की। इसके अलावा एक अन्य शख्स ने लिखा  है कि जेएनयू का 500 करोड़ से अधिक बजट, 300 करोड़ से अधिक सब्सिडी, प्रतिवर्ष तीन लाख से अधिक प्रति छात्र खर्च। हमारे ही टैक्स के पैसे से अय्याशी करते हो और हमारे ही देश के खिलाफ बोलते हो कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, हम लेके रहेंगे आजादी, कश्मीर मांगे आजादी, जूते मारो हरामखोरों को, ऐसे देश विरोधी ताकतों का सर्वनाश करो, यह हमारे युवाओं को गुमराह कर रहे हैं।’ ट्विटर पर एक शख्स ने लिखा कि ‘दिल्ली में एक चर्च का शीशा टूटा तो सारे टुक हरकत में आ गए और स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा के साथ जेएनयू में अभद्रता हुई तो सब मुर्दे हो गए।’ जेएनयू में हंगामा करने वाले छात्रों को आईना दिखाते हुए एक शख्स ने लिखा है कि सब तरफ जेएनयू में अधेड़ मुफ्तखोंरों ने नाक में दम कर रखा है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान के एक 21 वर्षीय युवा मयंक प्रताप सिंह ने देश का सबसे युवा जज बनने का गौरव प्राप्त किया है। यही फर्क होता है मेहनत और मुफ्त खोरी में। मैंने सोशल मीडिया के कुछ प्रतिक्रियाओं का यहां उल्लेख इसलिए किया कि सरकार यह जान ले और समझ ले कि देश के नागरिक की मेहनत का कार्य का टैक्स जेएनयू पर बर्बाद ना करें या तो जेएनयू जैसी सुख सुविधा सभी शिक्षा संस्थानों को दी जाए या फिर सही अर्थों में नए भारत के नवनिर्माण के लिए नई शिक्षा नीति के साथ ही भेदभाव रहित शिक्षा व्यवस्थाओं को लागू किया जाए।

खिसियानी बिल्ली भगवा नोचे

जेएनयू में हुआ विवेकानंद कांड, रावणपुत्रों की राम जन्मभूमि पर असली कुंठा है। स्वामी विवेकानंद के भगवा वस्त्र नोचने वाले तो भाड़े के टट्टू हैं। उपचार तो होना चाहिए, उनको भाड़े पर रखने वालों का। देशभर से ऐसी मांग उठ रही है कि मोदी सरकार ऐसी संस्थाओं को सुधार ना सके तो बंद ही कर दे। दाऊद इब्राहिम जैसे आतंकवादियों से अधिक खतरनाक तो पूरे समाज को डसने वाले इन जहरीले विश्वविद्यालयों के विषधर प्रोफेसर है जो इस गंदे कार्य की फीस भी हमसे ही वसूलते हैं। पत्रकारों के साथ गुंडागर्दी करने वाले छात्रों से लाख गुणा बुरें वहां के प्रोफेसर हैं। जो ऐसी कुशिक्षा देते हैं।

भारत के एक सामान्य विश्वविद्यालय पर प्रति छात्र जितना अनुदान सरकार देती है, उसके 20 गुणा अधिक जेएनयू को दिया जाता है। कुपात्र को दान देना ही पाप की जड़ है। कश्मीर को भी विशेष सुविधा दी गई थी, पैकेज दिया गया था जिसका प्रतिफल आतंकवाद के रूप में मिला। यदि जेएनयू का पैकेज बंद कर दिया जाए तो यहां गुंडागर्दी बंद होते देर नहीं लगेगी। हराम का खाकर इनका मन बढ़ गया है।

कश्मीर की तरह जेएनयू में प्रोपेगेंडा चलाया जा रहा है

जिस तरह कश्मीर घाटी के एक छोटे से हिस्से में होने वाले प्रोटेस्ट को बढ़ा चढ़ाकर पूरी दुनिया में दिखाया गया। ठीक उसी तरह से जेएनयू के विरोध प्रदर्शन का प्रोपेगंडा चलाया जा रहा है। जिसका पर्दाफाश करने की आवश्यकता है।

विदेशी फंड प्राप्त करने हेतु चलाए जाते हैं प्रोपेगेंडा

बताया जाता है कि आतंकी संगठन और वामपंथी संगठन अपनी मौजूदगी दर्ज कराने हेतु आतंकी हमले और आंदोलन जैसे प्रोपेगेंडा का सहारा लेते हैं। ताकि उन्हें विदेशी फंड मिलता रहे, वामपंथियों के नेतृत्व और उनकी आर्थिक फंडिंग की जांच होनी चाहिए। महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव दंगे में जिस तरह अनेक नक्सली शामिल थे, उसी तरह जेएनयू में भी अर्बन नक्सलियों का बड़ा हाथ होने की संभावना जताई जा रही है।

वामपंथी विचारधारा की हकीकत व इतिहास

मोदी सरकार से मेरी मांग है कि जेएनयू की पूरी फीस माफ कर दी जाए, जेएनयू की कैंटीन होस्टल सब फ्री कर दिए जाएं, जेएनयू पर बुल्डोजर चलाने की सलाह देने वालों को ये समझ नहीं आ रहा कि इस देश में जेएनयू का ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है। इस देश में जेएनयू के ज़िंदा रहने का मतलब है वामपंथ का ज़िंदा रहना और हमारी आने वाली नस्लों में राष्ट्रवाद की भावना जिंदा रहे इसके लिए वामपंथ का जिंदा रहना बहुत ज़रूरी है।

मैं ये बात अपने बचपन के अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। वो 1989 का आखिरी महीना था। देश नब्बे की दशक की ओर बढ़ रहा था और मैं किशोर अवस्था में कदम रख रहा था। तब दूरदर्शन पर एक शो आता था ‘द वर्ल्ड दिस वीक’, इस शो में एक दिन रोमानिया के क्रूर कम्युनिस्ट तानाशाह निकोलई चाउसेस्कू के तख्तापलट की ख़बर दिखाई गई। कामरेड चाउसेस्कू को तख्तापलट के बाद गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया था। ‘द वर्ल्ड दिस वीक’ के उस एपिसोड में दिखाया गया था कि अपने शासनकाल में करीब 4 लाख लोगों की हत्या करवाने वाला कम्युनिस्ट तानाशाह चाउसेस्कू कितनी अय्याशी के साथ ज़िंदगी गुज़ारता था। मेरे किशोर मन को जो सबसे चौंकाने वाली बात लगी थी, वो था कामरेड चाउसेस्कू का बाथरूम, जो पूरा सोने-चांदी का बना हुआ था। सोने के नल, चांदी के शिटपॉट और यहीं से हुआ वामपंथ और उसके घिनौने चेहरे से मेरा पहला परिचय।

जब वामपंथ से परिचय हो गया तो इसके खलनायकों से भी पहचान होने लगी। धीरे – धीरे पता चला कि ये चाउसेस्कू तो कुछ नहीं था। इसके गुरू कामरेड स्टालिन तो क्रूरता में इसके भी बाप थे। उन्होने तो अपने देश के लाखों लोगों को निपटा दिया था। स्टालिन से पहचान हुई तो उनके छोटे भाई माओ के बारे में जानने को मिल गया। कामरेड माओ अपने बड़े भाई स्टालिन से भी आगे थे, उन्होने भी लाखों चीनियों का सफाया किया। फिर तो सिलसिला चल पड़ा, पता चला कि कंबोडिया के कामरेड पोलपोट ने अपने देश की 30 फीसदी आबादी ही खत्म कर डाली। मतलब बोले तो एक से एक परम प्रतापी कामरेडों की कुंडली पढ़ने को मिलती रही और बड़े होते-होते ये समझ आ गया कि चाहे जो करो, लेकिन अगर अच्छा इंसान बनना है तो इस वामपंथी विचारधारा और इन क्रूर और खूनी नफरत से भरे कामरेडों से दूर रहना है।

अब आज के दौर में दिक्कत ये है कि ये वामपंथी पूरी दुनिया से मिट गए हैं। एक जमाने में 60 देशों में राज करने वाली इस लिजलिजी सड़ गली विचारधारा को करीब-करीब पूरी दुनिया ने उखाड़ कर फेंक दिया है। अब बस कहने को ये चीन, वियतनाम, नार्थ कोरिया, लाओस और क्यूबा में बचे हैं। भारत में भी ये बदबूदार विचारधारा करीब-करीब लुप्तप्राय से हैं। बंगाल और त्रिपुरा से साफ होने के बाद अगला नंबर केरल का है। ले दे के इनके चे ग्वारा यानि पोस्टर ब्वॉय सिमट गए हैं जेएनयू में, अब यहां से भी ये मिट जाएंगे तो इस वामपंथी विचारधारा का खूनी पाप आने वाली नस्लों को कैसे पता चलेगा ?

बात को कुछ ऐसे समझिए, सोचिए अगर कन्हैया-उमर के गिरोह ने अगर टुकड़े-टुकड़े वाले नारे नहीं लगाए होते तो क्या इस देश की बाकी युवा पीढ़ी को वामपंथ की ज़हरीली सोच का पता चलता ? याद कीजिए जेएनयू गैंग की करतूतों के बाद ही इस देश में राष्ट्रवाद पर एक बहस छिड़ी और आज राष्ट्रवाद एक क्रांति बन चुका है। ये कुछ ऐसा ही था जैसे अमेरिका के लोगों और उसके मीडिया को तभी इस्लामिक आतंकवाद की असलियत का अहसास हुआ जब लादेन मियां ने ट्वीन टॉवर उड़ा दिए। उसके बाद तो जैसे हर अमेरिकी की जुबान पर इस्लामिक आतंकवाद का लफ्ज़ चढ़ गया। याद कीजिए ज्यादा पुरानी बात नहीं है, अमेरिका में हुए हाउडी मोदी शो में मोदी ने जहां अपने भाषण में सिर्फ आतंकवाद शब्द बोला, वहीं ट्रंप ने अपने भाषण में इस्लामिक आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया।

चलिए वापस आते हैं जेएनयू पर, आज जब अखबार में पुलिस की लाठी से घायल हुए छात्र संदीप के. लुईस की तस्वीर छपी तो लोगों ने सहानुभूतिवश उसके फेसबुक प्रोफाइल को चेक किया और जब चेक किया तो ये पाया कि इस ‘देशभक्त’ छात्र लुईस के फेसबुक के कवर फोटो में कश्मीर का एक ‘मनमोहक’ दृश्य चिपका हुआ है जिसमें जालीदार टोपी पहने हुए एक कश्मीरी युवा उछल कर भारतीय सेना की बख्तरबंद गाड़ी को लात मार रहा है। थोड़ा और चेक किया तो लुईस भाई की फेसबुक में नज़र आई एक और तस्वीर जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा पूर्ण नग्न और बेहद आपत्तिजनक अवस्था में थे और उस तस्वीर को शेयर करते हुए ये मासूम लुईस पूछ रहा है कि I guess this is a kangra painting और साथ में लुईस भाई एक कमिनी मुस्कान वाला इमोजी भी बना रहे हैं। अब आप सोचिए अगर जेएनयू नहीं होता तो क्या आप संदीप के. लुईस जैसे मासूम छात्रों की इस मासूम सोच से वाकिफ हो पाते ? याद रखिए जब तक भारत को तोड़ने वाली मानसिकता ज़िंदा रहेगी, राष्ट्रवाद उतनी ही प्रखरता से चमकेगा। इसीलिए तो मैं कह रहा हूं जेएनयू का ज़िंदा रहना जरूरी है, तो लेकर अपने हाथ में ढपली, ज़ोर से बोलिए मेरे साथ Long Live JNU … long live the revolution … जेएनयू जिंदाबाद … सारे कामरेडों को लाल सलाम… लाल सलाम

थियानमेन चौक , चीन…

जब JNU जैसे राष्ट्रविरोधी नारे चीन में गूंजे तो चीन ने क्या किया?

वर्ष 1989 अप्रैल माह की पंद्रह तारीख! उस दिन थियानमिन चौक पर एक बेहद वीभत्स दृश्य उपस्थित था जहां तक नजर जाती थी केवल और केवल इंसानी जिस्मों के चीथड़े बिखरे नज़र आ रहे थे! हाथ  कहीं तो पैर कहीं ! दीवारें मानव-रक्त से भीगी पड़ी थीं! चौक से मिलती सड़क का हर भाग पार्कों में उगी घास सब कुछ कटे-फटे अंगों से अटा हुआ था! जगह थी चाइना चौक का नामथियानमेन चौक! और टुकड़े किनके बिखरे हुए थे?

एक छात्र आंदोलन चीन में भी हुआ था 3-4 जून 1989 को, जिसे दुनिया थियानमेन चौक नरसंहार के नाम से जानती है

उस आन्दोलन में चीनी छात्र लोकतंत्र, आजादी के समर्थन में नारे लगाते-लगाते इतने ज्यादा जोश में आ गए कि चीन विरोधी नारे लगाने लगे। वो थे चीन-राष्ट्र की संप्रभुता के विरुद्ध नारे बुलंद करने वाले छात्र आदर्श लिबरल छात्र जो चीन का ही अनाज खाते हुए भी उस की मिट्टी से ग़द्दारी कर रहे थे उस देश की नीतियों को चुनौती दे रहे थे, उस देश की बर्बादी के तराने गा रहे थे!

लेकिन तब इस पर पुलिस ने उनको गिरफ्तार नही किया बल्कि उनको लाइन में खड़ा करके चीनी सेना ने सीधे उन पर तोप के गोले दागे थे। पूरे थियानमेन चौक को टैंकों से घेर कर गोलों से उड़ा दिया था पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने!

हालांकि तब इस घटना की दुनिया भर में कड़ी निंदा हुई थी लेकिन चीन की सरकार ने कहा था हम देशद्रोहियों से ऐसे ही निपटेंगे, ताकि अगली बार देश के विरुद्ध बात तो क्या सोचने वालो की भी रुह कांप जाए, बाकी दुनिया को जो करना है कर ले।

दुनिया चिल्लाती रह गयी पर चीन ने अपने विरुद्ध सर उठाने वाले एक भी तथाकथित छात्र को जीवित नहीं छोड़ा!

नतीजा?

चीनी छात्र आज अनुशासित है,डॉक्टर, इंजीनियर बन अपना और अपने देश का नाम रोशन कर रहे है! लेकिन भारत देश में आज जेएनयू में कन्हैया और उमर ख़ालिद जैसे डेढ़ पसली के देश-द्रोही कीड़े जब सरेआम अपनी बत्तीसी चियार कर मेरे भारत के हुतात्मा सैनिकों और मेरी बेबसी का मज़ाक उड़ा रहे हैं तो मुझे वर्ष नवासी में थियानमेन चौक पर हुए उस लोम-हर्षक नरसंहार की जाने क्यों इतनी याद आ रही है?

एक ये कथित लोकतांत्रिक देश हैं जहाँ पहले लोकतंत्र की आजादी के नाम पर देश को खत्म करने की बातें होती हैं, सुरक्षा बलों को गालियां दी जाती है और फिर बाद में इसी लोकतंत्र के लचीलेपन का फायदा उठाकर आतंकियो, देशद्रोहियों के बचाव के लिए सड़क, संसद, सुप्रीम कोर्ट चलाई जाती हैं।

शिक्षा के जिन मंदिरों में अब देश के टुकड़े करने के नारे लगाये जाने लगे हो, आतंकी को शहीद बताया जाने लगा हो,जहाँ गद्दारी पर Phd होने लगी हो,देशद्रोह के ऐसे स्मारकों को ‘जेसीबी मशीन’ से ‘खंडहर’ बना देना ही बेहतर है। यूनिवर्सिटी की जिन किताबों से गद्दारी की ‘शिक्षा’ मिलती हो उनकी अब होली जलाना ही बेहतर है। इन सभी छात्रों के एडमिशन कार्ड फाड़ कर उन्हें हनुमन्त थप्पा की जगह सियाचिन भेज देना चाहिये ताकि वे वहां देशभक्ति की ठंडी हवाएँ महसूस कर सके या फिर नरेगा में इनके जॉब कार्ड बनाकर इनके हाथों में तसला-फावड़े दे देनी चाहिये ताकि ये जान सके की तपती दुपहरी में ‘भारत-निर्माण’ कैसे होता है। फिर भी बात न बने तो दोस्तों चीन की तरह आक्रामक नीति का इस्तेमाल करे।

 

 

 

मुकेश गुप्ता

Next Post
अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मलेन सम्पन्न

अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मलेन सम्पन्न

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0