कैसे बढ़ाएं परिवारों में आपसी मेल मिलाप

परिवारों के बीच प्रेम बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम एक दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार बनें। बिना किसी अपेक्षा के एक दूसरे की सहायता करें। अपने ही अपनों के काम आते हैं। पर यदि अपने अपनों के काम नहीं आते तो वे गैर बन जाते हैं। दूरी बनाने से रिश्तों में कटुता स्वाभाविक रूप से आ जाती है। यह कटुता फिर मिटाए नहीं मिटती।

स्टेशन पर खड़ी महिमा एक युवक को बड़े ध्यान से देख रही थी। उसे वह शक्ल कुछ जानी पहचानी सी तो लग रही थी, पर दिमाग पर बहुत जोर देने पर भी वह उसे पहचान नहीं पा रही थी। इतने में उस युवक ने पैर छूते हुए कहा, चाची जी प्रणाम। महिमा अपने ही देवर के बेटे मयंक को न पहचानने के कारण बड़ी शर्मिंदा थी। वैसे गलती महिमा की भी तो नहीं थी, क्योंकि उसने मात्र आठ वर्ष के मयंक को देखा था। दस वर्ष बाद वह बिल्कुल बदल गया था। महिमा में कुछ ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ था, इसलिए मयंक ने महिमा को पहचान लिया था। भाई-भाई के परिवारों में इतनी दूरी एक टीस सी उत्पन्न करती है मन में।
वैसे तो आजकल अधिकतर एकल परिवार होते जा रहे हैं। पर अलग रहकर भी भाई-बहन, सगे सम्बन्धियों में आपसी प्रेम बना रहे तो कितना अच्छा हो। हम चाहें तो दूर रहकर भी सभी के संपर्क में रह सकते हैं। बात समय या दूरियों की नहीं होती है; बात तो बस दिल की होती है। ठीक ही कहा गया है ‘जहां चाह है, वहां राह है।’ आज की भागमभाग ज़िन्दगी में लोग अपने आप में ऐसे उलझ कर रह गए हैं कि उन्हें अपनों से मिलने का समय ही नहीं मिलता। बस खुद और खुद के परिवार तक ही दुनिया को समेट कर जीने की आदत सी पड़ती जा रही है। ऐसा करने से हम जिंदगी के असली आनंद से वंचित होतेजा रहे हैं।
जिनके साथ हमारा बचपन बीता है, जिनकी मधुर स्मृतियां दिल के किसी कोने में चुपचाप सो गयी हैं। उन यादों को भी जब मिलन के पंख मिल जाते हैं, तो वे यादें सहसा प्रेम, उल्लास, उमंग और आनंद की उड़ान लगा कर जीवन को नवीन रंगों से रंग देती हैं। जीवन को माधुर्य से भर देती हैं।

खुशियों की बौछार हो, जब अपने हों साथ।
प्रेम भरी बतियां करें, लिए हाथ में हाथ।

परिवारों के आपसी मेल मिलाप से जीवन में खुशियां लाने हेतु हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
आजकल इन्टरनेट का ज़माना है हर व्यक्ति फोन से आपस में जुड़ा हुआ है। स्काइप, फेसबुक, आदि पर वीडियोकॉल कर सकता है। फिर इतनी दूरियां क्यों? हमें अपना टाइम टेबल ऐसा बनाना चाहिए कि हम अपने माता-पिता से एक-दो दिन में कम से कम एक बार वीडियोकॉल अवश्य करें। हर हफ़्ते अपने किसी न किसी रिश्तेदार से वीडियोकॉल करें। आपस में एकदूसरे से बात करने से ही प्रेम बढ़ता है। मेलजोल का एक सबसे अच्छा तरीका है कि साल में एकबार पूरे परिवार का गेट टूगैदर होना चाहिए। सभी लोग मिल कर खर्च करें और दो-तीन दिन की एक अच्छी सी ट्रिप बनाएं। इसमें किसी के ऊपर कोई काम, ज़िम्मेदारी और खर्च का बोझ नहीं आता। सभी लोग किसी होटल या धर्मशाला में मिलकर आनंद उठा सकते हैं। अपना बचपन फिर से जी सकते हैं। जब अपने परिवार के सभी लोग आपस में मिलते हैं, तो आपस में प्रेम बढ़ता है। एक दूसरे की भावनाओं को समझने का अवसर मिलता है। इस मेल मिलाप से जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है।

जब सब मिलें तो खूब मौज-मस्ती करें। उन पलों को यादगार पल बनालें। खूब हास्य बिखेरें। पर याद रहे ऐसा कोई उपहास न करें जो सामने वाले व्यक्ति को चुभे। नृत्य-संगीत, चुटकले, तम्बोला, घूमना, आदि से एक-एक पल को रंगीन बनाएं। एक दूसरे की कलाओं को प्रोत्साहन दें। एक दूसरे के विकास में सहायक बनें।

जब हम अपने भाई -बहनों रिश्तेदारों के साथ मिलें तो अमीर-गरीब के भेदभाव को बिल्कुल भूल जाएं। यदि हम अपने को श्रेष्ठ और दूसरे को हेय दृष्टि से देखेंगे तो कभी आपसी प्रेम नहीं बढ़ सकेगा। घमंड दूरियां ही बढ़ाता है।

कभी-कभी सुविधानुसार हमें दो-चार दिन के लिए एक दूसरे के घर भी जाना चाहिए। पर ध्यान रहे, वहां जा कर मेहमान न बने रहें, अपितु घर के काम काज में हाथ बटाएं। मिलजुल कर काम करने से हम किसी के ऊपर बोझ नहीं बनते। यदि एक शहर में रहते हैं तो एक दूसरे को भोजन आदि के लिए निमंत्रित करते रहना चाहिए।

जब मिलें तब अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार एक दूसरे को उपहार भी दें। सामने वाले की पसंद का ध्यान रखें। छोटी से छोटी वस्तु भी यदि प्यार से दी जाये तो उसका हमेशा मान करें। पर यदि ये उपहार बोझ हो रहे हों, तो उपहार देने की आवश्यकता नहीं है। उपहार को उपहार ही रहने दें, तोल-मोल के बोल लगा कर उसका मूल्यांकन न करें।

हर व्यक्ति का अपना एक स्वभाव होता है, उसकी अपनी प्रवृत्ति होती है। जैसा वह है, हमें उसे वैसे ही स्वीकारना चाहिए। हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। आपसी प्रेम को बनाये रखने के लिए, जीवन में सरसता लाने के लिए अपने अहं को त्यागना अत्यंत जरूरी है।

अकसर देखा जाता है कि जब रिश्तेदार मिलते हैं, तब रात-रात भर जाग-जाग कर परनिंदा में खूब रस लेते हैं। ध्यान रखें, परनिंदा में समय बर्बाद न करें। दो रिश्तेदार मिल कर अगर तीसरे की निंदा में लगे रहे तो चौथा आपकी निंदा में रस लेगा। इसलिए निंदा रस से दूर ही रहें।

पुरानी और नई पीढ़ियां भी आपस में जरूर मिलें। अक्सर बच्चे कह देते हैं, बड़ों के साथ हम क्या करेंगे, हम बोर हो जाएंगे। पर ऐसा नहीं है जब पुरानी और नई पीढ़ी आपस में मिलती हैं, तभी सामंजस्य होता है। दोनों पीढ़ियां एक दूसरे से बहुत कुछ सीखती हैं।

हमें कभी भी आपस में अपने बच्चों, या परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना नहीं करनी चाहिए। जैसे मेरा राहुल तो पढ़ने में बहुत होशियार है, पर दीदी का बेटा तो मुश्किल से सेमिस्टर पास कर पाता है। इस तरह की तुलना से रिश्तों में कड़वाहट पैदा होती है।

कहते हैं एक साथ भोजन-भजन से आपसी प्रेम बढ़ता है। अतः साथ बैठ कर नाश्ता, खाना आदि खाएं। यदि आपके घर में आरती होती है, तो सामूहिक आरती करें।

बड़ों का सम्मान करें, जिससे अगली पीढ़ी भी अच्छे संस्कार ग्रहण कर सके। अपने माता-पिता का पूरा ध्यान रखें। उनकी हर जरूरत में उनके साथ बने रहें।

परिवारों के बीच प्रेम बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम एक दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार बनें। बिना किसी अपेक्षा के एक दूसरे की सहायता करें। अपने ही अपनों के काम आते हैं। पर यदि अपने अपनों के काम नहीं आते तो वे गैर बन जाते हैं। दूरी बनाने से रिश्तों में कटुता स्वाभाविक रूप से आ जाती है। यह कटुता फिर मिटाए नहीं मिटती। रहीम दास जी ने लिखा है –
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय।

टूटे पे फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाय।
उत्सव मनुष्यों में एक नई स्फूर्ति, ऊर्जा और प्रेम का संचार करते हैं। अतः जन्मदिवस, शादी की सालगिरह या अन्य कोई सामाजिक-धार्मिक उत्सव यथा सामर्थ्य मनाएं और अपने लोगों को आमंत्रित करें और जीवन का आनंद लें।
परिवारों के बीच मिठास बनाए रखना हम सभी का दायित्व है। ऐसा न सोचें कि उसने फोन नहीं किया, तो मैं क्यों करूं। वह मेरे घर एक बार आया है, तो मैं भी एक बार ही जाऊंगा आदि।

मेरे घर में तो सब खाना खा चुके, अब तो उनकी बारी है। पहले वे बुलाएं तभी मैं बुलाऊंगी। अपनों के बीच ऐसी छोटी सोच न रखें।

परिवारों में प्रेम बनाए रखने के लिए बड़ों के संस्कार बहुत काम आते हैं। जीवन की आपाधापी में या स्वार्थ के कारण बड़ों के द्वारा दिये गए संस्कार हमें भूलने नहीं चाहिए। हमें अपनी अगली पीढ़ी को भी सुसंस्कृत करना है।

परिवारों में प्रेम और मेल-मिलाप बनाए रखने के लिए जरूरी है कि माता-पिता समय रहते अपनी विल बना दें। जिससे संपत्ति संबंधी कोई लड़ाई न हों।

सच यह है, यदि हम सब भाई-बहन, नाते रिश्तेदार एक दूसरे को प्यार सम्मान देते हुए आपस में मिलते रहते हैं, तो जीवन में खुशियों के अनंत पुष्प खिल जाते हैं छोटी-छोटी खुशियों से हम सबकी झोली भर जाती है। जीवन में आनंद की धारा प्रवाहित होने लगती है। अपनों से मिल कर जो आत्मिक शांति, प्रेम, उल्लास, उमंग की अनुभूति होती है उसका सुख अवर्णनीय है।
परिवारों के मेल से, खुशियां मिलें अपार।
प्रेम धार बहती रहे, जुड़ें हृदय के तार।

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