फुंसियां…

Continue Readingफुंसियां…

तुम एक रुग्ण मानसिक अवस्था हो और मुझे अब इस रुग्ण मानसिक अवस्था का हिस्सा और नहीं बनना। हमारे पास जीने के लिए एक ही जीवन होता है और मुझे अब यूं घुट-घुट कर और नहीं जीना। आज मैं स्वयं को तुमसे मुक्त करती हूं। एक बात और, मुझे अपने चेहरे पर उगी हुई फुंसियां अच्छी लगती थीं और वे सभी लोग अच्छे लगते थे जो उन फुंसियों के बावजूद मुझे चाहते थे, मुझसे प्यार करते थे। प्यार, जो तुम मुझे कभी नहीं दे सके।

केवल झाग, बस वही

Continue Readingकेवल झाग, बस वही

“दरवाज़े के पास पहुंच कर वह एक पल के लिए रुका और मेरी ओर मुड़ कर उसने कहा, उन्होंने मुझे बताया कि तुम मेरी हत्या कर दोगे। मैं केवल यही जानने के लिए यहां आया था। पर किसी को मारना इतना आसान नहीं होता। तुम मेरा यक़ीन मानो...”

मारेय नाम का किसान

Continue Readingमारेय नाम का किसान

“अचानक किसी चमत्कार की वजह से मेरे भीतर मौजूद सारी घृणा और क्रोध पूरी तरह ग़ायब हो गए थे। चलते हुए मैं मिलने वाले लोगों के चेहरे देखता रहा। वह किसान जिसने दाढ़ी बना रखी है, जिसके चेहरे पर अपराधी होने का निशान दाग दिया गया है, जो नशे में धुत्त कर्कश आवाज़ में गाना गा रहा है, वह वही मारेय हो सकता है।”

एक दिन अचानक

Continue Readingएक दिन अचानक

“सुमी, लौट आओ! अब मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा। पुलक, मेरे लाल- तुम दोनों के बिना मैं अधूरा हूं। ...समय के ताल में यादों के पत्थर डूब रहे हैं- गुड़ुप्, गुड़ुप् ...”

पहचान

Continue Readingपहचान

‘आख़िर थोइबा ने अपनी मणिपुरी पहचान और विरासत को स्वीकार कर लिया था। प्रशांत को लगा कि उसकी पत्नी लीला भी स्वर्ग में से अपने बेटे का अपनी मणिपुरी पहचान को स्वीकार कर लेना देख कर बेहद प्रसन्न हो रही होगी।”

सहसा एक दिन

Continue Readingसहसा एक दिन

पहले-पहल बच्चों के मज़े लग गए। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से ़फुर्सत मिल गई। उन्हें लगा जैसे वे सारा नज़ारा हरे रंग का चश्मा लगा कर देख रहे हों। मांएं बच्चों को हरे रंग का दूध पिला रही थीं। चॉकलेट का रंग केवल हरा नज़र आ रहा था। हरे रंग में रंगे कौवे, नीचे उड़ती हरे रंग की चीलों को सता रहे थे। हरे रंग की कोयल जैसे हरियाली के पक्ष में गीत गा रही थी।

इंसाफ़

Continue Readingइंसाफ़

कौन जाने, बरसों पहले 1984 में मरे दिलदार सिंह जैसे किसी सिख दंगा-पीड़ित की उस दिन ‘वापसी‘ हुई हो और उसकी रूह ने सुमंतो घोष के शरीर में प्रवेश करके दुर्जन सिंह से अपना बदला ले लिया हो। .... बरसों बाद दंगा-पीड़ितों को इंसाफ़ मिल गया।

दिन भर का इंतज़ार

Continue Readingदिन भर का इंतज़ार

“बिस्तर के पैताने पर टिकी हुई उसकी निगाह धीरे-धीरे शिथिल हुई। अपने ऊपर उसकी पकड़ भी अंत में ढीली हो गई और अगले दिन वह बेहद सुस्त और धीमा था और वह बड़ी आसानी से उन छोटी-छोटी चीज़ों पर रोया, जिनका कोई महत्व नहीं था।”

कालू

Continue Readingकालू

कभी-कभी आप जिससे नफ़रत करते हैं, आपको उसकी भी आदत पड़ जाती है। यदि अचानक वह नहीं रहे तो आपके जीवन में एक ख़ालीपन, एक सूनापन आ जाता है। आपके भरे-पूरे जीवन से जैसे कुछ छिन जाता है। इस लिहाज़ से नफ़रत और प्यार एक ही सिक्के के दो पहलू…

अपना शहर

Continue Readingअपना शहर

“चलने से पहले एक भरपूर निगाह मकान पर डालता हूं। ऐ मेरे मन, रोना नहीं, रोना नहीं -खुद से कहता हूं।  ट्रक चल पड़ा है। पीछे-पीछे कार। अब हम गली से बाहर आ गए हैं। अपना शहर तो छूट गया।”

खोया हुआ आदमी

Continue Readingखोया हुआ आदमी

“दुखी गांव वालों ने खोये हुए आदमी की याद में उसकी एक मूर्ति बना कर गांव के बीचोंबीच स्थापित कर दी। गांव वालों ने प्रण लिया कि वे उस खोये हुए आदमी के दिखाए मार्ग पर चलेंगे। आज भी यदि आप उस गांव में जाएंगे, तो आपको उस खोये हुए आदमी की वहां स्थापित मूर्ति दिख जाएगी।”

कालू

Continue Readingकालू

कभी-कभी आप जिससे नफ़रत करते हैं, आपको उसकी भी आदत पड़ जाती है। यदि अचानक वह नहीं रहे तो आपके जीवन में एक ख़ालीपन, एक सूनापन आ जाता है। आपके भरे-पूरे जीवन से जैसे कुछ छिन जाता है। इस लिहाज़ से नफ़रत और प्यार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

End of content

No more pages to load