धींग एक्सप्रेस हिमा दास

असम में धींग एक्सप्रेस के रूप में चर्चित हिमा दास की उपलब्धियों से असम के युवा धावकों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। उसने अब तक 6 स्वर्ण पदक जीते हैं और ओलंपिक के लिए उसके क्वालिफाई होने की उम्मीद है।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन करने वाली असम की धाविका हिमा दास भावी धावकों की भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन गई हैं। असम में धींग एक्सप्रेस के रूप में चर्चित हिमा दास की उपलब्धियों से असम के युवा धावकों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। यह उम्मीद की जाती है कि उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर असम से कई युवा धावक आगे बढ़ेंगे। कामरूप के एक छोटे कस्बे डिगारू के 19 वर्षीय अजीत केलेंग हिमा दास से प्रभावित होकर रोजाना 10 किमी की यात्रा करके गुवाहाटी के सरुसजाई स्टेडियम पहुंच जाते हैं। वे अपने परिवार की मदद के लिए सुबह 6 बजे से अपराह्न 2 बजे तक एक निजी फर्म में नौकरी करते हैं और उसके बाद 3 बजे से दौड़ के अभ्यास के लिए स्टेडियम के ट्रैक पर पहुंच जाते हैं। सन 2016-17 में हिमा दास भी उसी ट्रैक पर अभ्यास करती थीं। कोच निपन दास ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और अपनी देखरेख में आगे बढ़ाया। निपन दास ही अभी कई धावकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। उसी तरह 300 किमी दूर शिवसागर से आकर सत्यानिता गोगोई गुवाहाटी आकर निपन दास की देखरेख में जीतोड़ मेहनत कर रही हैं।

एथिलीट अकेडमी के मुख्य कोच निपन दास बताते हैं कि पहले  मात्र 10 लड़के-लड़किया अभ्यास के लिए आया करते थे, वे भी नियमित नहीं थे, लेकिन हिमा दास की सफलता के बाद एकेडमी में जगह नहीं है। इस बार करीब 200 युवा खिलाड़ियों ने प्रवेश के लिए आवेदन दिया था। उनमें से करीब 100 युवा खिलाड़ी रोजाना प्रशिक्षण के लिए आते हैं। वे कहते हैं कि पहले युवा क्रिकेट या फुटबॉल खेलते थे, लेकिन अब उनका झुकाव एथिलीट की तरफ बढ़ा है। हिमा की सफलता से उन्हें लगता है कि इस क्षेत्र में भी लोकप्रियता और पैसा है।

हिमा का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता जा रहा है। उसने यूरोपीय देशों में विभिन्न स्पर्धाओं में तीन सप्ताह के दौरान छह स्वर्ण पदक जीते हैं। एक स्वर्ण पदक उसे प्रिय 400 मीटर की दौड़ में मिला है। लेकिन पिछले अप्रैल माह में पीठ की दर्द से वह परेशान थीं। उसके बाद खेलप्रेमी और उनके प्रशंसक चिंता में पड़ गए थे। लेकिन लगातार सावधानी और कोच की दिशा-निर्देश का पालन करने की वजह से वह अभ्यास करने लगी। हिमा को भी पता है कि ये छह स्वर्ण खिताब उसे विश्व चैंपियनशिप तक पहुंचाने के पर्याप्त नहीं हैं। लेकिन इन मैचों में भाग लेने से उसे अभ्यास का मौका मिल रहा है। इससे उसे अपनी क्षमता बढ़ाने का मौका भी मिल रहा है। विश्व स्तरीय स्पर्द्धाओं के योग्य बनने के लिए उसे अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाना होगा। अच्छी बात यह कि उसके प्रदर्शन में लगातार सुधार हो रहा है। अभी वह मात्र 19 वर्ष की है। उसके पास काफी समय है। इसलिए उसे लगातार मेहनत करनी होगी।

हिमा दास ने अब तक अपने प्रदर्शन से असम और भारत का नाम बढ़ाया है। उस पर पूरे देश की नजर है। उसमें आगे बढ़ने का जज्बा है। तभी तो नगांव जिले के पिछड़े इलाके के एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी उसने राष्ट्रीय खेलों में बेहतर प्रदर्शन कर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा। अब यह उम्मीद की जाती है कि वह ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई कर लेगी। इसलिए अब उसे अपना पूरा ध्यान दौड़ पर ही लगाना होगा। हिमा दास की वजह से पूरे असम में खेलों के प्रति एक जोश जगा है। असम सरकार भी राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ कर रही हैै। गुवाहाटी को खेल की राजधानी बनाने की दिशा में उम्दा काम हुआ है। फिर से अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा का आयोजन होने वाला है। सरुसजाई में खेल के आयोजन के लिए बेहतर सुविधा उपलब्ध है। ग्रामीण इलाके में खेलों को बढ़ावा देने के लिए जिला स्तर पर और चाय बागान स्तर पर भी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। जिसका परिणाम है कि राज्य में कई खेलों में खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। युवा पीढ़ी का ध्यान अगर खेलों के प्रति रहेगा तो उनमें प्रतियोगिता की भावना बढ़ेगी।

हिमा दास को असम का खेल एंबेसडर बनाकर राज्य में खेलकूद का बेहतर माहौल बनाया जा सकता है। हिमा दास एक प्रतीक बन चुकी है, लेकिन फिलहाल उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए सभी को दुआ करनी चाहिए। हिमा दास पर हमें नाज है।

 

 

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