थाईलैण्ड ने आज भी हिंदू संस्कारों से सराबोर अपनी संस्कृति को बचाए रखा है। वहां राजा का नाम राम रखने की परम्परा कायम है। फिलहाल दसवें राम राजा गद्दी पर हैं। वहां जीवन के सभी अंग अर्थात- अमृत और विष- दोनों मौजूद हैं। आप क्या लेना चाहेंगे यह आपकी भावना पर निर्भर है। तुलसी ने सच कहा है- जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।
दिल्ली में मेरे अनन्य मित्र श्री योगेश अग्रवाल ने कुछ दिनों पहले ही मुझ से बैंकाक में श्री रामकथा के लिए जबर्दस्ती सहमति ले ली थी। श्री योगेशजी का आग्रह और मेरे मित्र श्री सुरेन्द्र विकल के सुपुत्र चि. सौमित्र, जिसका बैंकाक में बड़ा कारोबार है, के आत्मीय आमंत्रण को टालना मुश्किल था अतएव अगस्त 2019 में मेरे अनुज एवं श्रीमद् सुंदरकांड के सुप्रसिध्द गायक श्री अजय याज्ञिक के साथ बैंकाक जाने का यह सुअवसर था। हमारे साथ शिकागो से आए हमारे मित्र डाँ सूर्यकांत खापेकर भी संयोगवश साथ हो लिए थे।
दि.17 अगस्त को नई -दिल्ली से थाई एयरवेज की रात्रि 1.00 बजे की उड़ान से हम लोग प्रात 7.30 बजे बैंकाक के स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर उतरे। विदेशी धरती पर यदि आप एयरपोर्ट का नाम स्वर्णभमि सुने तो चकित होना स्वाभाविक ही है और ऐसा हमें भी हुआ। बहरहाल, स्वर्णभूमि विमानपत्तन पर हम सब उतरे। आव्रजन की सारी औपचारिकताएं पूरी करके बाहर आए तो हमारे आतिथ्य के लिए वहां श्री सुशील कुमार धानुका थे, जिन्होंने बड़ी ही गर्मजोशी के साथ हम सबका स्वागत किया। एयरपोर्ट के प्रवेश द्वार पर हमने बहुत बड़ी देव-मूर्ति के दर्शन किए। मैंने धानुकाजी से पूछा, यह किस देवता की मूर्ति है, तो उन्होंने बताया कि यह ब्रह्माजी की मूर्ति है। उन्होंने कहा कि भारत में ब्रह्माजी केवल पुष्कर अजमेर (राजस्थान) में मिलेंगे, किन्तु थाईलैण्ड में ब्रह्माजी हमारे वास्तुपुरुष हैं। प्रत्येक भवन के प्रवेश द्वार पर हर घर के प्रवेश द्वार पर आप को ब्रह्माजी की सुंदर मूर्ति के दर्शन होंगे, जिनका प्रतिदिन पूजन भी होता है। धानुका जी की यह सूचना न केवल हमारे लिए आश्चर्य का विषय थी बल्कि हमारे लिए गर्व की बात भी थी।
एयर पोर्ट से बैंकाक शहर की दूरी को हमने लगभग 50 मिनट में पूरा किया था। बैंकाक आधुनिकता और पुरातन बौध्द संस्कृति तथा शिल्प के संगम का अदभुत शहर है। पूरे रास्ते गगनचुम्बी अट्टालिकाएं, किन्तु साथ में ही मंदिर, अदभुत कलाकृतियां तथा प्राचीन शिल्प के भवन, कहीं चौडी और कहीं संकरी सड़कें, फ्लाई ओवर, मेट्रो, मॉल सभी कुछ ऐसे दृश्य उपस्थित हो रहे थे जैसे हम मुंबई में या भारत के किसी बड़े शहर में हो।
बैकाक थाईलैंड का सबसे बड़ा शहर है और थाईलैंड की राजधानी है। पहले इस थाईलैंड को स्याम के नाम से जाना जाता था। बैंकाक को देवताओं का शहर माना जाता है। इसके अधिष्ठाता भगवान बुध्द है। यह शहर इन्द्र द्वारा प्रदत्त विष्णु कर्म से निर्मित है। बैंकाक का कुल क्षेत्र 1565 वर्ग कि.मी. है और इसकी जन संख्या 1 करोड़ के आसपास हैं। यह शहर चौपाया नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां की 96% जनसंख्या बौध्द है, शेष में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि हैं। यहां अभी भी राजतंत्र है। साम्राज्य की स्थापना सन 1782 में हुई। यहां के राजा को राम कहा जाता है। अयुथ्या, जो अयोध्या का ही संभवतः अपभ्रंश है, यहां की शासकीय राजधानी है। इस समय थाईदेश के राम के दसवे वंशज राजा वजीरालागकार्न शासक हैं। उनका राज्याभिषेक वर्ष 2016 में बड़े ही भव्य समारोह में किया गया था। इससे पहले उनके पिता थाईलैंड के नौवें राजा राम थे, उनका नाम सम्राट भूमिबोल अदुल्यदेज था। इस प्रकार थाईलैंड़ में शासन की परंपरा राम से अभिहित है। यह जानकारी पुलकित कर देने वाली थी। गंतव्य की ओर कार जा रही थी और हमारी विचार की वीथिका में हम अयोध्या पहुंच गए थे। राम भारत की धरती पर जन्मे थे, उनको भगवान का दर्जा भारत ने दिया किन्तु अपनी स्वतंत्रता के 73 वर्ष के बाद भी भारत के लोग राम के मंदिर के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा रहे हैं और एक थाई देश के लोग हैं जिनके राम भगवान नहीं है, महात्मा बुध्द हैं किन्तु जिन्होंने अपने शासन प्रशासन के प्रतीक के रूप में अपने शासक को राम नाम से अलंकृत कर रखा है। कैसी विसंगति है!
बैंकाक में ट्रैफिक की वैसी ही समस्या है जैसी मुंबई या दिल्ली में। हमारी समझ में तब आया कि ट्रैफिक की समस्या केवल मुंबई में ही नहीं सभी देशों के महानगरों में समान रूप से है। अतएव चिंता की बात सब जगह समान रूप से है। धानुका जी बता रहे थे कि सबेरे – शाम बहुत समस्या रहती है। यहां मोटर साइकिल अधिक नहीं हैं किन्तु कार बहुत बड़ी संख्या में हैं, अतएव ट्रैफिक हमेशा रहता है। बहरहाल हम सभी होटल सोमरसेट पहुंचे, जहां हमारा चार दिन का प्रवास निश्चित था। भव्य होटल के प्रवेश द्वार पर ही परिचारिका ने हाथ जोड़ कर विनम्रता के साथ हमारा ‘स्वादीका’ अर्थात नमस्ते से स्वागत किया। बैंकाक पर्यटन का सबसे आकर्षक और अंतरराष्ट्रीय केन्द्र है, इसके बावजूद भी थाई देश के लोगों ने अपनी भाषा नहीं छोड़ी है। यह हमारे जैसे अंग्रेजी के पीछे भागने वालों के लिए एक सबक है। श्री धानुका ने हमें अपने कमरे में पहुंचाया और यथाशीघ्र अगले कार्यक्रम के लिए तैयार होने के लिए कह कर, अपने घर चले गए।
हमारा पहला कार्यक्रम बैंकाक के एक व्यवसायी श्री नरेश चन्द्र शर्मा जी के घर पर दोपहर के भोजन के साथ रखा गया था। निश्चित समय पर हम सुशील जी के साथ उनके घर पहुंचे। भव्य और आलीशान फ्लैट में वहां पहले से ही बहुत सारे स्थानीय भारतीय मौजूद थे। सभी ने बड़ी आत्मीयता से हमारा स्वागत किया। बैंकाक में बहुत सारे हिन्दू परिवार रहते हैं, जो हीरा, निर्माण तथा कपड़े के उद्योग व्यापार में वर्षों से हैं। स्वयं श्री नरेश जी विगत चालीस साल से बैंकाक में रह रहे हैं, लेकिन आज भी उनके घर का पूरा परिवेश और वातावरण हिन्दू संस्कार और परंपरा से पूर्ण था। घर में भव्य एवं सुंदर मंदिर है। बच्चों ने भी हमारा स्वागत नमस्ते से किया, तिलक लगाया, आरती उतारी गई। स्वागत की उस परंपरा ने हमें अन्दर तक अभिभूत कर दिया। कार्यक्रम का प्रारंभ श्री अजय जी के सुंदर मंगलाचरण एवं भजन से हुआ, उसके बाद लगभग एक घंटे तक लोगों ने राम चरित मानस की चौपाइयों और उनकी व्याख्या का आनंद लिया और भोजन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। बैंकाक में बसे भारतीय प्रवासियों के इस पहले समागम में ही, हमें उनमें अपनी संस्कृति, संस्कार के प्रति लगाव और उसको और अधिक जानने की इच्छा नें प्रभावित किया था। वहां कई परिवार ऐसे हैं, जो लगभग दो तीन पीढ़ियों अर्थात 50-70 वर्षों से बैंकाक में रह रहे हैं लेकिन सभी अपने भारतीय और हिन्दू होने के प्रति बहुत जागरुक लगे। उनके मन में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति विशेष सम्मान है और वे उन पर गर्व करते हैं। सभी का यही मत था कि बहुत दिनों के बाद देश को एक दृढ़निश्चयी एवं निष्ठावान प्रधानमंत्री मिला हैं।
नरेश जी के यहां से हम सभी वापस अपने होटल लौट आए। सायंकाल श्रीमद् सुंदरकांड का पाठ श्री सुशील जी के घर पर ही आयोजित था। हम सभी समयानुसार सायं 5.00 बजे सुशील जी के घर पहुंच गए। सुशील जी का घर बहुत ही भव्य और भारतीयता से संपन्न है। उनके लिविंग रूम में भगवान के सुंदर चित्र थे। भारतीय कलाकृतियों से सजा संवरा वह फ्लैट सबके आकर्षण का केन्द्र था। पूरा घर भारतीय परिवारों से भरा था। सभी ने श्री अजय जी के मुखारविन्द से श्रीमद् सुंदरकांड की संगीतमय प्रस्तुति का आनंद लिया। भक्तिमय प्रस्तुति से आत्मविभोर लोगों के परिचय के क्रम में हमें भारत के सुप्रसिध्द संत नीम करौली बाबा के वंशज श्री मनमोहन शर्मा से भी मुलाकात का अवसर मिला जो विगत 30 वर्षों से बैंकाक में सेवारत हैं, लेकिन अभी भी प्रत्येक वर्ष भारत आकर अपने पूर्वजों की स्थली का दर्शन अवश्य करते हैं।
अगले दिन का कार्यक्रम बैंकाक के सुप्रसिध्द और संभवतः सबसे बड़े विष्णु मंदिर में था। जब हम कार्यक्रम के लिए पहुंचे, मंदिर का सभा मंडप श्रध्दालुओं और भक्तों से खचाखच भरा था। विष्णु मंदिर का अभी-अभी नवीनीकरण हुआ है। इस मंदिर में लगभग सभी देवता विराजमान हैं। एक बड़ी यज्ञशाला भी है, जहां हर सप्ताह हवन आदि अनुष्ठान होते हैं। इस मंदिर का प्रबंधन मूल रूप से गोरखपुर तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के हाथ में हैं। विगत चालीस वर्षों से यह मंदिर वहां के भारतीय प्रवासियों की श्रध्दा का केन्द्र है। भारतीय प्रवासियों की श्री हुनुमानजी में आस्था से हम अभिभूत थे। कार्यक्रम समाप्त कर के हम सभी बैंकाक दर्शन के लिए निकले। पर्यटन की दृष्टि से बैंकाक शहर विश्व का सर्वाधिक पसंदीदा का केन्द्र है। अभी हाल ही में मास्टर कार्ड के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2018 में बैंकाक में सबसे अधिक पर्यटक आए। इस वर्ष 2 करोड़ 28 लाख विदेशी पर्यटकों ने बैंकाक की यात्रा की जबकि पेरिस 1 करोड़ तथा लंदन 1 करोड़ 91 लाख, दुबई 1 करोड़ 59 लाख तथा सिंगापुर में 1 करोड़ 47 लाख लोगों पर्यटक आए। इसका परिणाम यह हुआ है कि वैश्विक मंदी के दौर में भी थाईदेश की मुद्रा बाट (इरहीं) अधिक मजबूत हो गई है। वहां की एक भाट मुद्रा भारत के दो रुपए 50 पैसे के लगभग है। इन आकड़ों को देख कर दिल यह सोचने पर अवश्य मजबूर होता है कि भारत में दर्शनीय स्थलों की बहुलता और विविधता होने के बावजूद हम अपने यहां पर्यटकों को क्यो नहीं आकर्षित करते और भारत के अद्भुत शिल्प, वास्तु तथा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थानों का दर्शन कराते? ध्यान में यह आता है कि विगत 70 वर्षों में हमने इस क्षेत्र पर ध्यान ही नहीं दिया। किन्तु प्रसन्नता का विषय यह है कि इस बार स्वतंत्रता दिवस के अपने राष्ट्र संबोधन में प्रधानमंत्री ने पर्यटन को बढ़ाने का विशेष आग्रह किया है और उसे राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण तथा आवश्यक बताया।
बैंकाक शहर चौपाया नदी के किनारे बसा हुआ है। यह नदी बैंकाक के बीचोबीच बहती है। इसका पूर्वी भाग गांव की तरह है अर्थात वहां अधिक हरियाली है, खेत है, वन प्रदेश है, तथा छोटे-छोटे घर हैं। पश्चिमी भाग में ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं हैं, कारपोरेट कार्यालय हैं, राजमहल है तथा सरकार के सभी कार्यालय और व्यापारिक-व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के भव्य भवन हैं। यह बात बिलकुल सत्य है कि बैंकाक की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा प्रर्यटन से आता है। बैंकाक में लोग मनोरंजन और तनोरंजन की दृष्टि से अधिक आते हैं। भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के लोगों के लिए यह शहर आजकल डेस्टिनेशन मैरिज का सबसे बड़ा केन्द्र है। हमें बताया गया कि प्रति वर्ष यहां भारतीयों के हजार या उससे भी अधिक विवाह होते हैं। भारत से लोग चार्टर्ड प्लेन ले के आते हैं। दो-तीन दिन यहां ठहरते हैं, मौज-मस्ती करके वापस जाते हैं। बच्चों का विवाह केवल एक औपचारिकता रहती है। विवाह में आए लोगों का अधिकांश समय समुद्र तट पर मसाज पार्लर अथवा जुआ घर (कैसीनो) में बीतता है। खाओ, पियो और मौज करों की संस्कृति से संपन्न यह नगर सांझ ढ़लते-ढ़लते एक दूसरे रूप में बदल जाता है। यद्यपि पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रात्रि का बैंकाक है फिर भी उस पर अधिक बात न करते हुए जो बात विशेष है वह यह है कि बैंकाक बहुत ही संवेदनशील, सरल और मितभाषी लोगों का शहर है। अपने चार दिनों के प्रवास में हमने किसी को वहां बहुत जोर से बोलते हुए अथवा झगड़ा करते नहीं देखा। तथापि, वे स्वाभिमानी बहुत होते हैं। यदि आप उनसे जोर से बात करेंगे, या उनको अपशब्द कहेंगे तो फिर आपसे कोई संबंध नहीं रखेंगे। श्री धानुका जी बता रहे थे कि हम अपने घर में काम करने वाले नौकरों / नौकरानियों से डाट-डपट नहीं कर सकते। यह थाई देश के लोगों की खासियत है।
अगले दिन हमारा बैंकाक शहर के मुख्य पर्यटक, स्थलों, मंदिरों तथा एतिहासिक स्मारकों को देखने का कार्यक्रम था। श्री खेतान जी के साथ हम सबसे पहले बैंकाक के प्रसिध्द बौध्द मंदिर (इमेराल्ड बुध्द), जिसे थाई में वाट फ्रा कायू बोलते हैं, पहुंचे। हमें बताया गया कि इस स्थान को देखने के लिए सबसे अधिक पर्यटक आते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस मंदिर के 2 कि.मी गलियारे में आपको रामायण के विभिन्न प्रसंगों की 178 सुंदर कलाकृतियां देखने को मिलेंगी, जो सबको मुग्ध करती हैं। इस मंदिर में आप, जूते, चप्पल, निकर (शार्टस्) और बिना बाजू की शर्ट्स पहन कर प्रवेश नहीं कर सकते हैं। पूरा मंदिर महाराजा के ग्राउंड पैलेस (राजमहल के प्रांगण) में स्थित है।
यहां भगवान बुध्द की मूर्ति ध्यान मुद्रा में है जो बहुमूल्य रत्न की एक ही शिला में उकेरी गई है। ऐसा कहा जाता है कि इस मूर्ति का निर्माण काल 15हवी शताब्दी है। मंदिर के गर्भगृह में वैसे पर्यटकों का प्रवेश निषिद्ध है, किन्तु मूर्ति से 10 फीट की दूरी से ही दर्शन करने की व्यवस्था है। मूर्ति का स्पर्श और उसके पूजन का अधिकार केवल वहां के राजा का है।
मंदिर का भव्य प्रांगण और उसमें भी चारों तरफ छोटे-छोटे बौध्द मंदिर, उसकी शोभा को द्विगुणित करते हैं। एक विशेष यह भी है कि थाईलैंड के राज परिवार में यदि किसी की मृत्यु होती है, तो उसके अंतिम अवशेष इसी मंदिर में रखे जाते हैं और उनके स्मृति शेष को इसी मंदिर मे बड़ी पवित्रता के साथ संजोकर रखा जाता है। जब हम वहां पहुंचे, तो वहां पहले से ही हजारों की संख्या में पर्यटक मौजूद थे। पूरे मंदिर में प्रवेश एवं दर्शन का शुल्क 500 बाट है अर्थात रुपये 1200/-। यह मंदिर प्रात: 8.30 से दोपहर 3.30 तक खुला रहता है। इस मंदिर का शिल्प कम्पूचिया में अंगकोरवाट मंदिर (विष्णु मंदिर) से काफी मिलता जुलता है। इसका एक माडल भी उक्त मंदिर के प्रांगण में उपलब्ध हैं। चूंकि इमराल्ड बुध्द मंदिर राजभवन के प्रांगण में ही है, अतः राजमहल का एक नजारा भी देखना आवश्यक था। मंदिर से निकल कर जब हम निकास द्वार से बाहर आए तो सामने थाईलैंड के रक्षा मंत्रालय का भवन था। वहां से आगे बढ़ कर हम थाईलैंड के राजभवन के भव्य प्रांगण में आए। बैंकाक शहर का सबसे आकर्षक, मनमोहक और अपने शिल्प से स्तब्ध करने वाला राजभवन। यहीं थाईलैंड सरकार का मुख्य कार्यालय और मुख्य न्यायालय है। राजभवन का शिल्प थाईलैंड देश के शिल्प, स्थापत्य और कला का बेहतरीन नमूना है। यहां जैसे नई-दिल्ली का इंडिया-गेट का विशाल प्रांगण है वैसा ही यहां भी बड़ा मैदान है। जहां राजा का राज्याभिषेक तथा विदेशों से आने वाले राजाध्यक्षों, राजनायिकों का स्वागत किया जाता है।
इसके बाद हमने एक और बहुत ही प्रसिध्द मंदिर के दर्शन किए, जहां भगवान बुध्द लेटे हुए हैं जिसे रिक्लाइनिंग बुध्दा कहा जाता है। थाई भाषा में यह मंदिर वाट फो के नाम से प्रसिध्द है। इस मंदिर में बुध्द की शयन मूर्ति ठीक वैसी ही है, जैसे हमारे थिरुवनंतपुरम्, केरल में शेषशायी भगवान विष्णु की मूर्ति है। केवल अंतर इतना है कि यहां बुध्द ने लेटे हुए अपने हाथ के सहारे अपना मस्तक को ऊंचा रखा हुआ है। बुध्द का यह मंदिर राजभवन से दक्षिण में रतनकोसिन द्वीप पर स्थित है। यह मंदिर थाईलैड के छः बड़े मंदिरों में गिना जाता है। इस मंदिर को भी राज्याश्रय प्राप्त है। थाईलैंड के पहले सम्राट राम-प्रथम द्वारा इसका निर्माण किया गया था, बाद में सम्राट राम-तृतीय द्वारा इसका विस्तार किया गया। इस मंदिर में भगवान बुध्द की सबसे अधिक संख्या में मूर्तियां हैं। गर्भ गृह में भगवान बुध्द की लेटी हुई मूर्ति 46 मीटर लम्बी है।
यह मंदिर थाईलैंड का सबसे प्राचीन एवं प्रथम लोक शिक्षण केन्द्र के रुप में विख्यात है। यहां पर थाई औषधि का विद्यालय अभी भी चलता है, जो थाई-मालिश (मसाज) का प्रारंभिक शिक्षण केन्द्र है। यहां अभी भी थाई मालिश का प्रशिक्षण दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन ने इसे विश्व स्मृति कार्यक्रम के अंतर्गत मान्यता प्रदान की है।
इसके उपरांत हम सब ने स्वर्ण बुध्द मंदिर की ओर अपना रुख किया, जो थाई भाषा में फ्रा बाट था। यह महा सुवना पलिमकॉन अर्थात बुध्दम् सुवर्ण पट्टिक्म्य के नाम से विख्यात है। भगवान बुध्द की यह स्वर्ण मूर्ति पद्मासन में ध्यानावस्थित है। इसका कुल वजन 5.5 टन है (अर्थात 5500 कि.ग्रा.)। इसे पहले 2000 वर्षों तक रंगीन कांच और स्टू से ढंका गया था। बाद में मूर्ति के पुनर्स्थापन के बाद उसके आवरण को हटा दिया गया और अब यह स्वर्ण मूर्ति पूरी भव्यता और सौदर्य के साथ स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति सुखोथाई साम्राज्य के अंतर्गत स्थापित की गई थी। इस मूर्ति में बुध्द का मुख अंडाकार है।
इस मूर्ति की बनावट में भारतीयता की स्पष्ट छाप दिखती है। यह मूर्ति 3 मीटर अर्थात (9.9 फीट) ऊंची है। इसको नौ भागों से जोड़ कर स्थापित किया गया है। इसमें भगवान बुध्द को बोध गया में प्राप्त बोध (ज्ञान) के समय भूमि स्पर्श मुद्रा में दर्शाया गया है। इसमें भगवान अपने दाहिने हाथ की हथेली से भूमि स्पर्श करते हुए दिखाए गए हैं।
इस स्वर्ण मूर्ति का मूल्य 250 मिलियन डॉलर आंका गया है। यह 18 कैरेट स्वर्ण से बनी 99% शुध्द स्वर्ण की मूर्ति है। इसका वजन 45 कि.ग्रा. है। मंदिर का शिल्प और चित्रकारी अद्भुत है। वहां से हटने का मन ही नहीं कर रहा था। किन्तु समय की कमी के कारण हम पूरे मंदिर को सही प्रकार से नहीं देख सके।
मंदिर से बाहर निकले तो सांझ उतर रही थी। सूर्य अस्ताचल गामी हो रहा था। उसकी अरुणिम आभा चौपाया नदी के जल पर बिखर रही थी। बहुत ही सुंदर दृश्य था। हमें चौपाया नदी के किनारे ही श्री मदनजी लाखोटिया के घर सत्संग एवं भोजन के लिए जाना था। श्री लाखोटिया जी का घर चौपाया नदी के बिलकुल किनारे है। कुछ देर नदी के किनारे बैठ कर प्रकृति का आनंद लिया और बाद में उनके घर में रात्रि-भोज का आनंद लेकर होटल वापस आए।
चौथा दिन, यात्रा की समाप्ति का था, सबेरे अपना सामान पैक करने में लगाया। बाद में नजदीक ही बाजार में जाकर कुछ खरीदारी की। थाईलैंड के बाजार चीन, भारत तथा कोरिया के माल से भरे पड़े हैं। चीन का माल बहुत है चाहें वह कपड़ा, क्राकरी, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक सभी जगह चीन के उत्पाद बहुत बड़ी मात्रा में आपको दिखेंगे। सही मायनों में इन मामलों की दृष्टि से थाईलैंड में चीन का वर्चस्व है। भारत अभी भी काफी पीछे है। हमारी दोपहर की फ्लाइट थी। पुनः स्वर्णभूमि विमानपत्तन पर आए। प्रवेश द्वार पर समुद्र मंथन की विशाल प्रतिमा थी। एक ओर दानव, दूसरी ओर देवता और बीच में अमृत कलश। प्रणाम किया हमने थाईदेश की संस्कृति और संस्कार को जिन्होंने उसे अभी तक संजोकर रखा है। ध्यान में यह बात आई कि आज भारत से हजारों पर्यटक यात्री, बारातें थाईलैंड, बैंकाक जाते हैं, लेकिन क्या उन्हें भारत की इस अनमोल विरासत को देख कर गर्व की अनुभूति होती है? यह प्रश्न अनुतरित है। क्योंकि हम किस भाव से जाते हैं, उसका महत्व है। रामचरित मानस में धनुष यज्ञ का प्रसंग है। राम जी सीता का वरण करने के लिए शिव धनुष को खंडित करने के लिए खड़े होते हैं। सभी राजाओं की दृष्टि उन पर पड़ती है। राम जी को सभी देखते हैं। लेकिन अपनी-अपनी दृष्टि और अपनी-अपनी भावना से। तुलसी ने लिखा-जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत तिन देखी तैसी। जिसकी जैसी भावना थी, प्रभु के विग्रह में उसे वही रूप देखने को मिला। बैंकाक को भी देखने-समझने-जानने और तदनुसार अपनी अपनी पसंद के अनुसार उसका अनुभव करने का अपना अपना तरीका हो सकता है।
बैंकाक एयरपोर्ट के प्रस्थान टर्मिनल पर विशाल समुद्र मंथन की प्रतिमा हमें यही स्मरण करा रही थी कि बैकाक शहर में दानव और देव शक्ति द्वारा निरंतर मानव जीवन के मंदराचल का मंथन चल रहा है। इसमें से भोग और वासना का विष घट भी निकलता है, किन्तु तब बैंकाक में निशा का अंधकार रहता है। सूर्य के उजास में यहां भगवान बुध्द की शरण में अध्यात्म के आनंद का अमृत कलश भी प्रकट होता है। निर्णय यहां से प्रस्थान करने वाले को लेना रहता है कि वह यहां से क्या ले जाना चाहता हैं। एयरपोर्ट पर सूर्य का उजास हमें बुध्दम् शरणम् गच्छामि का संदेश दे रहा था।