वेद व्यास एवं  शिष्य जैमिनी

वेद व्यास ने मनुस्मृति में एक श्लोक लिखा है जो इस प्रकार है-

मात्रा स्वस्रा दुहिता वा न विवक्तासनो भवेत्।

बलवानिन्द्रियग्रामोे विद्वांसमपि कर्षति॥ 2.215

इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि स्त्री चाहे मां, पुत्री या बहन ही क्यों ना हो, उनके साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि इन्द्रियां बहुत चंचल एवं बलवान हैं। भलो-भलों को फुसला कर उन्हें पथभ्रष्ट करने की क्षमता रखती हैं। इस श्लोक को पढ़ कर एवं गुरूदेव वेद व्यास से इसका अर्थ जानकर, शिष्य जैमिनी ऋषि ने बड़े विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि गुरूदेव यह श्लोक बड़ा अखरने वाला है। क्या मानव इतना कमजोर है क़ि यों ही मात्र सम्पर्क की वजह से फिसल जाए।

इस पर गुरूदेव वेद व्यास ने कहा कि तुम्हें नहीं जंचा हो तो इसको काट दो। जैसे ही गुरूदेव से यह सुना, शिष्य जैमिनी ऋषि ने, तुरंत उस श्लोक पर ‘गेरू’ के छींटे लगा दिए, ताकि यह लगे कि यह श्लोक अनुचित है।

इस बात को कुछ समय गुजर गया। गर्मी का मौसम समाप्त होकर वर्षा ऋतु का आगमन हो गया। एक रोज जैमिनी ऋषि, अपनी कुटिया में अकेले बैठे थे। आकाश में बादल छाये हुए थे।  कुछ देर में मूसलाधार वर्षा होने लगी। ऋषि ने अपनी कुटिया का दरवाजा बंद कर लिया। कुछ ही देर में, एक  सर्वांग सुंदरी षोडशी नखशिख श्रृंगार किए वहां आई एवं ऋषि की कुटिया का दरवाजा खटखटाया। ऋषि ने कुटिया का दरवाजा खोल कर देखा तो पाया कि एक सर्वांग सुंदरी षोडशी, सर्व श्रृंगारों से युक्त, भीगे वस्त्रों में. उनके दरवाजे पर खड़ी है।

ऋषि जैमिनी ने असमय में उस षोडशी को देख कर, उसके वहां आने का प्रयोजन पूछा। उसने बताया कि वह ससुराल से पीहर जा रही थी। रास्ते में बारिश आने के कारण भटक कर रास्ता भूल गई है। यह सोच कर कि यह तो ऋषि आश्रम है, आश्रय प्राप्त करने आ गई है।

कुछ ही देर में वर्षा थम गई। वर्षा थमते ही वह सुंदरी अपने कपड़े, निचोड़ कर उन्हें कुटिया के बाहर सुखा रही थी क़ि इतने में बादलों में से जोर से बिजली चमकी। उस बिजली की चमक में, उस स्त्री का सद्यस्नाता सौंदर्य देख कर ऋषि जैमिनी पसीज कर इतने काम विहृल हो गए कि वह उस सुंदरी षोडशी से प्रेम एवं काम की भीख मांगने लगे।

उस सुंदरी षोडशी ने कहा- मुझे इस बरसाती वर्षा से भीगी रात में आपने देखा है, अतः लगता है कि आपकी वासना उद्दीप्त हो उठी है। परंतु आपका प्यार मेरे प्रति सच्चा है या नहीं इस बाबत मैं आश्वस्त होना चाहती हूं।

ऋषि जैमिनी ने बात बनती देख कर उस सुंदरी से कहा-   प्रिये, बता मुझे क्या करना है, जिससे तुम्हारा दिल मेरे प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर ले।

उसने कहा- ऋषि प्रवर आप मुझे अपनी पीठ पर बिठा कर इक्कीस चक्कर इस आश्रम के काट लें, तो मेरा मन आश्वस्त हो जाएगा कि आपका मेरे प्रति प्रेम सच्चा है एवं गहरा भी है।

ऋषि ने तुरंत घोड़ा बन कर, उस सुंदरी को अपनी पीठ पर बिठा कर आश्रम के इक्कीस चक्कर काट कर, उसे नीचे उतारते वक्त उसी स्थिति में ही पूछा कि सुंदरी बता अब तो तुम्हें विश्वास आ गया या नहीं।

यह कह कर ज्यों ही वह अपने घुड़ आसन से खड़े हुए, तो क्या देखते हैं क़ि उस सुंदरी की जगह गुरूदेव वेद व्यास जी खड़े-खड़े मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। ऋषि जैमिनी, गुरूदेव वेद व्यास के पांव पड़े एवं इस कठोर परीक्षण का कारण जानना चाहा, तो गुरूदेव ने बड़ी स्मित मुसकान के साथ कहा कि मैं तो उस श्लोक के बारे में ही सोच रहा था कि उसे मनु स्मृति में रख दें या काट दें।

 

 

 

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