पंचकोशों का शुद्धिकरण स्वच्छ भारत की बुनियाद

मनुष्य के पांच कोश होते हैं-अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय। व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र के जीवन में इनके असंतुलन से सारी समस्याएं पैदा होती हैं। इनके शुद्धिकरण से ही भारत स्वच्छ होगा।

मेरा प्रिय विषय है पंचकोश। आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा- बताइए, इस कक्षा में कितनी छात्राएं भारतीय हैं? छात्राएं हंसने लगीं और सब ने हाथ उठाए। अगला प्रश्न पूछा- यहां कितनी छात्राएं देशभक्त हैं? फिर सभी हाथ ऊंचे उठे। फिर पहली बेंच पर बैठी छात्रा से मैंने पूछा- आप क्यों स्वयं को भारतीय मानती हैं? उसने गर्व से कहा- क्योंकि मैं इस देश में पैदा हुई हूं। और क्या चाहिए? मैंने जवाब में कहा- जेल में बंद सभी अपराधी भी भारत में ही पैदा हुए हैं। ‘होंंगे’, अन्य छात्राओं ने कहा- ‘लेकिन, उन्हें भारतीय पासपोर्ट नहीं दिया जाता।’ मैंने कहा- तो क्या भारतीय पासपोर्ट होने से ही हम भारतीय हो जाते हैं? एक अन्य दक्षिण भारतीय छात्रा ने कहा- मैं भारतीय जीवन-शैली से जुड़ी हूं, इसलिए भारतीय हूं। अपनी संस्कृति बहुत समृद्ध है और पूरी दुनिया इसकी प्रशंसा करती है। मैंने कहा- आपके साथ बैठी आपकी सहेली उत्तर भारत की है और उसका रहन-सहन भिन्न है। उसका पहनावा, भोजन, भाषा हर चीज आपसे भिन्न है। फिर भी वह स्वयं को भारतीय कहती हैं। तो, ऐसी क्या बात है कि हम स्वयं को भारतीय मानते हैं? सब सोच में पड़ गईं। क्या आप अपने आप को इसलिए भारतीय मानती हैं कि आपके विचार एक जैसे हैं, अथवा आपका दर्शन एक है, या कि एक धर्म है अथवा एक ही भगवान को आप सभी पूजती हैं? एक के बाद एक ने ‘ना’ में सिर हिलाए। वे चाहती थीं कि मैंने जो प्रश्न पूछकर उन्हें आंदोलित किया उसका मैं ही समाधान करूं। मैंने कहा- जापान अनुशासन और अपनी जीवन-शैली के लिए जाना जाता है, स्विट्जरलैण्ड अपने कोकोलेट के लिए मशहूर है, जर्मनी अपनी टेक्नालॉजी के कारण प्रसिद्ध है, ठीक ऐसे ही भारत अपने आध्यात्मिक-ज्ञान के लिए स्थान रखता है। ‘भा’ याने दीप्ति, आभा। ‘रत’ याने चेतना से परिपूर्ण। अर्थ हुआ- भारत याने आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण लोगों का देश। इसलिए जो स्वयं को भारतीय कहते हैं उनका दायित्व है कि वे इस देश के हर क्षेत्र में इस दिव्यता को प्रतिष्ठापित करें। शिक्षा, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, समाज आदि से इसकी शुरुआत करें।

पंचकोश का सिद्धांत क्या है?

भारतीय लोग प्राचीन समय से इसका सहज पालन कर रहे हैं। व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के रूप में अपने दायित्वों को पूरा कर रहे हैं और इस देश में देवत्व स्थापित कर रहे हैं। ईश्वर, आत्मा और प्रकृति ही पूर्ण ज्ञान है। प्रकृति के जरिए ही आत्मा की ईश्वर की ओर यात्रा शुरू होती है। ईश्वर को पाना ही हमारा लक्ष्य है। इसलिए हमें पहले प्रकृति को समझना होगा, उसके विभिन्न आयाम और उनके विस्तार को जानना होगा। अपने शरीर, बाद में परिवार, बाद में समाज और इस तरह जानने का यह क्रम है। पंचकोश के सिद्धांत से हमें प्रकृति को समझने और उससे शास्त्रीय तौर से पेश आने में सहायता मिलती है।

व्यक्ति के पंचकोश

व्यक्ति के स्थूल शरीर को पांच कोशों में विभाजित किया जाता है, जो हैं- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश। अन्नमय कोश का माने है यह जड़ शरीर, प्राणमय कोश, मनोमय कोश और विज्ञानमय कोश का अर्थ है सूक्ष्म शरीर, और आनंदमय कोश कारण शरीर होता है। बाह्य शरीर अन्नमय होता है, जो पंचतत्वों से बना है- जैसे कि भूमि, पानी, अग्नि, वायु और आकाश। अगला कोश है प्राणमय, जो 72,000 हजार सूक्ष्म नलिकाओं से प्राण ग्रहण करता है। ग्रहण-बोध, पाचन, संचरण, शौच, सोच आदि विभिन्न कार्य प्राण निभाता है। प्राणमय के बाद मनोमय कोेश का क्रम आता है, जो मन से जुड़ा है, विज्ञानमय कोश अंतर्ज्ञान या सहज ज्ञान से बना है। अंत में दिव्यता की अंतिम अवस्था आती है, जिसे आनंदमय कोश कहते हैं और जो चिदानंद स्थिति है।

जीवन का लक्ष्य है इन पांच कोशों का शुद्धिकरण। जब अन्नमय कोश का शुद्धिकरण होता है तब हम स्वस्थ बनते हैं। जब प्राणमय कोश का शुद्धिकरण होता है तब हम कुशल और कुशाग्र बनते हैं। मनोमय कोश का शुद्धिकरण होने पर संवेदनशील बन जाते हैं। विज्ञानमय कोश से हमें नीरक्षीर विवेक प्राप्त होता है। और, जब आनंदमय कोश तक पहुंचते हैं तब हम कृतार्थ हो जाते हैं। इस तरह पूर्ण व्यक्ति वह है जो स्वस्थ, कुशाग्र, संवेदनशील, चेतनामय और कृतार्थ है।

पंचकोश की पंच दिशाएं

ऐसा व्यक्ति जीवन में आने वाली हर चीज को समग्र दृष्टि से देखता है। वह लोगों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों को समझ सकता है। मिसाल के तौर पर लोग जब वीर सावरकर का चित्र देखते हैं तो उनके मन में भिन्न-भिन्न भाव उभरते हैं। कुछ उनकी कर्मठता, जेल में यातनाएं भोगने के बावजूद लक्ष्य से न हटने की उनकी दृढ़ता याने उनके भौतिक शरीर से प्रभावित होते हैं। उस चित्र की ओर वे अन्नमय कोश याने चर्मदृष्टि से देखते हैं। दूसरे उसी चित्र को देखकर उनके द्वारा लिखी पुस्तकों, संकट के समय में देशभक्तों को उनसे मिली प्रेरणा, बर्तानवी जहाज से समुद्र में कूदकर तैरकर निकलने के उनके अदम्य साहस से आलोकित हो सकते हैं। प्राणमय कोश स्तर की यह कर्मदृष्टि है। कुछ अन्य को उनकी देशभक्तिपूर्ण कविताएं और समाज से अस्पृश्यता हटाने की उनका आग्रह आकर्षित कर सकता है। मनोमय कोश स्तर की यह मर्मदृष्टि है। कुछ वीर सावरकर की कुशाग्र बुद्धि, मगरूर ब्रिटिशों से उनके दो-दो हाथ, हथियार जुटाने, इस्लामी आतंकवाद के प्रति उनकी दूरदृष्टि से मोहित हो सकते हैं। उन्होंने यह भी घोषित किया था कि हिंदू जब राजनीतिक रूप से सचेत हो जाएंगे तब वोट बैंक के खातिर मुस्लिम तुष्टीकरण को सहलाने वाले भ्रष्ट राजनेता अपने शर्ट के ऊपर जनेऊ पहने घूमेंगेे। विज्ञानमय कोश के स्तर पर यह विवेकदृष्टि है। और अंत में, जो इस चित्र को आनंदमय कोश के स्तर पर भावदृष्टि से देखते हैं, वे उनके पूरे परिवार समेत स्वतंत्र भारत के अभियान के प्रति नतमस्तक होंगे।

व्यक्ति के पंचकोशों का शुद्धिकरण

अन्नमय कोश के शुद्धिकरण के लिए हमें सौहार्द के सार्वभौम तत्व (सार्वभौम व्रत) पर चलना होगा। सामाजिक नीति-तत्वों पर चलना होगा। इन्हें यम कहते हैं, जो हैं- अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, आस्तेय। इसी तरह व्यक्तिगत नीति-तत्व होते हैं, जिन्हें हम नियम कहते हैं। वे हैं- शौच (स्वच्छता), संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान (भक्तियोग)। इसके तहत समय पर पूर्णता शाकाहार (सात्विकाहाराचारी), अनुशासित नींद (निद्रा), नियमित प्राणायाम व योगसान (आसन, सूर्य नमस्कार इत्यादि) अभिप्रेत हैं। प्राणायाम से प्राणमय कोश का शुद्धिकरण होता है। ईश्वर के नाम संकीर्तन से मनोमय कोश शुद्ध होता है। गुरू, साधु और शास्त्रों के सानिध्य से विज्ञानमय कोश का शुद्धिकरण होता है। सेवा और त्याग से व्यक्ति अंतिम आनंदमय कोश में पहुंच जाता है। पंचकोशों का महत्वपूर्ण तत्व यह है कि वे एक-दूसरे के पूरक हैं। मिसाल के तौर पर अन्नमय कोश प्राणमय कोश का संवर्धन करता है। प्राणमय कोश मनोमय कोश का, मनोमय कोश विज्ञानमय कोश का तथा विज्ञानमय कोश आनंदमय कोश का पूरक है। जब अन्नमय कोश स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगता है तथा अन्य कोशों का पूरक नहीं रहता तब समस्या खड़ी हो जाती है। वैसे भी अंतिम आनंदमय कोश ही जीवन का लक्ष्य है। व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, शब्दों व कृतियों के जरिए अपनी इच्छाएं प्रकट करता है। इन इच्छाओं को जब हम सेवाव्रत की ओर मोड़ते हैं तब दिव्यता प्राप्त होता है। पंचकोश सिद्धांत का अंतिम लक्ष्य भी यही है। आनंदमय कोश के शुद्धिकरण से व्यक्ति ईश्वर, राष्ट्र और धर्म के प्रति समर्पित हो जाता है। इस भक्तियोग को स्नेह का सर्वोच्च स्तर माना जाता है।

परिवार का पंचकोश

परिवार के मुखिया के रूप में जब व्यक्ति परिवार के अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनंदमय कोशों को जान लेता है, तो वह परिवार में देवत्व लाने के लिए कदम उठाता है। परिवार के अन्नमय कोश के तहत परिवार के सदस्यों की संख्या, वृद्धों की संख्या, गायों की संख्या, परिवार की भूमि, घोड़े या अन्य सम्पदा, वाहन, सोना, कीमती रत्न व अन्य सम्पदा, परिवार की भूमि में वृक्षों की संख्या, नदी से निकटता आदि लिए जा सकते हैं। प्राणमय कोश में शामिल है परिवार के सदस्यों की शिक्षा, समाज, मित्रों व रिश्तेदारों के साथ उनके रिश्तें। धार्मिक गतिविधियां, मनोरंजन, खेलकूद, पर्यटन, त्योहारों के लिए संवेदना या ऊर्जा प्राप्त करना भी प्राणमय कोश में शामिल है। परिवार के कुशल लोग (रसोई, ड्राइविंग, खेती, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबिंग, धुलाई, बुहारना, साफसफाई, मकान बनाना आदि) परिवार के प्राणमय कोश को मजबूती प्रदान करते हैं। जीवनावश्यक वस्तुओं को स्वतंत्र रूप से निर्माण करने की क्षमता निर्माण करना तथा आत्मनिर्भर बनना परिवार के अच्छे प्राणमय कोश का लक्षण है।

परिवार का मनोमय कोश इन विभिन्न घटकों से तय होता हैंः क्या परिवार के सभी सदस्य रोज कम से कम एक घंटा आपस में मिल-बैठकर अपनत्व अनुभव करते हैं? क्या परिवार के सभी सदस्य पुस्तकों, फिल्मों, स्कूल-कॉलेज-दफ्तर की घटनाओं व कार्यक्रमों की चर्चा करते हैं? आपस में झगड़ों/विवादों/मतभेदों का प्रभाव कितने समय तक बने रहता है? क्या परिवार का कोई सदस्य अपना आक्रोश या नैराश्य रोकर या अन्य किसी मार्ग से व्यक्त करता है तथा परिवार के अन्य सदस्य उसकी भावनाओं की कद्र करते हैं और उन्हें क्षमा कर देते हैं? क्या घर आए अतिथि का यथोचित स्वागत होता है और उसके बारे मे ठीक से बताया जाता है? किसी के बारे में सूचना आने पर क्या अन्य सदस्य उसकी जानकारी उसे देते हैं? क्या परिवार के सभी सदस्यों के मित्र अक्सर घर आते हैं? क्या परिवार के सभी सदस्य ऐसे दोस्तों का आना अच्छा मानते हैं? क्या परिवार द्वारा दिए गए चन्दे की हर सदस्य को जानकारी होती है? किसी के अचानक घर आने पर परिवार के सदस्यों का बर्ताव कैसा होता है? क्या परिवार का कोई सदस्य पखवाड़े में एक बार ही बातचीत के लिए घर आता है? क्या परिवार और किसी के यहां जाता है? इस तरह परिवार के मनोमय कोश का अंदाजा लिया जा सकता है।

परिवार के विज्ञानमय कोश का अनुमान निम्न घटकों के आधार पर किया जा सकता हैः परिवार में किसी आगामी कार्यक्रम या घटना पर, उस पर लगने वाले खर्च पर या कोई बड़ी वस्तु खरीदी की योजना पर आपस में चर्चा होती है? क्या ईश्वर की आराधना के लिए कम से कम हर हफ्ते मंदिर जाना होता है? क्या परिवार के सभी सदस्य तुलसी पूजा, गोसेवा, मंत्रोच्चारण, शास्त्रों के पठन, संकीर्तन आदि जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं? क्या पूरा परिवार साल में कम से कम एक बार यात्रा पर निकलता है? क्या परिवार के सदस्य अपने रिश्तेदारों के यहां जाकर 2-3 दिन रहते हैं या उनके रिश्तेदार उनके घर इसी तरह आते हैं? क्या परिवार सोलह संस्कारों को करवाता है? क्या परिवार के हर व्यक्ति के दायित्वों के अनुसार सबको सुविधाओं का अंतरण किया जाता है? जिसका अधिक दायित्व होता है क्या उसे अधिक सुविधाएं मिलती हैं? ऊंचे ओहदे का मतलब है अधिक कर्तव्य। इस तरह परिवार के विज्ञानमय कोष का अनुमान लगाया जा सकता है।

परिवार का आनंदमय कोश इस तरह जाना जा सकता हैः परिवार का समाज में योगदान, सामाजिक कल्याण की योजनाओं में परिवार की भागीदारी, पर्यावरण की रक्षा में पर्यावरण का सहभाग, धर्म के अनुष्ठान में परिवार का योगदान। परिवार राष्ट्र की मूल इकाई है। समाज का यह तानाबाना बिगड़ जाने से आज हम दुनिया में विभिन्न समस्याएं देखते हैं। समाज, संगठन, राष्ट्र और पूरे विश्व के पंचकोश की स्थिति का अनुमान लगाकर उसे ठीक किया जा सकता है। सार यह कि पंचकोशों के जरिए कर्मयोग सध सकता है और इस तरह ईश्वर द्वारा निर्मित इस भौतिक जगत के विभिन्न आयामों का शुद्धिकरण कर हमारी चेतना का हम उर्ध्वगमन कर सकता हैें।

मोटिवेटर और स्क्रिप्ट लेखक श्री अनादि सूफी ‘सेक्रेड गेम’ ‘लैला’  और  ‘मिर्जापुर’ जैसी वेब सीरीजों से खासे खफा हैं।  वे कहते हैं कि इस तरह के वेब सीरीज वीभत्सता को आकर्षक बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं। इनको इनको देखकर कोई सामान्य रह ही नहीं सकता।

प्रख्यात कव्वाल स्वर्गीय अज़ीज़ नाज़ा की पत्नी और उर्दू की प्रसिद्ध  लेखिका श्रीमती मुमताज अजीज नाज़ा वेब सीरीज के बल मन पर पड़नेवाले प्रभावों को लेकर बहुत चिंतित हैं ,उनका कहना है कि इंटरनेट पर ज़्यादा कंटेंट ज़हरीले हैं जिससे बच्चों में गुनाह की प्रवृति बढ़ती जा रही है। मोबाईल की सुलभता और न्यूकिलीयर फैमिली में बच्चों को मिलता विपुल एकांत उनको जहरीली दुनिया में ले जा रहा है। इसपर सरकार को रोक लगना चाहिए।  राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की ज्यूरी के दो बार सदस्य रहे सुधांशु श्रीवास्तव का मानना है कि तकनीकी क्रांति और दृश्य -श्रव्य माध्यम पर उसके प्रभावों से समाज अछूता और अलग नहीं रह सकता। इंटरनेट वह प्लेटफॉर्म हो जो किसी देश की सीमाओं में कैद नहीं है। हमें चुनाव के विकल्प भी इसने काफी दिए हैं। हमें स्वशासन ही बेहतर विकल्प लगता है।

उभरते हुए फिल्मकार अर्नेस्ट सिंगरहाँ शिमरा कहते हैं कि  भारतीय समाज पर वेब सीरीज की चलन ने दो तरह से प्रभाव डाला है। पहली बार भारतीय दर्शकों को जहां विविध तरह के विषय देखने को मिल रहे हैं और वे अवास्तविक मसाला फिल्मों से इत्र जीवन की सच्चाइयों को परदे पर अधिक विश्वसनीय अभिनय के साथ देख रहे हैं वहीँ फिल्म निर्माण में स्टूडियो -निर्माता -वितरक की लॉबी का वर्चस्व टूट रहा है। अब निर्माण और वितरण में अधिक पारदर्शिता और लोकतांत्रिकता दिख रही है।

 

 

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