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मोबाइल की लत

मोबाइल की लत

by sonali jadhav
in नवम्बर २०१९, सामाजिक
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आजकल युवा बिना मोबाइल के रह नहीं सकते। इसने सुविधाएं उपलब्ध तो की हैं; लेकिन उससे कई अधिक विपदाएं पैदा की हैं। किसी चीज की लत लग जाना खतरनाक तो होता ही है।

हैलो, एक  खुशखबरी है, लड़का/लड़की का जन्म हुआ है। हां, हां सब ठीक है, अच्छे से हो गया है। अब यह मेरे फोन को किस तरह टुकू टुकू देखती/देखता है। आजकल नवजात बच्चों के सामने आने वाले इस प्रसंग से क्या वे मोबाइल से परिचित नहीं होते होंगे? हमारे माता-पिता और घर के अन्य सदस्यों के साथ ही मोबाइल भी हमारे जीवन का एक अंग है, यह निश्चित रूप से बच्चों की समझ में आता है।

चंदा है तू, मेरा सूरज है तू

ओ मेरी आंखों का तारा है तू,

इस तरह के गानों के साथ ही बच्चों को सुलाने के लिए लोरी डायरेक्ट मोबाइल पर ही सुनाई जाने लगी है।

इट्स माय पमकिन टुमकिन

हैलो हनी बनी,

फिलिंग समथिंग समथिंग

हैलो हनी बनी

ऐसे मधुर गाने बच्चो को सुनाने पर बच्चे हाथ पैर चला कर अपनी ख़ुशी जाहिर करने लगते हैं। आगे जाकर जब उन्हें विज्ञापनों का अर्थ समझ में आने लगता है तब-

आयडिया इंटरनेट जब लगाविंग

दुनिया को ना उल्लू बनाविंग

कैसे उल्लू बनाविंग

ऐसे विज्ञापन आते ही बच्चों की उंगलियां विज्ञापनों की नकल करने के लिए मचलने लगती हैं। तो कैसे आते हैं बच्चो के लिए ऐसे अच्छे-अच्छे आकर्षक गाने? लयबध्द छंद द्वारा तैयार किए गए मज़ेदार विज्ञापनों से प्रभावित होकर बच्चों को मोबाइल का उपयोग करने के लिए कैसी फिलिंग आती है?

मुझे लगता है कि आजकल बड़ों से बेहतर बच्चे अपने माता-पिता को समझाने में सक्षम हैं कि कौन सा मोबाइल अच्छा है और बच्चों  की राय पर ही उस ब्रांड के स्मार्टफोन घर में आते हैं।

साधारण फोन भी उस समय नवीनता की बात थी लेकिन आज तो दो साल का बच्चा भी मोबाइल पर एप चलाता हुआ दिख जाएगा, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मोबाइल का जितना फायदा है उतना नुकसान भी है, मोबाइल के चलते आज छोटे बच्चों का जीवन बर्बाद होता जा रहा है।

पहले हम स्कूल से घर आते थे, बैग रख कर हाथ पैर धोकर खाना खाकर तुरंत आंगन व मैदान में खेलने जाते थे। लेकिन आज मैदान की जगह मोबाइल के स्क्रीन ने ले ली है। इसका दुष्परिणाम बच्चों के मन, मष्तिष्क व शरीर पर अप्रत्यक्ष रूप से हो रहा है।

मैदानी खेल नहीं खेलने के कारण बच्चे शारारिक व्यायाम एवं स्वास्थ्य लाभ से वंचित रह जाते हैं।

ज्ञानवर्धक कहानियों को कालबाह्य ठहरा कर मोबाइल पर कहानियां पढ़ी – देखी जा रहीं हैं. जिससे किताबों के सुगंधी स्पर्श का अनुभव अब धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर है। मोबाइल के स्क्रीन पर लगातार देखने के कारण आंखों की रौशनी कम होती जा रही है। घर में अकेले रहने के कारण माता-पिता इमरजेंसी के लिए बच्चों को मोबाइल दे देते हैं। समय के अनुसार जरूरतें बदलती रहती हैं। बावजूद इसके नियंत्रण रखना आवश्यक है; वरना बच्चें सही उपयोग न करते हुए मोबाइल का दुरूपयोग करने लगते है। अधिकतर बच्चें गेम, चैटिंग, क्लिपिंग आदि देखने में स्वयं को पूरी तरह झोंक देते हैं। नेट सर्चिंग में जैसे कोई भी अच्छी जानकारी पल भर में उपलब्ध हो जाती है, उसी तरह गलत जानकारियों की भी भरमार है।

वर्तमान में एक विज्ञापन टीवी और सोशल मीडिया पर दिखाया जाता है। मां खाना बना रही है, वह व्यंजन बनाने का तरीका देखने के लिए अपने छोटे बेटे से मोबाइल मांगती है, उसे आवाज़ नहीं आती है, इसलिए वह स्वयं देखने चली जाती है और वह पाती है कि लड़का कुछ क्लिप देख रहा है। युवा होने की उम्र में बच्चें यदि गलत राह पर चले जाए तो इसका विपरीत परिणाम होते हम देख रहें हैं। घर पर माता-पिता अब फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी सुविधाओं के कारण इन स्मार्टफोन पर अपना बहुमूल्य समय बिताते हैं। नतीजतन, बच्चों और माता-पिता के बीच संवाद कम हो गया है और एप्लिकेशन पर ही सब चिपके हुए हैं। माता-पिता हमेशा अपनी सुविधा को देखते हुए अपने बच्चों को मोबाइल देते हैं। बच्चे को नींद नहीं आती है, तो बच्चा रोने लगता है, उसे शांत कराने के लिए माता-पिता मोबाइल उसके हाथों में दे देते हैं। शुरुआत में अपनी सुविधा के लिए हम बच्चों के हाथ में मोबाइल तो दे देते हैं लेकिन बच्चों को इसकी आदत कब लग जाती है, यह हमें पता ही नहीं चलता। अब जब जूनियर से लेकर स्कूल तक के बच्चे आईपैड्स का इस्तेमाल करते हैं, तो उनके लिए मोबाइल फोन, कार्ड, मोबाइल, लैपटॉप का इस्तेमाल करना कौन सी खेत की मूली है? इनका इस्तेमाल करने के कारण बच्चें समय से पहले ही बड़े होने लगे हैं। माता-पिता को यह तय करना होगा कि इसे कहां और कैसे नियंत्रित किया जाए।

यदि कोई बच्चा आठ घंटे तक मोबाइल पर रहता है, तो वह शेष 16 घंटों में क्या करेगा? काम, आराम, नींद, परिवार के साथ समय, परिवार के साथ बातें करना, पढ़ना, फिल्में देखना जैसे कई काम 16 घंटे में नहीं किए जा सकते हैं। इसके अलावा, अगर इसे पर्याप्त नींद नहीं मिलती है, तो अगले दिन के लिए व्यक्ति का शेड्यूल ख़राब हो जाता है।

तथ्य यह है कि मोबाइल ने दुनिया में क्रांति ला दी है! अगर आप इसे देखें तो मोबाइल एक वरदान है। कहीं भी आप किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए मोबाइल की वजह से, आपातकालीन स्थिति में, अपने दोस्तों से संपर्क कर सकते हैं। अब मोबाइल का इस्तेमाल हर स्तर के लोग कर रहे हैं। इसलिए इसका दुरुपयोग होने लगा। आप नहीं जानते कि मोबाइल की जरूरत कब लत में बदल गई। बच्चों को इसकी आदत होती जा रही है और युवा पीढ़ी पर इसका सीधा असर दिखने लगा है। इस दृष्टि से, यह मोबाइल हमारा जीवन बर्बाद करता हुआ दिखाई दे रहा है।

कुछ महीने पहले मैंने एक समाचार पढ़ा कि पालघर में एक वयस्क महिला की मृत्यु हो गई और उसके पति अतिवृद्ध होने के कारण, ग्रामीणों ने उसकी बेटी को सूचित किया तब उसने उसके पास समय नहीं होने का हवाला देकर अपने व्हाट्सएप वीडियो के माध्यम से अपनी मां का अंतिम संस्कार किया और ग्रामीणों से अपनी मां की अस्थियां कूरियर द्वारा मंगवाई। यह बात सभी को चौंका सकती है, लेकिन यह मोबाइल की दुनिया में एक वास्तविकता है।

जैसे-जैसे मोबाइल फोन का उपयोग दैनिक जीवन में बढ़ता जा रहा है, विभिन्न सुविधाएं और रियायतें शुरू हो गई हैं। ग्राहक ऐसे प्रलोभनों में फंस गया। इसमें सबसे आसान निशाना युवा थे। इसलिए उन्होंने कैमरे, संगीत जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं का निर्माण किया, जो उन्हें आकर्षित करेगा। ऐसा करते-करते समय के साथ मोबाइल सुविधाओं में वृद्धि होती गई। कहा जाता है कि उम्र, काम, पसंद के अनुसार मोबाइल में आकर्षक सुविधाएं लायी गईं। जब कोई व्यक्ति किसी चीज के बिना नहीं रह सकता है अथवा उसका वियोग नहीं सह सकता है तो इसका मतलब है कि वह उस नशे के अधीन है और उसका आदि है । इसलिए, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी मनुष्य के लिए है,  मानव तकनीक के लिए नहीं।

 

 

sonali jadhav

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